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जाली नोट
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जाली नोट

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उस रात बारह बजे बॉम्बे जाने वाली आखिरी फ्लाइट से करीब दस मिनट पहले अजय ग्रे सूटकेस उठाये डिपार्चर हॉल की और जाने ही वाला था अचानक उसका प्रोग्राम कैंसिल करा दिया गया...अजय ने अपना टिकिट और बोर्डिंग पास गिड़गिड़ाकर मदद की गुहार लगाते अजनबी को दे दिए...सौ सौ के दस नोट अजय को देकर वह आदमी अपना ग्रे सूटकेस उठाकर डिपार्चर हाल की और दौड़ गया...।


तभी एक परेशान हाल और घबरायी सी सुन्दर युवती को अजय ने उसी अजनबी के बारे में पूछताछ करती सुना...युवती के मुताबिक वह उसका पति देवराज था...। एयरपोर्ट की इमारत के बाहर उसी युवती के साथ काली कार में दस नम्बरी बदमाश पीटर को देखकर अजय ने उत्सुकतावश पीछा करने का फैसला कर लिया...।


दोनो का पीछा करता अजय स्टार नाईट क्लब पहुंचा...टैक्सी ड्राइवर परिचित था...उसे अपना सूटकेस अपनी इमारत के वाचमैन को सौंपने के लिए कहकर अजय क्लब में दाखिल हुआ...। एक मेज पर मौजूद वही युवती और पीटर बेहद परेशान थे...।


अजय ने ड्रिंक की पेमेंट अजनबी द्वारा दिए गए नोटों में से एक सौ रूपये के नोट से की तो मैनेजर के सामने पेश होना पड़ा...नोट को लेकर बात इतनी बढ़ी मैनेजर ने उस पर पिस्तौल तानते हुये किसी साहब से फोन पर कहा–जिन पांच लाख के नोटों की तलाश है उनमें से एक नोट मिल गया...उस आदमी को रोके रखूंगा...।


ऑफिस से निकलकर अजय अकेली बैठी उसी युवती के सामने जा बैठा...देवराज के बारे में बताने के बहाने अजय ने युवती को ऐसा शीशे में उतारा युवती की काली कार में उसी के साथ वहां से भागने में सफल हो गया...। रास्ते में तेज दौड़ती कार बेकाबू होकर एक दीवार से टकरा गई...बेहोश युवती को वहां इकठ्ठा हो गई भीड़ ने निकाल लिया...अजय कार से निकला तो दो आदमियों जमशेद और गब्बर ने गन के जोर पर जबरन उसे  नीली कार में अगुवा कर लिया...।


एक पुरानी इमारत में पहली मंजिल पर अजय को उसके पुराने दुश्मन और घाघ राजनीतिबाज जोशी के सामने पेश किया गया...अजय के पर्स से सौ रूपये के नौ नोट निकालकर उनके बारे में कड़ी पूछताछ की गई...वह समझ गया नोट जाली थे...अंत में उसे बेसमेंट में एक टॉयलेट में कैद कर दिया गया...।


अजय ने बिजली के बल्ब का ऊपरी सिरा गिला करके बार बार फ्यूज उड़ने का स्टंट करके बेवक़ूफ़ बनाकर उन्हें नीचे आकर दरवाजा खोलने पर मजबूर कर दिया...ज्योहीं दरवाजा खुला...विस्की की बोतल का पैंदा तोड़कर उसे घातक हथियार बना चुके अजय ने हमला कर दिया और एक कार में वहां से भाग निकला...एक पैट्रोल पम्प से इंस्पैक्टर रविशंकर को फोन किया तो उसकी बात सुनकर अजय के होश उड़ गए...युवती के साथ जिस काली में भागा था उसकी डिग्गी में दस वर्षीया लड़की शशि कोठारी की लाश मिली है...युवती गायब है...शशि कोठारी को किडनैप किया गया था...फिरौती की रकम पांच लाख रूपये भी दे दिए गए थे...एक चश्मदीद गवाह का कहना है उसने अजय को दुर्घटनाग्रस्त कार से निकलते देखा था...।


