श्वेत फूल की माला
()
About this ebook
स्वर्गविभा हिंदी वेबसाईट (www.swargvibha.com) एवं स्वर्गविभा ऑन लाइन पत्रिका की प्रधान संपादिका व प्रशासक, 36 पुस्तकों की रचयिता तथा देश-विदेश से 253 सम्मान/मानदोपाधि/पुरस्कार प्राप्त कहानीकार (साहित्यकार), डॉ. श्रीमती तारा सिंह , जिंदगी के अनेक दुर्गम रास्ते को तय करती हुई, कथा-जगत की यह सितारा, जिसकी रोशनी से, प्रकाश्यमान है साहित्य का दुर्गम से दुर्गम किनारा, युगों तक उधर से गुजरने वाले , राहगीरों को रास्ता दिखाता रहेगा | इनकी अनेकों अविस्मरणीय कहानियाँ हैं | इन कहानियों में ग्राम्य-जीवन के अनगिनत रंग , कुछ लाल, तो कुछ काले हैं, जिनकी भरपूर छटा बिखड़े पड़े हैं | इनकी कुछ कहानियाँ ऐसी हैं, जो दिलो-दिमाग को झकझोरकर, मर्मस्थल को छू लेती हैं | इन्होंने लगभग 120 कहानियाँ लिखी हैं, जो रसवंती,परित्यक्ता, आँसू के कण , भींगी पलकें में संग्रहित हैं | इनकी कहानियाँ समय काल की मनोवृति के बाहरी और भीतरी, दोनों ही उपादानों , करुणा और त्याग तथा भक्ति के प्रति स्थापित होती हुई प्रतीत होती हैं | डॉ. तारा द्वारा रचित प्रत्येक कहानी, अपने क्षेत्र का पतिनिधित्व करती है | इनमें लोकजीवन के जातिवाद तथा ऊँच-नीच के कलुष-पंक को धोने के लिए नव मानव की अंतर पुकार है , तो अंत:करण को संगठित करने वाला मन, चित्त, बुद्धि और अहंकार जैसे अवयवों का सामंजस्य भी है |
तारा जी घटना मात्र का वर्णन करने के लिये कोई कहानियाँ नहीं लिखतीं, बल्कि इनकी कहानियाँ किसी न किसी प्रेरणा पर आधारित होती हैं | अपनी कल्पना को नव-नव उपमाओं द्वारा उसे सजीव रूप प्रदान करने के लिये पंख देती हैं , जिसमें पूर्णरूपेण सक्षम भी हुई हैं | इनकी रचनाएँ सार्थक शब्दावली की मजबूत संगति है , साथ ही समयकाल की मनोवृति का सच्चा दर्पण है | इनकी कहानियों की बाहरी और भीतरी , दोनों उपादानों से सौन्दर्य , करुणा और भक्ति प्रतिस्थापित होती हुई प्रतीत होती है | निश्चय ही यह सौन्दर्य दृष्टिकोण कवयित्री डॉ. श्रीमती तारा सिंह की, एकाकी नहीं है | उसका स्वर, उसकी रचना अंतरगंता की एकांत धरातल पर हुई है, जो कि कहानी को मुखर कर देता है |
डॉ. तारा सिंह
Dr. Tara Singh, well known Hindi Litterateur, a versatile writer, taking keen interests in writing Poems, Short Stories, Novels, Ghazals, Filmy Songs and Essay Books.She always deals with real facts and original aspects of a relationships between individuals / family members / friends. Thus, she illustrates not only the pleasant love but also sometimes resulting development like despair, betrayals and disloyalties.With publication of 46 books (Novels-4, poetry books-20, story books-15, Ghazal books-7), she is presently working as the Editor-in-Chief and Administrator of www.swargvibha.com (A leading Hindi Website) and the Swargvibha Hindi quarterly magazine. She has gotten wide applauses for her emotional and thoughtful Poems, Stories and Ghazals, while dealing with Social and Family issues, Personal and Social delicacies, Philosophy of life and Reality, Birth and Death Cycles, etc.Dr. Tara Singh's outstanding works have been duly recognized and she has already been awarded 255 awards / felicitations / trophies from both National and International Organizations of repute. Her writings / books are now available at www.swargvibha.com and www.kukufm.com (As Audiobooks), Google books, www.amazon.in, www.flipkart.com, Insta Publish, Suman Publications, www.pothi.com, Central and State Libraries in India and 30 other websites world over, etc. Her Biography, “TARA SINGH AUTHOR” has been published by Barnes and Noble (USA 2011) and also by Rifacimento International, 9 times in Who's Who (2006-2019) and Wikipedia. Her writings are always full of serious thoughts, topics, pace of happenings and philosophy of life.
