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साधना पञ्चकं : प्रवचन-35 (सूत्र-34)
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Length:
70 minutes
Released:
Sep 25, 2022
Format:
Podcast episode
Description
साधना पञ्चकं ज्ञान यज्ञ के 35वें दिन पूज्य स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी महाराज ने 34वें सोपान की भूमिका एवं रहस्य पर प्रकाश डाला। इसमें भगवान् शंकराचार्यजी कहते हैं की "परतरे चेतः समाधीयताम" - अर्थात, जो सबसे परे है उसमे अपने चित्त को समाहित करो। इस प्रवचन में पू गुरूजी ने एकान्त शब्द के विविध अर्थ बताए और उसके बाद 'पर' शब्द का भी आशय बताया। जो सबको व्याप्त करते हुए सबको आत्मवान करता है लेकिन फिर भी सबके विकारों से अछूता रहता है, वो ही सबसे 'परे' है। जैसे लहरों में पानी - पानी ही लहार को आत्मवान करता है, लहर के कण-कण को व्याप्त करता है, लेकिन लहर के जन्म, वृद्धि, क्षय एवं मरण से अछूता रहता है - अतः जल, लहर से परे होता है। उसी तरह से जो तत्त्व हमारी अस्मिता को व्याप्त करता है, उसे आत्मवान करता है, लेकिन फिर भी हमारी अस्मिता के वृद्धि और क्षय आदि विकारों से अछूता रहता है वो ही 'पर' तत्त्व होता है। उसमे चित्त को समाहित करना ही समाधी में जाने का हेतु होता है।
Released:
Sep 25, 2022
Format:
Podcast episode
Titles in the series (100)
(मराठी) अध्याय ३ : कर्म योग by Vedanta Ashram Podcasts