अजय अपने फ्लैट वाली इमारत में लौटा । वॉचमैन ने सूटकेस देते हुए बताया नीलम के कहने पर उसके गैस्ट कुलकर्णी को उसी के फ्लैट में ठहरा दिया था...नीलम फोन पर अजय को भी यह बता चुकी थी...। अपने फ्लैट में पहुंचकर अजय सीधा बाथरूम में जा घुसा...। डोरबैल की आवाज सुनकर तौलिया लपेटे बाहर निकला । दरवाजा खोलते ही खोपड़ी घूम गई–आगंतुक विमल और इंस्पैक्टर तिवारी थे...।


कपडे निकालने के लिए सैंटर टेबल पर रखा सूटकेस खोला तो अजय के साथ साथ विमल को तेज झटका लगा - उसमे सौ सौ रूपये के नोटों की गड्डियां भरी थी...।


अजय समझ चुका था - हुबहु उसके जैसा नजर आता वो सूटकेस असल में देवराज का है...एयरपोर्ट पर जल्दबाज़ी में गलती से वह उसका सूटकेस उठा ले गया था...।


तिवारी की नज़रों से बचाकर सूटकेस बंद किया और उसे लेकर बैडरूम में पहुंचा...दरवाजा खोलकर लाइट ऑन करते ही इस बुरी तरह चौंका...सूटकेस हाथ से छूट गया...सामने बैड पर लहुलुहान चेहरे वाला एक आदमी मरा पड़ा था...।


लाश किसकी थी ? क्या वे नोट फिरौती की रकम थे ? नकली नोटों का रहस्य क्या था ? देवराज कौन था ? गले तक फंसा अजय इस जंजाल से कैसे निकला ?

Languageहिन्दी
PublisherAslan eReads
Release dateJun 15, 2021
ISBN9788195155378
जाली नोट

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    जाली नोट - प्रकाश भारती

    जाली नोट

    प्रकाश भारती

    * * * * * *

    Aslan-Reads.png

    असलान रीड्स

    के द्वारा प्रकाशन

    असलान बिजनेस सॉल्यूशंस की एक इकाई

    बोरिवली, मुंबई, महाराष्ट्र, इंडिया

    ईमैल: hello@aslanbiz.com; वेबसाइट: www.aslanreads.com

    कॉपीराइट © 1985 प्रकाश भारती द्वारा

    ISBN

    इस पुस्तक की कहानियाँ काल्पनिक है। इनका किसी के जीवन या किसी पात्र से कोई

    संबंध नहीं है। यह केवल मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गई है।

    अत: लेखक एवं प्रकाशक इनके लिए जिम्मेदार नहीं है।

    यह पुस्तक इस शर्त पर विक्रय की जा रही है कि प्रकाशक की

    लिखित पूर्वानुमती के बिना इसे या इसके किसी भी हिस्से को न तो पुन: प्रकाशित

    किया जा सकता है और न ही किसी भी अन्य तरीके से, किसी भी रूप में

    इसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।

    यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

    * * * * * *

    अंतर्वस्तु

    प्रकाश भारती - जाली नोट

    जाली नोट

    * * * * * *

    प्रकाश भारती - जाली नोट

    सहसा बाहर से डोर नॉब घुमाई जाने का आभास पाते ही अजय ने अपने दुखते बाएं कंधे का भरपूर प्रहार दरवाज़े के पल्ले पर कर दिया । दरवाज़ा भड़ाक से खुला और अजय बाहर मौजूद एक भारी मानव शरीर से जा टकराया । कार की हैडलाइट्स की तेज रोशनी में उसकी आँखें बुरी तरह चुंधिया गई थीं । लेकिन वो निर्णायक क्षण था । गब्बर के हाथ में तने लम्बे चाकू के चमकदार चौड़े फल को वह देख चुका था । अजय के समस्त शरीर की शक्ति उसकी दायीं बाँह में एकत्रित थी । उसका हाथ पहले से ही वार करने की मुद्रा में तना हुआ था । अचानक उसका हाथ आश्चर्यजनक फुर्ती के साथ नीचे आया और उसमें थमा घातक हथियार एक साथ कई जगह से गब्बर के चेहरे को गहरा चीरता हुआ उसकी छाती में कहीं जा धंसा !

