Khalish
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About this ebook
'ख़लिश' एक उर्दू लफ्ज़ है, जिसका मतलब होता है चुभन। हमारी ज़िन्दगी कुछ अधूरे ख़्वाब, कुछ अनकहीं बातें, कुछ मचलते जज़्बात, कुछ बंदिशे, कुछ टूटे रिश्ते, कुछ छलकते आँसू, कुछ मार्मिक एहसास और कुछ मोहब्बत भरे लम्हों के सिवा कुछ भी नहीं है जहाँ एक तरफ मोहब्बत के नूर से ज़िन्दगी रोशन होती है, वहीं दूसरी तरफ एक अधूरी और नाकाम मोहब्बत ज़िन्दगी की आख़िरी साँस तक हमारे दिल में एक ख़लिश, एक चुभन पैदा कर देती ह ऐसी ही एक ख़लिश है ज़ीशान और रश्मी की मोहब्बत की दास्तान में। इस कहानी में जहाँ एक तरफ कॉलेज के दिनों की अठखेलियां पाठक के चेहरे पर मुस्कान लायेगी, वहीं मोहब्बत की राह में आने वाली मुश्किलें, कहानी पढ़ने वालों को संजीदा कर देगी। इस कहानी में लव जिहाद के नाम पर होने वाले शोषण को उजागर किया गया है और बताया गया है कि किस प्रकार समाज के ठेकेदारों के हाथों एक सच्ची मोहब्बत बर्बाद होती है।
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कुवैत के बैंक मस्कत में बतौर वित्त प्रबन्धक कार्यरत, मौर्य कला परिसर, कुवैत द्वारा "दिनकर अवार्ड" से सम्मानित युवा हिन्दी लेखिका नाज़नीन अली का जन्म झीलों की नगरी उदयपुर में हुआ था। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा से लेकर व्यवसाय प्रबन्धन में स्नातकोतर (एम.बी.ए.) तक की पढ़ाई उदयपुर में ही रहकर पूरी की है। तत्पश्चात् आई.एम.ए. अमेरिका से सी.एम.ए.(CMA) का प्रमाणीकरण प्राप्त किया। वर्तमान में वह अपने परिवार के साथ कुवैत में रहती हैं और बैंक मस्कत, कुवैत में बतौर वित्त प्रबन्धक कार्यरत हैं। बचपन से ही लेखन में रुचि रखने वाली नाज़नीन हिन्दी, अंग्रेज़ी एंव उर्दू में कविताएँ और लेख लिखती हैं जो अरब टाइम्स, कुवैत से लेकर प्रातःकाल, उदयपुर और सहाफ़त, लखनऊ समेत अनगिनत अख़बारों में प्रकाशित होते रहते हैं। नाज़नीन जी भारतीय दूतावास, कुवैत, रेडियो कुवैत सहित कुवैत के विभिन्न मंचों पर कविता पाठ कर चुकी है। अभी रायटर्स फोरम, कुवैत की महासचिव हैं और अपनी हिन्दी लेखन शैली के लिए मौर्य कला परिसर, कुवैत द्वारा "दिनकर अवार्ड" से सम्मानित हो चुकी है।
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Book preview
Khalish - Naznin Ali 'Naz'
राजमंगल प्रकाशन
An Imprint of Rajmangal Publishers
ISBN : 978-9388202848
Published by :
Rajmangal Publishers
Rajmangal Prakashan Building,
1st Street, Sangwan, Quarsi, Ramghat Road
Aligarh-202001, (UP) INDIA
Cont. No. +91- 7017993445
www.rajmangalpublishers.com
rajmangalpublishers@gmail.com
sampadak@rajmangalpublishers.in
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प्रथम संस्करण : मार्च 2020
प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन
राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट,
सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड,
अलीगढ़, उप्र. – 202001, भारत
फ़ोन : +91 - 7017993445
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First Published : March. 2020
eBook by : Rajmangal ePublishers (Digital Publishing Division)
Cover Design : Rajmangal Arts
Copyright © नाज़नीन अली ‘नाज़’
This is a work of fiction. Names, characters, businesses, places, events, locales, and incidents are either the products of the author’s imagination or used in a fictitious manner. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental. This book is sold subject to the condition that it shall not, by way of trade or otherwise, be lent, resold, hired out, or otherwise circulated without the publisher’s prior consent in any form of binding or cover other than that in which it is published and without a similar condition including this condition being imposed on the subsequent purchaser. Under no circumstances may any part of this book be photocopied for resale. The printer/publishers, distributer of this book are not in any way responsible for the view expressed by author in this book. All disputes are subject to arbitration, legal action if any are subject to the jurisdiction of courts of Aligarh, Uttar Pradesh, India
अनुक्रमणिका
शीर्षक पृष्ठ संख्या
समर्पण
नाज़नीन अली का साहित्यिक कौशल
नाज़नीन अली का जादुई क़लम
मेरी नज़र से...
