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बिल्कुल गाय जैसे: चरखा पांडे की कहानियाँ: झिलमिलाती गलियाँ, #2
कब सुधरोगे तुम...?: एक नया राज: झिलमिलाती गलियाँ, #3
कुछ नए अध्याय: उन दिनों के: झिलमिलाती गलियाँ, #1
Ebook series6 titles

झिलमिलाती गलियाँ

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About this series

"काल की घोरी आँखों ने, जब काल की माया को देखा था,
पाप की तब एक बूँद के ख़ातिर, उनका तन मन बहका था।।"

जब ख़ुशियों की परियों की नज़र किसी पर पड़ती है तो वह इंसान प्रेम और सद्भावना का प्रतीक बनकर इस संसार के सामने उभरता है। जीवन में इंसान नफ़रत तो किसी का बुरा करके भी कमा लेता है लेकिन जब बात आती है किसी के दिल में जगह बनाने की तो वह सदियों मारा-मारा फिरता है, लेकिन उसे प्रेम की एक बूँद तक नसीब नहीं होती।

Languageहिन्दी
Release dateNov 25, 2020
बिल्कुल गाय जैसे: चरखा पांडे की कहानियाँ: झिलमिलाती गलियाँ, #2
कब सुधरोगे तुम...?: एक नया राज: झिलमिलाती गलियाँ, #3
कुछ नए अध्याय: उन दिनों के: झिलमिलाती गलियाँ, #1

Titles in the series (6)

  • कुछ नए अध्याय: उन दिनों के: झिलमिलाती गलियाँ, #1

    1

    कुछ नए अध्याय: उन दिनों के: झिलमिलाती गलियाँ, #1
    कुछ नए अध्याय: उन दिनों के: झिलमिलाती गलियाँ, #1

    नए युग के नए विचार इंसान को कुछ नए एहसास दिलाते हैं। इस कलयुग में अगर किसी चीज़ की कमी है तो वह है, भरोसा। समझ में ही नहीं आता की कौन सही है और कौन ग़लत है। ग़लत निगाह से देखो तो हर कोई ग़लत दिखता है और वहीं दूसरी तरफ़ सही निगाह से देखो तो हर कोई सही लगता है। अब सबसे बड़ी बात तो यह है कि कैसे पहचाने कौन सही है और कौन ग़लत है। इसी होड़ में इंसान कभी किसी से बहस करता है तो कभी किसी पर आँख मूँद कर भरोसा करता है।

  • बिल्कुल गाय जैसे: चरखा पांडे की कहानियाँ: झिलमिलाती गलियाँ, #2

    2

    बिल्कुल गाय जैसे: चरखा पांडे की कहानियाँ: झिलमिलाती गलियाँ, #2
    बिल्कुल गाय जैसे: चरखा पांडे की कहानियाँ: झिलमिलाती गलियाँ, #2

    छात्र जीवन में, माँ-बाप से दूर होने का ग़म तो हर किसी को होता है। लेकिन जब उसी ग़म से भरे जीवन में कुछ कहानियाँ ऐसी मिल जाएँ जो दुखी जीवन में सुख के तड़के का काम करें तो काली बदरी भी अपना रुख़ मोड़ती हुई दिखती है।

  • कब सुधरोगे तुम...?: एक नया राज: झिलमिलाती गलियाँ, #3

    3

    कब सुधरोगे तुम...?: एक नया राज: झिलमिलाती गलियाँ, #3
    कब सुधरोगे तुम...?: एक नया राज: झिलमिलाती गलियाँ, #3

    सदियों पुरानी कहावत है की 'जो जैसा करता है उसे उसका उसी तरह का परिणाम भी मिलता है'। लेकिन कभी-कभी अच्छे लोगों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। वैसे भी ये दुनिया तो सुख और दुःख का संगम है। यहाँ पर हर इंसान को सुख और दुःख दोनों तरह के समुन्दर को पार करना पड़ता है और यही सार्वभौमिक सत्य है।