    (एक रोचक एवं बेहद तेज रफ्तार उपन्यास)

    * * * * * *

    जाली नोट

    अजय एयरपोर्ट की इमारत के सम्मुख टैक्सी से उतरा ।

    उसने बीस रुपये के दो नोट ड्राइवर के हाथ में थमाए और अपने ग्रे कलर के वी० आई० पी० सूटकेस सहित इमारत में दाखिल हो गया ।

    उस वक्त रात्रि के पौने बारह बजे थे । लेकिन एयरपोर्ट पर मौजूद भीड़ एवं चहल–पहल से ऐसा नहीं लगता था कि आधी रात का समय होने वाला था ।

    अजय सीधा इंडियन एयर लाइंस बुकिंग काउंटर पर पहुंचा ।

    शीशे के पार्टीशन के पीछे बैठी युवती व्यवसायिक ढंग से मुस्कराई ।

    यस, सर ?

    अजय ने अपना सूटकेस नीचे रख दिया ।

    प्लीज गिव मी ए टिकिट टू बाम्बे । वह कोट की भीतरी जेब से अपना पर्स निकालता हुआ बोला ।

    यू हैव गॉट रिजर्वेशन, सर ? युवती ने पूछा ।

    यस, आई हैव । फॉर मिडनाइट फ्लाइट टू बाम्बे ।

    यूअर गुड नेम, सर ।

    अजय कुमार ।

    युवती ने एक टाइप्ड लिस्ट उठाकर उस पर निगाहें दौड़ाई ।

    यस, सर । वह लिस्ट चैक करने के बाद बोली–यू हैव रिजर्वेशन फॉर फ्लाइट नंबर वन फोर टू ।

    इज इट मिडनाइट फ्लाइट टू बाम्बे ? अजय ने पुष्टि करनी चाही ।

    यस, सर । एंड इट इज दी लास्ट फ्लाइट फॉर टू नाइट फ्रॉम विराटनगर टू बाम्बे ? युवती ने कहा–प्लीज गिव मी सेवन हंड्रेड फिफ्टी रुपीज ।

    अजय ने पर्स से निकालकर साढ़े सात सौ रुपये उसे दे दिए ।

    युवती ने नोट गिनकर कैश बॉक्स में डाले फिर अजय से उसकी उम्र वगैरा पूछकर वह टिकिट बनाने लगी ।

    मुश्किल से दो मिनट बाद, अजय अपना टिकिट, बोडिंग कार्ड और लगेज टैग लेकर काउंटर के पास से हटा ही था कि एक पब्लिक एनाउंसमेंट सुनकर बुरी तरह चौंका ।

    पैसेंजर अजय कुमार टू बॉम्बे । एन अर्जेंट टेलीफोन कॉल फॉर यू । पैसेंजर अजय कुमार, रिपोर्टर थंडर' ! प्लीज रीच दी पब्लिक असिस्टेंस काउंटर । थैंक्यू ।

    फिर यही घोषणा हिंदी में दोहराई जाने लगी ।

    अजय ने अपनी रिस्टवाच पर दष्टिपात किया, बारह बजने में सिर्फ दस मिनट बाकी थे । वह पल–भर हिचकिचाया फिर अपना सूटकेस उठाकर तेजी से पब्लिक असिस्टेंस काउंटर की ओर बढ़ गया ।

    वह सोचने की कोशिश कर रहा था ऐन वक्त पर उसे फोन करने वाला कौन हो सकता था और उससे क्या चाहता था ।

