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राजस्थान साहित्य अकादमी के प्रतिष्ठित "'देवीलाल सागर पुरस्कार" से सम्मानित लेखक 'श्याम कुमार पोकरा'

 

यह कृति 'बेलदार' शोषित मजदूरों के संघर्षमय क्लिष्ट जीवन का दर्पण सी लगती है। स्वतंत्रता के पश्चात् देश की तमाम परिस्थितियों में परिवर्तन आया है। किन्तु खदान मजदूरों को जीवन परिस्थितियों में अभी तक कोई खास सुधार नहीं हो पाया है। उनकी मजदूरी उनके श्रम से कम मुध्य पर निर्धारित है और शोषक वर्ग की बेईमानी, छल-छदम अपनी भूमिका निभाते हुए उनके भौतिक और नैतिक जीवनाधार को ऐनकेन प्रकार से कुप्रभावित करते रहते हैं। पत्थर की खदानों का काम बहुत अधिक कठोर व कष्टपूर्ण होता है। खदान मजदूरों की सरलता व अबोधता का खदान मालिक तरह-तरह से लाभ उठाते हैं और उनका शारीरिक व मानसिक शोषण करते हैं। इतना ही नहीं वे धन-बल से इस दुष्कर्म में तमाम. सरकारी अमले को भी किस प्रकार अपना बना लेते हैं, 'बेलदार' का कथानक इसका सच्चा साक्ष्य प्रस्तुत करता है।

 

श्याम कुमार पोकरा

 

जन्म : सात जुलाई 1961, गाँव - रिछड़ीया, तह, रामगंजमंडी, जिला-कोटा (राज.)

 

शिक्षा: आईईटी ई. नई दिल्ली से इलेक्ट्रानिक्स स्व टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग में डिग्री।

 

कृतित्व : दो टेलीफिल्में रिश्ता नाता एवं डाद देवी माता"। पांच कथा संग्रह, 'मजदूर मंडी, भारत मेरा देश है', 'आम का दरिया, सांझ के पछी व समंदर की लहरें। तीन नाट्य संग्रह मैली चादर 'इस्पात के खण्डहर व रोजगार महाराज। नवनीत, राजस्थान पत्रिका, प्रगतिशील आकहप, समाज कल्याण, समर लोक, समय माजरा, राष्ट्रधर्म, जानवी, प्रशान्त ज्योति, अणुशक्ति, गुरूजन प्रताप, जागृति मधुमती मधुरिमा अक्षर शिल्पी, अहल्या शुभ तारिका आदि पत्रिकाओं में कई रचनाएं प्रकाशित।

 

पुरस्कार/सम्मान : राजस्थान साहित्य अकादमी का 'देवीलाल सागर पुरस्कार। अखिल भारतीय साहित्य संगम उदयपुर (राज) का साहित्य दिवाकर सम्मान। श्री भारतेन्दु समिति कोटा का 'साहित्यश्री' सम्मान। जवाहर कला केन्द्र जयपुर द्वारा चार नाटक मैली चादर, आजाद की आवाज 'डॉन' व 'रिश्ता नाता पुरस्कृत।

 

संप्रति : भारत सरकार के परमाणु उर्जा विभाग  के अन्तर्गत भारी पानी संयत्र (कोटा) रावतभाटा से सेवानिवृत्त।

Languageहिन्दी
Release dateSep 5, 2022
ISBN9798201714062
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    Beldar - Shyam Kumar Pokra

    ISBN : 978-9394920095

    Published by :

    Rajmangal Publishers

    Rajmangal Prakashan Building,

    1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road

    Aligarh-202001, (UP) INDIA

    Cont. No. +91- 7017993445

    www.rajmangalpublishers.com

    rajmangalpublishers@gmail.com

    sampadak@rajmangalpublishers.in

    ——————————————————————-

    प्रथम संस्करण : अगस्त 2022 – पेपरबैक

    प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन

    राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,

    सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,

    अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत

    फ़ोन : +91 - 7017993445

    ——————————————————————-

    First Edition : Aug. 2022 – Paperback

    eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)

    Copyright © श्याम कुमार पोकरा

    यह पुस्तक इस शर्त के अधीन बेची जाती है कि इसे प्रकाशक की पूर्व अनुमति के बिना किसी भी रूप में मुद्रित, प्रसारित-प्रचारित या बिक्रय नहीं किया जा सकेगा। किसी भी परिस्थिति में इस पुस्तक के किसी भी भाग को पुनर्विक्रय के लिए फोटोकॉपी नहीं किया जा सकता है। इस पुस्तक में लेखक द्वारा व्यक्त किए गए विचार के लिए इस पुस्तक के मुद्रक/प्रकाशक/वितरक किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं हैं। सभी विवाद मध्यस्थता के अधीन हैं, किसी भी तरह के कानूनी वाद-विवाद की स्थिति में न्यायालय क्षेत्र अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत ही होगा।

