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राम राम कहियो- ध्यान ही में रहियो
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राम राम कहियो- ध्यान ही में रहियो

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राम राम कहियो - ध्यान में ही रहियो कहते हैं कि किताबों की दुनिया हर किसी के लिए एक खजाना हो सकती है, इसका एक व्यक्तिवादी प्रभाव है। मैंने अपनी स्पेन यात्रा के दौरान सुना कि कोई भी स्पेनिश व्यक्ति एक या दो किताबों के बिना नहीं दिखता है, जब पारगमन में विषय भिन्न हो सकता है लेकिन एक किताब को एक गाइड, साथी, एक दोस्त माना जाता है और मेरी यह किताब इस तरह की कहावत का एक सच्चा उदाहरण है
यह पुस्तक एक एंथोलॉजी है जिसमें लगभग 30 गिने चुने सहित्य में विषम दिमागों के विभिन्न स्तर शामिल हैं, जो जीवन के अनुभवों और ज्ञान को संक्षेप में उनकी लघु कथाओं के साथ प्रस्तुत करते हैं।

Languageहिन्दी
Release dateOct 30, 2023
ISBN9789391470883
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    राम राम कहियो- ध्यान ही में रहियो - Dr. Arun Kumar Shastri

    राम राम कहियो

    ध्यान ही में रहियो

    संपादक

    डॉ. अरुण कुमार शास्त्री

    Shape Description automatically generated with low confidence

    Published by:

    Sahityapedia Publishing

    Noida, India - 201301

    www.sahityapedia.com

    Contact - +91-9618066119, publish@sahityapedia.com

    Copyright © 2023 Dr. Arun Kumar Shastri

    All Rights Reserved

    First Edition - 2023

    ISBN - 978-93-91470-88-3

    This book is published in its present form after taking consent from the author & all reasonable efforts have been made to ensure that the content in this book is error-free. No part of this book may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electrical, mechanical, photocopying, recording or otherwise) without the prior written permission of the publisher.

    The publisher of this book is not responsible and liable for its content including but not limited to the statements, information, views, opinions, representations, descriptions, examples, and references. The Content of this book, in no way, represents the opinion or views of the Publisher. The Publisher does not endorse the content of this book or guarantee the completeness and accuracy of the content of this book and does not make any representations or warranties of any kind. The Publisher does not assume and hereby disclaim any liability to any party for any loss, damage, or disruption caused by errors or omissions in this book, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause.

    पुस्तक के शीर्षक के विषय में कुछ शब्द संपादक की ओर से

    राम राम कहियो- ध्यान ही में रहियो

    भारतीय जन मानस में श्री राम जी का नाम कुछ इस तरह से अवस्थित है की उसका प्रयोग अनेक रूपों में होता रहता है मर्यादित पौरुष के स्वरूप में वे एक अकेले सबसे अलग दिखते हैं। जैसे श्री गणेश जी का इसे बोल चाल की भाषा के अन्तर्गत ही सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय के स्वरूप में अतिविशिष्ट स्थान मिला हुआ है धर्म को ध्यान में न रखते हुए भी इसका प्रयोग करते हुए साधारण जन इसका प्रयोग सुबह सुबह एक दूसरे को प्रणाम करने, नमस्कार करने, एक दूसरे को सम्मान देने, एक दूसरे का हाल चाल लेने कुशल क्षेम पूछने व अपने सद्भाव प्रगट करने भाई चारे में या ऐसे ही किसी बहाने से बात चीत शुरू करने में राम राम कहने का चलन है।

    इसी प्रारूप में इस पुस्तक के श्री गणेश (शुभ आरम्भ) हेतु, क्यूंकी ये हमारी संकलन प्रथम पुस्तक भी है, सभी सह लेखकों ने अपने अपने साहित्य कौशल के अनुसार इसमें अपना सहयोग दिया है ये पुस्तक मैं समझता हूँ आप सभी को विशेष कर जो आध्यात्मिक, वैज्ञानिक, साहित्यक, प्रेम भाईचारा, पारिवारिक विचार के पाठक है। जो मानवीयता को प्राथमिकता देते है समाज में एक दूसरे का आदर करते हैं, उन सबको बहुत विशेषकर के रुचिकर लगेगी। इस पुस्तक में भारत के सम्पूर्ण प्रदेशों के लेखक वृंद शामिल हैं उनकी भिन्नता साफ साफ नजर आयेगी तथापि विषय सम्मत भी, सभी का सहयोग मिल रहा हैं आशीष मिल रहा हैं तो क्युं ना।

    - राम राम कहियो - ध्यान में ही रहियो!

