जुलाई की वो रात: कहानी संग्रह
By Raja Sharma
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कहानियां तो आपने बहुत सी सुनी और पढ़ी भी होंगी, और शायद उनमें से कुछ कहानियों ने आपके मष्तिष्क पर अपनी छाप भी छोड़ी हो, परन्तु इस कहानी संग्रह में जो कहानियां हम प्रस्तुत कर रहे हैं वो कुछ अलग प्रकार की ही हैं.
हमारे इस संग्रह की कहानियां आपका मनोरंजन करने के साथ साथ आपको एक प्रकार की चुनौती थी देंगी और आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी. बहुत से ऐसे ज्वलंत प्रश्न ऐसे हैं जिनका चित्रण हमारी इन कहानियों में किया गया है परन्तु उनके उत्तर हम पाठकों के विवेक और बुद्धि पर ही छोड़ रहे हैं. ये कहानियां हर वर्ग के लोगों के लिए उपयुक्त हैं.
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
राजा शर्मा
Raja Sharma
Raja Sharma is a retired college lecturer.He has taught English Literature to University students for more than two decades.His students are scattered all over the world, and it is noticeable that he is in contact with more than ninety thousand of his students.
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जुलाई की वो रात - Raja Sharma
राजा शर्मा
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जुलाई की वो रात: कहानी संग्रह
राजा शर्मा
Copyright@2018 राजा शर्मा Raja Sharma
Smashwords Edition
All rights reserved
जुलाई की वो रात: कहानी संग्रह
Copyright
दो शब्द
जुलाई की वो रात July Ki Wo Raat
देनेवाला देता है Denewala Deta Hai
वो गरीब नहीं था Wo Gareeb Nahi Tha
एक दिन का महत्त्व Ek Din Ka Mahatv
तुम्हारे लिए Tumharey Liye
उसकी भी थी प्रेम कहानी Uski Bhi Thi Prem Kahani
विश्वास है तो... Vishwaas Hai To...
जेडेन और येशुआ Jaiden aur Yeshua
ईमानदार पिता Imandaar Pita
गणित से भागता था Ganit Se Bhagta Tha
वो भूला नहीं था Wo Bhula Nahi Tha
हमारा प्यारा निक Hamara Pyara Nick
इक नयी सिंड्रेला Ik Nayi Cinderella
वो चली गयी Wo Chali Gayi
शुभ और अशुभ Shubh Aur Ashubh
छोटा भाई Chota Bhai
छोटी सी शुरुवात Choti Si Shuru
अंधे होने का अनुभव Andhe Honey Ka Anubhav
मैं शिकार हुई थी Main Shikar Hui Thi
प्रेम, भारतीय परिपेक्ष में Prem, Bharatiya Paripeksha Mein
प्यार पहली बार Pyar Pahli Baar
इंद्रधनुष Indradhanush
बारिश सुख दे गयी Barish Sukh De Gayi
कलम तो थी मेरे साथ Kalam To Thi Mere Sath
प्याज के राज़ Pyaz Ke Raaz
बेल का फल Bel Ka Phal
साधारण सी बात Sadharan Si Baat
छोटी सी शुरुवात Choti Si Shuruvaat
उसकी हथेली Uski Hatheli
तुम सब उच्च हो Tum Sab Uchh Ho
नेता कैसा हो? Neta Kaisa Ho?
दो शब्द
कहानियां तो आपने बहुत सी सुनी और पढ़ी भी होंगी, और शायद उनमें से कुछ कहानियों ने आपके मष्तिष्क पर अपनी छाप भी छोड़ी हो, परन्तु इस कहानी संग्रह में जो कहानियां हम प्रस्तुत कर रहे हैं वो कुछ अलग प्रकार की ही हैं.
हमारे इस संग्रह की कहानियां आपका मनोरंजन करने के साथ साथ आपको एक प्रकार की चुनौती थी देंगी और आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी. बहुत से ऐसे ज्वलंत प्रश्न ऐसे हैं जिनका चित्रण हमारी इन कहानियों में किया गया है परन्तु उनके उत्तर हम पाठकों के विवेक और बुद्धि पर ही छोड़ रहे हैं. ये कहानियां हर वर्ग के लोगों के लिए उपयुक्त हैं.
