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मेघ गोरे हुए साँवरे (गीत संग्रह)
मेघ गोरे हुए साँवरे (गीत संग्रह)
मेघ गोरे हुए साँवरे (गीत संग्रह)
Ebook187 pages49 minutes

मेघ गोरे हुए साँवरे (गीत संग्रह)

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About this ebook

डॉ. अर्चना गुप्ता जी द्वारा रचित एक बेहद सुन्दर गीत संग्रह- मेघ गोरे हुए साँवरे (गीत संग्रह)

Languageहिन्दी
Release dateDec 24, 2021
ISBN9789391470425
मेघ गोरे हुए साँवरे (गीत संग्रह)

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    मेघ गोरे हुए साँवरे (गीत संग्रह) - Dr. Archana Gupta

    मेघ गोरे हुए साँवरे

    (गीत संग्रह)

    डॉ. अर्चना गुप्ता

    A picture containing text Description automatically generated

    Published by:

    Sahityapedia Publishing

    Noida, India – 201301

    www.sahityapedia.com

    Contact - +91-9618066119, publish@sahityapedia.com

    Title: Megh Gore Hue Saanware (Geet Sangrah)

    Author: Dr. Archana Gupta

    Copyright © 2021 Dr. Archana Gupta

    All Rights Reserved

    First Edition - 2021

    Format - Ebook

    ISBN - 978-93-91470-42-5

    This book is published in its present form after taking consent from the author & all reasonable efforts have been made to ensure that the content in this book is error-free. No part of this book may be reproduced, stored in or introduced into a retrieval system, or transmitted, in any form, or by any means (electrical, mechanical, photocopying, recording or otherwise) without the prior written permission of the publisher.

    The publisher of this book is not responsible and liable for its content including but not limited to the statements, information, views, opinions, representations, descriptions, examples, and references. The Content of this book, in no way, represents the opinion or views of the Publisher. The Publisher do not endorse the content of this book or guarantee the completeness and accuracy of the content of this book and do not make any representations or warranties of any kind. The Publisher do not assume and hereby disclaim anyliability to any party for anyloss, damage, or disruption caused by errors or omissions in this book, whether such errors or omissions result from negligence, accident, or any other cause.

    भावों को चुन चुन कर लाई, मन की कच्ची गागर से

    गीतों के ये सीप निकाले हैं शब्दों के सागर से

    ऊँची-नीची लहरों में ही, मैं डूबी दिन-रात रही

    बात कही फिर अपने दिल की, छंदों के चारागर से

    डॉ. अर्चना गुप्ता

    मेरे भाव सुमन

    स्वर, पद और ताल से युक्त शब्दों की सुन्दर रचना जिसको गाया जा सके, गीत कहलाता है। गीत साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है जिसके कोमल भाव सीधे हृदय को स्पर्श करते हैं।

    गीत मेरी भी पसंदीदा विधा है। मेरा ये संग्रह भी विभिन्न विषयों को समाहित करते हुए विभिन्न छंदों पर आधारित गीतों का गुलदस्ता है। इसमें प्रकृति की बहार है तो कहीं त्योहारों और परम्पराओं की सुगंध है। इसमें ज़िन्दगी की कहानी है तो कहीं देश और पर्यावरण से प्रेम है। नारी का हौसला है तो कहीं बेटी की व्यथा है।

    सर्वप्रथम मैं माँ सरस्वती को नमन करती हूँ जिनके आशीर्वाद से यह कार्य सम्भव हो पाया। मुझे इस संग्रह को लाने के लिए जिनसे पूरा मार्गदर्शन और प्रेरणा मिली वह हैं मेरे साहित्यिक गुरु परम् आदरणीय लव कुमार प्रणय जी। हर कदम पर आपका पूरा सहयोग मिला। मैं दिल से आपकी आभारी हूँ।

    मेरे पुत्र अभिनीत मित्तल के सहयोग और स्नेह के बिना तो इस संग्रह का आना सम्भव ही नहीं था। मेरे जीवन साथी अतुल गुप्ता जी का हर मोड़ पर मुझे पूरा साथ मिला। उनको धन्यवाद दिए बिना मेरा सम्बोधन अधूरा रहेगा।

    मैं वरिष्ठ गीतकार श्री धीरज श्रीवास्तव जी की विशेष आभारी हूँ कि आपने मेरे छोटे से अनुरोध पर अपना बेशकीमती समय दिया और बहुत ही स्नेह से इस संग्रह की भूमिका लिखी। मैं पुनः उनका दिल से धन्यवाद करती हूँ।

    मैं अपने उन सभी मित्रों का हृदय से आभार करती हूँ जिनके बहुमूल्य सुझाव मुझे हमेशा मिलते रहते हैं। उनका साथ मेरी प्रेरणा है। अपने परिवार की, जिसके प्यार और सहयोग के कारण ही मैं ये कार्य कर सकी, मन से कृतज्ञ हूँ।

    आशा करती हूँ मेरी भावनाओं से भरा गीतों का गुलदस्ता मेघ गोरे हुए साँवरे पाठकों के हृदय तक पहुँचेगा और मेरे ये गीत उनके अधरों पर स्थान पा सकेंगे।

    इसी आशा और विश्वास के साथ-

    डॉ. अर्चना गुप्ता

    संस्थापक, साहित्यपीडिया

    Ph 9456032268

    प्रेम व भक्ति की पुण्य सलिला में

    नहाये संवेदना के गीत

    -धीरज श्रीवास्तव

    'गीत' शब्द सम्मुख आते ही हृदय में संगीत दस्तक देने को आतुर हो उठता है। कवि की जब नैसर्गिक एवं तीव्र आत्मानुभूति कोमल व मोहक शब्दों का आवरण ओढ़कर भिन्न-भिन्न रागिनियों की पैंजनी बाँधकर हृदयाङ्गन में नृत्य कर उठती है तब अनायास ही गीत का जन्म हो जाता है।

    भारत में गीतों की सुदीर्घ परम्परा का प्रारम्भ वेदों से ही माना जाता है। आदिकाल से लेकर आज तक गीतों की यह परम्परा अक्षुण्ण रही है। मनुष्य इस प्रकृति का मोहक एवं एक महत्वपूर्ण अंग है। उसके अंतस में भी गीत, संगीत सुनने, गुनगुनाने और सृजन करने की ललक का होना अत्यन्त स्वाभाविक है। गीत आदिकाल से अपने नवीन एवं पुरातन सभी स्वरूपों में अब तक जीवन्त है और सदैव रहेगा भी! वह इसलिए कि इसका स्वरूप इसकी अंतरात्मा अत्यन्त शुद्ध एवं पावन है। अमरकोश में गीत को परिभाषित करते हुए गीत के छः लक्षण स्वीकार किये गए हैं "सुस्वरं सरसं

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