Discover millions of ebooks, audiobooks, and so much more with a free trial

Only $11.99/month after trial. Cancel anytime.

आँसू के कण
आँसू के कण
आँसू के कण
Ebook212 pages1 hour

आँसू के कण

Rating: 0 out of 5 stars

()

Read preview

About this ebook

Really the book is the story collection of human sufferings and grieves. It deals with different forms of sorrow, despair, betrayals, disloyalties and problems now prevalent in our social and family lives. Even a thousandth part of this hypothetical water droplet of grief may cause havoc as illustrated in the story, "Sharnarthi" and "Bhagwan ki berukhi". The story "Dadi ka swarg" shows how a soul strives to reach the entity (God), though sacrificing physical life is not essentially a pre-condition for the same. The author advocates the idea of adopting only humanly useful elements of physical and spiritual philosophies to build a new but ideal human society.

Languageहिन्दी
Release dateJan 16, 2021
ISBN9789386143686
आँसू के कण
Author

डॉ. तारा सिंह

Dr. Tara Singh, well known Hindi Litterateur, a versatile writer, taking keen interests in writing Poems, Short Stories, Novels, Ghazals, Filmy Songs and Essay Books.She always deals with real facts and original aspects of a relationships between individuals / family members / friends. Thus, she illustrates not only the pleasant love but also sometimes resulting development like despair, betrayals and disloyalties.With publication of 46 books (Novels-4, poetry books-20, story books-15, Ghazal books-7), she is presently working as the Editor-in-Chief and Administrator of www.swargvibha.com (A leading Hindi Website) and the Swargvibha Hindi quarterly magazine. She has gotten wide applauses for her emotional and thoughtful Poems, Stories and Ghazals, while dealing with Social and Family issues, Personal and Social delicacies, Philosophy of life and Reality, Birth and Death Cycles, etc.Dr. Tara Singh's outstanding works have been duly recognized and she has already been awarded 255 awards / felicitations / trophies from both National and International Organizations of repute. Her writings / books are now available at www.swargvibha.com and www.kukufm.com (As Audiobooks), Google books, www.amazon.in, www.flipkart.com, Insta Publish, Suman Publications, www.pothi.com, Central and State Libraries in India and 30 other websites world over, etc. Her Biography, “TARA SINGH AUTHOR” has been published by Barnes and Noble (USA 2011) and also by Rifacimento International, 9 times in Who's Who (2006-2019) and Wikipedia. Her writings are always full of serious thoughts, topics, pace of happenings and philosophy of life.

Read more from डॉ. तारा सिंह

Related to आँसू के कण

Related ebooks

Reviews for आँसू के कण

Rating: 0 out of 5 stars
0 ratings

0 ratings0 reviews

What did you think?

Tap to rate

Review must be at least 10 words

    Book preview

    आँसू के कण - डॉ. तारा सिंह

    आँसू के कण

    कहानी-संग्रह

    डॉ. तारा सिंह

    आँसू के कण

    कहानी-संग्रह

    Author: Dr. Tara Singh

    Published: May 2021

    First Edition

    Printer Details: Paperback

    Copyright: Dr. Tara Singh

    All rights reserved including reproduction whole or in part in any form.

    ISBN: 978-93-86143-68-6

    Publisher: Swargvibha Publishing House

    Publisher Address: A-1601, Sea Queen Heritage, Plot-6, Sector-18, Sanpada, Navi Mumbai, Maharashtra – 400705

    अपनी बात

    मेरी चौथी कहानी-संग्रह की उत्थान का सोपान है, 'आँसू के कण'| इसके पहले 'तृषा', 'रसवंती' और परित्यक्ता' आपकी सेवा में प्रस्तुत कर चुकी हूँ| इस कहानी-संग्रह में छोटीबड़ी कुल इक्कीस कहानियाँ हैं, जिसे मैं अपने समाज से निकालकर, आपके समक्ष प्रस्तुत करने की कोशिश की हूँ| यद्यपि मैं ऐसा कहने का दुस्साहस कभी नहीं जुटा सकती, कि ‘आँसू के कण’ कहानी-संग्रह, एक ऐसा जन-जन का प्रतिनिधि संग्रह है, जो वर्तमान युग-मानस का दर्पण कहलायेगा और इसमें पूरी तरह समाज की भावनाओं और आकांक्षाओं का, धार्मिक व सांस्कृतिक चेतना का स्वर मुखरित हुआ है या भारतीय समाज, जातीय और धार्मिक जीवन का सुस्पष्ट प्रतिबिम्ब है; ऐसा कहना उचित भी नहीं होगा|

