अन्तर्निनाद: पातञ्जल योगदर्शन पर कुछ विवेचन
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दर्शनशास्त्र भारतीय विचार के उत्कृष्टतम उदाहरण हैं। इनमें उपलब्ध तथ्य आज भी उतने ही सत्य हैं जितना कि सहस्रों वर्ष पहले थे। ये प्राचीन ग्रन्थ छः हैं – न्याय, वैशेषिक, योग, सांख्य, पूर्व- व उत्तर-मीमांसा। इनमें से योगदर्शन सबसे प्रसिद्ध व लोकप्रिय है। इसमें मोक्ष का मार्ग बहुत सूक्ष्मता से बताया गया है। अध्यात्म-मार्ग के नए अनुयायी और इस मार्ग पर कुछ आगे गए हुए लोग – दोनों ही प्रकार के आत्मान्वेषक इस पुस्तक से भरपूर लाभ उठा सकते हैं।
योग के आठ अंग जगप्रसिद्ध हैं, विशेषकर आसन, प्राणायाम व ध्यान। वस्तुतः, योगदर्शन में इन तीन अंगों की परिभाषाएं किंचित् भिन्न हैं। तथापि जो भी अर्थ जग में प्रसिद्ध है, उसी से संसार का इतना कल्याण हो रहा है, कि उनके विशेष अर्थ जानकर, और शेष अंगों को भी समझकर, मनुष्यजाति कितना लाभ उठा सकती है, इसकी कल्पना ही की जा सकती है !
इस पुस्तक में योगदर्शन की सूत्रवार व्याख्या तो नहीं है, परन्तु ग्रन्थ के सभी मुख्य अंशों का परिचय और उनपर गहन विचार प्रस्तुत किया गया है, वह भी छोटे-छोटे लेखों के माध्यम से। अवश्य ही सामान्य जन भी इस ज्ञान से अपना जीवन अध्यात्म की ओर मोड़ सकते हैं।
आइए, महर्षि पतञ्जलि की इस अनमोल कृति से कुछ मोती चुनते हैं, जीवन को कुछ और ब्रह्ममय बनाते हैं !
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