    सहसा उसे कुछ याद आया और वह मुस्करा दिया ।

    वह आफिशियल काम से बम्बई जा रहा था । लेकिन उसकी कुलीग नीलम कपूर उसे जाने नहीं देना चाहती थी । क्योंकि तीन दिन बाद नीलम का बर्थ–डे था और उसके विचारानुसार अजय तब तक वापस नहीं लौट सकता था । अजय ने उसे यकीन दिलाने में अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी कि वह दो दिन बाद जरूर लौट आएगा । मगर नीलम पर इसका कोई असर नहीं हुआ । नीलम की जिद की वजह एक और भी थी । वह जानती थी जिस काम से अजय बम्बई जा रहा था वो जरूरी तो था, मगर इतना जरूरी नहीं था कि तीन दिन बाद न जाया जा सके । साथ ही 'थंडर' के मालिक और एडीटर नन्दा साहब ने भी अजय से ऐसा कुछ नहीं कहा था कि वह उसी दिन चला जाए । लेकिन उसूलन अजय किसी भी काम को बिना किसी तगड़ी वजह के टालने के पक्ष में नहीं था । फलस्वरूप इस बात को लेकर दोनों में काफी बहस हुई थी और अंत में नीलम नाराज़ होकर अपने घर चली गई थी ।

    अजय के अनुमानानसार इस वक्त फोन करने वाली नीलम ही हो सकती थी । वह शायद उसे बातों में उलझाकर उसका प्लेन मिस कराना चाहती थी ।

    वह पब्लिक असिस्टेंस काउंटर पर पहुंचा ।

    वहां मौजूद युवती को उसने अपना नाम बताया तो युवती ने काउंटर पर रखे एक टेलीफोन उपकरण की ओर संकेत कर दिया, जिसका रिसीवर नीचे रखा था ।

    अजय ने अपना सूटकेस नीचे रखकर रिसीवर उठा लिया ।

    अजय स्पीकिंग । वह माउथपीस में बोला ।

    आशा के अनुरूप लाइन पर नीलम का स्वर उभरा ।

    कहां से बोल रहे हो ? उसने पूछा ।

    नीलम के स्वर में व्यंग्य का गहरा पुट पाकर अजय को खीज–सी आ गई ।

    यह क्या मज़ाक है ? उसने पूछा ।

    मज़ाक ? मैंने तो कोई मज़ाक नहीं किया ।

    तो फिर और यह क्या है ? अजय भड़ककर बोला ।

    मैंने तो एक सवाल पूछा था । तुम खामाखाह नाराज़ हो गए ।

    अजय को यकीन होने लगा, नीलम सचमुच उसे बातों में उलझाना चाहती थी ।

    तुमने अगर कोई मतलब की बात करनी है तो जल्दी बोलो, वरना मैं फोन डिसकनेक्ट कर दूंगा ।

    ऐसी भी क्या जल्दी है, अजय ?

    तुम अच्छी तरह जानती हो प्लेन जाने में कुछ ही मिनट बाकी हैं ।

    दूसरी ओर से नीलम के खिलखिलाकर हंसने की आवाज़ सुनाई दी ।

    प्लेन ? ओह...हां, याद आया तुम बम्बई जाने वाले थे ।

    जाने वाला था नहीं, मैं जा रहा हूं ।

    बिल्कुल गलत । नीलम के स्वर में दृढ़ता थी–तुम खुशफहमी के शिकार हो रहे हो ।

    अजय चकराया ।

    तुम कहना क्या चाहती हो ? उसने संदिग्ध स्वर में पूछा ।

    तुम कहीं नहीं जाओगे । विराटनगर में ही रहोगे ।

    तुम फिर वही किस्सा ले बैठीं । अजय झुंझलाकर बोला–मैं रिसीवर रख रहा हूं ।

    नहीं ! ऐसा मत करना । वरना भारी गड़बड़ हो जाएगी । नीलम ने जल्दी से कहा–सुनो, अब तुम्हें बम्बई जाने की जरूरत नहीं है ।

    नीलम के स्वर में अचानक गंभीरता का गहन पुट पाकर अजय पुनः चौंका ।

    क्यों ?

