मेरी डायरी- रिश्ते मोती हो गए
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इस डायरी (पुस्तक) में रचनाकार की बातें कविताओं के रूप में लिखी गई हैं, ये कविताएंँ, संयुक्त परिवार के विखंडन के द्वार पर खड़े इस युग में- भारतीय संस्कृति और परंपराओं के पुनर्स्थापन, पारिवारिक रिश्तों की प्रगाढ़ता, उष्णता, आत्मीयता एवं इनसे उपजे विश्वास, आश्वस्ति, सुरक्षा भाव, सुख-शांति और आनंद की ओर ले जातीं हैं तथा रिश्तों की अहमियत का भरपूर एहसास भी करातीं हैं, वहीं भावुक हृदयों को बार-बार भिगो भी जातीं हैं।
इस पुस्तक की कविताएँ एक ओर समाज में व्याप्त विकृतियों की ओर संकेत करतीं हैं, तो वहीं दूसरी ओर "जीवन कैसा हो? " यह बतातीं हैं।
यह पुस्तक जिंदगी के चारों सोपानों से परिचय कराते हुए पुनर्जन्म, दर्शन, अध्यात्म, और मोक्ष तक की अभिधारणाओं को स्पर्श करती है। पढ़ते हुए पाठक स्वयं भी वही अनुभूति करने लगता है।
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मेरी डायरी- रिश्ते मोती हो गए - Indu Parashar
समर्पण
जीवन के पृष्ठों पर जाने,
कितने कथा-काव्य लिक्खे हैं।
कुछ खट्टे, मीठे, कुछ तीखे,
मोती सीप हृदय रक्खे हैं।
कुछ में कटुक-नीम का रस है,
कुछ में सागर-नमक-लुनाई।
स्वाद कसैला रुधिर सरीखा,
ऐसा ही जीवन है भाई।
इन स्वादों का ही जीवन में,
बार-बार प्रत्यार्पण होता।
इनके हाथों कठपुतली सा,
मानव मन हँसता और रोता।
इन सारे पावन रिश्तों को,
भावों की सौगात समर्पित।
सब की हृदय वंदना पुनि-पुनि,
तन, मन, धन जीवन यह अर्पित।
* * *
शुभकामना संदेश
अपनी बात
समुंदर में गिरा पानी तो, खारा ही तो होगा वह।
नयन से जो टपक जाए, तो ज़ाया ही तो होगा वह।
गिरें जलबिंदु सीपों में, तो मोती वे बनाते हैं।
हृदय की सीप में रिश्ते, चमक मोती सी पाते हैं।
हर जीवन अपने स्वयं के एवं अपने आसपास के अनुभवों से समृद्ध होता है, रचनाकार अक्सर अपनी रचनाएं उत्तम पुरुष अर्थात मैं और हम को ही माध्यम बनाकर रचते हैं, इसका मतलब यह कतई नहीं कि रचनाकार सिर्फ अपनी कथा कह रहा होता है, वह तो उस प्रिज्म की तरह है जो आने वाली किरणों को अपने हिसाब से थोड़ा-थोड़ा सा मोड़ कर इंद्रधनुषी सतरंगा रूप दे देता है। इसीलिए रचनाकार का पाठकों से हमेशा यह अनुरोध होता है कि हर रचना में उसको न ढूंढें।
कुछ अपने अनुभव कुछ समाज में देखे हुए दृश्य, चित्र, हमेशा मन को बड़ी गहराई से प्रभावित करते रहे और उन्हीं भावों की विविध बहुरंगी अभिव्यक्ति पन्नों पर एक डायरी की तरह, समय-समय पर दर्ज़ होती रही, कई पन्ने फट कर बिखर गए, कुछ के विषय इस पुस्तक में उपयोग होने योग्य न लगे, उन पन्नों को छोड़ दिया, कुछ चुने हुए पन्नों को विषय वस्तु की प्रासंगिकता, कुछ क्रमबद्धता के साथ, अभिव्यक्ति के सही बिंदु- क्रम से जमा कर मैंने इन्हें इस रूप में प्रस्तुत किया है, क्योंकि बहुत लंबे समय के अंतराल में विविध समय पर लिखे गए पृष्ठ, तारीखों के क्रम में रखने से अटपटे लग रहे थे। इस
क्रम में रखने से इसमें विषय-वस्तु में संबद्धता है, भले ही तारीखें आगे पीछे हो गई हैं।
कुछ पिछले पृष्ठों में तारीखें भी नदारद हैं, सिर्फ हस्ताक्षर बाकी हैं।
इस मेरी डायरी- रिश्ते मोती हो गए