    - संपादक

    डॉ अरुण कुमार शास्त्री

    संकलन - सह सम्पादक

    1) ललिता कश्यप

    2) शीला सिंह

    3) डॉ अनेक राम सांख्यान

    4) डॉ रवींद्र कुमार ठाकुर - राष्टीय पुरुस्कार सम्मानित

    5) डाo हेमा देवी ठाकुर

    6) कुलदीप कुमार

    7) सुषमा सिंह ‘उर्मि’

    8) लेख राज चौहान

    9) विजय कुमारी सहगल

    10) विशाल लोधी

    11) ललिता जोशी

    12) डॉ प्रशांत आचार्य

    13) पवना सांख्यान

    14) भीम सिंह

    15) सुनीता गुप्ता 'सरिता'

    16) डॉ चन्द्रकला भागीरथी

    17) रवींद्र साथी

    18) गीता ठाकुर

    19) परमजीत सिंह कहलूरी

    20) कमला ठाकुर

    21) अरुण कुमार बजाज

    22) नरेश सिंह नयाल

    23) कर्नल जसवंत सिंह चंदेल  विशिष्ट सेवा मेडल

    24) आचार्य डॉ सुभाष पुरी राही

    25) डॉ जितेंद्र कुमार

    26) जयमाला गुप्ता

    27) डाo अनीता शर्मा

    28) पुष्पा ठाकुर

    29) विक्की चंदेल ‘साहिब’

    30) डाo अरुण कुमार शास्त्री।

    अस्वीकरण

    प्रस्तुत पुस्तक में प्रत्येक लेखक द्वारा लिखित कथा लेख संस्मरण इत्यादि उसकी स्वयं की कृति है और उस विषय में किसी भी प्रकार के वाद विवाद व् उत्पन्न विवाद आदि में वे स्वयं ही उत्तरदाई हैं। संपादक या संकलन कर्ता का इस विषय में कुछ लेना देना नहीं है।

    संपादक परिचय

    सपर्क - 7011453943 aks95647269@gmail.com

    सम्पादक - डॉ अरुण कुमार शास्त्री

    आप कई प्रकार से साहित्यिक कार्यों का निष्पादन करने में निपुण हैं, जैसे संपादन, समीक्षक, एडिटर, उद्बोधक, ब्लॉगर, निर्देशन, नाट्यप्रवंधन, स्टेज, आर्गेनाइजर इनका काव्यात्मक नाम - एक अबोध बालक *अरुण अतृप्त है जो अपने सहयोगियों व् मित्रों में बहुत प्यार से प्रचलित है व् सामाजिक नाम - डॉ अरुण कुमार शास्त्री है इनका जन्म स्थान पंजाब / जन्म तिथि २९ जुलाई लिंग / पुरुष, / वर्तमान शहर / दिल्ली।

    इनकी शिक्षा- मेडिकल, लॉ, सूचना प्रोद्योगिकी, योग व् प्राकृतिक परावैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक शास्त्र आदि आदि विषयों में हुई है व् इनका मुख्य व्यवसाय - चिकित्सा है ये रेजिडेन्ट मेडिकल ओफिसर - चीफ मेडिकल अफिसर ओफ़िसर इन्चार्ज फार्मेसी एंड स्टोर्स सी एम ओ हेड क्वार्टर निदेशक व होस्पिटल अड्मिनिसट्रेशन -निदेशक // आयुष (पूर्व) पद जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी सम्भाल चुके हैं।

    आपने अपने सेवा कार्यकाल में दिल्ली शहर में 3 लाख से ज्यादा रोगियों की सेवा की, 85 से अधिक आयुष, औषधालय, १० से अधिक आयुष चिकित्सालय व मधुमेह केन्द्र स्थापित किए और आज भी सतत ओनलाईन 20 से 30 रोगी प्रर्तिदिन लगभग इनकी सेवाओं का लाभ के रहे हैं।

    आपकी काव्यात्मक रूचि / विधा / अवधि // **जन्मजात / स्वतंत्र / संयुक्त समूह / यथार्थ / है, सामाजिक माध्यम संख्या आदि - संख्या ११ पद, १०५ समूह, तदनुसार पदादि - अध्यक्ष, सचिव, संरक्षण, १० पुस्तकें प्रकाशित / 6 प्रकाशन योग्य / २०२०१३ लेखन कार्य संख्या // अन्य व्यक्तिगत // विचारों से बिंदास, सार्वभौमिक, वसुधैव कुटुम्बकम /व सामाजिक सेवा विचारधारा के हैं।