    मैंने अपनी सभी कहानियों को, अपनी कोरी भावुकता से बचाकर, समाज के मान्यताओं के प्रकाश में संवारने की प्राणप्रण चेष्टा की है| मेरी समझ में कहानी और कला-शिल्पी, फूल और उसके रूप-मार्दव की तरह अभिन्न होते हुए भी, रंग-गंध, मधुफल ही फूल का वास्तविक दान है, इसलिए कलात्मक संबंध मेरे मन का, मेरी सभी कहानी-संग्रह में साथ रहा है| वास्तव में 'आँसू के कण' कहानी-संग्रह, मानव सुख-दुःख की संवेदनाओं की परिचायिका मात्र है| कहानियाँ काव्य-बोध की तरह, कभी बंधन-मुक्त नहीं होतीं; युग-बोध के लिए तात्कालिक सीमाएँ अनिवार्य हैं| किसी भी युग की घटना, किसी भी युग के कहानीकार के लिए त्याज्य नहीं होता, क्योंकि वह उसके माध्यम से, अपने युग-सत्य, कालातीत विराट सत्य से जोड़कर उसे नूतन रूप में, अवतरित करने की क्षमता रखता है| राम-कथा हर युग में, कहानी का विषय रही है, युग-सत्य के साथ उसे जो रूप मिलता रहा है, वह सर्वथा नवीन है| कहानीकार, अपने आस-पास जो अनुभव करता है, जिस अनुभूति में जीता है, उसी को शब्दों में बाँधकर, कहानी को रूप प्रदान करता है|

    मैं सामाजिक सरोकारों और अपने लेखकीय दायित्व के प्रति कितनी संजीदा हूँ, इसका उदाहरण आपके समक्ष मेरी चार कहानी-संग्रह हैं, जिसे आपने अपना स्नेह देकर कू.कूएफ.एम. तक पहुँचाया है|

    आज वही प्यार ' आँसू के कण ' भी आपसे माँग रही है| मैंने इस संग्रह में, जातिवाद को प्राश्रय न देकर, निर्धनता, गरीबों की हाड़तोड़ मेहनत तथा आज के एकल परिवार, परिवार में फैल रही विषमताएँ, बूढ़े-बुजुर्गों के साथ हो रही क्रूरताएँ को कहानी के माध्यम से प्रकाश डालने की कोशिश की हूँ|

    मैं अपनी कहानी-संग्रह में पात्रों का निर्माण व नाम, कहानी के अनुकूल हो, इसका पूरा ध्यान रखती हूँ, पर कहानी का आधार कोई रोचक या चर्चित घटना हो, ऐसी सोच मेरी कभी नहीं रही| घटना चाहे किसी से सम्बन्धित हो, उसका मनोवैज्ञानिक आधार क्या है? अगर वह समाज, देश या मानव जाति से सरोकार रखता है, तब मैं उस पर बेहिचक लिख डालती हूँ| मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ है कि पात्र और घटना मिल जाने के बावजूद मनोवैज्ञानिक आधार नहीं मिला, ऐसी परिस्थिति में, मैं कहानी वहीं छोड़ देती हूँ| मेरी समझ से कविता की तरह, कहानी में भी प्राकृतिक लगाव होना चाहिए| इससे कहानी को उच्चता मिलती है, पर मेरी सोच कहाँ तक सही है, ये तो आपलोग मुझसे बेहतर समझते हैं| सच कहूँ तो, मैं अपनी परख पर अधिक विश्वास नहीं रखती|

    आप सभी पाठकों को 2020 की ढेरों शुभकामनाएँ| फिर मिलूँगी, नई कहानी-संग्रह के साथ|

    - तारा सिंह

    अनुक्रम

    शरणार्थी...................................................

    फ़तेह सिंह................................................

    क्या यह वही शाम है?.................................

    ज्योति.......................................................

    प्रायश्चित....................................................

    प्रेत-यात्रा मार्ग............................................

    बंदिनी.......................................................

