AkalMrityu Avam Anay Kahaniya
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डॉ. आर.सी. गुप्ता एवं ( वरिष्ठ फिजीशियन ) अनुजवत् डॉ. चंद्रेश भाटिया (नाक, कान एवं गला रोग विशेषज्ञ ) को आत्मीय समर्पण,जिन्होंने मुझे इस अवस्था में भी पढ़ने-लिखने लायक बनाये रखा है।
- वेदप्रकाश अमिताभ
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वेदप्रकाश अमिताभ
इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड
नोएडा – 201301
डॉ. आर.सी. गुप्ता एवं ( वरिष्ठ फिजीशियन ) अनुजवत् डॉ. चंद्रेश भाटिया (नाक, कान एवं गला रोग विशेषज्ञ ) को आत्मीय समर्पण,जिन्होंने मुझे इस अवस्था में भी पढ़ने-लिखने लायक बनाये रखा है।
- वेदप्रकाश अमिताभ
अपनी बात
बड़ी अजीब बात है कि कविता लिखना इधर लगभग छूट-सा गया है लेकिन कहानियाँ जब-तब लिखी जाती रही हैं। कहानी-लेखन श्रमसाध्य काम है, कई-कई ड्राफ्ट तैयार करने होते हैं, फिर भी अपने आसपास बिखरे हर्ष - विषाद, लगाव - अलगाव आदि की अभिव्यक्ति के लिए कहानी विधा जरूरी लगी है। छोटे आकार की ये कहानियाँ किसी विमर्श विशेष के दबाव में नहीं लिखी गई हैं। इनमें मनुष्यता के क्षरण की चिंता मुखर है और तमाम विसंगतियों - विडम्बनाओं के प्रतिरोध की ऊर्जा भी है। सूचनाक्रांत और विचाराक्रांत रचनाओं को पसंद करने वाले कुछ प्रबुद्ध समीक्षकों पाठकों को ये शायद ही रुचें लेकिन सामान्य पाठक की संवेदना इनसे आत्मीयता और आश्वस्ति का अनुभव अवश्य करेगी।
समय - समय पर जिन मनीषियों ने मेरी कहानियों के महत्त्व को रेखांकित कर मेरा उत्साहवर्द्धन किया है, उनका मैं आभारी हूँ। आदरणीय रामदरश मिश्र जी ने इस संग्रह को अपना आशीर्वाद देकर मुझे कृतार्थ किया है। डॉ. सुरेन्द्र विक्रम ने 'इंडिया नेटबुक्स प्रा. लिमिटेड' से परिचित कराया और डॉ. संजीव कुमार ने इसे सलीके से प्रकाशित किया है। मैं उन्हें हार्दिक धन्यवाद देता हूँ ।
- वेदप्रकाश अमिताभ
अगला जन्म
बात हँसी मजाक में शुरू हुई थी। विवाह वाले घर काम तो बहु से होते हैं, तमाम लोकाचार अलग से। लेकिन ठलुओं की भी कोई कमी नहीं थी। कुछ रिश्तेदार तो जैसे पिकनिक मनाने आए थे। किसी ने हँसी-हँसी में पूछ लिया था 'कौन-कौन लोग अगले जन्म में भी एक दूसरे के जीवन साथी बनना चाहेंगे?' चाचाजी ने चुहल की थी- 'अगले जन्म में मैं तो पत्नी बनना चाहूँगा । इन पत्नियों के ऊँचे ठाट होते हैं, दिन भर पलंग तोड़ती रहती हैं और हम जैसे पति न दिन देखें न रात, न शीतलहर न बरसात, रोजी-रोटी के लिए यहाँ-वहाँ भागते-फिरते हैं । ' चाचीजी जी ने नहले पर दहला लगाया था - ' सचमुच भगवान ने किसी की बीबी बना दिया तो आटे दाल का भाव मालूम पड़ जाएगा। हम लोग सुबह से शाम तक चूल्हे चौके में खटती रहती हैं और तुम लोग बिजार की तरह छुट्टा डोलते रहते हो ।' मौसी जी ने भी चाची के सुर में सुर मिलाया था - 'तुम मरद क्या जानो, औरतों ने कितनी तकलीफ झेल कर तुम्हें पाला-पोसा है? कैसे खुद गीले में सोई हैं, तुम्हें सूखे में सुलाया है?"