    आप दिल्ली राइफल अससोसिएशन के सदस्य हैं व विभागीय क्षेत्र में कई खिताव हासिल कर चुके हैं। आप तैराकी, बेड मिन्टन सायकलिंग शतरंज इत्यादि में विशेषत निपुण हैं व निरन्तर योग्यता बनाये रखते हैं। आप दिल्ली व दिल्ली एन सी आर में दो बार रन 2 ब्रीद मेराथन एस बी आई मेराथन व ऐय़्ररटेल मेराथन दौड चुके हैं।

    आपकी खूबियाँ प्रत्युत्प्न्नात्मक मैत्री भाव- इति यद्राज्यसुखलोभेन ना लभेत // तदात्मानं // जीवेम // नियोक्ताम // उद्घोशिताम //* विचार के व्यक्ति हैं।

    ये गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं में लिखने में प्रवण हैं व सुविधा पूर्ण योगदान देते हैं। पद्य में - गीत, कविता, लोकगीत, गजल, शेर, रुबाई, भक्तिगीत, भजन, हाइकु आदि लिखते हैं। व् गद्य में - कहानी संस्मरण लघु नाटक लधु कथा समसामयिक लेख व् वृतांत आदि लिखने ने महारत हांसिल है।

    यही परिचय है इससे अधिक कुछ और भी है सभी का होता है - मेरा भी है - कुछ भी अलग नहीं।।

    हाँ याद आया माँ हिंदी की सेवा में प्रचार प्रसार करते करते कई देश विदेश की यात्रा करते रहते हैं सभी देशों में आपको बहुत सम्मान मिला सबसे खास बीच समंदर के माल द्वीप की राज धानी माले से ५० नॉटिकल माइल्स क्रूज शिप पर जब अपना अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया।। एक यादगार दिन था वो।।

    इति

    संपादक प्रस्तावना

    यत पिण्डे तत् ब्रहमान्ड़े

    ​इस सृष्टि का मूल खोजना है तो आपको वैज्ञानिक समन्वय प्राप्त करना होगा या फिर अध्यात्मिक - इस पुस्तक के मूल में वही रचना कार है जो इस सृष्टि के मूल में इति। अर्थात जो इस सम्पूर्ण जगत का रचयिता है [ अगर माने तो ] क्युकी मनुष्यों में एक वर्ग ऐसा भी है जो सिरे से ‘उसको’ नकारता है यह उनका व्यक्तिगत भाव है अपितु [ छिपे रुप में उनको भी "वह" स्वीकार है। उनकी इस विचारधारा में कुछ भी गलत नही उनकी सोच पूर्णत: वैज्ञानिक है, मैं उनकी इस विचारधारा का कतई विरोधी नही - इसका सीधा सा कारण हैं कि प्रभु किसी को नजर नही आता और उनको अर्थात उस विशेष वर्ग को वैज्ञानिक मत में प्रामाणिकता पर ज्यादा भरोसा है और हो भी क्यु ना सब और एविड़ेंस [ प्रामाणिकता ] का ही बोलवाला है। इसका सबसे बडा प्रमाण ये है कि भारत ने, विश्व ने आदि आदि देशों से जितने भी वैज्ञानिक प्रयोग किए सबका प्रमाण दिया। दूसरी ओर एक सामान्य से समान्य व्यक्ति भी जब कोई वस्तु खरीद्ता है या आदान प्रदान करता है तो सबसे पहले उस वस्तु के मूल्यांकन का प्रमाण सुनिश्चित करता है ये उसकी जागरुकता का प्रमाण हैं।

    ​प्रभु अर्थात सृष्टि के रचना कार के होने के विषय में अनेकों प्रमाण मौजूद हैं लेकिन उन को वे अपने अनुसार अर्थात जैसे अन्य विषयों में हैं चाहिए। जिनकी उपलब्धता अभी नही हाँ भविष्य में सम्भव हो सकती है। तो उस वर्ग की अपनी सोच है- और हमारे पास उसके अस्विकरण का कोई कारण भी नहीं।

    अब बात आती है इस आर्टिकल के टाईटल अर्थात् विषय पर - जिसका अर्थ है जैसा सृष्टि का सूक्ष्तम रुप है उसी प्रकार उसका बृहत तम रुप है सिर्फ उसके आकार का फर्क है।