    इसलिए कि जिससे मिलने तुम बम्बई जाने वाले थे, वह करीब पंद्रह मिनट पहले खुद ही यहां आ पहुंचा है ।

    कौन ? प्रमोद कुलकर्णी ?

    हाँ ।

    अजय सिर्फ इतना जानता था प्रमोद कुलकर्णी 'थंडर' के बम्बई आफिस का इंचार्ज था । वह कुलकर्णी से कभी मिला नहीं था ।

    तुम सच कह रही हो ? उसने संदिग्ध स्वर में पूछा ।

    बिल्कुल सच । ऑनेस्ट टू गॉड ।

    अजय ने गहरी सांस ली ।

    वह अचानक कैसे आ टपका ।

    पता नहीं । न्यूज़ एडीटर दत्ता ने फोन पर मुझे उसके आगमन की सूचना देते हुए सिर्फ इतना कहा था कि तुम्हें सूचित कर दूं ।

    कुलकर्णी ठहरा कहां है ?

    तुम्हारे फ्लैट में ।

    अजय को चौंक जाना पड़ा ।

    उसे फ्लैट की चाबी कहां से मिली ?

    मैंने इमारत के नाइट वॉचमैन रामलाल को कुलकर्णी के बारे में बता दिया है । जैसे ही वह वहां पहुँचेगा, रामलाल डुप्लीकेट चाबी से तुम्हारा फ्लैट खोल देगा ।

    अजय को यह बात जरा भी पसंद नहीं आई ।

    यानी कुलकर्णी को वहां ठहराने में तुम्हारा ही हाथ है ?

    हां । दत्ता ने बताया था कुलकर्णी को होटलों में ठहरने से सख्त परहेज है । इसलिए मैंने उसके लिए यह इंतजाम कर दिया । नीलम ने कहा और खिलखिलाकर हंस दी ।

    अजय समझ गया । नीलम ने उसे छकाने के विचार से ही ऐसा किया था । वह कोई कड़वी बात कहना चाहता था, लेकिन जब्त कर गया ।

    इसका मतलब अब मुझे बम्बई नहीं जाना है ?

    हां ।

    अजय ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।

    काउंटर पर मौजूद युवती का शुक्रिया अदा करके अजय ज्योंही पीछे हटा, एक हाथ उसकी बाँह पर कस गया ।

    अजय ने गरदन घुमाई तो एक अपरिचित उसे अपनी बाँह पकड़े दिखाई दिया । इकहरे बदन और औसत कद वाले उस आदमी की उम्र लगभग पैंतालीस साल थी । खुला गेहुंआ रंग, काले घुंघराले बाल जिनमें कनपटियों पर सफेदी झांक रही थी और मामूली शक्ल–सूरत । वह भूरे रंग का सूट और सफेद कमीज पहने था । गले में लाल टाई झूल रही थी । उसके बाएं हाथ में वी० आई० पी० का ग्रे कलर का सूटकेस था ।

    अजय को किसी अपरिचित द्वारा यूं एकाएक अपनी बाँह पकड़ लेने पर गुस्सा आ गया । उस बदतमीज आदमी को वह फटकारने ही वाला था कि अपरिचित से आँखें मिलते ही वह तनिक चौंका । उन आंखों में दहशत के ऐसे भाव थे मानो कुछ ही देर पहले अपरिचित ने सैकड़ों भूत एक साथ देख लिए थे ।

    अजय ने कुछ कहने की बजाय प्रश्नात्मक निगाहों से उसे घूरा ।

    अपरिचित ने अपना सूटकेस काउंटर के पास रख दिया ।

    मैं गुस्ताखी की माफी चाहता हूं । अपरिचित धीमे उतावले स्वर में बोला–मुझे आपसे कुछ बातें करनी हैं । जरा इधर तशरीफ लाइए ।