Read more from डॉ. तारा सिंह
दीप-शिखा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsनिबंध सरिता Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका सितम्बर २०२२ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका स्वर्गविभा Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsदूसरी औरत Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसू-ए-चमन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsजिंदगी, बेवफा मैं नहीं Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका दिसंबर २०२२ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsक्या याद करूँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसबीना की रुख़सती Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsआँसू के कण Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसुचरिता Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसिसकती मोहब्बत Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्वर्गविभा त्रैमासिक ऑन लाइन पत्रिका मार्च २०२३ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबज़्म-ए-हस्ती Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsतनहा सफ़र Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsनेपथ्य का दीया Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबाल उद्यान Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबासी फूल Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related to श्वेत फूल की माला
Related ebooks
सिसकती मोहब्बत Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसुचरिता Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsRahsya (Hindi) Rating: 5 out of 5 stars5/5नेपथ्य का दीया Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPashani Aur Patni Ka Patra: Do Kahaniya Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्वस्तिक Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबातें दिल की Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsनींद हमारी, ख़्वाब तुम्हारे Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकाव्य एक जुनून Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMansarovar - Part 2 with Audio Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसंवेदना आपकी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMansarovar - Part 2 (Hindi) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबासी फूल Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसबीना की रुख़सती Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsक्या याद करूँ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsआँसू के कण Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचयनिका Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसाहित्य सरिता Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsजीवन के रंग व्यंग्य Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsGhar Aur Bhahar (घर और बहार) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsरिश्ते - कुछ सच्चे, कुछ झूठे (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबांसुरी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमेरी पहचान (काव्य-लेख संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsएक एहसास Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्पंदन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsRaabta Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमन की धुन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsतनहा सफ़र Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबृंदा (एक भाव कलम से) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDo Sakhiyan Aur Prem Ka Uday Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Reviews for श्वेत फूल की माला
0 ratings0 reviews
Book preview
श्वेत फूल की माला - डॉ. तारा सिंह
श्वेत फूल की माला
कहानी – संग्रह
Author: Dr. Tara Singh
Published: June 2021
First Edition
Printer Details: Paperback