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद
राजा शर्मा
जुलाई की वो रात July Ki Wo Raat
पौने चार बजे की डायमंड हार्बर- स्यालदाह लोकल ट्रेन हमेशा की तरह ही भरी हुई थी. ट्रेन के उस रूट पर हमेशा ही बहुत सी रुकावटें रहती थी और वो रेल कभी भी समय से नहीं चलती थी.
मेरा सौभाग्य था के मुझे किसी तरह धक्का मुक्की करके एक सीट मिल ही गयी.
परन्तु मुझे बहुत ही जमकर बैठना था क्योंकि तीन लोगों को बैठाने वाली उस बर्थ पर उस समय छे लोग बैठे हुए थे. जरा से धक्के से मैं नीचे फर्श पर जा गिरना था.
मेरे सामने एक जवान औरत अपनी गोदी में एक तीन बरस की लड़की को लेकर बैठी थी. उसके साथ ही चिपट कर बैठा था उसका एक पांच या छे बरस का बेटा.
जब ट्रेन ने सोनारपुर स्टेशन छोड़ा, वो जवान औरत उठकर खड़ी होने के लिए संघर्ष करने लगी, क्योंकि उसकी गोदी में बच्ची अभी भी थी और दूसरा बच्चा उसका एक हाथ पकडे था.
वो अपने आस पास खड़े लोगों को बोली, मुझे जाने दीजिये, मुझे गरिआ स्टेशन पर उतरना है.
भीड़ में लोग अनिच्छापूर्वक उसके लिए रास्ता बनाने लगे. किसी ने कहा, दीदी जरा जल्दी चलिए, मेरा संतुलन बिगड़ रहा है.
बेचारी औरत आगे बढ़ नहीं सकी क्योंकि भीड़ बहुत थी. वो झुक कर अपनी सीट के नीचे से कुछ खींचने लगी.
एक यात्री ने कहा, दीदी अब क्या हुआ? जल्दी से सीट छोड़िये और आगे बढिये.
वो बेचारी डरते डरते बोली, मेरा बोरा सीट के नीचे है और मैं उसको बाहर नहीं निकाल पा रही हूँ.
कुछ यात्रियों ने मुंह बनाये पर कुछ ने नीचे झुक कर उसके बोरे को सीट के नीचे से खींच कर बाहर निकाल दिया.
उनमें से एक ने कहा, दीदी ये बोरा तो बहुत ही भारी है. ट्रेन से इसको उतरने में कौन तुम्हारी मदद करेगा? इसको दरवाजे तक कैसे ले जाओगी? इतनी भीड़ है!
बेचारी स्त्री तो भयभीत ही हो गयी और विनती भरे स्वर में बोली, मेरे साथ मर्द या बड़ा नहीं है. मैं नहीं जानती थी के इस ट्रेन में इतनी भीड़ होगी.
सभी अपनी अपनी टिप्पणियां करने लगे. परन्तु उस असहाय औरत की मदद करने को आगे कोई भी नहीं आया.
मुझे तो उस गाडी से ही स्यालदाह तक जाना था और मैं अपनी सीट नहीं छोड़ना चाहता था क्योंकि अगर मैं उठता तो तुरंत ही कोई और व्यक्ति मेरी सीट पर कब्ज़ा कर लेता.
फिर भी मेरे अंदर की इंसानियत ने मुझे बैठे नहीं रहने दिया. मैं उस असहाय औरत को ऐसे ही तो नहीं देख सकता था.
मैं अपनी सीट से उठा और बोला, लाइए मैं आपका बोरा ले चलता हूँ. आप अपने बच्चों को लेकर दरवाजे तक पहुँचने का प्रयास कीजिये नहीं तो आप अपने स्टेशन पर उतर नहीं सकेंगी. मैं बोरा ले जाता हूँ.
उसने मेरी तरफ आभार भरी निगाह से देखा और अपनी बेटी को सीने से चिपटाये और अपने बेटे का हाथ थामे भीड़ में से रास्ता बनाती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी.
वो बीच बीच में बोलती जाती थी, दादा, मुझे जाने दीजिये. मुझे गरिआ में उतरना है. दादा, मुझे जाने दीजिये!