    अजय ने प्रतिवाद नहीं किया ।

    वे दोनों काउंटर से तनिक दूर जा खड़े हुए । अजय की बाँह अभी भी अपरिचित की पकड़ में थी, मानो उसे डर था बाँह छोड़ते ही अजय भाग खड़ा होगा ।

    माफ कीजिए टेलीफोन पर हुई आपकी बातें इत्तिफाक से मैंने सुन ली थीं । अपरिचित पूर्ववत स्वर में जल्दी–जल्दी बोला–और मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि आपके पास बम्बई जाने वाले प्लेन की टिकट है ।

    अजय ने अपनी बाँह झटककर उसकी पकड़ से छुड़ा ली ।

    आप बिल्कुल सही नतीजे पर पहुंचे हैं । वह बोला–आगे बोलिए ।

    मैं समझता हूँ, अब आपको उस टिकिट की जरूरत नहीं है । अपरिचित धीमे स्वर में याचनापूर्वक बोला–जबकि मेरा आज रात बम्बई पहुँचना बेहद जरूरी है । यह आखिरी प्लेन है और इसमें एक भी सीट खाली नहीं है । अब वह बाक़ायदा गिड़गिड़ा रहा था और उसकी भयभीत निगाहें रह–रहकर आसपास मौजूद व्यक्तियों पर जा टिकती थीं–अगर आप अपनी सीट मुझे दे दें तो मैं आपका यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा ।

    इसमें अहसान की क्या बात है । अजय ने कहा–मैं अभी अपनी सीट कैंसिल कराए देता हूं...।

    नहीं ! अपरिचित उसकी बात काटकर गिड़गिड़ाया–इतना वक्त नहीं है । प्लेन जाने में सिर्फ दो मिनट बाकी हैं । आप बस अपनी टिकिट, बोडिंग कार्ड और लगेज टैग मुझे दे दीजिए ।

    अजय ने तीनों चीजें निकालकर उसे देते हुए पूछा–आप का नाम जान सकता हूँ ।

    द...देवेन्द्रकुमार । अपरिचित हकलाता–सा बोला । उसने अपनी जेब से पर्स निकाला और सौ–सौ के दस नोट निकालकर अजय के हाथ में ठूंस दिए ।

    अजय को एक पल के लिए उसके चेहरे पर ऐसे भाव नजर आए मानो उसे जीवनदान मिल गया था । उसने वहां मौजूद व्यक्तियों और हाल के प्रवेश द्वार पर अन्तिम बार निगाह डाली फिर वह बुरी तरह हड़बड़ाता–सा काउंटर की ओर लपका, जहां अब कई व्यक्ति आ खड़े हुए थे । उन्हें एक प्रकार से धकेलते हुए उसने सूटकेस उठाया और आनन–फानन में डिपार्चर हाल की ओर दौड़कर आंखों से ओझल हो गया ।

    अजय अभी तक नोट हाथ में लिए खड़ा था । उसे अपरिचित यानी देवेन्द्रकुमार का व्यवहार बड़ा ही अजीब लगा । टिकिट हाथ में आने के बाद शुक्रिया अदा करना तो दूर रहा, उसने एक बार भी पलटकर देखा तक नहीं ।

    अजय ने नोट अपनी पैंट की जेब में ठूंस लिए । उसके जेहन में रह–रहकर देवेन्द्र का आतंकित चेहरा उभर रहा था । टिकिट हाथ में आने के बाद आश्वस्त होने की बजाय उसका एकाएक बेहद हड़बड़ा जाना अजय की समझ से परे था ।

    अनायास ही अजय की निगाहें प्रवेश द्वार की ओर घूम गई ।

    प्रवेश द्वार के बीचोंबीच एक युवती गरदन ताने कूल्हों पर हाथ रखे खड़ी थी । कोई तीस–बत्तीस वर्षीया वह युवती इंतिहाई ख़ूबसूरत थी । ऊंचा कद, गोरा रंग तीखे नैन–नक्श और कंधों तक कटे घने स्याह काले बाल । वह नीली टाइट जीन्स और काला हाईनैक पुलोवर पहने थी । उसकी टांगें सुडौल थीं और वक्ष अपेक्षाकृत अधिक उन्नत ।

