एक थी माया
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मैं भागते हुए मंदिर के बाहर आया और दूर अँधेरे में माया को खोजने की नाकाम कोशिश की ...पर वक़्त और माया, दोनों ही रेत की तरह हाथ से निकल गए थे ................!
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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Book preview
एक थी माया - वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण मार्च 2018
ISBN
कॉपीराइट © 2018
वर्जिन साहित्यपीठ
कॉपीराइट
इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता।
एक थी माया
(कहानी)
लेखक
विजय कुमार सप्पत्ति
संपादन
वृषाली गोटखिंडीकर एवं ललित मिश्र
वर्जिन साहित्यपीठ
विजय कुमार सप्पत्ति
मोबाइल: 09849746500
ईमेल: vksappatti@gmail.com
सम्प्रति: चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर
मैं सर झुकाकर उस वक़्त बिक्री का हिसाब लिख रहा था कि उसकी धीमी आवाज सुनाई दी, अभय, खाना खा लो
। मैंने सर उठाकर उसकी तरफ देखा। मैंने उससे कहा, माया, मैं आज डिब्बा नहीं लाया।
दरअसल सच तो यही था कि मेरे घर में उस दिन खाना नहीं बना था। गरीबी का वो ऐसा दौर था कि बस कुछ पूछो मत। वह मेरे पढने का वक़्त था, इसलिए मैं उस मेडिकल शॉप में सेल्समेन का काम करता था।
वह सामने खड़ी