Zameer Ka Qaidi
()
About this ebook
Vimal's long-forgotten friend Jagmohan has sent him an SOS. Will Vimal reach in time to rescue Jagmohan?
Surender Mohan Pathak
Surender Mohan Pathak is considered the undisputed king of Hindi crime fiction. He has nearly 300 bestselling novels to his credit. He started his writing career with Hindi translations of Ian Flemings' James Bond novels and the works of James Hadley Chase. Some of his most popular works are Meena Murder Case, Paisath Lakh ki Dakaiti, Jauhar Jwala, Hazaar Haath, Jo Lare Deen Ke Het and Goa Galatta.
Read more from Surender Mohan Pathak
Jo Lade Deen Ke Het: Vimal Ka Visphotak Sansar Rating: 4 out of 5 stars4/5Hazaar Haath Rating: 5 out of 5 stars5/56 Crore Ka Murda Rating: 5 out of 5 stars5/5Haar Jeet Rating: 5 out of 5 stars5/5Crystal Lodge Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMujhse Bura Koi Nahi Rating: 5 out of 5 stars5/5Daman Chakra Rating: 5 out of 5 stars5/5Palatwaar Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPaisath Lakh ki Dacaiti Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsColaba Conspiracy Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMujhse Bura Kaun Rating: 5 out of 5 stars5/5Heera Pheri Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKarmyoddha Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJauhar Jwala Rating: 5 out of 5 stars5/5Goa Galatta Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Related to Zameer Ka Qaidi
Related ebooks
Karmyoddha Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsHeera Pheri Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPaisath Lakh ki Dacaiti Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsColaba Conspiracy Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJahannum Ki Aapshara Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsTijori Ka Rahasya: Jasusi Dunia Series Rating: 5 out of 5 stars5/5Bahurupiya Nawab Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsChattanon Mein Aag Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsIben Safi: Jungle Mein Lash Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsChaalbaaz Boodha: Jasusi Dunia Series Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsNakli Naak: Jasusi Dunia Series Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsFareedi Aur Leonard: Jasusi Dunia Series Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsIben Safi - Imran Series- Saapon Ke Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsNeele Parindey Rating: 4 out of 5 stars4/5Mujhse Bura Koi Nahi Rating: 5 out of 5 stars5/5Jauhar Jwala Rating: 5 out of 5 stars5/5Goa Galatta Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDaman Chakra Rating: 5 out of 5 stars5/5Palatwaar Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMujhse Bura Kaun Rating: 5 out of 5 stars5/5Diler Mujrim: Jasusi Dunia Series Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsLaal Lakeer Rating: 5 out of 5 stars5/5The Doll's Bad News in Hindi (Maut Ka Safar) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsKhullam Khulla: Rishi Kapoor Dil Se Rating: 5 out of 5 stars5/5In A Vain Shadow in Hindi (Paase Palat gaye) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsJEET NISHCHIT HAI (Hindi) Rating: 4 out of 5 stars4/5लोलिता (हिंदी सारांश) Rating: 4 out of 5 stars4/5I Hold Four Aces in Hindi (Choutha Ekka) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsIben Safi - Imran Series- Khaunak Imarat Rating: 3 out of 5 stars3/5Jail Diary Rating: 4 out of 5 stars4/5
Reviews for Zameer Ka Qaidi
0 ratings0 reviews
Book preview
Zameer Ka Qaidi - Surender Mohan Pathak
सोमवार : इक्कीस दिसम्बर
मुम्बई राजनगर
इरफान होटल सी-व्यू की चौथी मंजिल पर स्थित ‘राजा साहब’ के आफिस में पहुँचा।
वहाँ विमल के साथ शोहाब पहले से मौजूद था।
इरफान सकपकाया।
मेरे को नहीं मालूम था
—वो बोला—इधर कोई कान्फ्रेंस चल रयेला है।
कोई कान्फ्रेंस नहीं चल रही
—विमल बोला—ऐसे ही गप्पें मार रहे हैं।
भाई का फातिहा पढ़ रहे हैं।
—शोहाब बोला।
आ, बैठ।
—विमल बोला।
इरफान शोहाब के बाजू में एक विजिटर्स चेयर पर जा बैठा।
‘भाई’ अब ‘कम्पनी’ जैसी बीती बात हो गया है।
—शोहाब बोला।
क्या वाकेई?
