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साधना पञ्चकं : प्रवचन-38 (सूत्र-37)

साधना पञ्चकं : प्रवचन-38 (सूत्र-37)

FromVedanta Ashram Podcasts


साधना पञ्चकं : प्रवचन-38 (सूत्र-37)

FromVedanta Ashram Podcasts

ratings:
Length:
61 minutes
Released:
Sep 28, 2022
Format:
Podcast episode

Description

साधना पञ्चकं ज्ञान यज्ञ के 38वें दिन पूज्य स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी महाराज ने 37वें सोपान की भूमिका एवं रहस्य पर प्रकाश डाला। इसमें भगवान् शंकराचार्यजी कहते हैं की "प्राक कर्म प्रविलाप्यतां" - अर्थात, संचित कर्मों को समाप्त करें। जीव-भाव के धरातल पर रहते हुए हम लोग कर्म के दायरे में ही रहते हैं। जो मिलता है वो कर्म से ही मिलता है, अतः हम सब अपना भविष्य बनाने में समर्थ होते हैं। प्रत्येक जन्म में हम लोग एक तरफ से पुराने कर्मों का क्षय करते हैं तो दूसरे तरफ से कुछ नए कर्मों का निर्माण भी करते हैं। यह सभी पुराने जीवनों की कहानी रही थी। सभी पुराने जीवनों में जो कर्म जमा हैं उनको संचित कर्म कहते हैं। जब तक हम लोगों का जीव-भाव रहता है तब तक वे सभी कर्म 'हमारे' कर्म बने रहते हैं, और जब जीव-भाव से परे चले गए तो सभी कर्म समाप्त हो जाते हैं। यह ही इस सोपान में कहा जा रहा है कि सतत अपने जीव-भाव से परे तत्व में जगे रहना चाहिए।
Released:
Sep 28, 2022
Format:
Podcast episode

Titles in the series (100)

Pravachans / Moral-Stories / Chantings / Bhajans - by Mahatmas of Vedanta Ashram, Indore