    इस बात को दोनो प्रकार के प्राणी स्वीकार करते हैं इसमे कोई मतभेद नही। जो भी कुछ मनुष्य के पिण्ड यानी शरीर में है, बिल्कुल वैसा ही सब कुछ इस ब्राह्मांड में है। संपूर्ण ब्रह्मांड में जो भी है वह द्रव्य एवं ऊर्जा (Matter and energy) का संगम है। वही हमारे शरीर में भी है।

    ​जो ब्रह्माण्ड में है वही पिण्ड अर्थात शरीर में है। सृष्टि रचना के पूर्व, केवल ब्रह्माण्ड अर्थात गोलाकार ब्रह्म था जिसे आधुनिक वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं और उन्होंने इसे ‘ब्लैक होल’ कहा है - कृष्ण मंडल। कल्पान्त में सभी कुछ इस शून्य में, कृष्ण मंडल में, ब्रह्म में समाहित था। ब्रह्म के मन में विचार उत्पन्न हुआ, एकोऽहम् बहुस्याम् - एक हूं अनेक हो जाऊं। उस विचार की प्रतिध्वनि कृष्ण मंडल में गूंजी और वह ब्रह्म के अहम् की ध्वनि अऽउम अर्थात ऊं के ॐ स्वरूप में प्रतिष्ठित हुई। यह ध्वनि थी, शब्द रूप थी इसे नाद ब्रह्म की संज्ञा दी गई।

    शब्द अथवा ध्वनि की उत्पत्ति किन्हीं दो पदार्थों के स्पर्श से ही संभव है। अब जब प्रारंभ में केवल ब्रह्म ही था, प्रकृति पूर्णतः शून्य स्थिति में थी तो फिर स्पर्श कैसा! सर्व साधारण मनुष्यों को समझाने हित ब्रह्म की उपमा आकाश से की गई है। आकाश को प्रकृति के पांच तत्वों में से एक और प्रथम तत्व माना गया है। आकाश अर्थात अवकाश रिक्तता और इसका आकार गोल ही दिखता है। विशाल सागर में जैसे लहरें उत्पन्न होती हैं वैसे ही कुछ आकाश में हुआ होगा। उन आकाशीय तरंगों के एक दूसरे के साथ स्पर्श से ही वह ध्वनि निकली होगी जिसे औउम् के रूप में सुना गया। ये आकाशीय तरंगे जिनके द्वारा नादब्रह्म औउम् प्रसारित हुआ, उन्हें वायु कहा गया जो भारतीय संस्कृति और परम्परा में प्रकृति का द्वितीय तत्व है।

    आगे चलकर आकाश में स्थित वायु के अति संघर्षण से जो ऊण्णता उत्पन्न्न हुई उसे तेज यानी अग्नि कहा गया, इसे प्रकृति के तृतीय तत्व के रूप में गिना गया। इस वायु और अग्नि के मिश्रण से जल की उत्पत्ति हुई, यह प्रकृति का चतुर्थ तत्व हुआ। आधुनिक विज्ञान ने भी जल को वायु (आक्सीजन) और अग्नि (हाइड्रोजिन) का मिश्रण माना है। इस जल तत्व से पांचवें तत्व पृथ्वी की उत्पति हुई। इस प्रकार सृष्टि के मूल में ये पांच तत्व ही हैं जिन्हें पंचमहाभूत कहा गया है।

    प्रकृति का जो मूल स्वरूप ब्रह्माण्ड वह महद्ब्रह्म के नाम से भी जाना जाता है। इसके तीन गुण बताये गए हैं, सत्व, रज और तम। ये तीन गुण प्रकृति के, सृष्टि के प्रत्येक पदार्थ में कम अधिक मात्रा में रहते ही हैं और उस मात्रा के आधार पर उस पदार्थ का स्वभाव निर्धारित होता है। मंच महाभूतों में भी ये गुण हैं। ऐसी मान्यता है कि आकाश तत्व में सत्व गुण ही हैं। अतः वहशान्त, स्थिर, साक्षी स्वरूप है। वायु में सत्व व रज का मिश्रण है। तेज में रजोगुण की प्रबलता है। जल, रज व तम का मिश्रण है तो पृथ्वी में तमोगुण ही प्रमुख है।

