ज़िंदगी के गलियारों से
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"ज़िंदगी के गलियारों से" एक ऐसा कहानी संग्रह है, जिसमें हमारे आपके जीवन से जुड़ी विविध विषयों पर पारिवारिक, सामाजिक, प्रेम कहानियाँ संग्रहीत हैं इन कहानियों में समस्याएं हैं तो उनका समाधान भी है भावों तथा विषय के अनुकूल भाषा शैली होने के कारण कहानियाँ स्वाभाविक एवं जीवंत हैं । दिल को छू लेने वाली ये तेरह कहानियाँ कुछ इस प्रकार हैं -
"एक पहल ऐसी भी" कहानी वृद्धों तथा बेसहारा बालकों, की समस्या को एक नया आयाम देती हुई कहानी है । कहानी का एक अंश -"मैं चाहती हूँ क्यों न ऐसा "बाल-वृद्ध आनंद धाम" खोला जाए, जहाँ वृद्ध व अनाथ बच्चे साथ रहें । एक परिवार जैसा वातावरण हो । बच्चे, खास तौर पर बालिकाएँ सुरक्षित हों ।"
"प्रीत पावनी" हृदयस्पर्शी संवेदनशील व कोमल कहानी है, जो प्रेम को गहरे व पावन अर्थों में परिभाषित करती है । इसी कहानी का एक अंश प्रस्तुत है - "महक के गाल शर्म से गुलाब जैसे लाल हो गए थे । वह नीची नज़र किये हुए मुस्करा रही थी । मोहित ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया । बिना भाषा के ही महक ने आँखों ही आँखों में स्वीकृति दे दी थी । मौन मुखर हो उठा था ।"
"करवट बदलते रिश्ते" जीवन की एक भूल और उसे न मानने की सजा किस प्रकार किसी दूसरे के जीवन की दारुण व्यथा बन जाती है, इसका मार्मिक चित्रण है "प्यार का भूत" लव जिहाद के खिलाफ समाज को सचेत व जागरूक करती हुई कहानी है इस कहानी का अंश -"प्यार की कसक में दीवानी आरती अपने को लाख प्रयास करने पर भी न रोक पाती । रिज़वान का इश्क उसे अंदर तक प्यार के रंग में सराबोर कर देता । रिज़वान के बिना तो उसे अपना जीवन ही रंगहीन लगने लगा था । वह घर के संस्कारों की ओर झुकना चाहती, पर कमबख्त इश्क के सामने उसे कुछ दिखाई नहीं देता ।" "विद्रोह" किशोर वय के मनोविज्ञान पर आधारित सशक्त कहानी है । इस कहानी का एक अंश देखिए - "किशोर उम्र में जहाँ मन अनेक सुनहरे सपने देखता है । अपने सौंदर्य को बार-बार शीशे में निहारता है । लाखों आशाओं-आकांक्षाओं को सजाता है । दिवास्वप्न की दुनिया में खोया रहता है, उस नाजुक सी उम्र में विक्रम को अपमान, पीड़ा, अन्याय का कष्ट झेलना पड़ रहा था ।"
"रिटायरमेंट"- रिटायरमेंट के बाद जीवन खत्म नहीं हो जाता, जीवन में पतझड़ नहीं आता, यह तो एक नए वसंत के आगमन की उम्र है । "जब जागे तब सवेरा" कहानी विदेश की झूठी चकाचौंध का भ्रम तोड़ती है । अपना देश अपना ही होता है बस दिल से यह महसूस करने की जरूरत भर है । इस कहानी का अंश प्रस्तुत है -"पापा मुझे कहीं नहीं जाना । मैं भारत में रहकर आपको कुछ बनकर दिखाऊँगी । अगर में विदेश चली गई तो अपनी भाषा, अपने देश की मिट्टी, माँ के हाथ का खाना, आपका प्यार, नाना-नानी, दादा-दादी का दुलार और ये रिश्तों का संसार कहाँ मिलेगा मुझे ?"
