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संपूर्ण गीता
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Ebook329 pages1 hour

संपूर्ण गीता

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गीता के प्रत्येक श्लोक का सरल हिंदी दोहे में काव्य रूपांतरण। इस पुस्तक में संस्कृत के श्लोकों को हिंदी के दोहों के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

Languageहिन्दी
Release dateDec 23, 2021
ISBN9789391470562
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    संपूर्ण गीता - Ravi Prakash

    संपूर्ण गीता

    रवि प्रकाश के 700 दोहे

    Shape Description automatically generated with low confidence

    Published by:

    Sahityapedia Publishing

    Noida, India – 201301

    www.sahityapedia.com

    Contact - +91-9618066119, publish@sahityapedia.com

    Title: Sampurn Gita

    Author: Ravi Prakash

    Copyright © 2021 Ravi Prakash

    All Rights Reserved

    First Edition - 2021

    Format - Ebook

    ISBN - 978-93-91470-56-2

    This book is published in its present form after taking consent from the author & all reasonable efforts have been made to ensure that the content in this book is error-free. No part of this book may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electrical, mechanical, photocopying, recording or otherwise) without the prior written permission of the author.

    The publisher of this book is not responsible and liable for its content including but not limited to the statements, information, views, opinions, representations, descriptions, examples and references. The Content of this book, in no way, represents the opinion or views of the Publisher. The Publisher do not endorse the content of this book or guarantee the completeness and accuracy of the content of this book and do not make any representations or warranties of any kind. The Publisher do not assume and hereby disclaim anyliability to any party for anyloss, damage, or disruption caused by errors or omissions in this book, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause.

    पाठकों से दो शब्द

    दिसंबर 1956 में दीनानाथ दिनेश जी सुंदर लाल इंटर कालेज में पहली बार सुंदरलाल जी की बरसी के अवसर पर पधारे थे। 1958 में जब टैगोर शिशु निकेतन खुल गया तब दिनेश जी के प्रवचन वहाँ होने लगे। 1971 में राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय के शिलान्यास तथा 1972 में उद्घाटन के समय टैगोर शिशु निकेतन के प्रांगण में दिनेश जी के रामपुर में अंतिम प्रवचन हुए।

    मेरा जन्म 4 अक्टूबर 1960 को हुआ था। कब, किस की गोद में बैठ कर मैंने दिनेश जी के प्रवचनों को सुनना शुरू किया, कुछ भी याद नहीं है। 1974 में जब दिनेश जी की मृत्यु हुई, तब पचासियों बार उनके अंतिम प्रवचन का कैसेट पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ सुनते थे। सुनता तो मैं भी था लेकिन समझ में तब आया जब 2007 में ध्यान लगाना शुरू किया। उसके बाद सामवेद के मंत्र भी समझ में आए और दिनेश जी का यह कथन भी समझ में आ सका कि भगवान साधन-साध्य नहीं हैं, भगवान कृपासाध्य हैं और उनकी कृपा हमें मिल जाए तो हम उन्हें प्राप्त कर सकते हैं और अगर उनकी कृपा नहीं मिली तो हम उन्हें प्राप्त नहीं कर सकते।

    1974 के बाद ‘‘श्री हरि गीता‘‘ का पाठ जन्माष्टमी के दिन अनेक वर्षों तक टैगोर शिशु निकेतन में होता रहा। फिर उसके बाद घर पर पिताजी ने यह पाठ करने की परंपरा डाल दी। इस प्रकार संपूर्ण गीता का साक्षात्कार वर्ष में एक दिन पूर्ण रीति से हो जाता था।

    समय अपने आप में सबसे बड़ा गुरु होता है। वह हमारी समझ को स्वयं परिपक्व कर देता है। 1988 में ‘‘गीता विचार‘‘ मैंने लिखी थी, जिसमें गीता के प्रत्येक अध्याय का विश्लेषण था। लेकिन जब मैं साठ वर्ष की आयु में अक्टूबर 2020 को गीता के सात सौ दोहे लिख रहा था, तब मुझे न तो अपने विचार व्यक्त करने थे और न गीता के विचारों की व्याख्या करनी थी।

    मैं दिनेश जी की ‘‘श्री हरि गीता‘‘ और डॉक्टर राधाकृष्णन का ‘‘गीता पर भाष्य‘‘-प्रमुखता से यह दोनों पढ़ चुका था। विनोबा भावे के ‘‘गीता प्रवचन‘‘ और गाँधीजी के गीता पर ‘‘अनासक्ति योग‘‘ पुस्तकें युवावस्था में ही बहुत पहले मैंने पढ़ रखी थीं।