जब सब लोग अपने-अपने विकल्प बता चुके तो किसी ने कहा
कि यह सवाल बूढ़ी दादी अम्मा से भी पूछ लिया जाय। देखें क्या
जबाब मिलता है? एक परिवारीजन ने असहमति जताई थी कि उनसे
क्या पूछना? उन्हें दादाजी के साथ रहते पचास साल हो गए हैं। वे तो
'मेडफॉर ईच अदर' हैं। दोनों को कभी लड़ते-झगड़ते नहीं देखा गया।
उन दोनों की इच्छा यही होगी कि सात जन्मों तक उनका साथ बना
रहे।' फिर भी दादी की मुँह लगी घेवती नहीं मानी थी। उसने जाकर
पूछ ही लिया था - 'नानी आप तो अगले जन्म में नानू
को ही जयमाला
पहनाना चाहोगी?' सबकी 'दादी अम्मा' को सवाल समझने में थोड़ा समय लगा था। फिर वे जैसे भभक उठी थीं- 'नहीं लल्ली नहीं...... लल्ली उनकी इस उग्र प्रतिक्रिया से सहम गयी थी। उसने जिसे भी दादी अम्मा का जबाव सुनाया था, वही हतप्रभ रह गया था। लल्ली को क्या पता गुलामी क्या होती है? वह नए जमाने की पढ़ी-लिखी किशोरी जीन्स, मोबाइल और बाईक की आधुनिकता में जीने वाली उसे क्या पता था कि यह सवाल पूछकर उसने कितनी भूली-बिसरी यादों को सोते से जगा दिया था। पिछले पचास वर्षों के कितने दंश एक साथ चुभने और सताने लगे थे।
पिता के घर से विदा की बेला में माँ और चाची ने उन्हें बार- बार समझाया था - पति परमेश्वर का अवतार होता है। हमेशा हुकुम मानना । सास-ननद की जली कटी को बर्दाश्त करना। जिस घर में तेरी डोली जा रही हैं, वहीं से तेरी अरथी निकलनी है। उन्होंने इस पाठ को अच्छे विद्यार्थी की तरह रट लिया था और इसे अमल में भी लाती रही थीं। सास ने दहेज देखकर मुँह बिचकाया था, वे चुप रही थीं। ननद के व्यंग्यवचन वे हँस कर झेल गयी थीं। पति कम बोलने वाला और अपनी माँ का दुलारा 'श्रवण कुमार' था। दूसरे शहर में नौकरी करता था लेकिन कई साल तक अपने साथ नहीं ले गया था क्योंकि सास को डर था कि बेटे को कुछ उल्टा सीधा न पढ़ाय दे। पति के साथ रहने लगीं तब उसे अच्छी तरह पहचान पाई थीं। पति चुप्पा जालिम था । वह चीखता-चिल्लाता नहीं था, सीधे हाथ चला देता था। वे पीहर जाने को तरस जाती थीं, पर उसे उन पर तरस नहीं आता था। उसे औरत जात पर ही विश्वास नहीं था। जब कभी मजबूरी में उन्हें पीहर भेजना पड़ा तो वह भी साथ जाता था और साथ लेकर लौटता था। देखने वाले तारीफ करते थे - 'देखो लुगाई से कितना प्रेम करता है कि आँखों से ओझल नहीं होने देता। '
पति का एक रूप उन्हें तब देखने को मिला था, जब वे पहली बार माँ बनी थीं-एक बिटिया की माँ। तब सास ने जो हाय-तौबा की सो की, पति के ऊपर तो जैसे वज्रपात हो गया था। लड़की पैदा होने पर उसे लगा जैसे उसकी मर्दानगी पर आँच आ गई हो। बहुत दिनों तक उसने बिटिया को गोद में नहीं लिया था। जब दुबारा उनके पैर भारी हुए तो पति जिद पर आ गया था कि कोख की संतान की जाँच कराऊँगा । वे भी अड़ गयीं थी कि छोरा हो या छोरी, उसे जन्म देंगी । गाली-गलौच, मार-पीट सब कुछ झेला उन्होंने । संयोगवश दूसरी संतान लड़का हुआ तो परिवार में खूब खुशी मनाई गई थी। लेकिन इन कटु प्रसंगों से वे पति से दूर होती गईं। उन्होंने बच्चों की देखभाल में खुद को खपा दिया था।
बिगड़ा कि राम-राम करके बारहवीं पास कर पाया। परचूनी की दुकान से जैसे-तैसे घर चला रहा है। उसने भी पढ़ने-लिखने की कीमत बाद में समझ ली थी। आज उसी के बेटे की शादी में लोग जुटे हैं। यह लड़का अपनी बुआ के पास रह कर पढ़ा है।
बच्चों के सामने उन्होंने अपने और पति के बीच की खाई को जितना हो सका, छिपाकर ही रखा है। डोकरा बाहरवाले कमरे में पड़ा रहता है। दोनों वक्त रोटी के समय घर के भीतर आता है तो आमना-सामना हो जाता है। पास-पड़ोस के लोगों को लगता है कि पति - पत्नी हों तो ऐसे हों। उन्हें क्या मालूम, पति आज भी एकांत में डंक मारने से बाज नहीं आता है।
उफ् - वे कहाँ खो गयीं थीं। घर के कई काम उन्हें देखने-भालने हैं। आज मुँह लगी धेवती ने कुरेद दिया तो उन्होंने जाने क्या कह दिया। मुँह से कुछ गलत - सलत तो नहीं निकल गया ? नहीं इसमें गलत क्या ? वे तो यहीं समझ पाई हैं कि औरत के जन्म से तो जानवर और पंछी का जनम कहीं अधिक भला और अच्छा है। तभी उनके मुँह से निकल पड़ा था- 'नहीं लल्ली नहीं। मैं अगले जन्म में नाना की घरवाली नहीं बनना चाहती। एक जनम की गुलामी कमती है क्या?'
