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आज की दुनिया: काव्य संग्रह
आज की दुनिया: काव्य संग्रह
आज की दुनिया: काव्य संग्रह
Ebook44 pages16 minutes

आज की दुनिया: काव्य संग्रह

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About this ebook

कहाँ हम तुम को याद करते हैं
दिल की है दिल से बात करते हैं

कोई आवाज सी कभी आती है
छू के इस दिल को चली जाती है
खुद को हम फिर से मना लेते हैं
अपने नगमों को सुला देते हैं
बीती बातों को लिखा करते हैं
रोज तारों को गिना करते हैं
कहाँ हम तुम को याद करते हैं
दिल की है दिल से बात करते हैं

कोई बदली सी कभी आती है
यूं ही सूखी सी चली जाती है
बूँदें हम खुद ही गिरा देते हैं
सूखी धरती को पिला देते हैं
हम तो आबाद किया करते हैं
इन्हीं बूँदों में जिया करते हैं
कहाँ हम तुम को याद करते हैं
दिल की है दिल से बात करते हैं

कोई पुरवाई सी कभी आती है
बिना खुशबू ही चली जाती है
थोड़े फूल हम ही गिरा देते हैं
बाग में खुश्बू मिला देते हैं
बातें चिडियों की सुना करते हैं
रोती शबनम को चुना करते हैं
कहाँ हम तुम को याद करते हैं
दिल की है दिल से बात करते हैं

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateNov 22, 2013
ISBN9781310061585
आज की दुनिया: काव्य संग्रह
Author

Raja Sharma

Raja Sharma is a retired college lecturer.He has taught English Literature to University students for more than two decades.His students are scattered all over the world, and it is noticeable that he is in contact with more than ninety thousand of his students.

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    Book preview

    आज की दुनिया - Raja Sharma

    Preface

    इस अंक में श्री राजा शर्मा जी द्वारा रचित कुछ प्रसिद्ध कविताएँ प्रस्तुत की जा रही हैं । आप यदि इन कविताओं का वाचन सुनना चाहें तो आप यू ट्यूब पर सुन सकते हैं.

    धन्यवाद

    अछूतों की इक गली

    आज आप को नई जिन्दगी दिखाते हैं

    आइए अछूतों की इक गली में ले जाते हैं

    जहाँ शरीर तो बस छाया से दिखते हैं

    राधा, मुनिया, फुलिया सब ही बिकते हैं

    कल रोटी की चाह उसको पराजित कर गई

    रोती रही जमुना भूखी प्यासी ही मर गई

    इक बार कालू का बेटा कुछ पढ्ने गया था

    नादान जात से ऊपर कुछ बनने गया था

    शिक्षक और सहपाठी सब उसको डराते रहे

    कालू रामू दिनभर कमरों में झाडू लगाते रहे

    वो इक दिन इसी गली में गांधी को देखा था

    तब वो कालू चमार का प्यारा सा बेटा था

    सबको मिलेगा हक तब ये बापू कह्के गए थे

    पर तीस बरस कालू के आंसू बहते रहे थे

    बाप के बाद वो बेटा कालू कहलाने लगा

    सिर झुका के वो परम्परा निभाने लगा

    अभी तो शुरुवात है आपकी गली दर्शन में

    सारे भरम टूटेंगे आपके भी बस क्षण भर में

    आओ जवान मुनिया से आपको मिलाते हैं

    जिसे जब चाहे ऊंचे लोग उठा ले जाते हैं

    ना जमीन ना पैसा ना इनका अपना मकान है

    बस ये सूखे पत्तों का झोपडा

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