Copyright: Dr. Tara Singh
ISBN: 978-81-950543-4-3
All rights reserved including reproduction whole or in part or in any form
Publisher: Swargvibha Publishing House
Publisher Address: A-1601, Sea Queen Heritage, Plot-6, Sector-18, Sanpada, Navi Mumbai, Maharashtra - 400705
अपनी बात
गुजरे हुए जीवन का कटू सत्य, मेरे लिए आज बहुत मूल्यवान है| कहानी, ‘संग्रह 'श्वेत फूल की माला’ को आप विद्वान पाठकों के समक्ष रखने से पहले, मैं अपने विगत कृतित्व को आलोचक की दृष्टि से देखने की अनाधिकार चेष्टा नहीं करना चाहती| युग-धारा संग मेरी कहानियों का कैसा सम्बंध है, मैं इस पर थोड़ा सा आपका ध्यान आकृष्ट करनाएक लेखिका होने के नाते अपना धर्म समझती हूँ| 'रसवन्ती' कहानी-संग्रह, इसके पहले की कहानी-संग्रह है| इस संचरण के कृतित्व के प्रति मेरे आलोचक थोड़ा सा कृपालु और उदार रहे, इसलिए कि इसके पहले मेरी अन्य रचनाओं को वे कोमलकांत कलेवर दे चुके हैं|
‘श्वेत फूल की माला’, मेरी कहानी-संग्रह की, पाँचवी उत्थान की परिचायिका है|
इसमें संचयित कहानियों को मैं यथासंभव मानवीय भावनाओं का वस्त्र पहनाकर एवं मानवीय रूप-रंग, आकार ग्रहण कराकर, एक परिपूर्ण मूर्त्त रूप देने की अप्राण चेष्टा की हूँ| इसमें अंकित कुछ एक कहानियाँ वर्तमानकाल की मनोवृति की सच्ची दर्पण हैं, तो कुछ कहानियाँ व्यक्तिगत सुख-दुखों एवं मानसिक उहापोहों को नवीण धरातल पर उठाने के साथ ही, जग जीवन से भी नवीण रूप से सम्बंध स्थापित करने की जीवनाकांक्षा को प्रेरित करती हैं; तो कुछ लोकजीवन के कलुष पंक को धोने के लिएनए मानव की अंतःपुकार हैं|
युग विशेष में उत्पन्न कहानीकार ने भी अपने युग के आदर्श को असाधारणता के साथ अपनी कहानी में प्रतिष्ठित किया है| इतना ही नहीं, यह आदर्श कभी, किसी हाल में पराजित न हो, इसकी सतर्कता का भी ख्याल रखा है; महान कहानीकार प्रेमचंद की, 'सवा सेर गेहूँ', 'पौष की रात', ‘नमक हलाल', आदि, आदि कितना भी युग बदले, इसकी प्रतिष्ठा पर आँच नहीं आयेगी| इसकी महत्ता जो कल थीवही आज है, और कल भी रहेगी|
युग संघर्ष के अनेक रूपों को मैंने अपनी कहानी-संग्रह में उद्धृत करने की यथासंभव कोशिश की है, तथा आनंद, सौन्दर्य, प्रेमशान्ति आदि मेरी कहानी-सृजन चेतना का मौलिक मूलभूत गुण है| हमें मानवजगत को इसी सत्य का दर्पण बनाना है| यही एकमात्र सभ्यता, संस्कृति तथा धर्मों का अनादिकाल से प्रश्न और लक्ष्य भी रहा है|
मेरी प्रेरणा स्रोत, नि:संदेह, माँ काली हैं; जिनकी आराधना मैं बचपन से करती आ रही हूँ| उनकी चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम! मैं न दार्शनिक हूँ, न दर्शनग्य ही, और न ही मेरा अपना ही कोई दर्शन है, ये तो उस महाशक्ति का भाव प्ररोह है, जिन्हें मैंने अपनी रचनाओं में, शब्द मूर्त्त करने का प्रयत्न किया है| मेरी रचनाओं की कुंजी उन्हीं के पास है| मेरा तपोवन भी उन्हीं के चरणों के नीचे हैजहाँ मुझे शांति, पवित्रता तथा सद्विचारों का अक्षय ज्ञान प्राप्त होता है|
अंत में मैं इस भूमिका के रूप में प्रस्तुत अपने विचारों, विश्वासों तथा जीवन मान्यताओं की त्रुटियों एवं कमियों के लिए आप सभी विद्वान् पाठकों से क्षमा प्रार्थना करती हूँ| फिर मिलूँगी, एक नई कहानी-संग्रह लेकर; इसी वादे के साथ|
- डॉ. तारा सिंह
अनुक्रम
उसने पीया है ज़हर……………………………………...
दोष तो हमारे भाग्य का है…………………………...
माँ का दूध सस्ता क्यों………………………………….
गरीबी की रात लम्बी होती है……………………….
वह सपना भयावह था…………………………………..
घर से श्मशान तक……………………………………...
प्रेमाश्रय..........................................................
मुझे अपनी गरीबी पर गर्व है..........................
कोरोना आई है, ममता के संग........................
आत्मदुर्ग पर बड़े कड़े पहरे थे.......................
पानी ने बेपानी किया......................................
और दर्पण टूट गया........................................
पिताश्री और आलम.........................................
चाँदी की बिछिया............................................
दद्दू का ठेलागाड़ी.........................................
शक की बुनियाद पर भीत..............................
श्वेत फूल की माला.........................................
