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सबीना की रुख़सती
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सबीना की रुख़सती

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यह उपन्यास मेरे प्रिय पाठकों के लिए, केवल स्वस्थ मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक बुराईयों और निजी स्वार्थ के दुष्परिणामों को उजागर कर उसे जड़ से मिटा देने का एक संदेश भी है| जो किकिसी भी धर्म विशेष तक नहीं है, बल्कि यह तो, हमारे भारतीय समाज में दीमक की तरह फैला हुआ है| इसमें एक आम भारतीय बेटी के दुःख-दर्द और बेवशी की कहानी है| सबीना (सलीम की बेटी), जिसे उसके माता-पिता ने, पान के पत्ते की तरह बड़े लाड़-प्यार से पाला| बड़ी होने पर, उसकी शादी एक एक अच्छा घर-वर देखकर पास के ही गाँव के ही युशुफ के साथ होती है|
लेकिन उसकी ख़ुशी में ग्रहण तब लगता है, जब वह ससुराल पहुँचकर अनुभव करतीहै कि वह युशुफ के जितना करीब जाना चाहती है, युशुफ उतना ही दूर चला जाता है| इस तरह महीने बीत जाने के बाद भी जब युशुफ, ’सबीना’ के करीब नहीं आते हैं| तब उसे यह महसूस होने लगता है कि मेरे प्रेम की नैया, दिन व दिन, युशुफ के घृणा के सागर में डूबती जा रही है, अब इस नौका से उतरने में ही भलाई है| वह अपने माता-पिता के घर लौट आती है|
एक जवान बेटी का, शादी के महीने भर बाद ही, पिता के घर लौटकर चला आना| उसके माता-पिता के लिए, कितना पीड़ादायक है, इसे जानने के लिए, आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा, तथा इसके बाद ‘सबीना’ का क्या हुआ, और जो कुछ हुआ, ठीक हुआ या गलत, अपनी राय, अवश्य बताने की कोशिश कीजिएगा|
‘सबीना’ का मैके लौट आने की बात, जब मेरे कानों में गई, सच मानिए, मैं इतनी भावुक हो गई कि मेरी कलम, उसके सम्बन्ध में कुछ लिखे बगैर न रह सकी| मैं बहुत दुःखी हुई, यह सोचकर कि, जहाँ हमारे देश में, नारी को देवी, श्रद्धा, और अबला के संबोधनों से संबोधित करने की प्रथा, प्राचीनकाल से चली आ रही है, वहाँ एक नारी, पर इतना अत्याचार, इसका अर्थ यही हुआ न कि, हमारे पुरुष समाज कहते कुछ, और करते कुछ और हैं| उनकी नजर, एक नारी को अबला के रूप में, सिर्फ भोग्या समझते हैं, इसके अलावा और कुछ नहीं|
नारी एक शक्ति है, इसका स्मरण मात्र औपचारिकता वश किया जाता है| इसे हम पुरुष समाज की हीनमानसिकता कह सकते हैं| इस हीनता के कारण न जाने कितनी ही ‘सबीना’ (बेटियाँ), युशुफ जैसे पुरुष के हाथों, प्रताड़ित होती रहती हैं|
लगभग 600 कहानियाँ, और दश उपन्यास लिखने के बाद, मैं साहित्यिक जगत से दूर रहने पर विचार कर रही थी| पर मेरा यह विचार, मेरे पाठकों को पसंद नहीं आया| वे फोन कर, पत्र लिखकर, यह आदेश भेजने लगे कि अभी आपको और बहुत कुछ लिखना है| ‘मेरे पाठक मेरे जज हैं, उनके फैसले सर आँखों पर’|फल:स्वरूप आज ‘सबीना की रुख़सती’
आपको प्रेषित है| इसे पढ़िए, और अपना विचार दीजिये, बताइये कि यह उपन्यास आपके दिल की गहराइयों में कहाँ तक उतर सकी| इंतजार रहेगी|

