शरद नवरात्र: मंदिर में बीते मेरे नौ मनभावन दिन
By देव किरार
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कल जो हुआ वह इतना मजेदार नहीं था, जितना आज का कार्यक्रम होगा। आज चुनरी यात्रा है, जो गाँव में घूमते हुए दुर्गा जी के मंदिर तक जायेगी। आज मेरा रविवार का व्रत भी है और मैं आज के दिन के लिए उत्सुक हूँ, यह दिन अच्छा रहेगा।
कल नहा-धोकर मंदिर पर आरती के लिए गया। मैं डीजे बजा रहा था, तभी मुझे बार-बार परेशान कर रहे, एक व्यक्ति को मैंने अच्छे से ही सुना दिया। हुआ ऐसा था, कि जब भी मैं भजन चलाता, वह मुझे परेशान करने आ जाता। वह यदि मुझसे हर दिन प्यार से कहता तो मैं जरूर उसकी बात मान लेता, पर पिछले चार दिनों से हर दिन रौब झाड़ता था, वह मुझे कमजोर समझ बैठा था, जैसा कि मैं पहले ही भी बता चुका हूँ, कि लोग नरम स्वभाव होने के कारण मुझे कमजोर समझ बैठते हैं। ऐसा ही वह व्यक्ति समझ रहा था, कि देव थोड़े ही कुछ कर लेगा, उस पर तो रौब झाड़ना ही चाहिए।
अब मैं उसके अहंकार को तीन दिन तक सहन करता रहा, चौथे दिन भी उसने तीन चार बार मुझे सुबह-सुबह ही टोक दिया, तो मेरे मन में आया, "अब यह ऐसे तो नहीं मानेगा, इसे जरा सी बूटी देनी ही होगी।"
पहले मैंने उसे आराम से समझाने की सोची, पर फिर दिमाग में आया कि बिना आक्रामकता के यह सुधरने वाला नहीं है, कुत्ता मान डंडा खाए।
फिर मैंने मन बना लिया कि यदि यह अब बोला तो उस देव को देखेगा, जिसे बहुत कम लोग देखते हैं और उस मूर्ख ने सच में मुझे फिर छेड़ दिया, तो मैं भभक उठा। पूरे क्रोध को इकट्टा करके, वहाँ जितने लोग थे, उनके सामने ही, उस पर बरस पड़ा, उनमें से किसी ने भी मेरे इतने तिरछे रवैये की कल्पना नहीं की थी। सब चौंके हुए थे, वह सब यही सोच रहे थे कि देव तो ऐसा नहीं है। उनमें कुछ औरतें भी थीं मुझे और मेरे गुस्से को देख रहीं थीं।
इस क्रोध से मैंने कई कार्यों को साध लिया, इस क्रोध से उस व्यक्ति को सबक मिल गया। जिसने मुझे इस गुस्से में देखा, वह संभल गया और जो औरतें थीं, वह बात को गाँव में फैलाने में व्यस्त होने निकल गईं। जितने भी लोग मेरे इस क्रोध को जानेंगे, उनकी प्रतिक्रिया कैसी भी रहे पर वह मुझसे दुष्टता करने की कोशिश नहीं करेगें।
मैं किसी को परेशान नहीं करता हूँ पर मुझे परेशान करने वाले कभी शांति से नहीं बैठ पाते हैं। मैं नरम स्वभाव अवश्य रखता हूँ, मैं लोगों को स्वाभिमान की अंतिम सीढ़ी तक माफ करता रहता हूँ, पर यदि वह नहीं मानते हैं तो फिर मुझे ऐसा तरीका सोचना पड़ता है।
मैं शांति प्रिय व्यक्ति हूँ और यदि कोई व्यक्ति मेरी मानसिक शांति भंग करने की चेष्टा करता है तो वह अच्छे से ही चोट खाता है। वह अपना स्वाभिमान तक खो बैठता है।
वह व्यक्ति उम्र में मेरे पापा जी से भी बड़ा था, इसलिए मुझे इस तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए था, पर असल मे बड़े वह हैं, जो बडप्पन करें, ओछापन दिखाने वाले चाहे मेरे से लाख साल बड़े हों, मैं नही झुकूँगा। मुझे लोग बड़े या छोटे नहीं दिखते हैं। मुझे परेशान करने वाले सिर्फ मेरे दुश्मन होते हैं। फिर मैं नहीं देखता कि उनकी उम्र कितनी है।
इस क्रोध के बाद भी हमने भजन चलाए, फिर चंद्रेश महाराज भी आ गए, तब हमने माताजी की आरती की। पर आज हर दिन की भांति वहाँ से जल्दी नहीं लौटे बल्कि वहीं भजन चलाते रहे।
मैं साढे नौ बजे घर वापिस आया, नास्ता किया फिर पढ़ने बैठ गया। पढ़ने में मन नहीं लग रहा था, क्योंकि मुझे नींद आ रही थी, इसलिए में सो गया।
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Book preview
शरद नवरात्र - देव किरार
श्री गणेशाय नमः
जय माता दी
26 सितंबर 2022
सोमवार
1.
