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साधना पञ्चकं : प्रवचन-33 (सूत्र-32)
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Length:
67 minutes
Released:
Sep 23, 2022
Format:
Podcast episode
Description
साधना पञ्चकं ज्ञान यज्ञ के 33वें दिन पूज्य स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी महाराज ने ग्रन्थ के चौथे श्लोक में प्रतिपादित अंतिम सूत्र एवं ग्रन्थ के 32वें सोपान की भूमिका एवं रहस्य पर प्रकाश डाला। इसमें भगवान् शंकराचार्यजी कहते हैं की "जनकृपा नैष्ठुर्यम उत्सृज्यतां" - अर्थात, किसी व्यक्ति की ऐहसान के भाव से दी गई सेवा को कठोरता से अस्वीकार देना चाहिए। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में जो कुछ भी प्राप्त किया है अगर वो यह सोचता है की यह ईश्वर की कृपा नहीं बल्कि उसकी अपनी ही मेहनत थी, ऐसे लोग ही सबके ऊपर ऐहसान दिखाते रहते हैं। ऐसे लोगों के द्वारा दी गयी सेवा को निष्ठुरता से अस्वीकार देना चाहिए। ईश्वर के भक्त तो सतत ईश्वर की कृपा देखते हैं और ईश्वर को ही अर्पण करते रहते हैं। उनके लिए एक सन्यासी ईश्वर का ही रूप होता है।
Released:
Sep 23, 2022
Format:
Podcast episode
Titles in the series (100)
(मराठी) अध्याय ७ : ज्ञान विज्ञान योग by Vedanta Ashram Podcasts