मैं और मेरे एहसास (काव्य संग्रह)
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सबसे पहले मैं मेरा यह काव्य संग्रह “मैं और मेरे एहसास” के लिए श्रीमती सबा खान जी (भोपाल) का दिल से बहुत आभारी हूँ! सबा खान जी खुद लेखिका हैं...नौकरी भी करतीं हैं...बच्चों और पिछड़ी जातियों के लिये भी काम करती हैं...इतनी सारी व्यस्तता के बावजूद भी इस काव्य संग्रह के लिये इसकी ई फाइल तैयार करने में सबा खान जी ने खुशी खुशी मेरी बहुत ही मदद की है
मेरे परम मित्र श्री अशोक कटेसीया जी (मेरे कालेज के मित्र) और श्री रामजी भाई गोहिल जी (मेरे बचपन के मित्र), जिन्होंने मेरी जिन्दगी के हर मुश्किल वक्त में मेरा तन, मन और धन से साथ निभाया। मुझे संभाला। उसके लिए मैं उन दोनों का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ!
सबसे पहले मैं मेरा यह काव्य संग्रह “मैं और मेरे एहसास” के लिए श्रीमती सबा खान जी (भोपाल) का दिल से बहुत आभारी हूँ! सबा खान जी खुद लेखिका हैं...नौकरी भी करतीं हैं...बच्चों और पिछड़ी जातियों के लिये भी काम करती हैं...इतनी सारी व्यस्तता के बावजूद भी इस काव्य संग्रह के लिये इसकी ई फाइल तैयार करने में सबा खान जी ने खुशी खुशी मेरी बहुत ही मदद की है
मेरे परम मित्र श्री अशोक कटेसीया जी (मेरे कालेज के मित्र) और श्री रामजी भाई गोहिल जी (मेरे बचपन के मित्र), जिन्होंने मेरी जिन्दगी के हर मुश्किल वक्त में मेरा तन, मन और धन से साथ निभाया। मुझे संभाला। उसके लिए मैं उन दोनों का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ!
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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Book preview
मैं और मेरे एहसास (काव्य संग्रह) - वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - मई 2018
ISBN
कॉपीराइट © 2018
वर्जिन साहित्यपीठ
कॉपीराइट
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मैं और मेरे एहसास
(काव्य संग्रह)
लेखक
रमेश संघवी
रमेशकुमार मनमोहनदास संघव
98241 64623 rmsanghavi131@gmail.com
पेशा:- रिटायर्ड कर्मचारी, बैंक ओफ बड़ौदा
पता:- ऋषिकेश, सांई सोसाइटी, ब्लॉक नंबर 1, मणीनगर, अमरेली – 365601 (गुजरात)
सादर आभार
सबसे पहले मैं मेरा यह काव्य संग्रह मैं और मेरे एहसास
के लिए श्रीमती सबा खान जी (भोपाल) का दिल से बहुत आभारी हूँ! सबा खान जी खुद लेखिका हैं…नौकरी भी करतीं हैं…बच्चों और पिछड़ी जातियों के लिये भी काम करती हैं…इतनी सारी व्यस्तता के बावजूद भी इस काव्य संग्रह के लिये इसकी ई फाइल तैयार करने में सबा खान जी ने खुशी खुशी मेरी बहुत ही मदद की है
मेरे परम मित्र श्री अशोक कटेसीया जी (मेरे कालेज के मित्र) और श्री रामजी भाई गोहिल जी (मेरे बचपन के मित्र), जिन्होंने मेरी जिन्दगी के हर मुश्किल वक्त में मेरा तन, मन और धन से साथ निभाया। मुझे संभाला। उसके लिए मैं उन दोनों का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ!
मेरे परम मित्र श्री रोहित भाई जीवाणी जी, जो बहुत ही विद्वान ज्योतिषी है, वास्तु शास्त्री है, अच्छे कवि भी है, जिन्होंने समय समय पर मेरा मार्गदर्शन किया है, उनका भी दिल से आभार व्यक्त करता हूँ !
मेरे सारे फेसबुक मित्रों का भी दिल से आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मेरी रचनाओं को सराहा। उनकी सराहना के कारण ही मैं गुजराती होने के बावजूद भी हिंदी में इतनी रचनाएँ कर पाया!
गज़ल
1.
कहाँ है ठिकाना, कहाँ ढ़ूँढ़तें हैं !
दिलों में चलो अब खुदा ढ़ूँढ़ते है !
नहीं कोई यूँ ही सिसकता, सहमता,
दिलों