उसने पीया है ज़हर
रसदेव की पाँच साल की बच्ची ऋचा, दरवाजे पर से दौड़ती हुई आई| पिता रसदेव से बोली, ‘बाबू! वो जो, झुनियाँ की दादी है न, वो बहुत बुरी हैं|’
रसदेव, बेटी को गोद में भरकर पूछे, ‘बेटा! दादी ने ऐसा क्या कह दिया, जो आप इतना गुस्सा कर रहे हो?’
ऋचा, पिता की मूँछ को सहलाती हुई बोली, ‘बाबू! दादी, हमेशा हमें डाँटती रहती हैं, खेलने से मना करती हैं; कहती हैं, तना उछल-कूद मत करो| टांग कहीं टूटी, तो जीवन भर कुँवारी रह जावोगी, कौन तुझे ब्याहेगा?’ कभी-कभी तो अपनी लाठी लेकर मारने दौड़ पड़ती है| बाबू! तुम उन्हें ऐसा करने से मना कर दो|
रसदेव की पत्नी (ऋचा की सौतेली माँ, सुनीता), पति की ओर देखकर व्यंग्य भाव से कही, ‘कुछ समझ भी रहे हो, अपनी बेटी की बात; या मुँह में दही जमा हुआ है? आप इसे इतनी जहरीली बातें बोलने से मना क्यों नहीं करते? जब देखोज़हर उगलती है!’
रसदेव, आहत कंठ से कहे, ‘जो खायेगीवही तो उगलेगी! पीयेगी ज़हर, तो अमृत कैसे उगलेगी?’
सुनीता नाक सिकोड़कर बोली, ‘भगवान न करे, ऐसी सन्तान मेरी कोख से जनम लेवरना मैं तो चुल्लू भर पानी में डूब मरुँगी|’
रसदेव, खिन्न होकर बोले, ‘तुम्हारी बातों को सुनकर जी चाहता हैमैं खुद भी मर जाऊँ और इसे भी मार दूँ|’
तभी झुनियाँ की दादी, लाठी टेकती हुई आकर, रसदेव के सामने खड़ी हो गई, बोली, ‘रसदेव ! यह बात मेरे लिए असह्य हो गई है कि तुम्हारी सुपुत्री मेरे दरवाजे पर आकर उधम मचाये| मेरी वस्तुओं का सर्वनाश करे, तुम्हारी आँखों पर तो परदा पड़ा हुआ है, लेकिन मैं तो तुम्हारी बेटी का रुख साल भर से, मेरे कहने का मतलब, जब से इसकी माँ मरी है; गाय के नए बछड़े की तरह उछल-फाँद करती रहती है| अचरज है, कि तुम इसकी इन शरारतों को बर्दाश्त कैसे करते हो?’
रसदेव गौरवोनमत्त होकर कहा, ‘मैं मरते दम तक अपनी बेटी को मातृप्रेम की सुखद छाया देता रहूँगा| इसलिए दादी तुमसे मेरी प्रार्थना है कि मेरी बेटी के साथ ऐसा निर्मम व्यवहार न करो|’
मगर दादी पर इन विनयपूर्ण शब्दों का कुछ असर नहीं हुआ, और झुँझलाकर कही, ‘यह सब तुम्हारी मानसिक दुर्बलता का चिन्ह है| तुम भावुकता के फेर में पड़कर अपने शारीरिक सुख और शांति का बलिदान कर रहे होघर में किसी को ब्याह कर लाये हो, उसकी तरफ तुम झाँकते तक नहींपड़े रहते हो बेटी को लेकर|’
रसदेव, बिना किसी हिचक के दादी से बोले, ‘आपके और मेरे जीवन-सिद्धांतों में बड़ा अंतर है; आप भावों की आराधना करती हैं, और मैं विचार का उपासक हूँ| आप निंदा के भय से आपत्ति के सामने सर झुकाती हैं, लेकिन मैं अपनी वैचारिक-स्वतंत्रता के सामने लोकमत का लेश-मात्र भी परवाह नहीं करता| आपकी शिष्टता का आधार आत्मघात है; मैं ऐसा नहीं कर सकता|’ रसदेव की बातों से नाराज होकर, झुनियाँ की दादी खिन्न होकर चली गई, मगर रसदेव वहीँ ऋचा को गोद