मैं बोरे के एक कोने को पकड़कर भीड़ को इधर उधर हटाता हुआ दरवाजे की तरफ खींचने लगा. लोग चिल्ला रहे थे और मेरा विरोध कर रहे थे पर मैंने किसी की भी नहीं सुनी. कुछ ही देर में ट्रेन गरिआ स्टेशन मे प्रवेश कर गयी.
उस स्टेशन पर ज्यादा यात्री नहीं उतर रहे थे. लेकिन दरवाजे के पास बहुत भीड़ थी. मैंने उस जवान औरत की आवाज सुनी, कृपया, मुझे उतरने दीजिये. मेरे साथ मेरे दो बच्चे हैं!
उसकी गोदी में उसकी बच्ची अब रोने लगी थी और उसका बेटा उसका हाथ थामे बार बार अपनी माँ को पुकार रहा था, माँ, सांस नहीं ले पा रहा! माँ, बहुत गर्मी है!
मैं भी बहुत ही कठिनाई से उस औरत का बोरा खींच कर दरवाजे की तरफ ला रहा था. मैं दरवाजे तक पहुँच ही गया. बेचारी औरत प्लेटफार्म पर उतरते उतरते गिरते गिरते बची.
उसका बेटा उसके पीछे ही था. मैं भी प्लेटफार्म पर खड़ा हो गया परन्तु बोरा अभी भी दरवाजे पर ही था.
ट्रेन फिर से चलने वाली थी. मैंने पूरा जोर लगाकर उसके बोर को खींचा और नीचे प्लेटफार्म पर पटक दिया. बहुत से लोगों के पैरो से छू गया था वो बोरा. उन्होंने मुझे भद्दी भद्दी गलियां भी दी.
मैंने किसी तरह अपना संतुलन कायम रखा. ट्रेन ने गति पकड़ ली थी. मेरे लिए भी अब दौड़ कर वापिस डिब्बे में चढ़ना आसान नहीं था. मैंने कोशिश की लेकिन मैं वापिस ट्रेन पर नहीं चढ़ सका.
हार कर मैंने अगली ट्रेन लेने का निर्णय किया. मैंने उस जवान औरत की तरफ देखा. उसकी गोदी में उसकी बेटी अब शांत हो गयी थी. वो मेरी तरफ देख रही थी और अपना अंगूठा चूस रही थी.
उस जवान औरत ने मुझसे कहा, मैं नहीं जानती के मैं आपको कैसे धन्यवाद कहूँ. आप ना होते तो मैं आज अपने सामान और बच्चों के साथ नीचे नहीं उतर सकती थी. मेरे कारण आपकी ट्रेन छूट गयी!
मैंने कहा, कोई बात नहीं, मैं अगली लोकल पकड़ लूँगा. लेकिन आपको अपने बच्चों के साथ इतना सामान लेकर इस तरह से ट्रेन पर यात्रा नहीं करनी चाहिए! आप तो जानती ही हैं के लोकल ट्रेनों में कितनी भीड़ होती है|!
वो बोली, जब मैं ट्रेन में बैठी थी होतुर में तो ट्रेन बिलकुल खाली थी. मैंने तो सोचा भी नहीं था के आगे इतनी भीड़ हो जाएगी!
उस गरिआ स्टेशन पर सामान उठाने वाला कोई कुली भी नहीं था.. मैं नहीं जानता था के वो कैसे अपने सामान को आगे ले जाने वाली थी.
मैंने पूछ ही लिया, क्या आप यहाँ नजदीक ही रहती हैं? आप अपने बच्चों और इस इतने भारी बोरे को अब कैसे ले जाएंगी?
वो बोली, "नहीं, मैं स्टेशन से बहुत दूर रहती हूँ. लेकिन मैं एक साइकिल रिक्शा ले लूंगी और घर पहुँच जाउंगी.
आपका बहुत बहुत शुक्रिया! मैं अकेली कैसे करती ये सब!" उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी थी. मैंने देखा के उसका चेहरा बहुत ही आकर्षक था. मैंने पहले उसके चेहरे की तरफ देखा ही नहीं था.
मैंने झुककर बोरा उठाते हुए कहा, धन्यवाद की जरूरत नहीं है! लाइए मैं ये बोरा रिक्शा तक पहुंचा देता हूँ.
