मधु अँजुरी (काव्य संग्रह)
()
About this ebook
काव्य वाटिका का पहला पुष्प ही समस्त शंकाओं का शमन करने वाले आषुतोष अमिताभ आदिनाथ देवाधिदेव आदिमहादेव शंकर भगवान शिवशम्भू को अर्पित होना ही इस तथ्य का प्रमाण है कि रचनाकार डाॅ. मधु त्रिवेदी की भागीरथी लेखनी से निकलने वाली शब्द गंगा ऊंचाई के सोपान से अपने मार्ग पर अग्रसर होते हुए हमें आल्हादित करने वाली पावन अनुभूतियों के तीर्थों का दर्शन कराने वाली है।
लोक परलोक के जटिल विषयों को समेटे रचनाओं के शीर्षक, बीज सूत्र की भांति पथ प्रदर्शन के एक अभिनव प्रयोग को इंगित करते हुए बता देते हैं कि स्व व आत्म अध्ययन करने वाले स्वाध्यायी किस प्रकार आध्यात्मिक वीथियों से लोक कल्याण की मुख्य धारा का मार्ग प्रशस्त व प्रकाशित कर देते हैं।
एक और विशेषता आकर्षण का केंद्र है कि लेखिका ने अपनी लेखनी में न केवल राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत वीर रस एवं ईश्वर से सीधे संवाद आधारित आध्यात्मिक अनुभूति और देश-दुनियांँ की भूत व वर्तमान स्थिति पर एक समाज विज्ञानी के रूप में चिंतन आधारित विभिन्न विषयों को उत्कीर्णित किया है वरन् बाल्यकाल से लेकर तरूणी होते हुए मां बनने तक के नारी मन में उठने वाले भावनाओं के उद्वेग और युवाओं की आकांक्षाओं आधारित अपेक्षाओं की काव्यमयी प्रस्तुती इस प्रकार की है कि जब वे बालकों के लिये लिखती हैं तो बालक बन जाती है, युवाओं के लिये लिखती हैं तो युवा बन जाती है। इसी प्रकार नारी अत्याचार पर दुखी होती है, राष्ट्र नायकों के प्रति श्रद्धानत होती हैं, युवाओं को अन्याय के विरूद्ध खड़ा होने को प्रेरित करती है, अपनी स्मृतियों की पिटारी को उलटते पलटते मिलने वाली मुख बाधित लेखनी उनको संबल देती है और मधु उस तूलिका को थामे स्व की तलाश करते हुए अपने शब्द शिल्प संसार की रचना करती है जो आज आपके हाथों में प्रस्तुत है।
Related to मधु अँजुरी (काव्य संग्रह)
Related ebooks
नील नभ के छोर Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsइंद्रधनुष: चोका संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsबृंदा (एक भाव कलम से) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsउद्घोष Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsयादों की आहटें (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsअनादि Rating: 5 out of 5 stars5/5बांसुरी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsख़्वाहिशें: ग़ज़ल संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचरणारविन्दे: भजन संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsप्रवासी: (खण्डकाव्य) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकुछ अनसुनी Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMujhe Chalte Jaana Hai... Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsआँसू छलक पड़े: काव्य पथ पर 2 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsचयनिका Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsAatm Sangeet (आत्म संगीत) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsजज़्बात: ग़ज़ल संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsपरवाज़ Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsस्पंदन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमैंने कहा था Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमुट्ठी में सूरज (काव्य संग्रह) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsसफर आसां न था Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमेरी डायरी- रिश्ते मोती हो गए Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकविता की नदिया बहे Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSaar-sansaar Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDishayein Gaa Uthi Hein Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsगुल बहार के Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsकाव्य-सुधा: कविता संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKavya Prabha: 1, #1 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPrem Malang ke Kisse Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related categories
Reviews for मधु अँजुरी (काव्य संग्रह)
0 ratings0 reviews
Book preview
मधु अँजुरी (काव्य संग्रह) - Dr. Madhu Trivedi
मेरे प्रेरणास्रोत
A person in a white shirt Description automatically generated with medium confidenceस्वर्गीय श्री होडिल प्रसाद पाराशर
एवं
स्वर्गीय श्री सेवाराम त्रिवेदी
को विन्रम श्रद्धाजंलि
पुरोवाक्
सर्वप्रथम मैं अपने पूज्य पिता जी स्वर्गीय श्री सेवाराम त्रिवेदी एवं ससुर जी श्री होडिल प्रसाद पाराशर जी को शत -शत नमन करती हूँ जो इस कृति के सृजन में मेरे प्रेरणा स्रोत रहे।