    भूमिका

    वैश्वीकरण के इस दौर में जब भारतीय समाज के जीवन मूल्यों में तेजी से बदलाव आ रहा है, प्राचीन नैतिक व मानवीय मूल्यों के स्थान पर समाज में स्वयं के स्वार्थ व अवसरवादिता की भावनाएँ जोर पकड़ती जा रही हैं। परिवर्तन के इस तीव्र प्रवाह में श्याम कुमार पोकरा का यह उपन्यास 'बेलदार' प्रकाशित होना संयोग मात्र नहीं है। इसकी उपस्थिति वर्तमान राजनीति और पत्थर की खदानों में कार्यरत मजदूरों की पीड़ाजनक परिस्थितियों के जीवन्त दस्तावेज का साक्ष्य बन कर सामने आई है।

    श्री श्याम कुमार पोकरा एक समर्थ कथाकार हैं। उनकी यह कृति 'बेलदार' शोषित मजदूरों के संघर्षमय क्लिष्ट जीवन का दर्पण सी लगती है। स्वतंत्रता के पश्चात् देश की तमाम परिस्थितियों में परिवर्तन आया है। किन्तु खदान मजदूरों को जीवन परिस्थितियों में अभी तक कोई खास सुधार नहीं हो पाया है। उनकी मजदूरी उनके श्रम से कम मुध्य पर निर्धारित है और शोषक वर्ग की बेईमानी, छल-छदम अपनी भूमिका निभाते हुए उनके भौतिक और नैतिक जीवनाधार को ऐनकेन प्रकार से कुप्रभावित करते रहते हैं।

    पत्थर की खदानों का काम बहुत अधिक कठोर व कष्टपूर्ण होता है। खदान मजदूरों की सरलता व अबोधता का खदान मालिक तरह-तरह से लाभ उठाते हैं और उनका शारीरिक व मानसिक शोषण करते हैं। इतना ही नहीं वे धन-बल से इस दुष्कर्म में तमाम. सरकारी अमले को भी किस प्रकार अपना बना लेते हैं, 'बेलदार' का कथानक इसका सच्चा साक्ष्य प्रस्तुत करता है।

    लेखक ने इस उपन्यास में अभिषेक उर्फ बेलदार नाम के असीम जीवट व धैर्य वाले पात्र को खड़ा किया है, जिसका मजबूत व संवेदनशील व्यक्तित्व ही कहानी की प्रमुख विशेषता है। उपन्यास का नायक अभिषेक ईमानदारी व सामाजिक मूल्यों के प्रति आस्था की भावना से प्रेरित होकर दिव्या के सम्मान की रक्षा हेतु हंसराज एवं नरोत्तम जैसे समाज कंटकों से भीड़ जाता है। वह हंसराज के षड़यंत्र का शिकार हो जाता है और अन्याय के चंगुल में फंसकर जेल जाता है। जेल से छूटकर आने के बाद जिस प्रकार के संघर्ष व अपमानजनक स्थितियों से होकर गुजरता है, वही वर्तमान सत्य है। जमाने की ठोकरों व अन्याय से पस्त होकर वह टूट सा जाता है। परन्तु अपने धैर्य, बुद्धि व जीवट के बल पर वह एक ऐसा मार्ग अपनाता है कि स्वयं को निर्दोष साबित करने में अनोखी सफलता प्राप्त करता है।

    हिन्दी के नवबोध कथा साहित्य में श्री श्याम कुमार पोकरा शनैः शनैः अपना विशिष्ट स्थान बनाते जा रहे हैं। मानव जीवन के विभिन्न दृष्टि फलक मनोविज्ञान के सम्पुट सहित जिस सहजता व स्वाभाविकता से उनकी कहानियों और नाटकों में समाहित हैं, वे ही बेलदार में अनुभव की प्रमाणिकता और जीवन संघर्ष की सत्यता के प्राणाधार बन गये हैं।