—इरफान संजीदगी से बोला।
उसके संजीदा लहजे को दोनों श्रोताओं ने नोट किया।
कोई खास बात कहना चाहता है?
—विमल बोला।
कहने तो नहीं आया था लेकिन अब मुद्दा उठ खड़ा हुआ है तो कहता हूँ।
कह।
बाप, ये बात पक्की करके खाली तेरे को मालूम है कि ‘भाई’ खल्लास हो चुका है क्योंकि मई के महीने के आखिर में विंस्टन प्वायंट के उसके ठीये पर खुद तूने उसे खल्लास किया था। उस रात विंस्टन प्वायंट पर मौजूद ‘भाई’ के खास आदमियों के अलावा और उनके बीच हमारे भेदिये जेकब परदेसी के अलावा बाकी सबके लिए ये बात सुनी सुनायी है कि ‘भाई’ खल्लास हो चुका है। उधर एक कत्ल हुआ लेकिन कोई खबर न निकली, कोई एफआईआर न हुई, कोई पुलिस वाला उधर मौकायवारदात पर जा कर झाँका तक नहीं। इतना टेम हो गया उस वाकये को लेकिन अन्डरवर्ल्ड में उस बाबत खुसर-पुसर के अलावा कुछ भी नहीं। और खुसर-पुसर भी कैसी? कोई बोलता है ‘भाई’ सोहल के हाथों खल्लास, कोई बोलता है दुबई में सेफ बैठेला है तो कोई बोलता है कराची में सेफ बैठेला है।
मैं तो पहले ही बोला था कि...
मेरे को मालूम तू क्या बोला था। तू यहीच बोला था कि ‘भाई’ का खास इनायत दफेदार उसकी, एक इश्तिहारी मुजरिम की, विंस्टन प्वायंट पर अक्सर मौजूदगी की खबर पुलिस को लगने देना... शोहाब, क्या नहीं कर सकता था?
अफोर्ड नहीं कर सकता था।
—पढ़ा लिखा शोहाब बोला।
वहीच।
करता तो एक खतरनाक मुजरिम की हिन्दोस्तान में मौजूदगी की बाबत चुप रहने की एवज में, उसे विंस्टन प्वायंट पर पनाह देने की एवज में, दफेदार समेत वहाँ मौजूद तमाम के तमाम लोग गिरफ्तार होते।
बरोबर।
मैंने तो कहा ही था
—विमल बोला—कि अगर दफेदार को अक्ल होगी तो वो ‘भाई’ के कत्ल की, और यूँ हिन्दोस्तान में उसकी मौजूदगी की, पुलिस को भनक नहीं लगने देगा। वो लाश को चुपचाप कहीं दफना देगा और जाहिर करेगा कि ‘भाई’ एकाएक दुबई चला गया, कराची चला गया, अपने हालिया बाप रीकियो फिगुएरा के पास काठमाण्डू या हांगकांग चला गया, कहीं भी चला गया।
बरोबर बोला, बाप
—इरफान बोला—सब वैसीच बोला जैसे कोई दाना, दूरन्देश भीड़ू बोलता है पण एक बात बरोबर न बोला।
कौन-सी बात?
तेरे को जान पड़ता था कि दफेदार झाग बन के बैठ जायेगा पण वो नहीं बैठेला है।
लगता तो नहीं ऐसा!
खाली लगता नहीं है।
तेरा मतलब है ये तूफान से पहले की शान्ति है?
हाँ। मेरा भेजा यहीच बोलता है कि दफेदार कोई बड़ा खेल खेलने की फिराक में है।
भाई की जगह लेने की फिराक में है?
वो तो खैर अभी दूर का सपना है लेकिन ‘भाई’ के खौफ को इधर के अन्डरवर्ल्ड में जिन्दा रख के अपना कोई शीराजा बटोरने की फिराक में बरोबर है।
कैसे करेगा वो ये काम?