    वह वहां मौजूद व्यक्तियों को ऐसी खोजपूर्ण निगाहों से देख रही थी मानो उसे किसी खास व्यक्ति की तलाश थी ।

    अन्त में वह सधे हुए कदमों से आगे बढ़ी, मानो उसे यकीन हो गया था उसका वांछित व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था ।

    सहसा रनवे की ओर से इंजिनों का तेज शोर उभरा ।

    युवती ठिठक गई ।

    चन्द क्षणोंपरांत विमान के इंजिनों का शोर कम होने लगा और अन्त में सुनाई देना बन्द हो गया ।

    अजय समझ गया बम्बई जाने वाला प्लेन टेक ऑफ करके आसमान में पहुंच चुका था ।

    अभी तक ठिठकी खड़ी युवती पुन: आगे बढ़ी । इस दफा उसकी चाल तनिक तेज थी ।

    वह अजय के निकट से गुजरी तो अजय ने देखा उसके सुडौल–नितम्ब भी उसके वक्षों की भांति अपेक्षाकृत अधिक उभरे हुए थे और उनमें जो खास ढंग का उतार–चढ़ाव पैदा हो रहा था उसे सिर्फ एक ही नाम दिया जा सकता था–मादक !

    अजय ने नोट किया वहां मौजूद लगभग प्रत्येक व्यक्ति की निगाहें उस युवती की ओर ही उठी हुई थीं ।

    वह सीधी इंडियन एयर लाइंस के बुकिंग काउंटर पर पहुंचकर रुकी ।

    अजय ने पब्लिक असिस्टेंस काउंटर के पास रखा सूटकेस उठाया और मात्र उत्सुकतावश खुद भी तेजी से वहीं जा पहुंचा ।

    वह जानबूझकर कुछ ऐसी स्थिति में खड़ा हुआ कि काउंटर पर बैठी लड़की की निगाह तो उस पर न पड़े लेकिन युवती से होने वाली उसकी बातचीत वह साफ सुन सके ।

    आप अपने पति का नाम बताइए । काउंटर पर बैठी लड़की कह रही थी–मैं फ्लाइट नम्बर वन फोर टू की पैसेंजर लिस्ट चैक करके बता दूँगी ।

    उसका नाम तो देवराज है । जीन्स और पुलोवर वाली युवती ने जवाब दिया–लेकिन इससे खास फायदा नहीं होगा । वह किसी भी दूसरे नाम से सफर कर सकता है । उसके स्वर में अधीरता का पुट था–वह करीब दस मिनट पहले यहां पहुंचा होगा । मैं उसका हुलिया बताती हूं । शायद आपको याद आ जाए ।

    बताइए ।

    जवाब में पुलोवर वाली युवती ने जो हुलिया बताया उसे सुनकर अजय का चौंक जाना स्वाभाविक ही था । वो हूबहू उस आदमी का हुलिया था, जिसे अजय ने अपनी प्लेन की टिकिट दी थी और जिसने अपना नाम देवेन्द्र कुमार बताया था ।

    अजय की समझ में नहीं आया काउंटर पर खड़ी इंतिहाई खूबसूरत पुलोवर वाली युवती देवेन्द्र कुमार या देवराज जैसे मामूली शक्ल–सूरत और मामूली शख्सीयत वाले आदमी की बीवी कैसे हो सकती थी । उस युवती की देवेन्द्र की पत्नी के रूप में कल्पना करना ही हास्यास्पद, बेमेल और असंगत लगता था । वह युवती ऐसी हरगिज भी नहीं लगती थी कि किसी एक पुरुष के साथ बंधकर रह सके । युवती के रंग–ढंग से साफ जाहिर था शादी–विवाह जैसे पचड़ों में पड़ने वाली वह नहीं थी । इसके बावजूद भी अगर वह विवाहिता थी तो भी ऐसी लगती बिल्कुल नहीं थी और देवेन्द्र जैसे आदमी की बीवी तो वह हो ही नहीं सकती थी