    बागवां की बेरूखी......................................

    बिरजुवा के माता-पिता...............................

    भुतना का तोता..........................................

    माँ............................................................

    मृग मरीचिका............................................

    यादें..........................................................

    राजनीति का आधार धन.............................

    लांछन......................................................

    लाल चुनरी..............................................

    सच्ची श्रद्धांजलि........................................

    स्वर्ग-सुख................................................

    पोंगा पंडित.............................................

    पुत्रमोह...................................................

    उधार का दूध..........................................

    शरणार्थी

    पौष का महीना था| सलीम अन्यमनस्क मस्जिद के गुम्बद को निहारता, उसकी आँखों में उसके नैराश्य जीवन की क्रोधाग्नि, किसी सैलाब की तरह डुबो देनेउसकी ओर बढ़ता चला आ रहा था| जब से उसका ह्रदय सजीव प्रेम से आलुप्त हुआ, तब से उसके एकांत जीवन बिताने की सामग्री में इस तरह के जड़ सौन्दर्य बोध भी एक स्थान रखने लगा| उसकी आँखों से नींद दूर जा चुकी थी, घर काटने दौड़ता था| आँखों में किसी कवि की कल्पना सी कोई स्वर्गीय आकृति नहीं, बल्कि उसका बेटा जुम्मन रहता था, जिसे उसने अपने लहू से सृजा और पाला था; जिसके सामने सुख-शांति का लालच सब तुच्छ था| जिस पर उसने तीनों काल लुटा रखा था, और जिसे पाकर वह, पत्नी फातिमा से कहता था, फातिमा, जानती हो, ऊपरवाले के पास जितना भी धन था, सब के सब उसने हमारी झोली में डाल दिया|

    फातिमा, आग्रह स्वर में पूछती थी, ‘वो कैसे?’

    सलीम, पिता-गर्व से बोल पड़ता था, ‘पुत्र के रूप में, हमारी गोद में जुम्मन को सौंपकर|’

    पति की बात सुनकर फातिमा का मुख, उसके त्याग के हवन-कुण्ड की अग्नि के प्रकाश से दमक उठता था; उसका आँचल ख़ुशी के आँसू से भींग जाता था और प्राण पक्षी जुम्मन को लेकर आसमान को छूने उड़ने लगता था|

    एक दिन सलीम अपनी मूँछें खड़ी कर, पत्नी फातिमा से कहा, ‘फातिमा! हम चाहे, जितना भी गरीब हों, मगर इस बात का ख्याल रखना, जुम्मन की खुराक में कभी कमी न आये| कारण जानती हो, जिस वृक्ष की जड़ें गहरी होती हैं, उसे बार-बार सींचना नहीं पड़ता है| वह तो जमीन से आद्रता खींचकर हरा-भरा रहता है, और हरा-भरा वृक्ष ही अस्थिर प्रकाश में बागीचे के अथाह अंधकार को अपने सिरों पर संभाले रखता है, इस विचार में कि, हमारे जीवन के अथाह अंधेरे को हमारा पुत्र संभालेगा|’ दोनों पति-पत्नी ने मिलकर, मजदूरी करने का व्रत उठा लिया| कभी घास काटकर, उसे बाजार में बेचकर, कभी जंगल से लकड़ी लाकर, कभी मुखिया के दरवाजे पर रात-रात भर लकड़ी के साथ अपना कलेजा फाड़ते रहता था और इससे मिले पैसों से जुम्मन की पढ़ाई-लिखाई का खर्च पूरा करता था| जुम्मन भी पढ़ने-लिखने में कुशाग्र बुद्धि का था| उसने दशमी पास कर, शहर जाकरकॉलेज की पढ़ाई पूरी की; बाद उसे एक अच्छी नौकरी भी मिल गई|