फिगुएरा से शै पा कर करेगा।
—शोहाब बोला—और किसी को उसने बोला हो या न बोला हो, फिगुएरा को जरूर बोला होगा कि ‘भाई’ का कत्ल हो गया था। फिगुएरा को अपना हेरोइन का कारोबार चालू रखने के लिए इधर अपना कोई खास हमेशा चाहिये। दिल्ली के दादाओं की बिरादरी तुमने जहन्नुमरसीद कर दी—भोगीलाल, झामनानी और ब्रजवासी को तुमने मार डाला, पवित्तरसिंह तुम्हारी वजह से मारा गया—इधर तुमने ‘भाई’ की लाश गिरा दी, ऐसे माहौल में दफेदार फिगुएरा को अपने काम का आदमी मालूम पड़ सकता है और वो उस पर अपनी उम्मीदें टिका सकता है।
उसे बिना परखे?
—विमल बोला—बिना आजमाये?
परखेगा। आजमायेगा। क्या पता हालिया खामोशी में परखने की, आजमाने की ही तैयारियाँ चल रही हों!
तैयारियाँ! कैसी तैयारियाँ?
दो ही तैयारियाँ मुमकिन हैं, दो ही काम हैं जो दफेदार का रुतबा बुलन्द कर सकते हैं और फिगुएरा को मुतमईन कर सकते हैं कि दफेदार उसके काम का आदमी है।
कौन-से दो काम?
एक इस घड़ी खूब फलते फूलते इस होटल को मरघट बनाना और दूसरा तुम्हारी लाश गिराना।
दोनों आसान काम हैं! दफेदार यूँ
—विमल ने चुटकी बजाई—कर लेगा! नो प्राब्लम!
आसान काम तो नहीं हैं! आसान होते—खास तौर से तुम्हारी लाश गिराने का काम—तो इस काम को उससे पहले करने वालों का क्या तोड़ा था?
बरोबर बोला।
—इरफान बोला—जो काम ‘कम्पनी’ के बड़े-बड़े तीरन्दाज न कर सके, ‘भाई’ न कर सका, वो दफेदार कर लेगा?
क्या पता चलता है?
—विमल दार्शनिक भाव से बोला।
अरे, वो भुँगा! वो तिनका...
तिनका कबहू न निन्दिये, पाँव तले जो सोय; कबहूँ उड़ी आँखों परै, पीर घनेरी होय।
क्या बोला, बाप?
दुश्मन को कमजोर नहीं समझना चाहिये।
—शोहाब बोला—ये बोला, बाप।
ओह! पण मेरे को नहीं लगता वो कुछ कर सकेगा।
फिर भी खबरदार रहने में क्या वान्दा है?
कोई वान्दा नहीं, पण...
वो है कहाँ?
—विमल ने पूछा।
मालूम नहीं।
हैदर को जब हमने रिहा कर दिया था तो वो उसके पास पहुँचा था या नहीं पहुँचा था?
पहुँचा था लेकिन अब वो भी गायब है।
और उसका भाई जेकब परदेसी उर्फ सफदर?
वो तो ‘भाई’ के कत्ल के फौरन बाद इधर हाजिरी भरने आया था और तेरी ही सलाह पर, कि कुछ अरसे के लिए दफेदार की नजरों से दूर कहीं गायब हो जाये, गायब हो गया था। नतीजतन तभी से गायब है।
इसीलिये बच गया। दफेदार से ये हकीकत छुपी रहने वाली नहीं थी कि वो ‘भाई’ के कत्ल के षड्यन्त्र में शरीक था। कत्ल के फौरन बाद विंस्टन प्वायंट से भाग खड़ा होने की जो मूर्खता उसने की थी, उसकी वजह से दफेदार का कहर उस पर टूट के रहना था।
आज भी टूट सकता है। दफेदार ‘भाई’ की जगह लेने में कामयाब हो गया तो वो उसे पाताल से भी खोद निकालेगा।
उससे पहले दफेदार को हम खोद निकालें तो कैसा रहे?
