कहते रवि कविराय (रवि प्रकाश की 260 कुंडलियाँ)
By Ravi Prakash
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कहते रवि कविराय (रवि प्रकाश की 260 कुंडलियाँ) - सरल, सरस और विचारशील सुंदर कुंडलियाँ- संग्रह
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कहते रवि कविराय (रवि प्रकाश की 260 कुंडलियाँ) - Ravi Prakash
कहते रवि कविराय
(रवि प्रकाश की 260 कुंडलियाँ)
रवि प्रकाश
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Title: Kehetey Ravi Kaviraye (Ravi Prakash ki 260 Kundaliyaan)
Author: Ravi Prakash
Copyright © 2021 Ravi Prakash
All Rights Reserved
First Edition - 2021
Format- Ebook
ISBN - 978-93-91470-09-8
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कुंडलिया : दो शब्द
दोहे की दो पंक्तियाँ, रोले की हैं चार
कुंडलिया इन से बनी, सुंदर गोलाकार
सुंदर गोलाकार, शब्द जो है शुरुआती
यात्रा करके पूर्ण, ठीक उस पर आ जाती
कहते रवि कविराय, चोट इसकी लोहे की
इसमें है विस्तार, बात जो है दोहे की
कुंडलिया हिंदी काव्य की एक पुरानी और सुंदर विधा है। इसमें सहजता से कवि अपनी बात पाठक तक पहुंचाता है। पाठक को भी बात समझने में कोई भ्रम नहीं रहता। सीधी-सादी, सरल भाषा का प्रयोग कुंडलिया में किया जाता है। बोलचाल के शब्द बहुतायत से प्रयोग में लाए जाते हैं। जितनी सरल भाषा होगी, उतनी ही कुंडलिया पाठक के हृदय को स्पर्श करेगी।
कुंडलिया में मुख्य विशेषता यह है कि जिस शब्द से कुंडलिया की शुरुआत होती है उसी शब्द से कुंडलिया की समाप्ति की जाती है। इस तरह यह एक ऐसा गोल चक्कर है जिसमें एक स्थान से यात्रा शुरू करके चक्र पूरा करने के उपरांत वहीं पर कवि को पहुंचना होता है। कवि सधी हुई शैली में अपनी बात कहता है। उसे ताना-बाना बुनने का अच्छा अभ्यास होना आवश्यक है, क्योंकि तभी तो जिस शब्द से शुरुआत है उस शब्द पर पहुंचा जाएगा।
कुंडलिया की शुरुआत में एक दोहा होता है जिसमें दो पंक्तियाँ होती हैं। तदुपरांत चार पंक्तियों में रोला लिखा जाता है। विशेषता यह भी है कि दोहे के अंतिम चरण की ही पुनरावृति रोले के प्रथम चरण में की जाती है। दोहा बहु-प्रचलित काव्य विधा है। रहीम, बिहारी आदि ने बड़ी संख्या में दोहे लिखे हैं। दोहे का शिल्प यह रहता है कि इस में प्रथम पंक्ति और द्वितीय पंक्ति दोनों में 24 - 24 मात्राएं होती हैं। तेरह मात्राओं के बाद यति अथवा अर्ध-विराम आता है। उसके बाद अगले चरण में 11 मात्राएं रहती हैं।
कुंडलिया का आरंभ दो गुरु अथवा एक गुरु दो लघु या चार लघु मात्रा भार से किया जाता है। दोहे की पंक्ति का अंत गुरु लघु से होता है। विषम चरण में 3 मात्राएं यति से पूर्व होनी चाहिए। रोले में बस दोहे का क्रम बदल जाता है। मात्राएं 13 - 11 के स्थान पर 11 - 13 हो जाती हैं। बाकी सब वैसा ही रहता है। दोहे में जहाँ विषम चरण में यति से पूर्व 3 मात्राएं आवश्यक हैं, वहीं रोले में विषम चरण के उपरांत सम चरण की शुरुआत 3 मात्राओं से की जाती है। ऐसा न होने पर त्रिकल - दोष माना जाता है। वास्तव में कुंडलिया के नियम तो काव्य में सौंदर्य तथा लयात्मकता उत्पन्न करने के लिए ही बनाए जाते हैं। कुंडलिया लेखन केवल नियमों की पूर्ति करके तकनीकी तौर पर खानापूरी करने का नाम नहीं है। धाराप्रवाह लयात्मकता के साथ कुंडलिया की रचना से काव्य में प्राण फूट पड़ते हैं।
अब आइए उपरोक्त कुंडलिया के आधार पर ही कुंडलिया के नियमों की पुष्टि कर ली जाए। हमारी कुंडलियां दोहे की शब्दावली से आरंभ हुई है। अंत में भी दोहे की शब्दावली प्रयोग में लाई गई है। दोहे की इस शब्दावली में तीन गुरु मात्रा भार है। कुंडलिया के प्रथम चरण में यति से पूर्व त्रिकल है अर्थात 3 मात्राएं आ रही हैं। पहली पंक्ति के द्वितीय चरण का अंत गुरु लघु चार शब्द से हो रहा है। त्रिकल तीसरे चरण के बनी शब्द में देखने को मिलता है। गोलाकार में अंतिम मात्रा-भार एक गुरु एक लघु है। सुंदर गोलाकार इस चौथे चरण से दोहे का अंत हो रहा है। इसकी पुनरावृति पांचवें चरण में रोले के आरंभ से हो रही है। कुंडलिया के पांचवें, सातवें, नौवें तथा ग्यारहवें चरण में यति से पूर्व एक गुरु एक लघु मात्रा भार है अर्थात कार, पूर्ण, राय, तार आ रहा है। कुंडलिया के छठे, आठवें, दसवें और बारहवें चरण का आरंभ क्रमशः शब्द, ठीक, चोट और बात से हो रहा है इन तीनों में 3 - 3 मात्राएं हैं। त्रिकल दोष कहीं नहीं है।
गिरिधर जी को कुंडलिया काव्य का पितामह कहा जाता है। ज्यादातर पाठकों ने कोर्स में कह गिरिधर कविराय
टेक के साथ कुंडलियाँ पढ़ी होंगी। यही उनका कुंडलियों से निकट का परिचय रहा भी होगा।
मुझे कुंडलिया छंद ने आकृष्ट किया क्योंकि इसमें सामाजिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक, उपदेशात्मक तथा सरल - सरस हास्य व्यंग्य, तात्पर्य यह है कि