गीता गुंजन
By सतीश सक्सैना
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श्रीमद्भगवद गीता को किसी परिचय या प्रशंसा के शब्दों की आवश्यकता नहीं है। यह हमें अपना जीवन पवित्रता, शक्ति, ईमानदारी, अनुशासन, दयालुता और सत्यनिष्ठा के साथ जीने की शिक्षा देता है और प्रोत्साहित करता है। यह हमें ईश्वर, जीव, प्रकृति, काल और कर्म के बारे में सिखाता है और कैसे ये हमारे जीवन के पांच मुख्य भाग हैं। हालाँकि, संस्कृत में लिखे जाने के कारण यह जनमानस तक नहीं पहुंच पाया है। केवल वही लोग पढ़ और समझ सकते हैं जो संस्कृत पढ़ना जानते हैं और इसलिए, हममें से अधिकांश लोग इस खजाने की खोज में असमर्थ रहे हैं। कई विद्वानों ने इसका विभिन्न भाषाओं में अनुवाद करने का प्रयास किया है और अभी भी कर रहे हैं। आप आश्चर्यचकित हो सकते हैं कि एक और अनुवाद क्यों? हमारे देश में तुलसीदास कृत रामायण अपनी समझने में आसान भाषा और संगीतात्मकता के कारण सबसे अधिक पढ़ी जाती है। गीता गुंजन लिखते समय इसी भाव और विचार का समावेश किया गया है ताकि इसे सुनाना और समझना आसान हो जाए। जब कोई विषय समझ में आ जाता है तो उसे अधिक आसानी से स्वीकार किया जाता है, अभ्यास किया जाता है और आगे बढ़ाया जाता है।r
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गीता गुंजन - सतीश सक्सैना
गीतागुञ्जन पूजन विधि:
पवित्रीकरणः
सुमिरत जेहिं अघ ओघ नसाहीं । होंहिं पूत तन मन क्षण माहीं ।।
होहिं अशुचि शुचि करत प्रणामा । कमल नयन अस पावन नामा ।।
तिलकः (यजमान को)
सदा विष्णु रक्षा करें गरूण ध्वज भगवान ।
कमल नयन मंगल करें हरि शुभता का दान ।।
रक्षासूत्र (कलावा)
यह बाँधत रक्षा करें बलि नृपराज महान ।
अचल सुरक्षा ये करे दानवेन्द्र बलवान ।।
आचमनः
चौपाई : प्रथम नाम केशव कर लीजे । पुनि माधव सन प्रीति कारीजे ।
नारायण कर जप शुभ नामा । कर आचमन करिय शुभ कामा ।।
गणेश वंदना:
दोहाः प्रथम पूजिये गणपती, होवे कृपा अकूत ।
ऋद्धि-सिद्धि जिनकी प्रिया, शुभ अरु लाभ सपूत ।।
चौपाईः गणनायक गजवदन विनायक । उमा सुअन सुन्दर सब लायक ।।
रोग, शोक, भय विघ्न विनाशक । सुर नर मुनि सेवित जग शासक ।।
एक दंत मोदक प्रिय नाथा । बार-बार नावहुँ पद माथा ।।
करन चहहुँ प्रभु पूजा पावन । नमो नमो गणपति गज आनन ।।
दोहाः श्रीकृष्ण को ध्याइये, करके मन एकाग्र ।
चित्त चित्त में रम रहे, मन भ्रम हरन कुशाग्र ।।
आवाहनः
गणेशजी- आवहु गणपति देव गजानन । ग्रहण करहु सुन्दर शुचि आसन ।
ऋद्धि- सिद्धि सह किजिय वासा । जब लगि पूजन कथा प्रकाशा ।।
वरुण देव- वरुण देव प्रभु परम कृपाला । करहु कलश महॅ बास विशाला ।।
लक्ष्मी-विष्णु- श्री श्रीपति सह नाथ पधारहु । मम कारज सब भाँति सम्हारहु