    श्री श्याम कुमार पोकरा के पास पत्थर की खदानों की जीवन शैली का ज्ञान और पर्याप्त अनुभव है। वे उसी अनुभव के बल पर पात्रों के मनोजगत में गहराइयों तक डूबते हैं। डूबकर सत्य की पहचान करने में वह प्रवीण हैं। उनको सीधी सरल भाषा शैली पाठक मन को मोहती है। वह मानो अपने सतत प्रवाह में बहा ले चलती है। उसमें कहीं बनावट नहीं है, बुनावट भी नहीं हैं, घटनाएँ सहज-सी, अनायास-सी बनती चली जाती हैं, जो कथा को बेहद रोचक और हृदयस्पर्शी बना देती है। इस उपन्यास में श्री पोकरा ने गोविंद व रूमा नाम के दो ऐसे चरित्रों को प्रस्तुत किया है, जिनकी कहानी सहजतापूर्वक पाठक के हृदय को गहराई तक छू जाती है।

    वस्तुतः श्री श्याम कुमार पोकरा ने समकालीन कथाकारों में अपनी उपस्थिति का आभास करा दिया है। वे यथार्थ में नवबोध के सृजक हैं। उनका यथार्थ मानवीय सरोकारों की उष्मा से आप्लावित होकर कथा कहानी में प्रकट होता है। 'बेलदार' में अनुभूतियों की यह उष्मा नये मूल्यों की आहट के साथ सुनाई पड़ती है। जब वे एक गहरी मानवी संवेदना के साथ-साथ, चरित्रों के हृदयस्पर्शी द्वन्द्व के अन्तर्विन्यास को अत्यन्त सहजता से संप्रेषित कर देते हैं, तो पाठक मन भी गहरी संवेदना में डूब जाता है। श्री श्याम कुमार पोकरा की यह विशिष्टता आपको भी आकर्षित करे, प्रभावित करे, इसी आशा व सद्भाव के साथ! यह 'बेलदार'।

    सम्पर्क द्वारा विशाल बाल विद्या निकेतन

    गोरधनपुरा, कोटा (राज०) चलवार्ता : 9460813902

    प्रो० राधेश्याम मेहरा

    हिन्दी विभाग,

    राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,

    कोटा (राज०)

    बेलदार | श्याम कुमार पोकरा  |

    समर्पण

    दुनियाभर के मजदूरों को,

    मेहनतकशों को, खून पसीने से लथपथ,

    श्रम से जूंझते,

    सृजनरत,

    संघर्षरत,

    इंसानो को,

    सादर समर्पित ।

    -श्याम कुमार पोकरा

    अपनी बात

    'बेलदार' एक ऐसा लोकप्रिय शब्द है जो लगभग पूरे उत्तरी भारत में एक आम मजदूर के लिए प्रयोग किया जाता है। पसीने में लथपथ चेहरा, धूल व मिट्टी में सने हुए फटे-पुराने कपड़े और सिर या कंधे पर भारी बोझ चाहे वह पत्थर उठाने वाला मजदूर हो, चाहे मिट्टी खोदने वाला मजदूर हो, या फिर अन्य किसी तरह का भारी काम करने वाला मजदूर हो, बेलदार कहलाता है। भारतीय समाज का यह वह मेहनतकश वर्ग है, जो कठोर परिश्रम करके अपनी आजीविका कमाता है। बचपन से ही मेरे मन में इस वर्ग के प्रतिवद्धा का भाव बना हुआ है। जब से मैं हिन्दी साहित्य लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हुआ हूँ, तब से मेरे मन में इस वर्ग पर कुछ लिखने की बात बैठी हुई थी, जिसे मूर्त रूप देने में मैं बरसों बाद सफल हो सका हूँ।

    बात उन दिनों की है जब मैं स्कूल में पढ़ता था। मेरा स्कूल गाँव से आठ किलोमीटर दूर पड़ता था। मेरे साथ गाँव के कई संगी साथी स्कूल जाते थे। हम सब लोग पैदल ही झुण्ड बनाकर स्कूल आते जाते थे। हमारा स्कूल कस्बे के उस छोर पर था, कस्बे के इस छोर पर दिल्ली मुंबई मुख्य रेल लाइने बिछी हुई है, जिन्हें पार करके हमें निकलना पड़ता था। रेलवे फाटकों को पार करते ही सड़क के दोनों ओर पत्थरों के स्टॉक थे, जहाँ से पत्थर रेलवे वेगनों में भरा जाता था। सड़क के किनारे ही नीम का एक बड़ा पेड़ था, जिसके मोटे तने के चहू ओर गोलाकार चबूतरा बना हुआ था। इस चबूतरे पर नीम की छाया में पत्थर के स्टॉकों पर काम करने वाले भजदूर सोये-बैठे रहते थे।