    ऐसे हुलिए वाला एक आदमी आया तो था । काउंटर पर बैठी लड़की कह रही थी–लेकिन उसने अपना नाम नहीं बताया । वह प्लेन जाने से कोई सात–आठ मिनट पहले यहां पहुंचा था और किसी भी कीमत पर बम्बई जाना चाहता था । लेकिन प्लेन में एक भी सीट खाली नहीं थी ।

    "इसका मतलब वह उस प्लेन में सवार नहीं हो सका ?''

    हां ।

    'आज रात कोई और प्लेन भी बम्बई जाएगा ?"

    नहीं, वो आखिरी प्लेन था । यहां से बम्बई के लिए अगली 'फ्लाइट सुबह सात बजकर तीन मिनट पर जाएगी ।

    युवती ने एक बार फिर वहां मौजूद व्यक्तियों पर खोजपूर्ण निगाहें डालीं फिर बोली–अगर वह प्लेन में सवार नहीं हुआ तो गया कहां । यहां तो कहीं भी नजर नहीं आ रहा है । एनी वे थैंक्यू वैरी मच । और काउंटर से परे हट गई ।

    वह चन्द क्षण खड़ी कुछ सोचती रही, फिर एड़ियों पर घूमी और अपने विशिष्ट अन्दाज में चलती हुई टॉयलेट की ओर बढ़ गई ।

    अजय की निगाहें बराबर उसका अनुकरण कर रही थीं ।

    युवती उस दरवाजे के बाहर पहुंचकर रुकी जिस पर 'पुरुष' लिखा था । उसने आसपास निगाहें दौड़ाईं, फिर एक पोर्टर को इशारे से अपने पास बुलाया ।

    उसने पोर्टर से कुछ कहा ।

    पोर्टर टॉयलेट में चला गया ।

    वह कुछ ही क्षणोंपरांत वापस बाहर आ गया और युवती की ओर सर हिलाकर इंकार कर दिया ।

    युवती बड़े ही सोचपूर्ण ढंग से प्रवेश द्वार की ओर चल दी ।

    अजय की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी । वह भी सूटकेस उठाए उसके पीछे चल दिया । उसका खुराफाती दिमाग सक्रिय हो चुका था । उसे देवेन्द्र या देवराज का एक–एक एक्शन याद आ रहा था । देवेन्द्र की आंखों में व्याप्त आतंक और उसकी गिडगिड़ाहट से जाहिर था कि वह फौरन विराट नगर से भाग जाने के लिए मरा जा रहा था । उसकी वहां मौजूद व्यक्तियों पर रहरहकर जा टिकती निगाहों से जाहिर था उसे अपने वॉच किए जाने या किसी खास व्यक्ति के आगमन की बड़ी पूरी आशंका थी । फिर अजय से टिकट मिलने के बाद उसने अन्तिम बार वहां मौजूद व्यक्तियों और हाल के प्रवेश द्वार पर निगाहें डाली थी और फिर वह एकाएक जिस तरह बेहद हड़बड़ी में सूटकेस उठाकर डिपार्चर हाल की ओर भाग खड़ा हुआ था, उससे सिर्फ एक ही अनुमान लगाया जा सकता था कि उस वक्त तक युवती प्रवेश द्वार में आ पहुंची थी और देवेन्द्र ने उसे देख लिया था ।

    सहसा अजय को महसूस हुआ पूरे विराटनगर में वह खुद ही इकलौता आदमी था जो युवती को देवेन्द्र या देवराज के बारे में सच्चाई बता सकता था । उसने सोचा युवती को सच्चाई बता देना ही ठीक रहेगा । उसने अपनी चाल तनिक तेज कर दी

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