    इस बार मेरे सामने चुनौती केवल यही थी कि गीता में जो कहा गया है, मैं उसे दोहों के रूप में ज्यों का त्यों व्यक्त कर दूँ। इसी कार्य में मेरी कुशलता थी। यही मेरी सीमाएँ थीं। इन सात सौ दोहों में गीता के संबंध में मेरी तरफ से कुछ भी न तो बढ़ाया गया है, और न घटाया गया है। यद्यपि जो लोग गीता पर शोध करना चाहते हैं, उन्हें तो मूल संस्कृत को पढ़कर ही संतोष मिल सकेगा। मेरे दोहे तो केवल गीता पर किया गया मेरा परिश्रम मात्र है। यह आपके कितने काम आएगा, यह तो पढ़कर आप ही बता सकेंगे। अंत में अत्यंत विनम्रता के साथ मैं संपूर्ण गीता के सात सौ दोहे आपको अर्पित कर रहा हूँ।

    गीता से मेरे परिचय का मुख्य आधार दीनानाथ दिनेश जी से भाग्यवश प्राप्त हुई निकटता ही है। 1972 तक प्रतिवर्ष मैंने उनके दर्शन किए तथा उनकी अद्वितीय मधुर आवाज में उनके प्रवचन सुने। 1974 में मृत्यु से कुछ दिन पहले पिताजी के साथ दिल्ली जाकर उनके निवास पर अचेतावस्था में उनके दर्शन हुए थे। उनका आभार व्यक्त करने के लिए तो मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। ‘‘श्री हरि गीता‘‘ जैसा सुमधुर काव्य होते हुए भी यह सात सौ दोहे मैंने क्यों लिख दिए, इसका कारण भी मेरी समझ में नहीं आ रहा है। प्रभु की ऐसी ही इच्छा रही होगी।

    रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ

    बाजार सर्राफा, रामपुर

    (उत्तर प्रदेश) 244901

    मोबाइल 9997615451

    Email: raviprakashsarraf@gmail.com

    दिनांकः 30 अप्रैल 2021

    गीता - आरती

    आरती श्री दुख - भंजन की

    सुदर्शन गीता - दर्शन की

    (1)

    युद्ध में अर्जुन को भ्रम था

    टूटता - सा जीवन-क्रम था

    निरर्थक जाता सब श्रम था

    राह दिखलाई जीवन की

    आरती श्री दुख - भंजन की

    सुदर्शन गीता - दर्शन की

    (2)

    देह है आत्मा का चोला

    मर्म जीवन का यह खोला

    पुनर्जन्मों का सच तोला

    साख है बस सुंदर मन की

    आरती श्री दुख - भंजन की

    सुदर्शन गीता - दर्शन की

    (3)

    ध्यान में प्रभु को पा जाते

    न तेरा - मेरा कुछ लाते

    विश्व छवि उसकी ही पाते

    मँजूषा यह अक्षय धन की

    आरती श्री दुख - भंजन की

    सुदर्शन गीता - दर्शन की

    (4)

    कर्म की गति पाई गहरी

    त्याग जीवन का शुभ प्रहरी

    मुक्ति निर्मलता में ठहरी

    समस्या हल यह जन-जन की

    आरती श्री दुख - भंजन की

    सुदर्शन गीता - दर्शन की

    गीता का ज्ञान - कुंडलियाँ

    (1)

    गीता सुनकर हो गया, अर्जुन का उद्धार

    असमंजस जाता रहा, दुविधा भरा विचार

    दुविधा भरा विचार, धनुष की डोरी तानी

    दुर्योधन की और, सहन अब कब मनमानी

    कहते रवि कविराय, युद्ध फिर सच ने जीता

    धन्य धन्य श्री कृष्ण, श्रेय सब तुमको गीता

    (2)

    गीता सिखलाती हमें, सही कर्म की राह

    उसको मिलती राह है, जिसके मन में चाह

    जिसके मन में चाह, झुका जो मस्तक आता

    भरा शिष्य का भाव, ज्ञान गुरु से फिर पाता

    कहते रवि कविराय, सरस अमृत जो पीता

    हो जाता कल्याण, धैर्य से सुनता गीता

    (3)

    गीता कहती युद्ध कर, अर्जुन कर संग्राम

    रण से डर कर भागना, कायरता का काम

    कायरता का काम, मित्रता सच की सीखो

    जब भी दीखो बंधु, पक्ष में सच के दीखो

    कहते रवि कविराय, युद्धरत है जो जीता

    वही

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