    भारतीय परंपरा में पांच तत्वों को मान्यता प्राप्त है जबकि चीन के वास्तुशास्त्र में चार तत्व ही माने गये हैं, आकाश को नहीं माना गया है। वस्तुतः आकाश ही आधार है, प्रकृति का पूरा खेल आकाश में ही होता हे, अतः इसे हम भारतीयों ने प्रमुख तत्व, मूल तत्व माना है।

    प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने, जिन्होंने प्रकृति के, सृष्टि के रहस्य का अनुसंधान किया, उन्होंने सृष्टि की तीन स्थितियां निर्धारित कीं, आदि, मध्य और अंत, उत्पत्ति, स्थिति व लय, जन्म, जीवन, मृत्यु। वैसे तो विभिन्न पंचमहाभूतों के विविध प्रकार के मिश्रणों से स्वयमेव पदार्थ बनते गये परन्तु आगे चलकर ऋषि मुनियों ने उपरोक्त तीन स्थितियों को तीन विभागों का स्वरूप दे दिया और उस व्यवस्था के अंतर्गत उन तीन विभागों के व्यस्थापक अथवा विभागाध्यक्ष बनाये गये - ब्रह्मा, विष्णु, महेश। सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता ब्रह्मा, पालनकर्ता अर्थात जीवन पोषण कर्ता, सम्वर्धन पोषण कर्ता, विष्णु और संहारक, मृत्युदाता को महेश की उपाधि से प्रतिष्ठित किया गया। सृष्टि रचना यानी उत्पत्ति, जन्म जिसमें गति होती है, गति और उसका परिणाम ऊष्णता, ये दोनों रजोगुण के परिणाम हैं, इसलिए ब्रह्मा को रजोगुण का प्रतीक माना गया। जीवन अर्थात स्थिति, स्थापना, अस्तित्व, इसमें सत्वुण की प्रधानता है, अतः पालन पोषण कर्ता, जीवन के अस्तित्व को निर्धारित करने वाले विष्णु को सत्वगुण का प्रतीक माना गया। लय, मृत्यु, अंत अर्थात निष्क्रियता, निश्चेष्टता, यह तमोगुण का परिणाम है, अतः महेश को तमोगुण का प्रतीक माना गया।

    इन तीनों विभागाध्यक्षों के, उन गुणों तथा कार्यानुसार उनके निवासस्थान भी निश्चित किये गये।

    जल ही जीवन है अतः पालनपोषणकर्ता विष्णु को सागर-क्षीरसागर में निवासित किया गया। सूर्य की ऊष्णता से सागर का जल वाष्प बनकर बादलों के रूप में वर्षा द्वारा पृथ्वी पर बरसता है जिससे बनस्पति, धान्यादि उत्पन्न होते हैं जिनसे प्राणियों के शरीर पुष्ट और निरोगी बनते हैं। ब्रह्मा, जन्मदाता जो जलचर, थलचर तथा खेचर तीनों प्रकार के पदार्थों प्राणियों का सृष्टिकर्ता है उसे विष्णु के नाभिकमल पर बिठाया गया, न जल में न थल में और न तो नभ में। और महेश अर्थात महा ईश्वर उसे सबसे ऊंचे शीतल स्थान कैलाश पर बैठाया गया, ये सब प्रतीक स्वरूप। आखिर मानव को कोई तो आधार चाहिए न अपने जनक पालक व संघारक को समझने के लिए।

    इस प्रकार प्रकृति द्वारा प्रचालित ब्रह्माण्ड - सृष्टि की व्यवस्था का साक्षी परब्रह्म परमात्मा इन सम्पूर्ण कार्यभार से निर्लिप्त साक्षी स्वरूप स्वयं में लीन हो गया। ये सिर्फ एक व्याख्या है शीर्षक को सिद्ध करने की मूल रुप व स्थूल रुप के प्रासंगिक अर्थ को विश्लेषित करने की इस प्रकार का विश्लेषण भिन्न भिन्न मत मतान्त के अनुयायियों द्वारा भी किया गया सब कुछ मिला कर शब्द कम बेहतर यही इस्तेमाल हुए या किए गये - द्रव्य व उर्जा को समझने के लिए। उसकी उर्जा को सत्ता को स्थापित, व्याखापित करना इतना आसान नही बस वो है स्वीकार किजिये या न किजिये। वो तब भी [ अनादि काल ] से छलिया था आज भी है और आगे भी रहेगा