    मजदूरों की इस भीड़ में एक युवक मुझे आकृष्ट करता था। वह सबमें अलग दिखाई देता था। दुबला-पतला लम्बा बदन, साफ सुथरे पेंट-बुशर्ट, सिरे के घने लम्बे बालों पर बँधा रूमाल और चेहरे पर छाई हुई गहरी खामोशी। उसके साथी उसे 'बेलदार' कहकर पुकारते थे। किसी से मैंने सुना कि वह एक पढ़ा लिखा खाते-पीते घर का लड़का है, जो अन्याय व अपमान का शिकार हुआ है, उसका कैरियार बर्बाद हो गया है, मजबूर होकर वह यहाँ बेलदारी करने लगा है। स्कूल आते-जाते हम नीम के पेड़ के नीचे अवश्य बैठते थे। बेलदार की मासूम छवि को देखकर मेरे बाल मन में उसके प्रति करुणा उमड़ पड़ती। थी। उस समय चाहते हुए भी मैं उसकी कोई मदद नहीं कर सकता था, क्योंकि मेरे स्वयं के पैरों के जूते और स्कूल की यूनीफोर्म फटी रहती थी।

    उस समय को गुजरे आज पूरे तीन दशक बीत चुके हैं। हायर सेकण्डरी की परीक्षा पास करने के बाद मेरा स्कूल छूट गया है, वह कस्बा छूट गया है। रेल की पटरियाँ वहीं है, रेलवे फाटक वहीं है और सड़क के किनारे खड़ा वह नीम का पेड़ व उसके नीचे बना चबूतरा भी वहीं है। जब कभी गाँव जाना होता है, उस रास्ते से निकलना होता है, मुझे बेलदार की याद आ जाती है। आजकल वह कहाँ है, कैसा है, मैं कुछ नहीं जानता हूँ लेकिन बेलदार की वह छवि आज भी मेरे हृदय में बैठी हुई है। एक दुबला-पतला नौजवान युवक, सिर के घने लम्बे बालों पर बँधा हुआ रूमाल, पसीने से लथपथ बदन, खामोश चेहरा और शुष्क आँखों में तैरते टूटे हुए सपने। पता नहीं क्यों उस शख्स की स्मृतियों मात्र से मेरी आँखों में पानी भर आता है।

    जब से मैं लेखन में सक्रिय हुआ हूँ, बेलदार के व्यक्तित्व पर कुछ लिखने की बात मेरे मन में बैठी हुई थी। पहले मैने उसके व्यक्तित्व पर एक कहानी लिखने का विचार बनाया, लेकिन बाद में यह मुझे अपर्याप्त लगने लगा। अपने मन में बैठे हुए उस महान व्यक्तित्व को केवल आठ-दस पेज में व्यक्त करना मुझे असुविधाजनक लगा और मेरे मन में उसके ऊपर एक उपन्यास लिखने का विचार आ गया। सन् 2001 में मैंने इस उपन्यास को लिखने की शुरूआत की थी। इसे पूर्ण करने में मुझे पूरे पाँच वर्ष लग गये हैं। इस बीच मेरी पाँच अन्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

    बेलदार के विशाल व्यक्तित्व को मैंने दो सौ पचास पृष्ठों (हस्तलिखित) में व्यक्त करने का प्रयास किया है। जो कि मुझे संक्षिप्त लग रहा है। इस व्यक्तित्व पर मैं सैकड़ों पृष्ठ और लिख सकता था, लेकिन पुस्तक व प्रकाशन की कुछ सीमाएँ या मजबूरियाँ होती हैं, इन्हीं सीमाओं में रहकर मैंने इस कृति को पूर्ण किया है। यह मेरा प्रथम उपन्यास : और उपन्यास लेखन में मैं कहाँ तक सफल रहा हूँ, यह तो आप लोगों की प्रतिक्रियाओं ही मुझे ज्ञात हो सकेगा। आशा करता हूँ कि अपनी अन्य पुस्तकों की तरह ही इस स्तक को भी आप लोग पसंद करेंगे। आप लोगों का स्नेह व प्रोत्साहन मुझे उसी प्रकार मलता रहेगा। शुभकामनाओं के साथ।