"ज़िंदगी की शाम" एक स्त्री की अदम्य जिजीविषा व साहस की कहानी है, जिसने दुख की घड़ी में न सिर्फ स्वयं को संभाला, वरन मंदबुद्धि बेटी व पोती का भी जीवन सँवारा । साथ ही बेटे द्वारा ही मुखाग्नि देने की परंपरा का विरोध कर, एक नई परम्परा भी स्थापित की ।
"कालचक्र" कहानी - अच्छा हो या बुरा प्रत्येक कर्म का फल इसी धरा पर भोगना पड़ता है । परोपकार के कर्मफल हमें कब कैसे मिल जाएं, कोई नहीं जानता । ऐसे ही कर्मफल की यह एक सरस कहानी है ।
"जी उठा तुलसी का पौधा" कहानी विवाह में दिखावे की संस्कृति की विसंगति की ओर इशारा करती है । इस कहानी का अंश -"विषम स्थिति में भी प्यार के कुछ पल उन्हें अनोखी ऊर्जा दे जाते थे । अपने सपनों के साथी की बाहों में दिल की धड़कन की सरगम उन्हें प्यार के असीम आनंद में निमग्न कर देती । एक दूसरे का प्यार पाकर वे सारे दुखों को भूलकर खुशी की एक नई दुनिया में कुछ पलों के लिए खो जाते ।"
"अपने पराए" कहानी जीवन की विषम परिस्थितियों में, गहन दुख में अपने पराए का भेद स्पष्ट करती है । "जंग ज़िंदगी की" कोरोना से लड़ते हुए एक
डॉक्टर की अपनी जिंदगी से जंग जीतने की रोमांचक कहानी है । यह चिकित्सा विभाग से जुड़ी एक भावुक सच्चाई है ।
सुनीता माहेश्वरी
जीवन के विभिन्न भावों को काव्य रूप में सजाने में निपुण सुनीता माहेश्वरी का जन्म १ जून १९५१ में अलीगढ़ (उ.प्र.) में एक संपन्न परिवार में हुआ| इनकी माता श्रीमती चंद्रवती केला तथा पिता श्री राम स्वरूप जी केला धार्मिक प्रवृत्ति के थे | सुनीता माहेश्वरी के व्यक्तित्व में अपने माता- पिता के संस्कारों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है| मन वचन और कर्म से भारतीयता तथा राष्ट्रीयता का भाव, उनके व्यक्तित्व की गौरव पूर्ण निधि है| सुनीता जी की शिक्षा अलीगढ़ में ही हुई | इन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए. तथा एम. एड. किया | तत्पश्चात अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. किया | सुनीता जी ने निर्मला कॉन्वेंट स्कूल तथा दी आदित्य बिड़ला पब्लिक स्कूल, रेनुकूट में शिक्षण कार्य किया| इन्हें अपने छात्रों पर बहुत गर्व है | साहित्य पठन - पाठन में इनकी सदैव रुचि रही | इस कार्य में उन्हें अपने पति श्री हरी कृष्ण माहेश्वरी का सदैव सहयोग मिलता रहा | सेवा निवृत्ति के बाद ये साहित्य सृजन कार्य कर रही हैं | इनकी कुछ कविताएं विश्व मैत्री मंच से प्रकाशित ‘बाबुल हम तोरे अँगना की चिड़िया’ पुस्तक में प्रकाशित हुई हैं| इसके अतिरिक्त पत्रिकाओं में कविताएं एवं कहानियां प्रकाशित होती रहती हैं| प्रतिलिपि .कॉम तथा स्टोरी मिरर. कॉम पर कहानियां एवं कविताओं का प्रकाशन होता रहता है | आकाशवाणी नाशिक एवं रेडियो विश्वास नाशिक से इनकी कविताएं एवं कहानियां प्रसारित होती हैं | सुनीता माहेश्वरी साहित्य सरिता हिन्दी मंच नाशिक (कार्यकारिणी सदस्या) , अखिल भारतीय साहित्य परिषद नाशिक (कार्यकारिणी सदस्या),अखिल हिंदी साहित्य सभा , विश्व मैत्री मंच की महिला कार्यकारिणी सदस्या के रूप में हिन्दी साहित्य की सेवा में तत्पर हैं |