    पुत्र को नौकरी मिल गई, जानकर दोनों पति-पत्नी ने कहा, आज हमारा यग्य पूरा हो गया, मेरा बेटा अपने पैर पर खड़ा हो गया; लेकिन इस ख़ुशी को दो साल भी नहीं भोगा था, कि साधुता और सज्जनता की मूरत सलीम पर, भाग्य ने बहुत बड़ा कुठाराघात कर दिया| फातिमा, गठिये के दर्द से परेशान रहने लगी, वह चल नहीं पाती थी; सलीम के लिए गाँव में अकेला रहकर पत्नी को, शहर इलाज के लिए ले जाना मुश्किल था| सो उसने जुम्मन को फोन कर बताया, ‘बेटा! तुम्हारी माँ उठ-बैठ नहीं सकती है, गठिये का दर्द उसे नि:पंगु बना दिया है| गाँव में कोई डाक्टर-वैद्य भी नहीं है, जो उसे ले जाकर दिखाऊँ| शहर ले जाना मेरे लिए मुमकिन नहीं है, इसलिए तुम आकर हमें अपने पास ले चलो| वहीँ रहकर किसी डाक्टर से इलाज करवा देना|’

    जुम्मन ने कहा, ‘ठीक है, मैं जल्द आने की कोशिश करता हूँ|’

    राह देखते-देखते महीना बीत गया, लेकिन जुम्मन आने की बात तो दूर, एक फोन कर हाल-समाचार भी नहीं पूछा| पुत्र के इस रवैये से सलीम बहुत उदास रहने लगा| उसकी आँखें हमेशा आकाश की ओर लगी रहती थी| सोचता था, सलीम हमें लेने नहीं आया, कोई बात नहीं, एक फोन ही कर लेता| मामूली शिष्टाचार भी नहीं निभाया, सारी दुनिया हमें जलील किया, कम से कम पिता जानकर, वह तो छोड़ देता|

    रात हो चुकी थी, लैम्प के क्षीण प्रकाश में फातिमा ने देखा; उसका पति सलीम, उसकी ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से निहार रहा है| फातिमा समझ गई, सलीम का ह्रदय घोर तमिस्रा की गंभीरता की कल्पना कर अधीर हो जा रहा है| उसने कहा, ‘सलीम, मैं जानती हूँ, इस अपमान के सामने, जीवन के और सारे क्लेश तुच्छ हैं, इस समय तुम्हारी दशा उस बालक सी है, जो फोड़े पर नश्तर की क्षणिक पीड़ा न सहकर, उसके फूटने, नासूर पड़ने, वर्षों खाट पर पड़े रहने और कदाचित प्राणांत हो जाने के भय को भी भूल जाता है|’

    सलीम अपनी मनोव्यथा छिपाने के लिए सर झुका लिया, बोला, ‘जिसका पूरा जीवन इस चिंता में कटा हो कि कैसे अपने संतान का भविष्य सुखी बनाए, वह संतान बड़ा होकर अपने ही माँ-बाप के दुःख का कारण बने, तो कलेजा तो फटता है न?’

    फातिमा आद्र हो बोली, ‘हमारी सभ्यता का आदर्श यहाँ तक गिर चुका है, मालूम नहीं था| याद कर दुःख होता है, जिस लडके ने कभी जबान नहीं खोली, हमेशा गुलामों की तरह हाथ बाँधे हाजिर रहा, वह आज एकाएक इतना बदल जायेगा, चौकाने वाली बात है|’

    फातिमा कुछ बोलना चाह रही थी, मगर सलीम बीच में बोल उठा, ‘फातिमा, अपने गाँव के मंदिर के पुजारी श्रीकंठ को तो जानती हो न, उसे भी एक बेटा है, नाम है, भुवन| आजकल मंदिर का पुजारी वही है, लेकिन चढ़ावे का प्रसाद हो, या दान की हुई सोने—चाँदी से भरी आरती की थाली, घर पहुँचते ही श्रीकंठ के हाथ में सौंपकरखुद दोस्तों के बीच गप्पें लड़ाने चला जाता है| घर लौटकर कभी नहीं जानने की कोशिश करता, कि थाली में हीरा था या माटी|’

    फातिमा कुछ न जवाब देकर, केवल इतना बोलकर चुप हो गई, ‘अल्लाह! तेरी भित्ती कितनी अस्थिर है| बालू पर की दीवार तो वर्षा में गिरती है, पर तेरी दीवार बिना पानी के बूंद की तरह ढह जाती है| आँधी में दीपक का कुछ भरोसा तो किया जा सकता है; पर तेरा नहीं| तेरी अस्थिरता के आगे एक अबोध बालक का घरौंदा पर्वत है|’

    सलीम, जो जीवन के

    Enjoying the preview?
    Page 1 of 1