Languageहिन्दी
Release dateMay 4, 2022
ISBN9788195609574
सबीना की रुख़सती
Author

डॉ. तारा सिंह

Dr. Tara Singh, well known Hindi Litterateur, a versatile writer, taking keen interests in writing Poems, Short Stories, Novels, Ghazals, Filmy Songs and Essay Books.She always deals with real facts and original aspects of a relationships between individuals / family members / friends. Thus, she illustrates not only the pleasant love but also sometimes resulting development like despair, betrayals and disloyalties.With publication of 46 books (Novels-4, poetry books-20, story books-15, Ghazal books-7), she is presently working as the Editor-in-Chief and Administrator of www.swargvibha.com (A leading Hindi Website) and the Swargvibha Hindi quarterly magazine. She has gotten wide applauses for her emotional and thoughtful Poems, Stories and Ghazals, while dealing with Social and Family issues, Personal and Social delicacies, Philosophy of life and Reality, Birth and Death Cycles, etc.Dr. Tara Singh's outstanding works have been duly recognized and she has already been awarded 255 awards / felicitations / trophies from both National and International Organizations of repute. Her writings / books are now available at www.swargvibha.com and www.kukufm.com (As Audiobooks), Google books, www.amazon.in, www.flipkart.com, Insta Publish, Suman Publications, www.pothi.com, Central and State Libraries in India and 30 other websites world over, etc. Her Biography, “TARA SINGH AUTHOR” has been published by Barnes and Noble (USA 2011) and also by Rifacimento International, 9 times in Who's Who (2006-2019) and Wikipedia. Her writings are always full of serious thoughts, topics, pace of happenings and philosophy of life.

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    सबीना की रुख़सती - डॉ. तारा सिंह

    सबीना की रुख़सती

    उपन्यास

    डॉ. तारा सिंह

    सबीना की रुख़सती

    उपन्यास

    Author: Dr. Tara Singh

    Edition: First Edition

    Published Date: April 2022

    Printer Details: Paperback

    Copyright: Dr. Tara Singh

    ISBN: 978-81-956095-7-4

    All rights reserved including reproduction, whole or in part, or in any form

    Publisher: Swargvibha Publishing House

    Publisher Address: A-1601, Sea Queen Heritage, Plot-6, Sector-18, Sanpada, Navi Mumbai, Maharashtra-400705

    दो शब्द

    यह उपन्यास मेरे प्रिय पाठकों के लिए, केवल स्वस्थ मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक बुराईयों और निजी स्वार्थ के दुष्परिणामों को उजागर कर उसे जड़ से मिटा देने का एक संदेश भी है| जो किकिसी भी धर्म विशेष तक नहीं है, बल्कि यह तो, हमारे भारतीय समाज में दीमक की तरह फैला हुआ है| इसमें एक आम भारतीय बेटी के दुःख-दर्द और बेवशी की कहानी है| सबीना (सलीम की बेटी), जिसे उसके माता-पिता ने, पान के पत्ते की तरह बड़े लाड़-प्यार से पाला| बड़ी होने पर, उसकी शादी एक एक अच्छा घर-वर देखकर पास के ही गाँव के ही युशुफ के साथ होती है|
    लेकिन उसकी ख़ुशी में ग्रहण तब लगता है, जब वह ससुराल पहुँचकर अनुभव करतीहै कि वह युशुफ के जितना करीब जाना चाहती है, युशुफ उतना ही दूर चला जाता है| इस तरह महीने बीत जाने के बाद भी जब युशुफ, ’सबीना’ के करीब नहीं आते हैं| तब उसे यह महसूस होने लगता है कि मेरे प्रेम की नैया, दिन व दिन, युशुफ के घृणा के सागर में डूबती जा रही है, अब इस नौका से उतरने में ही भलाई है| वह अपने माता-पिता के घर लौट आती है|
    एक जवान बेटी का, शादी के महीने भर बाद ही, पिता के घर लौटकर चला आना| उसके माता-पिता के लिए, कितना पीड़ादायक है, इसे जानने के लिए, आपको यह उपन्यास पढ़ना होगा, तथा इसके बाद ‘सबीना’ का क्या हुआ, और जो कुछ हुआठीक हुआ या गलत, अपनी राय, अवश्य बताने की कोशिश कीजिएगा|
    ‘सबीना’ का मैके लौट आने की बात, जब मेरे कानों में गई, सच मानिए, मैं इतनी भावुक हो गई कि मेरी कलम, उसके सम्बन्ध में कुछ लिखे बगैर न रह सकी| मैं बहुत दुःखी हुई, यह सोचकर कि, जहाँ हमारे देश में, नारी को देवी, श्रद्धा, और अबला के संबोधनों से संबोधित करने की प्रथा, प्राचीनकाल से चली आ रही है, वहाँ एक नारी, पर इतना अत्याचार, इसका अर्थ यही हुआ न कि, हमारे पुरुष समाज कहते कुछ, और करते कुछ और हैं| उनकी नजर, एक नारी को अबला के रूप में, सिर्फ भोग्या समझते हैं, इसके अलावा और कुछ नहीं|
    नारी एक शक्ति है, इसका स्मरण मात्र औपचारिकता वश किया जाता है| इसे हम पुरुष समाज की हीनमानसिकता कह सकते हैं| इस हीनता के कारण न जाने कितनी ही ‘सबीना’ (बेटियाँ), युशुफ जैसे पुरुष के हाथों, प्रताड़ित होती रहती हैं|
    लगभग 600 कहानियाँ, और दश उपन्यास लिखने के बाद, मैं साहित्यिक जगत से दूर रहने पर विचार कर रही थी| पर मेरा यह विचार, मेरे पाठकों को पसंद नहीं आया| वे फोन कर, पत्र लिखकर, यह आदेश भेजने लगे कि अभी आपको और बहुत कुछ लिखना है| ‘मेरे पाठक मेरे जज हैं, उनके फैसले सर आँखों पर’|फल:स्वरूप आज ‘सबीना की रुख़सती’
    आपको प्रेषित है| इसे पढ़िए, और अपना विचार दीजिये, बताइये कि यह उपन्यास आपके दिल की गहराइयों में कहाँ तक उतर सकी|
    - तारा सिंह