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Book preview
ज़िंदगी के गलियारों से - सुनीता माहेश्वरी
भूमिका
जीवन की यात्रा में मन द्वारा अनुभूत भावनाओं व घटनाओं की संवेदनशील अभिव्यक्ति करती कहानियाँ –
सुनीता माहेश्वरी जी का नाम साहित्य जगत में अपनी रचनाओं के माध्यम से अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुका है । वे सिर्फ गद्य में ही नहीं वरन पद्य में भी अपना एक वैशिष्टय रखती हैं । काव्य की विविध विधाओं में भी उन्हें समान महारत हासिल है । संग्रह की कहानियों को पढ़ते हुए एकबारगी पाठक उनकी वैषयिक विविधताओं को देखकर चकित रह जाता है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से उन्होंने अपनी कहानियों के विषय उठाए हैं, जो उनकी सूक्ष्म दृष्टि का परिचायक हैं कि वे कितनी गहनता से घटनाओं का अवलोकन करती हैं । चाहे चिकित्सा का क्षेत्र हो, या विदेश से होकर भारत आए हताश व्यक्ति के अवसाद का चित्रण । वे हर भाव पर अपनी मजबूत पकड़ रखती हैं और तभी उनकी कहानियाँ जीवन की सच्चाइयों का संवेदनशील दस्तावेज उपस्थित करती हैं ।
एक पहल ऐसी भी
कहानी को मैं संग्रह की सर्वोत्कृष्ट कहानी कहूँगी । इस कहानी के माध्यम से समाज के लिए एक बहुत ही अनुकरणीय संदेश जा रहा है । वास्तव में सरकार को इस दिशा में सोचना चाहिए । इससे वृद्धों तथा बालकों, विशेषकर अनाथ व बेसहारा बालिकाओं की समस्या का काफी हद तक समाधान हो जाएगा । वृद्धजनों को जीवन का उद्देश्य मिल जाएगा तथा उनकी छत्रछाया में बालिकाओं की सुरक्षा की ओर से समाज निश्चित ही निश्चिंत हो सकेगा ।
प्रीत पावनी
संग्रह की सबसे हृदयस्पर्शी संवेदनशील व कोमल कहानी है, जो प्रेम को गहरे व पावन अर्थों में परिभाषित करती है ।
जीवन की एक भूल और उसे न मानने की सजा किस प्रकार किसी दूसरे के जीवन की दारुण व्यथा बन जाती है, इसका मार्मिक चित्रण है – कहानी करवट बदलते रिश्ते
।
प्यार का भूत
लव जिहाद के खिलाफ लेखिका की कलम का एक सराहनीय प्रयास है । आज साहित्य में इसी तरह के विषय पर लेखन की आवश्यकता है । लव जिहाद की समस्या दिन पर दिन विकराल रूप धारण करती जा रही है और इसके दुष्परिणाम भी बड़े भयंकर हैं । साहित्यकार का यह कर्तव्य है कि वह अपने लेखन के माध्यम से समाज को सचेत व जागरूक करे और सुनीता जी ने इस कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाया है ।
विद्रोह