ख़लिश
पहली मुलाक़ात
गुज़रा हुआ कल
स्पर्श
बहारों का मौसम
आमची मुम्बई
मोहब्बत की नयी मंज़िलें
पहला इम्तिहान
ज़ीशान का इम्तिहान
एक हादसा
कॉलेज का नया साल
काल का साया
तन्हाई
दिल्ली हवाई अड्डा
आगाज़-ए-मोहब्बत
दिल और दिल्ली
किताब का आगाज़
अफ़शान से रुख़्सत
फिर नया जख़्म
देहरादून मनोचिकित्सालय
फ़ैसला
ख़लिश का लोकार्पण
~~
समर्पण
ये किताब न होती अगर...
आँखों में एक ख़्वाब न होता
मम्मी-पापा का आशीर्वाद न होता
अली हुसैन का साथ न होता
फैज़ान सानिया का प्यार न होता
तोसीफ़ शाहीन का विश्वास न होता
डॉ. शफ़ीक हुसैन का मार्गदर्शन न होता
एक सुन्दर परिवार न होता
और सबसे ख़ास;
दोस्तों का प्रोत्साहन न होता
~~
नाज़नीन अली का साहित्यिक कौशल
हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी की कवियत्री और लेखिका नाज़नीन अली अद्भुत साहित्यिक कौशल रखती हैं। इनकी हर कविता, लेख और अब उपन्यास, सादी भाषा में लिखे होने के बावजूद इतने सशक्त होते हैं कि पाठक की मनःस्थिति को प्रभावित करते हैं।
इनकी रचनाओं से मैं सबसे अधिक इस बात से प्रभावित हुआ हूँ कि राष्ट्रवाद, महिला सशक्तिकरण, प्रगति, व्योग आदि संवेदनशील मुद्दों को भी इन्होनें बड़े काल्पनिक तरीके से कभी हास्य व्यंग, कभी वेदना, कभी प्रेमकथा आदि, विभिन्न प्रकार से अभिव्यक्त किया है।
इनका पहला उपन्यास ‘ख़लिश’ हिन्दी और उर्दू का मिश्रण, यानि हिन्दुस्तानी भाषा में लिखा गया एक बहुत ही ख़ूबसूरत उपन्यास है जिसमें पाठक प्रेम के मनमोहक रथ पर सवार होकर एक अनोखे सफ़र पर जाता हुआ और ख़ुद को कहानी के किरदार जीता हुआ महसूस करता है। इन्होनें इस उपन्यास में भी अपने लेखिका होने का दायित्व निभाया है और हमारे देश में धर्म के नाम पर हो रहे शोषण को बड़े ही अद्भुत तरीके से कहानी का हिस्सा बनाकर पाठक को सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या हमने देश की ऐसी तस्वीर की कल्पना की थी?
