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Acharyakulam ved vani rahashya. By Dr. Mahavir

Acharyakulam ved vani rahashya. By Dr. Mahavir

Fromश्रीमद भागवद पुराण


Acharyakulam ved vani rahashya. By Dr. Mahavir

Fromश्रीमद भागवद पुराण

ratings:
Length:
46 minutes
Released:
Dec 22, 2020
Format:
Podcast episode

Description

श्रीमद भागवद  पुराण * दसवां अध्याय* [स्कंध २]



(श्री शुकदेवजी द्वारा भागवतारम्भ)


दोहा-किये परीक्षत प्रश्न जो उत्तर शुक दिये ताय ।



सो दसवें अध्याय में बरयों गाथा गाय ।।

।।स्कंध २ का आखिरी अध्याय।।


हरि देह निर्माण 



श्री शुकदेवजी बोले-हे परीक्षत! इस महापुराण श्रीद्भागवत में दश लक्षण हैं सो इस प्रकार कहे हैं-सर्ग, विसर्ग, स्थान, पोषण, अति, मन्वन्तर, ईशानु कथा, निरोध, मुक्ति, और आश्रय।

अब सर्गादिकों के प्रत्येक का लक्षण कहते हैं-हे राजन् ! पृथ्वी, जल, वायु आकाश में पंच महाभूत और शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध ये पाँच पंचन्मात्रा तथा नाक, कान, जिभ्या, त्वचा, नेत्र


यह पांच ज्ञानेन्द्रिय और चरण, हाथ, वाणी, लिङ्ग, गुदा ये पाँच कर्मेन्द्रिय तथा अहंकार महा तत्व इन सब गुणों के परिणाम से अर्थात विराट भगवान द्वारा (से) उत्पन्न जो मूल सृष्टि है उसे स्वर्ग कहते हैं। और जो स्थावर जंगम रूप बृह्माजी से हुई उसे विसर्ग कहते हैं। ईश्वर द्वारा रचित मर्यादाओं का पालन करना स्थान कहलाता है। अपने भक्त पर की जाने वाली अनुग्रह को पोष्णा कहते हैं। मन्वन्तर श्रेष्ठ धर्म को कहते है, अति कर्म वासना को कहते हैं, ईशानु कथा ईश्वर के अवतारों, चरित्रों और
अनेक आख्यानों से बढ़ी हुई भगवद्भक्तों की कथाओं को कहते हैं।


निरोध उसे कहते हैं जिससे जीवात्मा की उपाधियों करके हरि की योग निद्रा के पीछे हरि भगवान में लय हो जाये। और अन्यथा रूप को त्याग कर अपने स्वरूप में स्थित होने को मुक्ति कहते हैं। जिससे इस जगत की उत्पत्ति पालन तथा संहार होता है उसे परमात्मा श्री हरि कहते हैं। उसी का नाम आश्रय कहते हैं। हे राजन् ! इस दशवी कथा को समझने के हेतु ही ये अन्य नौ कथायें हैं जो यह अध्यात्मिक पुरुष है वही आधि दैविक है
और जो इन दोनों में बँटा हुआ है वह आधि भौतिक है इन तीनों की परस्पर सापेक्ष्य सिद्धि है यह एक के अभाव में एक को प्राप्त नहीं होते हैं। अब सृष्टि प्रकार कहते हैं-जिस समय अण्ड को भेदन करके विराट पुरुष निकले उस समय उन्हें अपने लिये निवास की इच्छा प्रकट हुई। ईश्वर स्वयं पवित्र है इस कारण उसने अपने लिये पवित्र जल की रचना की उन्होंने तब उस अपने द्वारा निर्मित जल में सहस्र वर्ष पर्यन्त निवास किया इसी
कारण विराट पुरुष का नाम नारायण पड़ा। हजार साल निवास करने के पश्चात श्री नारायण ने आप अपने अनेक रूप होने को इच्छा प्रगट को तब माया ने हिरन्य मय बीज के तीन भाग किये जो आधिदेव, अध्यात्म और अधिभूत हुये तब नारायण के अतः करण में होने वाले आकाश से ओम सहित वल उत्पन्न हुआ तत्पश्चात सूक्षात्मा नामक मुख्य प्राण उत्पन्न हुआ फिर सबको चलाने वाले प्राण से विराट प्रभु को भूख प्यस उत्पन्न हुई और
यह मुख उत्पन्न हुआ, मुख से तालु हुआ, उसमे जिव्हा उत्पन्न हुई। फिर ऐसे अनेक रस उत्पन्न हुये जो जिव्हा से जाने जाते हैं। फिर बोलने की इच्छा हुई तब अग्निदेव वाली वाणी प्राप्त जिससे सुन्दर शब्द उत्पन्न हुआ परन्तु बहुत काल तक जल में बचन की रुकावट हुई। जब भीतर प्राण वायु धुकधुकाने लगी तो नासिका बनी फिर वायु, सुगन्ध, घाणोन्द्रिय सूघने के लिये उत्पन्न हुई। जब देखने की इच्छा तीब्र हुई तब दो नेत्र उत्पन्न हुये फिर जब श्रवण करने की इच्छा हुई तो दो कान उत्पन्न हुये जब वस्तुओं की कोमलता, हल्कापन, भारापन जानने को इच्छा हुई तो त्वचा उत्पन्न हुई। जिससे रोम आदि प्रगट हुये। फिर अनेक कर्मों के करने को तथा उठाने धरने की इच्छा हुई तब दो हाथ उत्पन्न हुये। फिर जब चलने की इच्छा हुई तो दो चरण ऊत्पन्न हुये। फिर स्वर्ग आदि को इच्छा हुई तो काम
प्रिय लिङ्ग उत्पन्न हुआ, फिर जब भोजनोपरान्त मल त्याग करने को इच्छा हुई तो तब गुदा उत्पन्न हुई। जब भगवान विराट रूप ने अपनी देह को त्याग दूसरी देह धारण करने को इच्छा प्रकट की तो नाभि उत्पन्न हुई, जब अन्न जल ग्रहण करने की इच्छा हुई तब कोख आँत इत्यादि बनी, जब अपनी माया को चिन्त वन करने को इच्छा हुई तो तब हृदय बना उस हृदय में मन आदि अभिलाषा संकल्प आदि का सृजन हुआ। और त्वचा, चर्म,
माँस, रुधिर, मेद, मज्जा, अस्थि ये सात धातु उत्पन्न हुई। हे राजन ! यह भगवान विराट का तुम्हारे सामने हमने स्थूल शरीर कहा जो पृथ्वी आदि आवरणों से लपेटा हुआ है। भगवान का रूप इससे परे अति सूक्ष्म, अव्यक्त विशेषण रहित आदि मध्य अन्त रहित, नित्य वाणी और मन से परे ऐसा भगवान का सूक्ष्म रूप है। सो हे राजा परीक्षत ! हमने तुमसे भगवान के स्थल और सक्ष्म दोनों स्वरूप कहे।


॥ इति श्रीमद्भागवत कथा द्वितीय स्कंध समाप्तम ।।

https://shrimadbhagwatpuranpdf.blogspot.com/
Released:
Dec 22, 2020
Format:
Podcast episode