किशोर वय के मनोविज्ञान पर एक और बहुत सशक्त कहानी है । सुनीता जी किशोर वयस की भावनाओं पर भी सशक्त पकड़ रखती हैं । कई बार लोग भावनात्मक प्रभाव में आकर अनुचित निर्णय ले लेते हैं । यह कहानी किशोरों के साथ ही शिक्षकों व अभिभावकों को भी सचेत करती है ।
रिटायरमेंट
- रिटायरमेंट के बाद जीवन खत्म नहीं हो जाता, जीवन में पतझड़ नहीं आता, यह तो एक नए वसंत के आगमन की उम्र है । यह सेवानिवृत्ति से हताश मन के लिए वसंत के द्वार खोलती हुई कहानी है । अंतर की रुचि को उभारने से ही व्यक्ति जीवन में अपने उद्देश्य में सफल होता है ।
जब जागे तब सवेरा
कहानी विदेश की झूठी चकाचौंध का भ्रम तोड़ती है । अपना देश अपना ही होता है बस दिल से यह महसूस करने की जरूरत भर है ।
ज़िंदगी की शाम
एक स्त्री की अदम्य जिजीविषा व साहस की कहानी है, जिसने दुख की घड़ी में न सिर्फ स्वयं को संभाला, वरन मंदबुद्धि बेटी व पोती का भी जीवन सँवारा । साथ ही बेटे द्वारा ही मुखाग्नि देने की परंपरा का विरोध कर, एक नई परम्परा भी स्थापित की ।
अच्छा हो या बुरा प्रत्येक कर्म का फल इसी धरा पर भोगना पड़ता है । परोपकार के कर्मफल हमें कब कैसे मिल जाएं, कोई नहीं जानता । कहानी कालचक्र
ऐसे ही कर्मफल की एक उल्लेखनीय व सरस कहानी है ।
समाज की कुछ कुरीतियों पर भी सुनीता जी ने कलम चलाई है। जी उठा तुलसी का पौधा
कहानी विवाह में दिखावे के चक्कर में अनावश्यक खर्च के साथ ही अनावश्यक कार्य भी कर बैठने वाले लोगों को सामने लाती है । इन दिखावों की वजह से कभी-कभी गंभीर दुर्घटना भी हो जाती है । यह कहानी दिखावे की उसी संस्कृति की इस विसंगति की ओर इशारा करती है ।
पवित्र प्रेम
एसिड अटैक की शिकार युवती के अपने बल पर अपना मुकाम हासिल करने की प्रेरक व प्रेरणास्पद कहानी है ।
अपने पराए
कहानी जीवन की विषम परिस्थितियों में, गहन दुख में अपने पराए का भेद स्पष्ट करती है । कई बार यही गहन दुख साहस के साथ जीवन संघर्ष में उठ खड़े होने की ताकत भी देता है ।
जंग ज़िंदगी की
कोरोना से लड़ते हुए एक डॉक्टर की अपनी जिंदगी से जंग जीतने की रोमांचक कहानी है । यह चिकित्सा विभाग से जुड़ी एक भावुक सच्चाई है ।
सुनीता जी के पास विविध विषय हैं और उन विषयों के अनुकूल भाषा है । शब्द चयन भी कहानी के भाव तथा विषय के अनुकूल है, जो कहानियों को स्वाभाविक बनाता है । शैली भी विषय अनुसार होती है जो कहानी को प्रभावशाली बना देती है । भावनाओं के गहन चित्रण द्वारा वे पात्रों को पाठक के समक्ष जीवंत कर देती हैं जिससे पाठक उनके साथ भावनात्मक जुड़ाव महसूस करने लगता है और यही कहानियों की सार्थकता है ।
कथा विन्यास के प्रत्येक पहलू में वे सिद्धहस्त हैं तभी कहानियाँ प्रारम्भ से अंत तक खुद को पढ़वा ले जाती हैं । अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण आज वे कथा क्षेत्र में भी अपनी एक खास पहचान बना चुकी हैं ।
