कब्रों पर महल नहीं बनते
By K. Singh
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मैं मेरा पीछा करने वाले व्यक्ति से बचने के लिए अंधाधुंध भाग रहा था. मैंने पीछे मुड़कर देख लिया था के उसके हाथ में एक लंबा सा चमचमाता हुआ चाकू था. वो भी बहुत तेज़ दौड़ रहा था और हर क्षण मेरे नजदीक होता जा रहा था.
मैं पूरी तरह से अपने ही पसीने में नहाया हुआ था; मेरी सांस फूलने लगी थी; मुझे लगने लगा था के मैं ज्यादा दूर तक नहीं दौड़ सकूंगा; मैं किसी भी क्षण लड़खड़ाकर गिर सकता था. इतनी देर तक भागते रहने के कारण मैं बहुत अधिक थक चुका था. शारीरिक थकान के साथ साथ मेरा दिमाग भी कई चिंतित करने वाले प्रश्नो से भर गया था.
कुछ दूरी तक और दौड़ने के बाद मेरी टांगें मेरा साथ छोड़ने लगी और मैंने महसूस किया के अब अंत आ ही गया था. मैं तो गर्दन घुमा कर इधर उधर देखने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहा था. चारों तरफ अन्धेरा हो गया था.
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कब्रों पर महल नहीं बनते - K. Singh
कब्रों पर महल नहीं बनते
के. सिंह
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कब्रों पर महल नहीं बनते
के. सिंह
Copyright@2019 K. Singh
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कब्रों पर महल नहीं बनते
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अध्याय 1: सपना
अध्याय 2: दुर्घटना
अध्याय 3: टैक्सी में बातचीत
अध्याय 4: अस्पताल में
अध्याय 5: बातचीत
अध्याय 6: फिर वही सपना
अध्याय 7: अगले दिन
अध्याय 8: राज से मुलाकात
अध्याय 9: संजना के घर में
अध्याय 10: घर में वापिस
अध्याय 11: ज्योतिषी से मुलाक़ात
अध्याय 12: स्नेहा से मुलाक़ात
अध्याय 13: बीती यादें
अध्याय 14: वर्तमान
अध्याय 15: कुछ वर्षों के बाद
अध्याय 1: सपना
मैं मेरा पीछा करने वाले व्यक्ति से बचने के लिए अंधाधुंध भाग रहा था. मैंने पीछे मुड़कर देख लिया था के उसके हाथ में एक लंबा सा चमचमाता हुआ चाकू था. वो भी बहुत तेज़ दौड़ रहा था और हर क्षण मेरे नजदीक होता जा रहा था.
मैं पूरी तरह से अपने ही पसीने में नहाया हुआ था; मेरी सांस फूलने लगी थी; मुझे लगने लगा था के मैं ज्यादा दूर तक नहीं दौड़ सकूंगा; मैं किसी भी क्षण लड़खड़ाकर गिर सकता था. इतनी देर तक भागते रहने के कारण मैं बहुत अधिक थक चुका था. शारीरिक थकान के साथ साथ मेरा दिमाग भी कई चिंतित करने वाले प्रश्नो से भर गया था.
कुछ दूरी तक और दौड़ने के बाद मेरी टांगें मेरा साथ छोड़ने लगी और मैंने महसूस किया के अब अंत आ ही गया था. मैं तो गर्दन घुमा कर इधर उधर देखने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहा था. चारों तरफ अन्धेरा हो गया था.
सड़क को छोड़कर मैं जंगल वाले क्षेत्र में घुस गया था. पहले तो सड़क की बत्तियों में वो आदमी मुझको दिख भी रहा था पर अब वो दिखना भी बंद हो गया था पर वो लगातार मेरा पीछा कर रहा था.
वो काला आदमी अचानक बहुत जोर से चिल्लाया और मुझे रुकने को कहा. मेरा तो पूरा अस्तित्व ही काँप गया और मैं अचानक वहीँ पर गिर पड़ा. मैं जमीन पर पड़ा उसके आने का इंतजार कर रहा था. अचानक वो मेरे ऊपर झपट पड़ा. उसने काला कोट और काली टोपी पहन राखी थी. चाकू उसके हाथ में चमचमा रहा था.
मुझे सिर्फ उसकी आंखें ही दिख रही थी क्योंकि उसका बाकी का पूरा शरीर काले कपड़ों से ढाका हुआ था. उसकी आँखों से आग निकल रही थी. इससे पहले के मैं कुछ कह सकता, उसने वो चाकू मेरे पेट में घुसा दिया. अचानक मैं हड़बड़ा कर उठ गया.
मेरी सांस बहुत तेज़ तेज़ चल रही थी; मैंने अपने चारों तरफ देखा; मेरा शरीर बुरी तरह से थरथरा रहा था; मेरा खून तो जैसे पूरी तरह से जम ही गया था. ध्यान से चारों तरफ देखने के बाद मैंने राहत की एक लम्बी साँस ली, वो एक भयानक सपना था.
मैंने बिस्तर के पास