ये आइडिया मेरे भेजे में है, बाप।
हम उसके कोई चाल चलने के इन्तजार में हैं।
—शोहाब धीरे से बोला—वो कोई चाल चलेगा तो कोई हिलडुल होगी, कोई हिलडुल होगी तो हमें उसका कोई अता-पता मालूम पड़ेगा।
फिर देखेंगे उसको।
—इरफान बोला।
पिछले कुछ अरसे में
—विमल बोला—नाहक हमारी जो ताकत बन गयी है, तुम उसको नजरअन्दाज कर रहे हो।
ताकत!
जो कभी ‘कम्पनी’ की थी। क्यों, शोहाब?
कभी
—सहमति में सिर हिलाता शोहाब बोला—जो काम ‘कम्पनी’ के लिए उसके भेदिये करते थे वो अब सोहल के लिए उसके मुरीद करते हैं।
मैं समझ गया
—इरफान बोला—मैं अक्खी मुम्बई में फैलाता हूँ कि सोहल को दफेदार माँगता है।
गुड!
—विमल बोला—और सीता बनवास कब तक चलेगा?
क्या बोला, बाप?
मैं नीलम से कब मिल पाऊँगा? सूरज से कब मिल पाऊँगा?
अभी नहीं, बाप, अभी नहीं। अभी जैसा चल रहा है, चलने दे। अल्लाह के करम से तेरी बेगम कोल्हापुर में मेरी बहन के घर में महफूज है और सूरज विखरोली में कोमल के पास, उसकी मरहूम बहन का गोद लिया बेटा बना, महफूज है। खुदा के वास्ते थोड़ा अरसा और ऐसीच चलने दे।
नीलम चलने देगी?
दे ही रही है। वर्ना क्या उसे यहाँ का रास्ता नहीं आता?
ठीक।
और बाप, तू भूल रहा है कि जिस रास्ते पर तेरी बेगम चली थी, वो उसने खुद चुना था।
दुरुस्त।
आज मेरा फर्ज और मेरी गैरत का तकाजा मुझे तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर निकल जाने के लिए प्रेरित कर रहा है। तुम विषम परिस्थितियों से जूझने में माहिर हो इसलिये उम्मीद है कि तुम माँ बेटे की जुदाई का कोई सदमा महसूस करोगे तो उसे झेल लोगे। अगर औरत अपने मर्द के पाँव की बेड़ियाँ बन जाये तो औरत का यही धर्म बनता है कि वो उन बेड़ियों को काट डाले। मैं अपना धर्म निभा रही हूँ और तुम्हें छोड़ के जा रही हूँ। अब तुम्हें फिक्र करने की जरूरत नहीं कि दुश्मन फिर मुझे—या सूरज को या दोनों को—तुम पर वार करने का, तुम्हारा सिर झुका देखने का जरिया बना सकते थे। तुम्हारे पैरों की बेड़ियाँ मैंने खुद काट दीं। अब तुम अपनी जिन्दगी की सब से बड़ी फिक्र से आजाद हो। अब सिर्फ अपनी फिक्र करना और अपना सिर वैसे ही शान से ऊँचा रखना जैसे कि आज तक रखा। दशमेश पिता दो जहाँ का मालिक मेहर करेगा और वाहे गुरु के खालसा की गर्दन कभी नहीं झुकने देगा।
वाहे गुरु! जीऊ जन्त सभि सरण तुम्हारी, सरब चिंत तुध पासे। जो तुध भावे सोई चंगा इक नानक की अरदासे।
किधर खो गया, बाप!
क्या?
—विमल हड़बड़ाया।
किधर खो गया?
—इरफान बोला।
किधर भी नहीं। तू बोल, तू कैसे आया था?
बोलता है। वो क्या है कि दो भीड़ू काफी टेम से तेरे को ढूँढ़ रयेला है।
मेरे को?
राबिन हुड, सखी हातिम, दीनबन्धु, दीनानाथ, गरीबों का हमदर्द, दोस्तों का दोस्त, दुश्मनों का दुश्मन, भूखे के मुँह में रोटी का निवाला देने वाला, नंगे के तन पर कपड़ा डालने वाला, अँधे की आँख, लँगड़े की लाठी, बेसहारे का सहारा, अनाथ का नाथ, कद्रदान, मेहरबान, गरीबनवाज...