की भूमिका लिखी है, हमारे आदरणीय विकास भैया (डॉ. विकास दवे निदेशक साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश शासन) ने। मैं विकास भैया की बहुत ही अनुगृहीत हूँ, उन्होंने अपने इतने व्यस्त समय में से भी समय निकाला। विकास भैया हैं ही ऐसे। मित्रो! डायरी के यही पन्ने, आपके साथ साझा कर रही हूँ। इन बेतरतीब पन्नों को सही क्रम देने और एक पुस्तक का आकार देने में सहयोगी मेरी दो सखियों आदरणीया स्नेहलता जी श्रीवास्तव एवं प्रिय वंदना जी शर्मा का अमूल्य योगदान रहा, उनकी मैं हृदय से आभारी हूँ।
आभारी हूँ मेरे परिवार के सदस्यों पुत्र पंकज और अंकिता, बेटी पूजा और ऋषि, चारों बच्चों और सबसे अधिक मेरे जीवन साथी श्रीमान सुरेश कुमार जी पाराशर की, तथा जीवन को जीवंत रखने वाले, विश्व में व्याप्त समस्त संबंधों की- जिनसे मानव-मन प्रेम और ऊर्जा पाता है।
आपकी प्रतिक्रिया का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
इंदु पाराशर
27 अक्टूबर 2022,
ई- 22406, सुदामा नगर इंदौर
मो. 94250 62658
e-mail-induparashar10@gmail.com
भूमिका
भारतीय परिवार परंपरा को विनम्र प्रणाम करती- मेरी डायरी
रिश्ते मोती हो गए
आदरणीय इंदु पाराशर जी की नवीन कृति 'रिश्ते मोती हो गए' मेरे हाथों में है। इंदु दीदी की ख्याति एक श्रेष्ठ बाल साहित्यकार के रूप में है। वे बच्चों के लिए सार्थक सूचना साहित्य अत्यंत रोचक और रचनात्मक ढंग से रचती रही है। उनका उतना ही हस्तक्षेप प्रौढ़ अर्थात बड़ों के साहित्य में भी है। यूं तो उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और सराही गई है किंतु यह पुस्तक इसलिए भी अधिक चर्चा में रहेगी कि इस समकाल में भारतीय परिवार परंपरा कहीं न कहीं ध्वस्त होती नजर आ रही है। इस प्रकार का साहित्य मृत होते रिश्तो के लिए संजीवनी का काम करेगा। एक प्रकार से यह आने वाली बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण की प्रक्रिया जैसा ही उपक्रम है।
इंदु दीदी ने इस पुस्तक में प्रथम पूज्य भगवान गणेश और साहित्य तथा कला की देवी मां सरस्वती की आराधना से इस पुस्तक को प्रारंभ किया है। मुझे लगता है यह दो वंदनाएं ही उनके संस्कार के प्रति आग्रह को मौन होकर मुखर कर देंगी।
इसके पश्चात उन्होंने अपने परिवार और समाज के बिछड़े हुए पुरखों के प्रति अपनी श्रद्धांजलि दो रचनाओं में अर्पित की है। यह रचनाएं एक प्रकार से श्रद्धा के साथ-साथ साहित्यिक श्राद्ध बनकर उभरेगी। इसके पश्चात उनकी रचनाओं में परिवार, रिश्तो में उष्णता, निर्णय जैसी रचनाएँ पारिवारिक अनुशासन और स्नेहबंध को सूचित करती नजर आती है। इसके पश्चात क्रम आता है माँ को समर्पित रचनाओं का। इनमें माँ नहीं है देह नश्वर, माँ, तुम बिन सारा जग सूना, ममता भरा आँचल, मन की भाषा, एक झलक आदि रचनाएँ उसी ममतामई आंचल को समर्पित है। तत्पश्चात पिता बने आकाश, पिता, एक पिता की चाहत जैसी रचनाएं उस महत्वपूर्ण रिश्ते को रेखांकित करती है जो मौन रहकर भी सदैव अपनी सशक्त उपस्थिति परिवार की धुरी के रूप में दर्शाते हैं। इसी क्रम में बेटियों को समर्पित उनकी अनेक रचनाएँ इतनी अद्भुत बन पड़ी है कि उन्हें पढ़ते हुए कोई भी पाठक भावुक हुए बगैर नहीं रह पाएगा। विशेषकर बिटिया, बेटी की सगाई, बिटिया की विदाई, बेटी नामा, विवाहित बेटी की उलझन, सबके दिल में बेटियाँ आदि रचनाएँ परिवार की लाडली बेटियों को समर्पित है तो वहीं ऑनर किलिंग और मैं बनती अभिमान जैसी रचनाएंँ संपूर्ण समाज की बेटियों को समर्पित रचनाएँ हैं। इसके बाद क्रम आता है बेटों पर केंद्रित रचनाओं का। इनमें बेटे, विदेश जाते हुए बेटे