    फिल्म जगत में मुकेश जी का गाया एक गाना बहुत मशहुर हुआ - संसार है इक नदिया दुख -सुख दो किनारे हैं न जाने कहाँ जाये हम बह्ते धारे हैं - चलते हुए जीवन की, रफ़्तार में इक लय है इक राग में इक सुर में, सँसार की हर शय है सँसार की हर शय है ...इक ताल पे गर्दिश में, ये चाँद सितारे हैं - अगर ये सब कुछ व्यवस्थित है अनादि काल से अनन्त तक तो ये सब ऐसे ही नही है इसके मूल में - कोई न कोई हैं और वो सिर्फ और सिर्फ वही है सर्वशक्तिमान

    इसी लिए तो कहा है राम राम कहियो - ध्यान में ही रहियो

    सत्य संस्मरण - मेरे जीवन से जुड़े घटनाक्रम

    लेखक डा. अरुण कुमार शास्त्री -

    आदाब अर्ज है

    "बेचैनियां जब आती है कलम उठती है लिखने को।।

    लोग कहते हैं तुमने आदत बना ली है, बहाना है न मिलने को"।।

    बचपन बहुत असहाय था, जवानी गुजरी रोटी रोजी जुटाने को।।

    अब ढलती उम्र है मेरी फ़क़त, ता उम्र की कहानी सुनाने को।।

    मात्र 3 साल की उम्र मे पिता से दीक्षा व नाम प्राप्त कर गुरु शिष्य परम्परा अनुसार अध्ययन व सामाजिक, शस्त्र व शास्त्र एवं वेद ज्ञान प्राप्त कर यज्ञ के विधि विधान से लभ्य होकर ज्ञान सीखा, तत्पश्चात 6 वर्ष की आयु में लौकिक शिक्षा हेतु उस समय उपलब्ध एक मात्र स्कूल इंग्लिश मीडीयम मालिक मॉडर्न पब्लिक मिडिल स्कूल में परीक्षा देकर सीधा कक्षा 3 में अपनी बड़ी बहन व छोटे भाई के साथ जो कि क्रमश कक्षा 5 व कक्षा 1 में सीधा लिए गये, प्रवेश प्राप्त किया।

    वहाँ से प्राइमेरी अर्थात कक्षा 4 तक शिक्षा प्राप्त कर (स्कूल के हेड मास्टेर साहिब जिनका नाम मालिक साहिब था और उन्ही के नाम से स्कूल चलता था। उनका देहावसान हुआ, मजबूरी में उनकी बेटी ने स्कूल चलाने की कोशिश की लेकिन उनके अनुसार प्रबंधन न हो सका अतः स्कूल को बेच कर गंभीर माडल पब्लिक स्कूल के साथ जोड़ दिया गया उसके प्रिंसिपल व मेनेजर श्री राम लाल गंभीर जी थे। इस बीच मुझे स्प्रिंग डेल मॉडर्न पब्लिक प्राईमरी स्कूल में भेजा गया वहाँ से 5 तक शिक्षा हुइ फिर कक्षा 6 से गंभीर माडल पब्लिक स्कूल कहने का अर्थ ये है बहुत कठिन परिस्थितयों में आपकी पढाई शुरु हुइ, आठ्वी कक्षा के मध्य में फिर पढाई छोड्नी पडी।

    ​कहने का ये अर्थ रहा मेट्रिक स्कूल शिक्षा तक इनका ४ बार स्कूल बदला गया जिसके चलते शिक्षा में 5 बार रुकावट आई। तब तक सभी विषय थे ३ भाषाएं गणित साइन्स आदि आदि - घर की परिस्थिति के चलते स्वयं खर्च न मिल पाने के कारण मात्र १२ साल की ऊम्र से टाइपिंग की दुकान पर काम किया साथ् काम सीखा भी। तब मात्र ५ रुपये प्रतिदिन पर काम किया। साथ् के को-आप -रेटिव बैंक में बाल-अकाउन्ट खुलवाया तथा तभी से पेसे जोड़ना व खर्च करने का समीकरण सीखा।

    उसके बाद प्री युनिव्र्सिटी- प्री मेडिकल में पी सी बी - अर्थात फिजिक्स केमिस्ट्री बायो लोजी (बोटनी एवं जूलोजी) लेकिन उसमे एडद्मिशन तब मिला जब बायो टेस्ट क्लीयर कर लिया ये विषय जीवन में पहली बार पढा। कक्षा आठ से लेकर बाद के सभी मतलब सभी खर्च स्वयं के पैसे से किए।