एण्ड वाट नाट।
—शोहाब बोला।
... सोहल को।
बस कर, यार।
—विमल बोला।
बाप, जो लोगबाग बोलता है, वहीच बोला।
उन दो जनों की बात कर। क्यों ढूँढ़ते हैं वो मेरे को?
मिलना चाहते हैं।
क्यों?
खाली तेरे को बोलेंगे।
जानकारी में कैसे आये?
चैम्बूर पहुँचे न!
जहाँ बस
—शोहाब बोला—जहाँगीरी घण्टा लटकाने की कसर है।
चैम्बूर के उन के उस ठीये का इतना प्रचार हो गया था, कि जरूरतमन्दों को गरीबनवाज सोहल वहाँ हर घड़ी मिलता था, कि नये-नये लोग, दूर-दूर से अपनी जरूरतों की कहानियाँ लेकर वहाँ पहुँचने लगे थे। चर्च में नंस के लिए क्वार्टर बनने हैं, पादरी को डोनेशन चाहिये। मिशन के स्कूल में बच्चों को वर्दियाँ और दोपहर का खाना मुहैया कराना है, प्रिंसीपल साहब को दान चाहिये। इमाम साहब को गरीबों को हज कराने के लिए रकम चाहिये। डिस्पैन्सरी की फ्री ओपीडी पर बीमारों का हुजूम बढ़ता ही जा रहा है, डॉक्टर साहब को दवाओं के लिए कंट्रीब्यूशन चाहिये। यतीमखाने की छत गिर गयी है या गिरने वाली है, चन्दा चाहिये। विधवा आश्रम को कम्बल चाहियें, मन्दिर में भगवान की मूर्ति स्थापित होनी है, महन्त जी को पैसे चाहियें, ग्रंथी को गुरुद्वारे के लंगर के लिए...
करोड़ों लोगों का मुल्क! करोड़ों लोगों की जरूरतें!
कौन पूरी कर सकता था?
चौबीस घण्टे तीन सौ पैंसठ दिन होते रह सकने वाले काम को कौन अंजाम दे सकता था?
नतीजतन सर्वसम्मति से ये फैसला हुआ था कि गर्जमन्द बन कर आये लोगों की स्क्रीनिंग की जाये और जो जेनुइन केस दिखाई दें उन्हीं को खातिर में लाया जाये।
यूँ लोगों की बेतहाशा आमद काबू में आ गयी थी लेकिन इरफान और उसके खासुलखास मतकरी, परचुरे, पिचड़ और बुझेकर का काम बढ़ गया था। जो जेनुइन केस होते थे उन्हें जो माली इमदाद दी जानी होती थी, उसे वो ही दे देते थे लेकिन फिर भी कोई न कोई ऐसा अकीदतमन्द निकल ही आता था जो कि हासिल इमदाद सोहल से ही कबूल करने की जिद करता था।
बकौल शोहाब ये प्रचार सिरे से ही गलत और खतरनाक था कि सोहल—हमेशा नहीं तो कभी-कभार—चैम्बूर के उस मकान में पाया जाता था जो कभी तुका का घर होता था।
जरूरत क्या है उनकी?
—विमल बोला।
कोई नहीं।
—इरफान ने जवाब दिया।
क्या!
न उन्होंने कोई जरूरत जाहिर की और न लगता था कि वो जरूरतमन्द थे; खासतौर से वो जो कि बाहर से आया था।
तो मिलना क्यों चाहते हैं?
आटोग्राफ लेना चाहते होंगे!
—शोहाब बोला—अपने आइडियल के साथ, हीरो के साथ फोटो खिंचवाना चाहते होंगे!
नानसेन्स!
शोहाब हँसा।
तूने जवाब नहीं दिया।
—विमल इरफान से सम्बोधित हुआ—जब गरजमन्द नहीं हैं तो मिलना क्यों चाहते हैं?
बोला न, तेरे को बोलेंगे।
तू मिला उनसे?
हाँ। जब वो चैम्बूर में रिसैप्शन पर बैठने वाले हमारे भीड़ू से राजी न हुए तो मेरे को मिलना पड़ा।
तू क्या बोला उन से?