इस संग्रह के लिए उन्हें हार्दिक बधाई तथा भविष्य के लिए अनेक शुभकामनाएं । साहित्य में वे ऐसा ही स्वर्णिम योगदान देती रहें।
९ अगस्त २०२१ डॉ. विनीता राहुरीकर
आत्मकथ्य
मा नव मन से जुड़ी कहानी हमारे जीवन की विविध घटनाओं, जटिलताओं का गद्यात्मक शब्द चित्रण है । यह जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव को प्रदर्शित करने वाली अत्यंत सशक्त गद्य की विधा है ।
प्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचंद जी का कहना है, "कहानी वह रमणीय उद्यान नहीं, जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेल बूटे सजे हुए हों, बल्कि एक ऐसा गमला है, जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है ।"
माँ सरस्वती की असीम अनुकंपा से जब आसपास की घटनाओं, संवेदनाओं और अनुभूतियों से अचानक मन में विचारों की निर्मल गंगा प्रवाहित होने लगती है, तब कल्पनाएँ और भाव मिलकर स्वयं ही कहानी का स्वरूप धारण करके सुंदर शब्दों में सजकर सहज ही कागज पर अवतरित हो जाते हैं ।
कहानी जहाँ एक ओर समाज का दर्पण होती है, वहीं दूसरी ओर समाज को उचित दिशा प्रदान करती है । इसका पाठकों पर गहरा प्रभाव पड़ता है । अतः एक लेखिका होने के नाते मैंने यह प्रयास किया है कि कहानियाँ मनोरंजक भी हों और साथ ही मानवीय संवेदनाओं एवं सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हों, सत्य, सुंदर और कल्याणकारी हों । हमें अपनी संस्कृति और नैतिक मूल्यों से जोड़कर रखने वाली हों ।
जीवन की यात्रा में मिले मैं उन सभी लोगों की आभारी हूँ जिनके अनुभवों ने मुझे रचना कर्म के लिए प्रभावित किया है । सुप्रसिद्ध कलाकार ‘भारत गौरव’ तथा ‘सिक्स्टी मास्टर्स’ एंड ‘लाइफ टाइम एचीवमेंट अवॉर्ड’ (यू.एस.ए.) सम्मानों से सम्मानित अपनी बहन आदरणीया सुबोध माहेश्वरी (यू.एस.ए.) को दिल से धन्यवाद देती हूँ, जिनकी कलाकृति ने मुखपृष्ठ को इतना सुंदर, सार्थक और आकर्षक बनाया है ।
मैं वरिष्ठ कहानीकार एवं उपन्यासकार डॉ. विनीता राहुरीकर की आभारी हूँ, जिन्होंने इस संग्रह के लिए कहानियों का चयन करने में सहयोग दिया तथा इस पुस्तक की भूमिका लिखकर मुझे अनुगृहीत किया ।
इस संग्रह का नामकरण करने हेतु मैं श्रीमती सुधा झालानी का हृदय से आभार प्रकट करती हूँ । कहानियों के चयन में मेरी सहायता करने के लिए डॉ. पूनम मानकर पिसे के प्रति मैं कृतज्ञता प्रकट करती हूँ । कदम-कदम पर मेरी सहायता करने के लिए मैं अपने पति श्री हरी कृष्ण माहेश्वरी जी को दिल से धन्यवाद प्रेषित करती हूँ ।
अपने एक प्रशंसक पाठक श्री प्रकाश गुंडेचा को एक पहल ऐसी भी
कहानी लेखन की प्रेरणा देने हेतु मैं साधुवाद देती हूँ । पुस्तक प्रकाशन हेतु प्रकाशक - श्री बिपिन बाकले, अल्टिमेट एसोसिएट्स, नाशिक को हार्दिक धन्यवाद देती हूँ ।
अपने सभी सुधी पाठकों की मैं हृदय से आभारी हूँ, जिन्होंने अर्पण