    धन्यवाद।

    दिनांक-17-11-2006

    स्थान- रावतभाटा

    श्याम कुमार पोकरा

    ‘पोकरा भवन’,

    1125, महावीर नगर (प्रथम),

    कोटा (राज.)-5

    फोन : 9414615382

    एक

    सुबह का समय, देहरादून एक्सप्रेस शाम गंज रेलवे स्टेशन पर आकर रूकी। द्वितीय श्रीणी के इस डिब्बे में खलबली मच गई। व्यग्र होकर लोग धक्का-मुक्की करते हुये चढ़ने और उतरने लगे। चाय-गरम चाय चाय चाय गरम चाय... चायवाले का तीक्ष्ण स्वर भीड़ के कोलाहल को चीरते हुये कानों में पड़ने लगा। उतरने वाला एक मोटा व्यक्ति, ऊपर चढ़ने वाले एक व्यक्ति से झगड़ा पड़ा- ये पहले सबको नीचे उतरने दे, क्यों जल्दी मचा रखी है, गाड़ी क्या भागे जा रही है?' यह कहते हुये वह कितने ही लोगों को पीछे धकेलते हुये नीचे कूद पड़ा। औरतें व बच्चे दबकर चीखने लगे, कुछ लोग उस मोटे को गाली देने लगे।

    इस तेज शोर-शराबे ने ऊपर स्लीपिंग रेक पर सो रहे उस युवक को जगा दिया। वह उठ बैठा और इधर-उधर नजरें दौड़ाकर स्थिति का जायजा लेने लगा। हल्की बढ़ी हुई दाढ़ी, दुबला-पतला, लम्बा शरीर, उलझे हुये सिर के बाल और शुष्क होंठ, लगता है लम्बी नींद के बाद वह जगा है। अपना लम्बा हाथ फैलाकर उसने दूसरी रेक का सहारा लिया और नीचे फर्श पर कूद गया। फिर वह भीड़ में से निकलता हुआ नीचे उतर आया। एक नजर उसने चारों ओर देखा और फिर लम्बे डग भरता हुआ प्लेटफॉर्म से बाहर की ओर बढ़ गया।

    प्लेट फोर्म से बाहर निकल कर वह एक टी-स्टाल पर आकर बैठ गया। चाय की चुस्कियों के बीच उसकी नजरें सड़क के किनारे लगी औरतों और आदमियों की लम्बी कतार पर जा टिकी। अर्द्धनग्न व दरिद्र अवस्था में खड़े बूढ़े, जवान, बच्चे और औरतें, टेबल कुर्सी लगाकर बैठे दो बाबू। वे उनका नाम लिखते और एक-एक करके लोगपास में ही खड़े डम्पर में जा चढ़ते। इसी तरह का दृश्य उसे सड़क के उस पार भी नजर आया।

    चाय का अन्तिम घूँट हलक में गटक कर उसने चाय वाले को पैसा दिया और पूछा, क्यों भाई लोगों की ये लाइनें क्यों लगी है?

    बाबूजी, ये तो खान वाले कूली-बेलदारों की भर्ती कर रहे हैं। ये दूर-दूर के लोग हैं जो पत्थर की खदानों में काम करने के लिए यहाँ आये हैं। यहाँ तो रोज ही सुबह मेला लग जाता है। शायद आप यहाँ नये आये हो बाबूजी।

    कुली बेलदार यह क्या होता है? बाबूजी, इस एरिया में चारों तरफ पत्थरों की खदानें है। यहाँ का नीला हरा पत्थर विदेशों में भी एक्सपोर्ट होता है। इन खदानों में मलवा उठाने वाली औरतों को कुली कहते हैं और पत्थर ढोने वाले आदमी को बेलदार कहते है। इन लोगों का काम बड़ा ही कठिन व जोखिम भरा है बाबूजी।

    फिर उसने कुछ नहीं पूछा, अपलक दृष्टि जमाये पुन: वहीं देखने लगा। चायवाला ट्रे में चाय के प्याले रखकर कहीं चाय देने चला गया। कुछ क्षणों तक वहीं बैठा वह विचारों में खोया रहा। फिर अचानक वह खड़ा हुआ और तेज कदमों से चलता हुआ सड़क के उस पार लगी लोगों की कतार में जा खड़ा हुआ।

    अपने आगे खड़े वृद्ध के पीछे-पीछे वह भी आगे सरकता गया। थोड़े ही समय में उसका नम्बर आ गया। भर्ती करने वाले मोटे बाबू ने रजिस्टर में अगली क्रम संख्या लिखी और बोला, नाम?

    वृद्ध बोला- रतन्यो।

    बाप का नाम?"

    मदन्या जी

    जा डम्पर में चढ़ा जा।

    वृद्ध के चेहरे की झुर्रियों में प्रसन्नता उभर आई, वह भागा और डम्पर में चढ़ने लगा। बाबू ने रजिस्टर में अगली क्रम संख्या छप्पन लिखी और बोला

    हाँ, नाम बताओ?

