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सांझी तड़प (लघु उपन्यास)
सांझी तड़प (लघु उपन्यास)
सांझी तड़प (लघु उपन्यास)
Ebook71 pages36 minutes

सांझी तड़प (लघु उपन्यास)

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About this ebook

घटना के बाद
भाई जैसा था
मेरे अपने
देस से आयी चाची
हमारे घर में
ज्योति के मुंह से
चाची की यादों से
चुम्बकीय खिंचाव
इश्क़ की रुत

कुछ शब्द

कहानियाँ और उपन्यास तो शायद आपने भी बहुत से पढ़े होंगे, और ये भी जरूरी है के उनमें से कई आपके दिमाग में बहुत गहरी छाप छोड़ गए होंगे! हम इस उपन्यास में आपको एक ऐसी दुनिया में ले जा रहे हैं जिसके बारे में आपने शायद ही कभी सुना या पढ़ा हो!

इस लघु उपन्यास में इतना प्रेम, पीड़ा, और खिंचाव है के आप एक बार इसको पढ़ना शुरू करेंगे तो आपको फिर इसको छोड़ने का मन ही नहीं करेगा। पचहत्तर वर्षो की परिधि में घूमता ये छोटा सा उपन्यास आपको जरूर सोचने पर मजबूर कर देगा, कभी आपकी आँखों में नमी लाते हुए तो कभी आपके चेहरे पर हलकी सी मुस्कान लाते हुए। तीन देशो की ये कहानी किसी छोटी सी फिल्म से कम नहीं है जिसकी छाप आपके दिमाग में कई वर्षो तक रहेगी।

अगर आपको ये लघु उपन्यास पसंद आये तो कृपया इस किताब के लिंक को अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजियेगा। हम आपके आभारी रहेंगे।

और एक बात, इस लघु उपन्यास के साथ हम एक छोटा सा रोमांटिक उपन्यास भी आपको दे रहे हैं इसी किताब में। उम्मीद करते हैं के वो भी आपको पसंद आएगा।

शुभकामना

टी सिंह

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJan 12, 2023
ISBN9798215296301
सांझी तड़प (लघु उपन्यास)

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    सांझी तड़प (लघु उपन्यास) - टी सिंह

    घटना के बाद

    नया देश था, नए लोग थे, नयी नौकरी थी, या यूं कहूँ के सबकुछ ही नया था। हमें इंडिया से कनाडा आये हुए कुछ ही महीने हुए थे।

    फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने जीवन में काफी कुछ बदल दिया।

    एक दिन मेरा बेटा सड़क पर था लेकिन उसने आती हुई गाड़ी को नहीं देखा था।

    तभी अचानक एक काले बालों वाले आदमी ने अपनी जान को जोखिम में डालकर मेरे बेटे को धक्का देकर कार से टकराने से बचा लिया था।

    मेरे बेटे की जान बचने वाले का नाम मुब्बशर था। मेरे बेटे को बचाने के लिए मेरे बेटे को दिया गया वो धक्का मेरी और मुब्बशर की जिगरी दोस्ती से होते हुए हमारी पारिवारिक दोस्ती तक आ पहुंचा था।

    बेटे के बचाने की घटना के बाद और मेरी और मुब्बशर की दोस्ती आगे बढ़ने के बाद जब वो पहली बार हमारे घर आया तो मेरा और मेरी पत्नी का मन मुब्बशर के प्रति अपनेपन से छलकने लग पड़े।

    कुछ दिन के बाद जब मैं और मेरी पत्नी उसके मम्मी डैडी से मिले तो हमें पछतावा होने लगा के हम इतने अच्छे लोगो को इतनी देरी से क्यों मिल रहे थे।

    मैं सोच सोच कर हैरान होने लगा था के पाकिस्तान में भी इतने अच्छे लोग हो सकते थे क्योंकि जो चित्र पकिस्तान का हमारे देश के टेलीविज़न चैनल हम तक पहुंचते थे, उनको देखकर तो लगता था के पाकिस्तानी बहुत ही उग्र स्वभाव के मार काट मचाने वाले लोग थे। पर ऐसा बिलकुल नहीं था। क्योंकि सर कुछ सौ आतंकवादियों और कटटरपंथियों को छोड़कर देश के सभी लोग हम भारतियों की तरह ही मिलनसार और मोहब्बत करने वाले थे।

    Chapter 2

    भाई जैसा था

    मुब्बशर के माँ बाप फैसलाबाद, पकिस्तान, से करीब २५ साल पहले कनाडा आकर बस गए थे।

    मुब्बशर के डैडी, मोहम्मद यासिर साहेब, ने मुझे बताया के दो बहनो के छोटे भाई मुब्बशर ने स्कूल का मुंह कनाडा में ही आकर देखा था।

    जब वो लोग पकिस्तान से कनाडा आये थे तब मुब्बशर करीब पांच बरस का था।

    कनाडा में ही पढ़ाई करके बड़ा हुआ मुब्बशर कनाडा के सभ्याचार में घुलमिल कर बिलकुल ही सहज हो गया था।

    दिन बढ़ीं हमारा यासिर साहेब के परिवार से मेल मिलाप और निकटता बढ़ते ही रहे और पीछे छूटे पकिस्तान और भारत की किताब के पन्ने भी सांझे होने लगे। उस देश में हम दोनों इस तरह बातें करते थे जैसे हम एक दूसरे को सदियों से जानते थे। दोनों के ही पास आज़ादी से पहले वाले भारत की बहुत सी कहानियां थी एक दूसरे को सुनाने के लिए।

    बेशक यासिर साहेब के बुजुर्ग १९४७ में बंटवारे के दौरान भारत से उजड़ कर पकिस्तान नहीं गए थे क्योंकि वो पहले से ही पकिस्तान में रहते थे, पर बंटवारे की आग का ताप पकिस्तान में रहने वाले लोगों ने भी झेला था।

    लेकिन उस बंटवारे में जो नफरत की अंधी चली थी उस अंधी से किसी तरह बचकर हमारे बुजुर्ग पकिस्तान वाले पंजाब में अपना सब कुछ छोड़कर भारत वाले पंजाब में खाली हाथ आ गए थे और फिर

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