वही जो नवां भीड़ू लोग से बोला जाता है। उन को मुगालता लगा था, उधर कोई सोहल नहीं पाया जाता था। उधर किसी सोहल को कोई नहीं जानता था।
फिर?
उन्होंने कान से मक्खी उड़ाई और सोहल से मुलाकात की जिद पर अड़े रहे।
दोनों इकट्ठे थे?
नहीं।
एक दूसरे से वाकिफ थे?
नहीं।
लेकिन आये इकट्ठे थे?
नहीं। अलग-अलग दिन, अलग-अलग वक्त पर आये थे। लेकिन दोनों की माँग एक ही थी। सोहल से मिलना था। हर हाल में मिलना था।
कुछ मालूम किया होता उन के बारे में! कोई पता निकाला होता!
किया न! निकाला न!
अच्छा, निकाला?
बरोबर। एक तो लोकल भीड़ू है, जीतसिंह नाम है, तालातोड़ है, तारदेव के सुपर सैल्फ-सर्विस करके स्टोर की डकैती में गिरफ्तार था, बड़ी मुश्किल से जमानत पर छूटेला था कि तारदेव थाने के एसएचओ इंस्पेक्टर गोविलकर का कत्ल हो गया था जिसके लिए पहले तो उसी को जिम्मेदार ठहराया गया था लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ था कि इलाके के डीसीपी—प्रधान नाम है—ने ही उसे बरी कर दिया था।
नोन बैड करेक्टर है।
—शोहाब ने जोड़ा—अन्डरवर्ल्ड में बतौर वाल्टबस्टर खूब मशहूर है। कुछ अरसा हुआ हेनस रोड के एक जौहरी की दुकान लुटी थी, कहते हैं तब जौहरी की तिजोरी इसी शख्स ने खोली थी।
धारावी में
—इरफान बोला—काला किला के इलाके में हाल में तीन खून हुए थे। कत्ल हुई दो लाशें वहाँ के एक गोदाम में पड़ेली थीं और एक बाई बाहर सड़क पर खड़ी मारुति वैन में ठुकी पड़ी थी; बाप, अन्डरवर्ल्ड में बहुत चर्चा है कि वो तीनों खून भी इस जीतसिंह करके भीड़ू ने ही किये थे।
अभी भी जमानत पर बाहर है।
—शोहाब बोला।
फिर तो काफी गुणी आदमी हुआ!
—विमल बोला।
हुआ तो।
—इरफान बोला।
और ऐसा शख्स मेरे से मिलना माँगता है?
टलना नहीं माँगता। जिद नहीं छोड़ता। सुनता हैइच नहीं कि उधर चैम्बूर में सोहल नहीं पाया जाता।
कैसे सुने! लोकल है, एक तरह से हमारी बिरादरी का है, कहने भर से कैसे मान जायेगा कि वहाँ सोहल नहीं पाया जाता!
बरोबर बोला, बाप।
मुश्ताकेमुलाकात दूसरे साहब कौन हैं?
दूसरे भीड़ू का नाम विकास गुप्ता है। राजनगर से खास तेरे से मुलाकात करने का तमन्नाई बना आया बताता है अपने आपको। खूबसूरत नौजवान लड़का है। सूरत से बोले तो किसी भले घर का रौशन चिराग जान पड़ता है। पण...
इरफान जानबूझ कर खामोश हो गया।
वो भी तालातोड़ है? कातिल है? जमानत पर बाहर है?
नहीं।
तो क्या है?
आर्टिस्ट है। कलाकार है। फनकार है।
क्या फन है उसका?
ठग है।
क्या!
मैं जानकारी निकाला, पक्की करके मालूम पड़ा कि पेशेवर ठग है...
कॉनमैन।
—शोहाब बोला।
धोखाधड़ी ही उसकी रोजी रोटी का जरिया है।
ठगी को कलाकारिता बताता है?
—विमल बोला।
टॉप क्लास, बाप, टाॅप क्लास।
—इरफान बोला—बस यहीच एक काम है जिसमें बोले तो उसकी महारत है।
कभी फँसा नहीं?