    बेलदार...।

    यह सुनकर बाबू चौका। सिर उठाकर उसने मोटे चश्मे में से उसे देखा। एक लम्बे, दुबले-पतले युवक को अपने सामने खड़ा पाकर वह सहम गया, बोला मैं नाम पूछ रहा हूँ भाई, काम नहीं।

    मेरा काम ही मेरा नाम है, लिख लीजिए।

    जैसी तेरी मर्जी है भाई।

    बाबू उसका नाम रजिस्टर में लिखने लगा और वह धीमे कदमों से चलकर डम्पर में चढ़ आया। उसके बाद दो-चार आदमी और आये। डम्पर भर गया, बाबू ने ड्राइवर को आवाज लगा दी। पान की थड़ी पर बैठा ड्राइवर डम्पर में आ बैठा। डम्पर स्टार्ट हुआ और आगे बढ़ गया। डाले के सहारे खड़ा होकर वह नजरें ऊपर उठाकर नीले आसमान में ताकने लगा।

    दो

    शामगंज कस्बे से निकल कर डम्पर पूर्व दिशा में मुख्य मार्ग पर तीव्र गति से दौड़ने लगा। डम्पर में खड़े लोग इधर-उधर का दृश्य देखकर आनन्दित हो उठे। सड़क के दोनों किनारे लगी विभिन्न नामों की स्टोन इन्डस्ट्रीज व उनमें काम करते हुये लोगों की भीड़। जर्जर सड़कें व उनपर दौड़ती विभिन्न रंगों व विभिन्न प्रकार की आधुनिक कारें यहाँ की सम्पन्नता दर्शाते हैं। जगह-जगह लगे देशी शराब के ठेके और नशे में डूबे लोग उन्हें आकर्षित कर रहे हैं।

    बेरोजगार को रोजगार मिल गया, जैसे बिन पानी तड़पती मछली को पानी मिल गया। सभी के चेहरों पर मुस्कान है, मन प्रफुल्लित है। लेकिन उसका चेहरा भावविहीन है, न खुशी है, न गम है। वह अपने चारों ओर दूर-दूर तक फैली मलवे की उन पहाड़ियों को देख रहा है, जिन्हें प्रकृति ने नहीं इंसान ने बनाया है। उनका डम्पर अब इन्हीं पहाड़ियों के बीच घुमावदार कच्चे रास्ते पर दौड़ रहा है।

    एक खदान के समीप पहुँचकर डम्पर ठहर गया। इंजिन बंद करके ड्राइवर नीचे उतर आया। ड्राइवर के साथ ही केबिन में बैठा मोटे चश्में वाला बाबू भी नीचे उतर आया और डाले में खड़े लोगों को आवाज देकर बोला, चलो रे. .सब नीचे उतर आओ।

    डम्पर से उतर कर सब एक जगह इकट्ठा हो गये। इसी समय तीन लोग खदान में से निकल कर बाहर आये। तीनों के सिर पर अलग-अलग रंग के हेलमेट लगे हैं। पीले रंग के हेलमेट वाला फोरमेन है, काले रंग के हेलमेट वाला मेट है और सफेद रंग के हेलमेट वाला मुँशी है। तीनों उनके नजदीक आकर रूके, मुँशी ने ऊँची आवाज में कटाक्ष किया

    आज तो भेड़-बकरियों की तरह डम्पर भर लाये हो गणपत। तुमने तो आज बहुत कमाई कर ली है।

    सब आपकी कृपा है मुँशीजी, आज की गिनती पूरी साठ है।

    यह कहते हुये मोटे बाबू ने हाथ में पकड़ा रजिस्टर मुँशी को दिया और मुँशी ने फोरमेन को थमा दिया। फोरमेन ने पन्ने पलटे और आज की लिस्ट देखने लगा। गणपत बोला पैंतीस बेलदार हैं, फोरमेन साहब और पच्चीस कुलियाँ हैं।

    रजिस्टर देखते हुये अचानक फोरमेन चौंका, सिर पर लगे हेलमेट को उतारकर बोला, यह बेलदार कौन है? क्या यह भी किसी का नाम है। सुनकर मैं भी चौंक गया था फोरमेन साहब, वह देखिऐ डम्पर के सहारे खड़े उस लम्बे युवक का नाम ही बेलदार है। फोरमेन ने नजर डाली, क्षणभर उसे देखता रहा और ऊंची आवाज लगाई, बेलदार.....यहाँ आओ।

    वह चला और लम्बे डग भरता हुआ उनके सामने आ खड़ा हुआ, शुष्क नजरों से उन्हें घूरने लगा। एक नौजवान युवक को अपनी ओर घूरते देखकर फोरमेन सहम गया और मुद्र स्वर में बोला, कहाँ के रहने वाले हो तुम? क्या बेलदार ही तुम्हारा नाम है?