'मम्मी मम्मी अछनेरा वाले आए हैं....' बेटी की आवाज सुनकर उनकी तंद्रा भंग हुई और वे वर्तमान में लौट आई थीं। यही बिटिया थी, जिसका मुँह बाप ने कई दिनों बाद देखा था, जिसे पढ़ाने के लिए उसने कितनी आनाकानी की थी- 'कहा करैगी पढ़-लिख के कलट्टर बनेगी?' कलक्टर तो नहीं बनी, पर पढ़ी खूब, आज बड़े कॉलेज में प्रोफेसर है। सारे रिश्तेदारों में उसकी पढ़ाई की धाक है। अब बाप भी पीठ पीछे अपनी पीठ ठोक लेता है- आखिर बिटिया किसकी है। बिटिया की एक मात्र संतान है- वही लल्ली, डाकदरी की पढ़ाई कर रही है।
बेटी को मेहमानों की खातिरदारी के निर्देश देकर वे फिर धीरे-धीरे अतीत के पन्ने पलटने लगीं। इस लड़की को पढ़ाने के लिए उन्हें कितना जूझना पड़ा था। उन्होंने घूँघट ऊँचा करके कह दिया था - छोरा संग छोरी भी पढ़ेगी। मरद नहीं माना तो उन्होंने उपेक्षा, चुप्पी और भूख हड़ताल जैसे हथियार उठा लिए थे। औरत को पैर की जूती समझने वाले पति को झुकना पढ़ा था। उसने पढ़ाई की हामी तो भर दी थी लेकिन उन्हें एक-एक पैसे के लिए तरसाने लगा था। तब उन्होंने एक और फैसला लिया था। पति से साफ कह दिया था कि सिलाई मशीन उनके पास है। वे पास-पड़ोस से काम माँग कर पढ़ाई का खर्चा उठाएँगी। पति को लगा था कि इससे तो बदनामी हो सकती है। घर की आग में बाहर वालों का तापने का मौका मिलेगा। इसलिए वह गृहस्वामी के फर्ज निभाने लगा था, अपनी इच्छा के विरुद्ध ही सही। भगवान ने उनकी पत कुछ ऐसी रक्खी कि छोरी हर क्लास में अव्वल ही रही। जिस बेटे पर उनके पति को नाज था वह बाप के लाड़-प्यार में ऐसा उसकी लड़ाई
'वाट्स अप' पर एक जोक खूब वायरल हुआ था कि बड़े बड़ा ज्योतिषी भी सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि आज काम वाली बाई आएगी कि नहीं? आएगी तो कब तक आ जाएगी? हमारी महरी लछमी के बारे में एक भविष्यवाणी सही होती ही थी। अगर उसे आने में अधिक देर हो रही है, मान लीजिए कि अब वह नहीं आएगी। आज की छुट्टी। अगर आपने पूछ लिया, कल क्यों नहीं आई? आज देर से क्यों आई? बस उसके नए-नए बहाने ब्रेकिंग न्यूज की तरह फ्लैश होने लगते हैं
'आज सामने वाली पड़ोसिन ते रार है गई इसलिए ....' 44 ' सिदौसी ननदोई आय मरो या लिए.... '
'कल आँटी जी! लल्ली को हाल बेहाल है गयो तो कैसे आवती।' 'अरे खबर तो करा सकती थी कि नहीं आ पाऊँगी । '
'यहाँ मरबे की फुरसत नॉय हती खबर कहाँ से करती ?" उसकी भाषा ऐसी कि कभी खड़ी बोली तो कभी ब्रज भाषा में आवाजाही। रोज ऐसे-ऐसे बहाने कि सुनने वाला नया हो तो करुणा से भर उठे। हम तो रोज-रोज के उसके रोवने सुनकर पक्के हो गए थे, इसलिए उसकी व्यथा - कथा सिर के ऊपर से ही निकल जाती थी। लेकिन आज ध्यान देना ही पड़ा। उसका एक तो उसके बाँए हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी, दूसरे उसका चेहरा भी खासा रुआँसू था। आज कोई 'ब्रेकिंग न्यूज' फ्लैश नहीं हुई तो मुझे पहल करनी पड़ी
'क्या हुआ लछमी? कैसे चोट लग गयी?' इतना पूछना या कि जबर्दस्ती रोका हुआ दारुण दुख का प्रवाह जैसे बाँध को तोड़ के बहने लगा । आँखें से और मुँह से भी
'जैसा मेरे संग भया, वैसा किसी दुश्मन को भी न भोगना पड़े आँटी । मेरा गरब-गुमान गुम गया और...' वह अपनी बात पूरी नहीं कर पाई कि फूट-फूट कर रोने लगी। इतनी जोर से रोई कि ये भी अपने कमरे से बाहर निकल आये कि क्या दुर्घटना हो गई ?
उसे जैसे-तैसे चुप कराया। पानी पिलाया। चाय के साथ दो-तीन बिस्कुट भी पकड़ा दिए थे। बिस्कुट खाकर धीमी-सी आवाज में बोली थी-'आंटी भगवान आपको भलो करे । मरती हुई को जिवाय दिया । कल से अन्न का दाना