  • सार में सिहरन: सिहरन से भरे ख़ुशियों के दो पल: झिलमिलाती गलियाँ, #4

    4

    सार में सिहरन: सिहरन से भरे ख़ुशियों के दो पल: झिलमिलाती गलियाँ, #4
    सार में सिहरन: सिहरन से भरे ख़ुशियों के दो पल: झिलमिलाती गलियाँ, #4

    जीवन में सिहरन और समस्याओं का होना एक प्रथा है। यह वह प्रथा है जिसे ख़ुद जीवों को बनाने वाले ने जीवन में अनिवार्य करके भेजा है। सिहरन और समस्याओं के बीच बहुत ही गहरा रिश्ता है। दोनों की उत्पत्ति वहाँ से हुई जहां से ख़ुद जीवों की उत्पत्ति हुई। इस दुनियाँ में अपना जीवन निर्वाह कर रहे सभी जीवों को, सिहरन और समस्याएँ, धरोहर के रूप में मिलें हैं। ना चाहते हुए भी हर जीव को इसका बोझा ढोना पड़ता है। इस कलियुग में, किसी का दिल जीतना तो कठिन है ही, उससे भी ज्यादा कठिन है, किसी पर भरोसा करना। पहले तो कोई किसी पर भरोसा करना नहीं चाहता है, लेकिन अगर कोई हिम्मत करके किसी पर भरोसा करता भी है तो कुछ लोग उस भरोसे को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। भरोसा एक ऐसा एहसास है, जिसके बीज हर प्राणी के अन्दर, उसके दुनिया में आने से पहले ही पलने लगते हैं। इसके लिए हमें ज्यादा दूर तक सोचने की जरूरत नहीं है, हम खुद को अपने माता-पिता से जोड़कर देख सकते हैं। "समस्याओं को झेलने से ज्यादा हल करना आसान होता है।"

  • कुछ नए पन्ने: उनकी यादों के: झिलमिलाती गलियाँ, #5

    5

    कुछ नए पन्ने: उनकी यादों के: झिलमिलाती गलियाँ, #5
    कुछ नए पन्ने: उनकी यादों के: झिलमिलाती गलियाँ, #5

    जब ख़ुशियों की परियों की नज़र किसी पर पड़ती है तो वह इंसान प्रेम और सद्भावना का प्रतीक बनकर इस संसार के सामने उभरता है। जीवन में इंसान नफ़रत तो किसी का बुरा करके भी कमा लेता है लेकिन जब बात आती है किसी के दिल में जगह बनाने की तो वह सदियों मारा-मारा फिरता है, लेकिन उसे प्रेम की एक बूँद तक नशीब नहीं होती। "जीवन रहस्यों से भरा है, जिसमें मन के रहस्य को समझना सबसे कड़ा है।"

  • मंसा: एक मन की: झिलमिलाती गलियाँ, #6

    6

    मंसा: एक मन की: झिलमिलाती गलियाँ, #6
    मंसा: एक मन की: झिलमिलाती गलियाँ, #6

    "काल की घोरी आँखों ने, जब काल की माया को देखा था, पाप की तब एक बूँद के ख़ातिर, उनका तन मन बहका था।।" जब ख़ुशियों की परियों की नज़र किसी पर पड़ती है तो वह इंसान प्रेम और सद्भावना का प्रतीक बनकर इस संसार के सामने उभरता है। जीवन में इंसान नफ़रत तो किसी का बुरा करके भी कमा लेता है लेकिन जब बात आती है किसी के दिल में जगह बनाने की तो वह सदियों मारा-मारा फिरता है, लेकिन उसे प्रेम की एक बूँद तक नसीब नहीं होती।

Author

S. H. Wkrishind

एस एच व्कृषिंद ने दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित विषय में बीएससी पूरा किया। तीन चीजें उन्हें सबसे ज्यादा पसंद हैं - पहली लेखन, दूसरी प्रकृति और तीसरी संगीत। स्नातक होने के साथ ही लेखक बनने के अपने सपने को साकार करने के लिए साहित्य की दुनिया में उनका पहला कदम एक काल्पनिक साहित्यिक रचना के माध्यम से रहा।

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