    जी हाँ, आपको काम चाहिऐ या नाम।

    'क्या तुम यहाँ का कठोर काम कर सकोगे?".

    तिहाड़ में रहकर मैंने इससे भी अधिक कठोर कार्य किया है। किसी भी तरह का कठोर काम करने का मैं आदी हूँ, आप इसकी चिंता मत कीजिए।

    यह सुनकर सब चौंक पड़े, मेट बोला, क्या तुम जेल से भागे हो?

    'भागकर नहीं छूटकर आता हूँ। समय से पहले ही उन्होंने मुझे आजाद कर दिया, मेरी सजा अधूरी ही रह गई। "

    क्या मतलब?

    छोड़ो इन बातों को आपकी समझ में नहीं आयेगी। आप मुझे सिर्फ मेरा काम बताइये।

    फोरमने का कौतुहल अधुरा ही रह गया। उसे लगा कि वह कुछ छिपा रहा है, लेकिन फिर वह उससे कुछ भी पूछने ही हिम्मत नहीं कर सका। मेट सबको सम्बोधित करके, उन्हें उनका काम समझाने लगा।

    "अब सब लोग मेरी बात ध्यान से सुनिऐ। पत्थर की इन खदानों का काम बड़ा कटोर और जोखिम भरा है। डम्पर, सावल, बुल्डोजर जैसी बड़ी-बड़ी मशीनों के साथ काम करना पड़ता है। थोड़ी-सी भी असावधानी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। इसलिए सबको मेरी इस बात का ध्यान रखना है, पूरी तरह से सुरक्षा से काम करना है।

    कुलियों का प्रमुख कार्य तगारियों में भरकर मलवा साफ करना है और बेलदारों का काम भारी पत्थरों को ढोना है। जब खदान की झड़ाई होती है तो ढेर सारा मलवा निकलता है। बड़े-बड़े टेढ़े-मेढ़े पत्थरों की चट्टानें टूटकर बिखर जाती हैं। इस समय कुलियों व बेलदारों का काम सर्वाधिक होता है। ये लोग मिलकर मलवा डम्पर में भरते है, जो ऊपर टीले पर ले जाकर खाली कर दिया जाता है।

    तुम लोगों का काम कल से शुरू होगा। कल सुबह ठीक आठ बजे सबको यहाँ उपस्थित होना है। आज सभी अपना घर जमा लें, खाने-पीने का बदोबस्त कर लें। जिसे रूपया चाहिए मुँशीजी से एडवांस ले सकता है।"

    वह क्षणभर रूका, फिर मुँशी को संबोधित करके बोला, रामनारायण इन सबको बस्ती में ले जाओ और कम्पनी के क्वार्ट्स एलोट कर दो। जो चाहे उसको ओफिस में ले जाकर केशियर से एडवांस दिलवा देना।

    यह सुनकर सभी के चेहरे खिल उठे। प्रसन्न होकर सभी मुंशी रामनारायन के पीछे चल पड़े। केवल वही वहीं डम्पर के सहारे खड़ा रह गया। जब वे सब उससे दूर चले गये तब वह भी चलने लगा लेकिन विपरीत दिशा में। कुछ समय बाद वह मलवे के एक ऊंचे टीले पर चढ़ रहा था।

    तीन

    सैकड़ों फीट ऊपर टीले की चोटी पर पहुँच कर वह खड़ा हो गया। घूमकर उसने चारों ओर नजरें दौड़ाई, दूर-दूर तक मलवे की पर्वत शृंखलाऐं खड़ी थी, सुनसान और वीरान वह पश्चिम दिशा में मुड़ा, पास में ही बसा सोनपुर गाँव स्पष्ट नजर आया। एक जैसे घरों की लम्बी-लम्बी कतारें, ये शायद कम्पनी के क्वार्टस हैं। गाँव के बीच गगन छूती पानी की टंकी खड़ी है। दो-तीन पक्की बिल्डिंग नजर आ रही हैं ये शायद कम्पनी के ऑफिस है, स्कूल व अस्पताल हैं।