मैं नाज़नीन अली को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि इनका उपन्यास पाठकों द्वारा सराहा जाएगा और देशवासियों की मानसिकता बदलने में अपना योगदान देगा।
प्रोफेसर इंद्रवर्धन त्रिवेदी
पूर्व कुपलति
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय
उदयपुर
~~
नाज़नीन अली का जादुई क़लम
इल्म और अदब वो गहरा समंदर है जिसमें जब जब कोई पाठक गोतज़न होता है उसके हाथ एक नायाब मोती रूपी लेखक लगता है। हर लेखक, हर फनकार, हर अदीब, अपने आप में नायाब होता है क्योंकि उसका एक मुख़्तलिफ अन्दाज़ होता है, एक ज़बान पर कुदरत और किसी एक साहित्यिक शैली पर महारथ हासिल होती है।
मोहतरमा नाज़नीन अली की तहरीर को जब मैं अदबी कसौटी पर परख़ता हूँ तो इन्हें एक तराशे हुए हीरे की मानिन्द पाता हूँ। एक ऐसा हीरा जिससे एक ही वक्त में रोशनी की कई किरणें फूटती हुई नज़र आती हैं और इस हीरे से फूटने वाली हर किरण एक भाषा में तबदील हो जाती है; यानि इनको हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी, तीनों ज़बान पर दस्तरस है। इनकी लेखन शैली का केनवस भी बहुत वसीअ है - कविता, नाटक, मज़मून, कहानियाँ और अब उपन्यास, नाज़नीन ने साहित्य के हर रंग को हमरंग कर लिया हैं और इनके यही रंग साहित्य की दुनिया में इनकी पहचान बन गये हैं। इनकी हर कृति यक़्ता है और इनकी ज़हानत और ज़कावत को ज़ाहिर कर रही है।
नाज़नीन जहाँ एक तरफ़ अपनी हिन्दी कविताओं में महिला सशक्तिकरण की तरफ इशारा करती हैं वहीं दूसरी तरफ इनकी कविताएँ इनके भीतर के आत्मविश्वास को दर्शाती हैं। उर्दू में
भी इनकी नज़्में सामईन के दिल को छू लेती हैं और ज़िन्दगी के अलग अलग पहलुओं, मानवीय मूल्यों और नैतिक सिद्धांतों से शनास कराती हैं।
इसी तरह इनकें उर्दू मज़ामीन तहज़ीब-व-सक़ाफत के मौज़ूआत के अलावा धार्मिक भी होते हैं। इनके धार्मिक मज़ामीन भी इन्सानी कदरों के तरजुमान होते हैं, जिससे ये साबित होता है कि इनके पास वो तख़लीकी सलाहियत है कि वो अपने जादुई क़लम से अदब के हर आसमान पर अपने हुनर के मुख़्तलिफ रंग बिखेर कर एक इंद्रधनुष बना रही हैं।
इनके क़लम का जादू यहीं तक महदूद नहीं है। मुझे यक़ीन है कि बतौर एक हिन्दी लेखिका, इनका पहला उपन्यास ‘ख़लिश’ भी पाठकों पर अपना जादू चलाएगा और ये प्रमाणित हो जाएगा कि नाज़नीन के क़लम में प्रभावशाली लेखिका बनने की ताक़त है।
अंग्रेज़ी में एक कहावत है- A journey of thousand miles begins with a single step.
