लघुकथा मंजूषा 4
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आदमी
राजेन्द्र नागर 'निरन्तर'
तपती दोपहर में नगर सेठ की दुकान के सामने से निकलते समय कल्लू के बच्चे यकायक पानी की ज़िद कर बैठे तो कल्लू ने सेठ जी से याचना की, "सेठ जी, बच्चे प्यासे हैं। पानी माँग रहे हैं, कृपया पिला दीजिए।"
सेठ जी झल्लाए, "अभी यहाँ कोई आदमी नहीं है। बाद में आना।"
आदमी
राजेन्द्र नागर 'निरन्तर'
तपती दोपहर में नगर सेठ की दुकान के सामने से निकलते समय कल्लू के बच्चे यकायक पानी की ज़िद कर बैठे तो कल्लू ने सेठ जी से याचना की, "सेठ जी, बच्चे प्यासे हैं। पानी माँग रहे हैं, कृपया पिला दीजिए।"
सेठ जी झल्लाए, "अभी यहाँ कोई आदमी नहीं है। बाद में आना।"
आदमी
राजेन्द्र नागर 'निरन्तर'
तपती दोपहर में नगर सेठ की दुकान के सामने से निकलते समय कल्लू के बच्चे यकायक पानी की ज़िद कर बैठे तो कल्लू ने सेठ जी से याचना की, "सेठ जी, बच्चे प्यासे हैं। पानी माँग रहे हैं, कृपया पिला दीजिए।"
सेठ जी झल्लाए, "अभी यहाँ कोई आदमी नहीं है। बाद में आना।"
आदमी
राजेन्द्र नागर 'निरन्तर'
तपती दोपहर में नगर सेठ की दुकान के सामने से निकलते समय कल्लू के बच्चे यकायक पानी की ज़िद कर बैठे तो कल्लू ने सेठ जी से याचना की, "सेठ जी, बच्चे प्यासे हैं। पानी माँग रहे हैं, कृपया पिला दीजिए।"
सेठ जी झल्लाए, "अभी यहाँ कोई आदमी नहीं है। बाद में आना।"
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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Reviews for लघुकथा मंजूषा 4
1 rating1 review
- Rating: 4 out of 5 stars4/5अच्छा संग्रह है।सभी लघुकथाएँ उद्देश्य परक लगीं।लेखकों और प्रकाशक को बधाई।
Book preview
लघुकथा मंजूषा 4 - वर्जिन साहित्यपीठ
लघुकथा मंजूषा
4
वर्जिन साहित्यपीठ सम्पादन मंडल
ललित कुमार मिश्र एवं ममता शुक्ला
वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
78ए, अजय पार्क, गली नंबर 7, नया बाजार,
नजफगढ़, नयी दिल्ली 110043
9868429241 / sonylalit@gmail.com
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - सितंबर 2019
कॉपीराइट © 2019 वर्जिन साहित्यपीठ
ISBN
कॉपीराइट
इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक वर्जिन साहित्यपीठ द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता। सामग्री के संदर्भ में किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में जिम्मेदारी लेखक की रहेगी।
आदमी
राजेन्द्र नागर 'निरन्तर'
तपती दोपहर में नगर सेठ की दुकान के सामने से निकलते समय कल्लू के बच्चे यकायक पानी की ज़िद कर बैठे तो कल्लू ने सेठ जी से याचना की, सेठ जी, बच्चे प्यासे हैं। पानी माँग रहे हैं, कृपया पिला दीजिए।
सेठ जी झल्लाए, अभी यहाँ कोई आदमी नहीं है। बाद में आना।
सेठ जी, बच्चे प्यास से बिलबिला रहे हैं। आपकी बड़ी उमर हो।
कल्लू की नज़रें सेठ जी के पास ही रखे मटके पर थी।
चल भाग। कहा न, अभी यहाँ कोई आदमी नहीं है।
कल्लू ने विनम्रता से कहा, सेठ जी, कृपा करके थोड़ी देर के लिए आप ही आदमी बन जाइए ना।
लाफिंग क्लब
राजेन्द्र नागर 'निरन्तर'
रामबाबू पार्क में ठहाका मारकर हँसते हुए कुछ लोगों के समूह को देख रहे थे। कारण पूछने पर किसी ने बताया कि वे लोग स्वस्थ रहने के लिए हँस रहे हैं। उन्होंने भी हँसने का प्रयास किया पर सफलता नहीं मिली।
घर वापस आते ही पत्नी की घोषणाएँ सुनाई दीं। राशन खत्म हो गया है। लाला ने उधार देने से मना कर दिया है। फीस जमा न करने की वजह से पिंकी को स्कूल से निकाल दिया गया है। मेरी सभी साड़ियाँ फट गई हैं। किराया न देने से मकान मालिक ने मकान खाली करने का नोटिस थमा दिया है। पप्पू की तबियत खराब है, डॉक्टर के पास ले जाना होगा। बहन की शादी है, कुछ देने का इंतज़ाम करना है।
रामबाबू की उँगलियाँ अपनी फ़टी जेबें टटोलने लगीं और वे स्वतः ही खूब जोर से ठहाका मारकर हँस पड़े।
इच्छा
राजेन्द्र नागर 'निरन्तर'
अम्मा बहुत भूख लग रही है। तीन दिन हो गए। क्या आज भी ऐसे ही सोना पड़ेगा?
"क्या करूँ बेटा! अब कोई भीख भी तो नहीं देता।