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एक थी माया
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एक थी माया
Ebook37 pages17 minutes

एक थी माया

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About this ebook

मैं भागते हुए मंदिर के बाहर आया और दूर अँधेरे में माया को खोजने की नाकाम कोशिश की ...पर वक़्त और माया, दोनों ही रेत की तरह हाथ से निकल गए थे ................!

Languageहिन्दी
Release dateMar 19, 2018
ISBN9781370353675
एक थी माया
Author

वर्जिन साहित्यपीठ

सम्पादक के पद पर कार्यरत

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    Book preview

    एक थी माया - वर्जिन साहित्यपीठ

    प्रकाशक

    वर्जिन साहित्यपीठ

    78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,

    नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043

    सर्वाधिकार सुरक्षित

    प्रथम संस्करण मार्च 2018

    ISBN

    कॉपीराइट © 2018

    वर्जिन साहित्यपीठ

    कॉपीराइट

    इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।

    एक थी माया

    (कहानी)

    लेखक

    विजय कुमार सप्पत्ति

    संपादन

    वृषाली गोटखिंडीकर एवं ललित मिश्र

    वर्जिन साहित्यपीठ

    विजय कुमार सप्पत्ति

    मोबाइल: 09849746500

    ईमेल: vksappatti@gmail.com

    सम्प्रति: चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर

    मैं सर झुकाकर उस वक़्त बिक्री का हिसाब लिख रहा था कि उसकी धीमी आवाज सुनाई दी, अभय, खाना खा लो। मैंने सर उठाकर उसकी तरफ देखा। मैंने उससे कहा, माया, मैं आज डिब्बा नहीं लाया। दरअसल सच तो यही था कि मेरे घर में उस दिन खाना नहीं बना था। गरीबी का वो ऐसा दौर था कि बस कुछ पूछो मत। वह मेरे पढने का वक़्त था, इसलिए मैं उस मेडिकल शॉप में सेल्समेन का काम करता था।  

    वह सामने खड़ी

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