तथा हृदय के उद्गार अनेक रंग में
काव्य संग्रह में संग्रहित मेरी कविताओं को तथा धरा से अंबर तक
कहानी संग्रह तथा विविध पत्रिकाओं में प्रकाशित मेरी कहानियों को सराहा, मेरे मनोबल को बढ़ाया और मुझे निरंतर लिखने की प्रेरणा दी ।
जब किसी पाठक का देश-विदेश से रचना की प्रशंसा हेतु फोन या पत्र आता है, तो लेखन के लिए एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है । प्रबुद्ध पाठकों के प्रतिसाद का ही परिणाम है कि मैं भिन्न-भिन्न विषयों पर लिखी गई कहानियों का यह संग्रह ज़िंदगी के गलियारों से
आप सभी विद्वान पाठकों को समर्पित कर रही हूँ । यदि मेरी ये कहानियाँ आप जैसे सहृदय, सुधी पाठकों के हृदय को छू सकीं, तो मेरा लेखन सचमुच सार्थक हो जाएगा । धन्यवाद ।
१ सितंबर२०२१ सुनीता माहेश्वरी
पुस्तक के कुछ अंश
"मैं चाहती हूँ क्यों न ऐसा बाल-वृद्ध आनंद धाम
खोला जाए, जहाँ वृद्ध व अनाथ बच्चे साथ रहें । एक परिवार जैसा वातावरण हो । बच्चे, खास तौर पर बालिकाएँ सुरक्षित हों ।"
"समय बदलने लगा था । उनके प्रेम के वृक्ष पर आत्मसम्मान और विश्वास की कोंपलें फूटने लगी थीं । उसकी शाखाओं पर फिर मुस्कराहट के फूल खिल उठे थे । चहकती चिड़ियाँ फिर आकर नीड़ बनाने लगी थीं । पावनी प्रीत की मधुरता व प्रसन्नता से वह वृक्ष पुनः लहलहाने लगा था ।"
"प्यार में कहीं ठगा मत जाना । इस बात पर ध्यान देना कि असली प्यार और आकर्षण में बहुत अंतर होता है । प्यार आत्मिक होता है; आकर्षण शारीरिक लगाव मात्र होता है । प्यार दिल की गहराइयों से किया जाता है । प्यार में त्याग है, स्थायित्व है, जबकि आकर्षण कुछ समय में ही समाप्त हो जाता है । बेटा, मेरी जैसी गलती अब तुम मत करना ।"
"सच कहा आपने, जहाँ प्यार भरे रिश्तों की मंजरी महकती रहती है, वहाँ दुख की सघन काली रात भी बड़ी आसानी से कट जाती है ।"
एक पहल ऐसी भी
वृ द्धाश्रम की चारदीवारियों में सन्नाटा पसरा था । न कोई उमंग थी न कोई तरंग । अपनों से जुदा होकर वृद्धजन अपनों की याद में खोए-खोए से जैसे तैसे अपने जीवन की संध्या के एक-एक पल बिता रहे थे । वही घिसी पिटी दिनचर्या । सुबह उठो, पूजा पाठ करके खाना खा लो । खाने के समय भी वार्डेन की चार बातें सुनकर आपस में थोड़ी सी बातें कर लो । बातें, वो भी बस. ..., घर-घर की दुख-दर्द और उपेक्षा भरी राम कहानियाँ, वही आँसू, निराशा-हताशा भरा वातावरण । किसी-किसी को तो यह भी चिंता खाए जाती कि मेरा अंतिम संस्कार करने भी मेरा बेटा या बेटी आएंगे या नहीं । यह लोक तो बिगड़ गया, अब परलोक भी सुधरेगा या नहीं ।
पचपन वर्षीया सुशीला जी वैसे तो एक शिक्षिका थीं, पर समाज सेवा में उनकी बहुत रुचि थी । वह अपने विद्यालय के काम के बाद कभी-कभी वृद्धाश्रम जातीं । सभी वृद्धों को कुछ सुकून के, हर्ष के, आमोद-प्रमोद के पल देने का प्रयास करतीं । वे