    इसी समय घर-घर करता, मलवे से भरा एक डम्पर ऊपर चढ़ आया। वह उसके नजदीक से होकर गुजरा, कौतुहल पूर्वक वह उसे देखने लगा। डम्पर दूसरे किनारे तक गया, मुड़ा और थोड़ा पीछे सरक कर रूक गया। दूसरे ही क्षण धीरे-धीरे डम्पर का डाला ऊँचा होने लगा और कुछ क्षणों बाद ही घड़..ड़..ड.. के स्वर के साथ सारा मलवा खाली हो गया। अब डम्पर का डाला पुनः नीचे होने लगा तथा डम्पर आगे बढ़ गया।

    डम्पर उसके नजदीक आकर रूका। ड्राइवर ने इंजन बंद किया और नीचे कूद गया। अपने खाकी कपड़ों की धूल झाड़ता हुआ वह उसकी ओर बढ़ा और बोला क्या ढूँढ रहे हो यहाँ? पत्थर के इन पहाड़ों में क्या पाना चाहते हो तुम?

    सुकून.... हाँ, मेरे अन्दर हलचल मची है, और शायद शांती की तलाश में ही मैं यहां आया हूँ। उसका गंभीर स्वर सुनकर ड्राइवर जोर से हँस पड़ा और बरबस अपनी हँसी को थामते हुए बोला सुकून.... यहाँ इन पत्थरों में अगर तुम्हें आत्मशांती की तलाश है तो किसी मंदिर में जाओ, या फिर हिमालय की गोद में शरण लो। यहाँ तुम्हें शांती नहीं मिल सकती है, यहाँ किसी को शांति नहीं मिल सकती है।

    बोलते हुये वह क्षण भर रूका और फिर दूर-दूर तक फैले मलवे के ढेरों पर पूर्वदिशा में इंगित करके बोला, वह देखा उन ढेरों के नीचे मेरा गाँव दबा पड़ा है। सातल गाँव को लोगों ने अथक मेहनत व लगन से बसाया था। जिसके चारों ओर कभी-हरी फसलों के खेत लहलाते थे। गाँव वालों के बीच प्रेम भरा अपनत्व था। उस सादी जिन्दगी में खुशहाली थी, खुशियाँ थी।

    उसके गंभीर शब्दों में पीड़ा स्पष्ट छलकने लगी। क्षणभर रूककर वह फिर

    बोला। मेरे देखते ही देखते सब कुछ नष्ट हो गया। एक दिन कम्पनी के भीमकाय बुलडोजरों ने मेरे प्यारे गाँव को निगल लिया। रूपयों के लालच में लोगों ने अपने घर व जमीनें कम्पनी को बेंच दी थी। पैसा देखकर लोगों के पर निकल आये और सभी आसमान में उड़ने लगे। धीरे-धीरे उनका पैसा दारू व दुर्व्यसनों की भेंट चढ़ गया। और आज वह खेती का राजा भिखारी बन गया है। अधिकांश लोग अपना पेट पालने के लिए कम्पनी में पत्थर ढोने लगे हैं। इन पत्थरों ने हमारी शांति छीन ली है, हमारी खुशियाँ तबाह कर दी है। और तुम यहाँ सुकून की तलाश में भटक रहे हों।

    अपने अतीत में उलझकर वह गंभीर हो गया, मन व्यथित हो उठा। थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच खामोशी छा गई। इसी बीच दूर किसी खदान में डाइनामाइट का धमाका गूंज उठा। वह फिर बोलने लगा ओह, व्यर्थ की बातों में मैंने तुम्हें उलझा दिया। छोड़ों इन बातों को तुम अपनी सुनाओ। मैं जानना चाहता हूँ कि तुम कौन हो? कहाँ से आये हो? और तुम यहाँ क्या कर रहे हो? मैं बेलदार हूँ। हाँ अब यही मेरा नाम है और यही मेरा काम अपने काले अतीत को मैं पूर्ण रूप से भूल जाना चाहता हूँ। इस टीले पर यहाँ मैं अपना घर बनाना चाहता हूँ। बस्ती से दूर यहाँ पर रहना मुझे अच्छा लग रहा है।"

    "यहाँ....इस टीले पर यहाँ तो कोई जानवर भी नहीं फटकता है। फिर तुम यहाँ कैसे रह पाओगे बेलदार मेरा नाम गोविन्द है। तुम मुझे अपना मित्र समझो। सोनपुर में मेरा घर है, माँ व एक बहन के अलावा मेरा कोई नहीं है। तुम चाहो

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