    प्री मेडिकल में उचित प्रतिशत न आ पाने के कारण मेडिकल में प्रवेश न मिला हताश हो कर मात्र १६ वर्ष की ऊम्र में मन संसार से विरक्ति हो गया वही विचार मन में घर कर गये, तदनुसार माता पिता को सूचित कर चुपचाप सिर्फ एक झोले में एक जोडी वस्त्र व जो कुछ जमा पूंजी पास थी लेकर घर त्याग दिया व अनन्त की यात्रा हेतु सन्यास की इच्छा से निकाल पडे। 6 माह में साधु टोले के साथ घूमते - घूमते करीब ३० शहर व १० प्रान्त पार कर रक्सोल के रास्ते पैदल बीरगंज, नेपाल में प्रवेश कर गये व काठमाडौँ में एक मित्र के होटेल में वेटर का कार्य किया व वाकी समय साधुओं के साथ् व्यतीत किया - फिर एक दिन एक अन्य मित्र जो की अपनी बस द्वारा नेपाल दर्शन कराया करते थे झूठे ही [ माता की सीरियस बिमारी ] का बोल मुझे अपनी बस में बिठा कर बापिस घर ले आया। तब पिता ने अपने साथ अपने क्लिनिक जो की मेरे नाम से चलाया हुआ था पर लगा दिया व मुझे प्रति दिन १५ रुपये देने लगे।

    फिर उनकी कन्सल्टेशन से स्थापित नये आयुर्वेदिक मेडिकल कोलेज में दाखिल करा दिया - और मैं सन्यासी बनता बनता चिकित्सक बन गया।

    5-1/2 साल बाद अर्थात साढे सोलेह जमा 5-1/2 साल अर्थात 22 साल में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धती में स्नातक की डिग्री प्राप्त कर दिल्ली से रजिस्ट्रेशन कराया और पिता ने उसी के बाद बोर्ड पर अपने नाम के स्थान पर मेरा नाम अर्थात् डा. अरुण कुमार शास्त्री लिखवा दिया और मुझे द्रड़ता से सामाजिक बन्धन में बाँध लिया। बोले अब तू सम्भाल मुझे एक अन्य जगह प्रिन्सिपल व कन्सल्टेन्ट का पदभार मिला मैं अब शहर से दूर अन्यत्र तेरी माँ व बहन के साथ् स्टाफ फ्लेटेस में रहूँगा - हाँ हफ्ते के हफ्ते आता रहूँगा तेरी खबर लेने।

    मैने तन्मयता से कार्य किया पूरे 20 कि. मी के क्षेत्र में ५००० परिवार मेरे फेमिली डाक्टर डाटा बेस से जुड़े हुए थे, नतीजतन कोई भी अन्य चिकित्सक किसी भी क्षेत्र की डिग्री का हो स्पेशिलिटि का हो कितना भी बढिया किलिनिक हो दो महिने से ज्यादा नही टिका। मेरा मूल मन्त्र था - सोम्य्ता -शुद्धता - नम्रता - और मात्र १० रुपये के अपनी चिकित्सक परामर्श के फीस पर।

    दूसरा मात्र 1 कि . मी. पर मेडिकल कालेज व होस्पिटल एंड ४ कि . मी. पर सिविल होस्पिटल। कहानी मेरे जीवन की अभी तो शुरु हुइ है। बीच के कुछ साल छोड कर मैं साल २८ के शुरुआत की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना से आप को रुबरु कराता हुँ।

    एक दिन दोपेहर को मैं और पिता जी किलिनिक टाइम समाप्त होने पर केसेज के वारे में चर्चा कर रहे थे तथा नई - मेडिसिन खरीद की लिस्ट बना रहे थे किलिनिक का शटर हाफ डाउन था गर्मी का समय था कि दो कन्याओं ने मेरे नाम से आवाज देकर पुछा क्या हम अन्दर आ जाएँ - मैने जबाब दिया आप 2 घन्टे बाद शाम को आएँ तो बेहतर हैं - उन्होने जबाब दिया हम युनिवेर्सिटी से आए हैं साइकल चला कर - आप अभी देख लें तो कृपया - मैने शटर उठा दिया उनको अन्दर आने दिया - पिता को व मुझे प्रणाम कर उन्होने अपनी मुश्किल वयान की। मैं नोट्स लेता गया और पिता जी सुनते रहे।