    सबीना की रुख़सती

    संध्या का समय था| आकाश पर लालिमा छाई हुई थी| सबीना की माँ ने आवाज देकर कहा, ‘बेटा सबीना!’

    सबीना दौड़कर माँ सलमा के पास आई और अपने सर के दुपट्टे को संभालती हुई पूछी, ‘हाँ माँ! बोलो, तुम अभी मुझे बुला रही थी?’

    सलमा ने संवेदन भरे स्वर में कहा, ‘बेटा, घर में पीने के लिए बूंद भर भी पानी नहीं है, और तुम्हारे पिता का खेत पर से लौटने का समय हो आया है| जा, जाकर एक घड़ा पानी, नदी से भर ला| कुछ क्षण बाद ही रात हो जायेगी| ऐसे में, जवान बेटी का, नदी पर जाना, तुम्हारे पिता बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं|’

    सबीना घड़े के बचे पानी को एक बर्तन में रखती हुई बोली, ‘ठीक है, माँमैं अभी जा रही हूँ|’

    सबीना जब नदी पर पहुँची, देखी, ‘मंद वायु नदी की लहरों पर क्रीड़ा कर रही है, उन्हें गुदगुदा रही है|’

    सबीना इस काव्यमय मनोरम दृश्य को देखकर हँसने लगी| सोचने लगी, खुदा! यह कैसा आनन्दमय दृश्य है, काश मेरी जिंदगी भी ऐसी होती| यह कहते, उसका गला रुंध गया, आँखें भर आईं| उसकी यह रसिक कल्पना ने, सरल सुखमय जीवन का ऐसा सुखमय चित्र खींचा, वह इसमें मग्न हो गई, कि उसका चित्त व्याकुल हो उठा| वहाँ की प्रत्येक वस्तु, नावमल्लाह, झोपड़ा, हर चीज शान्ति और आनन्द के रंग में डूबी दीखने लगी| उसने आकाश की ओर देखा, और मन ही मन कहा, ‘मेरे ह्रदय की तरह यहाँ भी सन्नाटा पसरा हुआ है, न तारे हैं, न चाँद निकले|’

    जिस प्रकार गृह विहीन पथिक वृक्ष की छाँव में भी, मजे से पाँव फैलाकर सोता है| उसकी अव्यवस्था ही उसे निश्चिन्त बना देती है| उसी तरह सबीना, मानसिक व्यग्रता में भी स्वस्थ हो गई| अभी उसके मन के कोमल भाव शिथिल भी नहीं हुए थे कि किसी की कम्पित स्वर उसके कानों में सुनाई दी| यह तो माँ की आवाज है| उसने झटपट घड़े में पानी भरा, और मुड़कर देखा, तो आँखों में, डर भरा और उदासी लिए उसकी माँ खड़ी थी| माँ को देखकर वह चौंक उठी, और एक अपराधी की तरह माँ के साथ-साथ चलने लगी| जाते-जाते रास्ते में माँ सलमा ने पूछा, ‘बेटा, इतनी देर कहाँ थी? दरवाजे पर कुटुंब आकर बैठे हुए हैं, और उन्हें पीने देने के लिए घर में पानी का एक बूंद भी नहीं है|’

    सबीना ने उत्तेजित कंठ से पूछा, ‘कौन कुटुम्ब, कैसा कुटुम्ब, इसके पहले तो तुमने कभी बताया नहीं|’

    सलमा, ‘बेटा! ब्याह के लिए लडके वाले तुमको देखने आये हैं| खाता-पीता घर है| लड़का इंजीनियर, पर हाँ अभी नौकरी नहीं मिली है| वो भी मिल ही जायेगा| रूपवान है, दश बीघे अपनी खेती की जमीन है| खानदानी अमीर है| तुम्हारे ही बुआ के गाँव से है|’ यह कहते-कहते सलमा की आँखों से आँसू निकल गए, गला भर आया| फिर भी अपने आँसुओं के वेग को दबाती हुई, बोली, ’बेटा जल्दी-जल्दी चलो, देर हो रही है|’

    सलमा घर पहुँचकर देखी, घर में काफी हास्योन्माद का माहौल है| दादी आँगन में बैठकर मेरी शादी का गीत गुनगुना रही है|

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