नाज़नीन ने बतौर उपन्यासकार अपना पहला कदम इस मज़बूती से बढ़ाया है कि यक़ीनन वो मंज़िल दर मंज़िल नए मक़ाम को छूती जायेगी।
‘ख़लिश’ दिल को छू जाने वाली एक ऐसी कहानी है जो मोह और प्रेमभाव के साथ साथ देश के बदलते हालात और उसके दुष्परिणाम के प्रति लेखिका के अन्दर छुपी हुई पीड़ा को दर्शाती
है। कहानी की भाषा बहुत ही सरल है। न ही पूर्ण हिन्दी, न ही ख़ालिस उर्दू का इस्तेमाल किया गया है; बल्कि हिन्दुस्तान की गंगा-जमनी तहज़ीब को सलाम करते हुए, हिन्दुस्तानी भाषा का प्रयोग किया गया है। साथ ही साथ इन्होनें बड़ी ख़ूबसूरती से कहीं कहीं कठिन हिन्दी और मुश्किल उर्दू के लफ़्ज़ों का इस्तेमाल करते हुए ये बता दिया है कि ये दोनों ही भाषाओं पर कौशल रखती हैं मगर पाठक के दिल में आसानी से उतर जानें के लिए इन्होनें सादा ज़बान का चयन किया है।
कहानी में एक साधारण से युवक और उसकी मोहब्बत की दास्तान का ताना बाना बेहद ख़ूबसूरती और सलीके के साथ बुना गया है। भाषा सरल होने के बावजूद ये किताब पढ़ने वाले को तसव्वुर की उस मंज़िल तक पहुँचानें की क्षमता रखती है जहाँ पाठक ख़ुद को सब किरदार जीते हुए और उन हालात से गुज़रते हुए महसूस कर सकता है। इस कहानी की सबसे ख़ास बात यह है कि एक प्रेम कथा होने के साथ साथ ये हमारे समाज में व्यापक कुछ धार्मिक और राजनीतिक मुद्दों को इस प्रकार से उजागर करती है कि पाठक ये सोचने पर विवश हो जाए कि एक समाज और एक देश के रूप में हम किस दिशा में जा रहे हैं? किस डगर पर चल रहे हैं?
मैं नाज़नीन अली को शुभकामनाएँ देता हूँ और दुआ करता हूँ कि अपनी इस किताब के ज़रिये वो लोगों तक मोहब्बत और
अमन का पैग़ाम पहुँचाने में कामयाब हो सकें और हिन्दी व उर्दू साहित्य के आसमान पर आफ़ताब और मेहताब बनकर चमकें।
‘‘ख़ुदा नसीब करे तुमको इस कदर शोहरत
तुम्हारे नाम से आगे किसी का नाम न हो।’’
डॉ. मिर्ज़ा शफ़ीक हुसैन शफ़क
विभाग अध्यक्ष - उर्दू
राजकीय हुसैनाबाद कॉलेज
लखनऊ
मो – 9452292302
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मेरी नज़र से...
‘ख़लिश’ एक उर्दू लफ्ज़ है, जिसका मतलब होता है चुभन। हमारी ज़िन्दगी कुछ अधूरे ख़्वाब, कुछ अनकहीं बातें, कुछ मचलते जज़्बात, कुछ बंदिशे, कुछ टूटे रिश्ते, कुछ छलकते आँसू, कुछ मार्मिक एहसास और कुछ मोहब्बत भरे लम्हों के सिवा कुछ भी नहीं हैं।
जहाँ एक तरफ मोहब्बत के नूर से ज़िन्दगी रोशन होती है, वहीं दूसरी तरफ एक अधूरी और नाकाम मोहब्बत ज़िन्दगी की आख़िरी साँस तक हमारे दिल में एक ख़लिश, एक चुभन पैदा कर देती है।
ऐसी ही एक ख़लिश है ज़ीशान और रश्मी की मोहब्बत की दास्तान में। इस कहानी में जहाँ एक तरफ कॉलेज के दिनों की अठखेलियां पाठक के चेहरे पर मुस्कान लायेगी, वहीं मोहब्बत की राह में आने वाली मुश्किलें, कहानी पढ़ने वालों को संजीदा कर देगी। इस कहानी में लव जिहाद के नाम पर होने वाले शोषण को उजागर किया गया है और बताया गया है कि किस प्रकार समाज के ठेकेदारों के हाथों एक सच्ची मोहब्बत बर्बाद होती है।
यह कहानी है ज़ीशान और रश्मी की मोहब्बत की। यह कहानी है उन पलों की जिनको जी कर ज़ीशान और रश्मी एक दूसरे के करीब आते हैं, इस बात से अन्जान कि एक काला साया है, जो हर पल उनकी मोहब्बत पर मडंरा रहा है। यह कहानी है उनकी मोहब्बत के बीच आने वाली मज़हबी दीवार की, कुछ साज़िशों की, ज़िन्दगी में आने वाले उतार चढ़ाव की, ज़िन्दगी के बदलते रंगों की।
कहानी चार हिस्सों में बंटी हुई है। ज़ीशान के वर्तमान की