आज से नवरात्र शुरू हो गए हैं, तो नौ दिन आनंद ही आनंद है। आज सब दुर्गा समिति के सदस्य माता की झाँकी लेने विदिशा जाऐंगे। मैं भी जा रहा हूँ। मेरे पापा जी दुर्गा समीति के सदस्य हैं, तो वह भी जाएगें।
मुझे आज सुबह चार बजे उठते ऐसा नहीं लगा कि वापिस सोना चाहिए, बल्कि ऐसा लगा कि आज से मेरा अच्छा समय शुरू हो चुका है। आज ऊर्जा थोड़ी अलग थी। आज खुशी भी है और विश्वास भी। अंदर से एक फीलिंग आ रही है कि मैं इन नवरात्रों में कुछ तो ऐसा हासिल कर लूँगा, जिसे सफलता समझ सकता हूँ।
पिछले साल जब शरद नवरात्र चल रहे थे, तब मैंने मेरे लिए एक लक्ष्य तय किया था, पर वह लक्ष्य निर्धारित समय के अन्दर पूरा नहीं हुआ, पर आज ऐसा लग रहा है, जैसे वह बेहद जल्द पूरा होने वाला है।
वैसे तो मुझे सभी त्यौहार मनाने में आनंद आता है, बल्कि मैं तो बेशर्बी से त्यौहारों का इंतजार करता हूँ, क्योंकि यही वह समय होता है, जब लोग खुलकर खुश होते हैं। इन त्यौहारों में लोग अपने दुख-दर्द भुला देते हैं और मिलकर खुशी मनाते हैं और इनमें दीपावली सबसे बड़ा त्यौहार है।
नवरात्र मुझे इसलिए भी पसंद है, क्योंकि यही वह समय था, जब श्रीराम भगवान की सेना ने धर्म विरुद्ध, आचरणहीन राक्षसों से युद्ध किया था और श्री राम ने शक्ति पूजा भी की थी और दशहरे के दिन रावण को मारकर युद्ध को समाप्त कर दिया था। रावण जब मरा तब पूरे ब्रह्मांड में हर्षोल्लास छा गया था, जब नवरात्र आते हैं तो मुझे लगता है, जैसे मैंने बुराईयों से युद्ध शुरू कर दिया है और दशहरे तक मैं इस युद्ध को जीत लूँगा।
पर जैसे ही त्यौहार पूरे हो जाते हैं और सामान्य दिन आ जाते हैं, तो मेरा मन खिन्न सा होने लगता है और सोचता हूँ कि क्या हर दिन उत्सव नहीं हो सकता है। मैं अंदर ही अंदर त्यौहारों का इंतजार करता रहता हूँ।
त्यौहार दुनिया में भेदभाव मिटाते हैं और दुनिया को खुशनुमा बनाते हैं। लोग त्यौहारों में आपसी बैर भूल जाते हैं और साथ में खुशियाँ मनाते हैं।
त्यौहार मानव मन के अनुरूप ही है। यह मानव मन को ऊर्जा देते हैं। मानव का मूल स्वभाव है आपस में मिल जुलकर रहना। उसी स्वभाव का प्रत्यक्ष उदाहरण त्यौहार हैं। यहाँ सब आापस में मिले हुए होते हैं, इसलिए मेरा मानना है कि तोड़ने की राजनीति गर्त में जाती है और जो जोड़ने की राजनीति करता है, वह युगों तक जाना जाता है और दुनिया में हमेशा राज करता है। आप बीसवीं सदी का एक महान नेता चुनें और जाने की उसकी ताकत क्या थी। क्या वह अंग्रेजो की तरह फूट डालो वाला काम करता था या फिर उन दरारो को भरने का।
बीसवीं सदी के सबसे महान नेताओं में महात्मा गांधी का नाम सबसे ऊपर आता है। उनके आसपास भी कोई नहीं ठहरता है। क्योंकि वह एकता के अनुरूप राजनीति करते थे। वह भारतीय एकता के लिए लड़े थे।
यही त्यौहार यह करते हैं, यदि कोई व्यक्ति मानव मन को समझ सके तो वह मन के स्वभाव के अनुसार काम करके जीत सकता है। आजकल हम सब देख रहे हैं कि लगभग सभी कंपनियां जो अपने लिए ज्यादा फायदा चाहती हैं वह हमेशा मानव के नेगटिव स्वभाव पर वार करती हैं। सारी सोशल मिडिया एप व्यक्ति को लत लगाना चाहती हैं और मैं बता दूँ लत कभी भी अच्छी नहीं होती है। यह कंपनियाँ यदि अच्छी भावनाओं, जैसे कि रियल खुशी, को टारगेट करें तो और ज्यादा फायदा कमा सकती हैं, पर उसका इंतजार कौन करेगा।
नेगेटिव तरीके से काम करने वाले एक सीमा तक ही बढ़ सकते हैं, पर जो पोशिटिव तरीके से बढ़ते हैं, उनकी सीमाएं नहीं होती हैं, वह असीमित होते हैं। वह महान होते हैं।
तो आज मैं विदिशा जाऊँगा, महत्वपूर्ण काम तो यह है कि मैं अपनी किताब गगनयान को पेपरबैक्स में पब्लिश करने वाला हूँ, ताकि वह भी इसे पढ़ सकें, जो डिजीटली पढ़ने में कम्फर्ट फील नहीं करते हैं। पैपर बैक पब्लिश करने के बाद गगनयान पेपर बैक में अमेजन और फिलिपकार्ट पर मिलेगी। यदि यह वहाँ सफल रही तो इसे पुस्तकों की दुकानों तक भी पहुंचाऊँगा और मैं जानता हूँ कि गगनयान सफल रहेगी।
किताब प्रकाशित करवाने के काम के बाद हम झाँकी लेने जायेगें और रात को वापिस आ जायेंगे या फिर दिन में ही लौट आएगें, ताकि माता की स्थापना कर सकें।
2.
आज सुबह, जैसा कि मैं बता चुका हूँ, चार बजे खुश रहते हुए उठा। फ्रेश होकर छत पर चला गया, जहाँ ठंडी और प्यारी हवा चल रही थी।