अन्तस् में जब भावों की जागृति होती है, तो यह जागृति तूलिका का स्पर्श पाकर कविता कामिनी का आकार ले लेती है। हृदय के कोर से निकलने वाली पीड़ा, कसक एवं वेदना अपना गन्तव्य ढ़ूढ़ती हुई शब्दों में ढल कर कागज पर उकेरने को व्याकुल हो जाती है। आदिकवि वाल्मीकी के श्रीमुख से क्रौंच मिथुन को देख जो प्रथम काव्याभिव्यक्ति हुई थी वह उनके हृदय में जन्मी कसक और वेदना का परिणाम थी——-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमागम : शाश्वती समा।
यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधी : काम मोहितम्।।
प्रस्तुत काव्य संग्रह मधु अंजुरी
मेरे मन में उमड़ते हुए भावों का उफान है। संग्रह के आरम्भ में सद् -असद् को भगवान शिव को समर्पित कर कवयित्री शारदे वन्दन करती है। सग्रंह में जीवन के उतार -चढ़ाव ए्वं अनुभवों से पिरोयी विभिन्न फ्लेवर युक्त कविताएं है इसी क्रम में भावों को काव्य कलेवर में सजा आपके समक्ष प्रस्तुत कर रही हूँ।
अन्त में मैं डा सुधीर त्रिवेदी, डा बिन्दु त्रिवेदी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ जिनने आर्थिक सहायता दे काव्य संग्रह को वर्तमान स्थिति तक पहुंचाया। तत्पश्चात माँ सरला त्रिवेदी और सासु माँ रामवती के प्रति आभार व्यक्त करती हूँ जिनका प्रोत्साहन मेरा ऊर्जा कोश है इसके बाद अपने पति श्री शशीकांत पाराशर के सहयोग और अपने दोनों बेटों अलंकृत और मयंक की जिज्ञासाओं का भी मेरी काव्यसाधना में जो योगदान है, उसे विस्मृत नहीं किया जा सकता। तदर्थ मैं आप तीनों की ऋणी हूँ।
तत्पश्चात अपने मित्र हुकुम सिंह जमीर
का स्नेहासिक्त आभार व्यक्त करती हूँ जो काव्य संग्रह को तैयार करने के दौरान हर गलती रेखांकित कर सुधारते रहे। दिल से आभारी हूँ उनकी। तदुपरांत भाई श्री सर्वेश मिश्रा जी, श्री सतीश जोशी जी एवं अपनी गुरु माँ डा सुषमा सिंह की भी आभारी हूँ। अपनी साहित्यिक मित्र भावना वरदान एवं डा मधु भारद्वाज दीदी और डा अर्चना गुप्ता एवं अभिनीत मित्तल जी ने काव्य संग्रह को प्रस्तुत रुप देने के लिए निरन्तर जो आग्रह किया मैं उनका भी धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ।
डॉ. मधु त्रिवेदी
प्राचार्या
शान्ति निकेतन कालेज आफ बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर साइंस
आगरा
मधु अँजुरी
अत्यंत अध्ययनशील, मननशील और कृतित्व के प्रति आस्थावान डा . मधु त्रिवेदी की मधु अँजुरी
में भावनाओं का वह मधु है जिसका आस्वादन कर पाठक उनकी रचनाओं से एकात्म हो सकेगा। विविधवर्णी हैं उनकी रचनाएं, जीवन के व्यापक अनुभवों को समेटे हुए, उनकी सजग प्रतिक्रिया की फलश्रुति। कहीं वे प्रकृति के आकर्षण में बंधकर नया सवेरा देखती है और उसकी अनोखी सीख को आत्मसात करती है, कहीं बादल का सूखी धरती पर बरसने के लिए आह्वान करती है। कहीं नव वर्ष को अपने स्वागत में खड़ा देखकर अभिभूत होती है और तकदीर संवारने की प्रेरणा प्राप्त करती हैं। कभी बीते वर्ष की जटिल और विषम परिस्थितियों की परख करती नजर आती हैं प्रकृति से मित्रवत संवाद करती हुई कविताएं भी आपने लिखी हैं। कभी खण्ड -खण्ड को जोड़कर जीवन का खण्डकाव्य लिख जाने की इच्छा व्यक्त करती है तो कभी कहती है कुछ अलग लिखा जाए, लीक से हटकर कुछ किया जाए। कभी जिन्दगी की जीत - हार से यकीन उठता हुआ प्रतीत होता है और पेट की सुलगती आग से उनकी लेखनी झुलस उठती है जो उनकी संवेदना का प्रमाण है क्योंकि यह पेट उनका नहीं किसी मुफलिस का है किसी गरीब का है, किन्तु आपकी आसमां को छूने की भावना में कोई कमी नहीं आती। यद्यपि आप घोषणा करती है कि मैं नहीं कोई शब्द शिल्पी
किन्तु शब्दों की उपासना करना अपना धर्म समझती है और स्वीकार करती है चाह है मैं कुछ लिखूँ
इतना ही नहीं बुलन्दियों पर पहुँचना आपका सपना है, तभी तो कहती है ~~
"आसमां को छू लूँ
तटों को चूम लूँ "।
इसके लिए आपको परिन्दा बनना भी स्वीकार है।
' सजन ' के लिए सभी लिखते है फिर आप पीछे कैसे रह जाती—बिंदिया सिन्दूर, चूड़ियां सब सजन से हैं, तो आपकी तमन्ना है—-
' जिन्दगी भर रहे सनम '
आप अपने को खोकर किसी की हो जाने के तिलस्म में खो जाना चाहती है, आपने महसूस किया है कि—-
' प्रेम की मोहिनी ऐसी
बार -बार बहक जाऊँ
दूर भागूं जितनी मैं
उतना उसे पास पाऊँ '।
इतना ही नहीं आपका कहना है—-
' तेरे आ मिलने से ही प्रिय
जीवन यह सार्थक लगता है
तेरे बिन जीवन क्या मोल
हर पल पहाड़ सा लगता है।
कवयित्री कभी प्रिय का हाथ थामने की तमन्ना लिए आगे बढ़ती है तो कभी प्रिय के रुप पर मुग्ध हो उसके अंगोपांगो के लिए उपमा ढ़ूंढने में व्यस्त हो जाती हैं। कभी अपने उत्सर्ग को समझने वाले प्रिय के प्रति आभारी होती है, कभी ' प्रेम की पाठशाला ' सी आँखों के सौंदर्य और सम्मोहन में खोजती हैं। कभी तन्हाई का आभास कराते आँखों के सूनेपन का साक्षात्कार करती हैं। अनुभूतियाँ इतनी सरल एवं स्वभाविक है कि कहीं वे प्रकृति में बँध नया सवेरा देखती है और उसकी अनोखी सीख को आत्मसात करती