    तब उन्होने मतलब उनमें से एक लड्की जो लोकल थी मैं उसे जानता था। वो हमारी पुराने रुग्ण परिवार से थी, बोली मेरी फ्रेन्ड मेरे कहे अनुसार आपके भरोसे आई है - इनको सभी तरह का इलाज करा चुके हैं मैने इनको आश्वासन दिया है कि ये तुझे पूरी तरह से व रोग को जड से ठीक कर देंगे। क्या ऐसा आश्वासन आप हमें दे सकते हैं। मैं कुछ नही बोला पिता जी बोले, ऐसा आश्वासन तो मात्र प्रभु दे सकते हैं बेटी, लेकिन हम अपनी समझ से सिर्फ कोशिश कर सकते हैं हाँ अपने सम्पूर्ण चिकित्सा अभ्यास अनुभव से - तो दूसरी लड्की जो की काफी समझदार थी कम बोलती थी और फिजिक्स में पी एच डी में नुक्लियर रिसर्च की शोध छात्रा थी वो पन्जाब से जी एन डी यु से फिजिक्स एम एस सी आनर्स में टोपर थी उसके अनुसार उसके गाइड, एवं हेड आफ डिपार्ट मेन्ट ने भी हमारा अनुमोदन किया था कि वहा से तुम्हें अवश्य ठीक इलाज मिलेगा और आराम आएगा - यहाँ उसका रोग कुछ ऐसा था जो जीवन भर के लिए रह्ता है और उससे मात्र लक्षनात्मक लाभ तो होता है छुटकारा नही।

    ​उसने कुछ सोच कर हमसे चिकित्सा लेना स्वीकार कर लिया बोली मेरे गाइड, हेड, व सहेली ये जब आपका नाम रेकेमेंड किये हैं तो मुझे विश्वास हैं की मुझे आपसे आराम आएगा - मैं बोला यही विश्वास प्रभु के नाम पर हम आपको दे सकते हैं बस - ये सुन कर वो मुस्कुरा पडी लेकिन आँखो में उसके आँसु थे - बोली १३ साल की ऊम्र से मुझे ये तक्लीफ़ हैं कोई दिन ऐसा नही गया जब मुझे टेम्प्रेचर न हो और जोइंट्स में दर्द न हो - मैं बोला हम आपकी पीड़ा समझते हैं- आशा करते हैं कि हम उसमें कुछ आराम दे पाएँ। वो रोने लगी - माहोल उदास हो गया उसकी सखी की भी आँखे भर आई, मेरे पिता ने उसके सर पर हाँथ रख उसको आश्वासन दिया और बोले जिस ईश्वर ने ये शरीर दिया हैं यहाँ तक की राह दिखाई है उसका कुछ तो प्रयोजन होगा, बेटी शान्त हो जा, प्रभु सब ठीक करेंगे, तो ऐसा सुन कर उसने अपने आसुँ पौन्छे और वो शान्त हो गई। फिर से मुस्कुराने लगी।

    तब मुझे किन्चिद भी आभास नही था वो मेरी भावी जीवन संगिनी के रुप में प्रभु के आदेश से अमृतसर से आई है

    अनुक्रमणिका

    ललिता कश्यप

    1) हिमाचल प्रदेश की नदी व्यास

    2) नारी सम्मान

    3) भारत का प्राचीन इतिहास

    4) श्रृंगार

    5) महात्मा बुध

    6) उत्तराखंड और हिमाचल का नाम क्या था आज से ढाई हजार साल पहले

    7) स्त्री पुरुष की जातियों के प्रकार व उनके स्वभाव

    8) कठपौल

    9) नारियों को अपने अधिकारों का

    शीला सिंह

    1) लघुकथा - रहस्य

    2) घर-घर में निराश बागवा

    3) कहानी - ईश्वर के निर्णय में ही संतुष्टि है

    4) लघु कथा - सब्र का फल मीठा

    डॉ. अनेक राम सांख्यान

    1) हिंदुदर्शन व धर्म और विज्ञान में समन्वय

    डॉ रवींद्र कुमार ठाकुर - राष्टीय पुरुस्कार सम्मानित

    1) देश की एकता व अखण्डता वोट बैंक से ज्यादा जरूरी मूल मुद्दे

    2) राजनैतिक उपेक्षा का शिकार हिमाचल का दिल

    3) आलेख/निबन्ध - सन 1971 से हिमाचल में शिक्षा का बदलता स्वरूप

    4) महान स्वतंत्रता सेनानी यशपाल के उपन्यासों में सामाजिकता एवं देश भक्ति

    डा. हेमा देवी ठाकुर

    1) लघु कथा - साहसी हिना

    2) लघुकथा - रिश्तों को समेटती दूरदर्शी सोच

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