वो मेरा विरोध करने लगी और अंत में मैंने हार कर उस बोरे को छोड़ दिया. वो फिर से मुस्कुराई. वो स्टेशन से बाहर जाने वाले गेट की तरफ बढ़ गयी.
मैं भी पीछे पीछे उसके साथ ही स्टेशन से बाहर आया, परन्तु वहां पर एक भी साइकिल रिक्शा नहीं था. वो तो हैरान हो गयी.
अँधेरा हो चूका था और स्टेशन के पास की चाय की दूकान भी बंद हो रही थी. उसने जाकर उस दूकान के मालिक से कहा, आज कोई भी रिक्शा नहीं है?
हमको मालूम हुआ के रिक्शा वालों में झगड़ा हो गया था और उसके कारण सभी रिक्शा वालों ने उस दिन हड़ताल कर दी थी. दो रिक्शा यूनियन का झगड़ा काफी बढ़ गया था.
बेचारी औरत नहीं समझ पा रही थी के उसको क्या करना चाहिए. मैंने ना चाहते हुए भी पूछ ही लिया, आपका घर कितनी दूर है? मैं आपका बोरा आपके घर पहुंचा देता हूँ.
वो बड़बड़ाई, नहीं, नहीं, आपने तो पहले ही मेरी इतनी मदद कर दी है. मेरा घर यहाँ से काफी दूर है.
उसका बेटा उसका हाथ खींच रहा था, माँ, मुझे भूख लगी है.घर चलो ना!
मैंने उस बोरे को फिर से उठा लिया. भारी तो वो बहुत था पर मैंने किसी तरह उसको अपने बाएं कंधे पर रख ही लिया और कहा,आइये, रास्ता बताइये. यहाँ तो तुम रात भर खड़ी रहोगी और कोई भी नहीं आएगा!
वो विरोध करने लगी लेकिन कोई और विकल्प भी तो नहीं था. उसने मुस्कुरा कर कहा,अब मैं आपसे क्या कहूँ? आप मेरे लिए इतनी तकलीफ उठा रहे हैं?
वो आगे आगे चलने लगी.
काफी देर तक हम चलते रहे. इस दौरान मैंने बोरे को तीन बार कभी बाएं और कभी दाएं कंधे पर रख लिया था. अचानक उसने कहा, आप ये बोरा मुझे दे दीजिये. कुछ देर मैं उठा लेती हूँ. आप मेरी बेटी को उठा लीजिये.
मुझे बहुत थकान हो गयी थी और मैं बोरा देकर बच्ची को लेने ही वाला था के बच्ची जोर से चिल्लाने लगी. वो माँ की गोदी को छोड़ने को तैयार ही नहीं थी. वो फिर से चलने लगी.
रास्ता आगे काफी घुमावदार था. उसने कहा, ये रास्ता बहुत लम्बा होगा. अगर आपको बुरा ना लगे तो हम खेतों में से होकर जा सकते हैं. जल्दी पहुँच जाएंगे?
:
हम लोग खेतों की पगडंडी पर चलने लगे. चन्द्रमा अब आकाश में पूरी तरह से दिखने लगा था. खेत पानी और कीचड से भरे हुए थे.
कुछ आगे चलकर पगडंडियों में भी कीचड था और चलना बहुत ही खतरनाक हो गया था. फिर भी मैं हिम्मत करके आगे बढ़ता ही रहा.
फिसलने का हर मौक़ा था. हम बहुत से खेतों को पार करते हुए चलते रहे. वो और उसके बच्चे आगे आगे थे.
अचानक मेरा पैर फिसल गया. मैं नीचे गिर गया और बोरा मेरे ऊपर. मैं जोर से चिल्लाया. वो औरत भी रुक गयी और ग्लानि भरी आँखों से मुझे देखने लगी.
मैं खेत में कीचड में पड़ा था. उसने कहा, अपना हाथ दीजिए. मैं आपको उठाती हूँ!
उसने मेरा हाथ पकड़कर मुझे फिर से मेरे पैरों पर खड़ा कर दिया. मेरे जूते कीचड से लथपथ हो गए थे और कपड़ों का तो बुरा हाल था. उस औरत