कई बार। कई बार पकड़ा गया बताते हैं पण कभी सजा नहीं हुई।
उसके खिलाफ
—शोहाब बोला—कभी कोई केस अदालत में खड़ा न हो पाया, हमेशा लैक आफ ईवीडेंस में छूट गया।
अब किस फिराक में है? अपनी ठगी का शिकार मुझे बनाना चाहता है?
तेरे को बोलेगा न!
सन्दिग्ध चरित्र के लोग फरियादी बन कर चैम्बूर पहुँचते ही रहते हैं लेकिन ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ कि किसी ने अपने को खुद अपनी जुबानी तालातोड़ बताया हो, कॉनमैन बताया हो और वो किसी इमदाद का तलबगार न हो!
बाप, मैं खुद हैरान।
मिले बिना टलने वाले भी नहीं!
तालातोड़ में छोटेपन का अहसास है, अहसासेकमतरी का मारा है, शायद टल जाये, ठग नहीं टलने वाला।
तो तुम लोगों की क्या राय है, मुझे मिलना चाहिये?
अब न टलने वाले से मिलना कबूल करेगा तो दूसरे से भी मिल लेना।
अरे, कोई पुलिस का भेदिया तो नहीं? कोई दुश्मन की चाल का मोहरा तो नहीं?
नहीं। मैं पक्की पड़ताल किया।
ठीक है, मिलता हूँ। इन्तजाम कर।
अभी, बाप।
आखिरकार जगमोहन के पास वो गुड न्यूज पहुँची जिस का उसे अरसे से इन्तजार था और जो दो दिन और न पहुँचती तो किसी काम की न होती।
न्यूज का जरिया टेलीफोन काल थी जो कि सुनामपुर से आयी थी।
सुनामपुर समुद्र तट पर बसा दूर दराज का शहर था।
फोन करने वाले का नाम दिलीप चौधरी था।
मैंने कोड ब्रेक कर लिया है।
—उसने बताया।
आखिरकार।
—जगमोहन बोला।
हाँ, आखिरकार। तीन महीने लगे।
आजमा लिया?
हाँ।
सच में आजमा लिया, इसलिये कह रहे हो या तुम्हारी कारीगरी का अभिमान कहलवा रहा है?
सच में आजमा लिया।
बढ़िया। और डुप्लीकेट गाड़ी की बाबत क्या कहते हो?
वो मामूली काम है। दो दिन में हो जायेगा। गाड़ी तो है ही, खाली उसके एक्सटीरियर को ऐसी शक्ल देनी है कि वो एक निगाह में बैंक की गाड़ी लगे।
आगे?
आगे तुम बोलो।
मैं ही बोलूँगा। राजनगर पहुँचो।
कहाँ?
वहीं जहाँ पिछली मुलाकात हुई थी।
कब?
जब तुम पहुँच सको।
मैं तो आज ही पहुँच सकता हूँ। एक्सप्रेस ट्रेन से पाँच घण्टे तो लगते हैं।
ठीक है। शाम सात बजे।
पहुँच जाऊँगा।
जगमोहन ने सम्बन्ध-विच्छेद कर दिया और सोचने लगा।
जो काम वो सुनामपुर में करने जा रहे थे, उसमें मेजर रोल खुद उसका था और जो आनन-फानन बड़ा इन्तजाम उसने करके दिखाना था वो हाथ आयी आइटम को रातोंरात राजनगर पहुँचाना था जहाँ कि आइटम का तुरत-फुरत ग्राहक मौजूद था। उस काम की रूपरेखा उसके जेहन में तैयार थी।
सुनामपुर टाउनशिप से छ: किलोमीटर बाहर एक उजड़ा हुआ पायर था जो कि एक मुद्दत से इस्तेमाल में नहीं था। सस्ती लेबर और सस्ती लकड़ी की वजह से कभी उधर फर्नीचर का इतना काम होता था कि वो शहर ही फर्नीचर टाउन कहलाता था। फिर एक भीषण आग की सूरत में कुदरत की ऐसी मार उस इलाके पर पड़ी कि जंगल के जंगल जल कर खाक हो गये, सस्ती लेबर मुहैया कराने वाले परिवार हजारों की तादाद में वहाँ से पलायन कर गये और फर्नीचर का धँधा खत्म हो गया। शहर तो धीरे-धीरे फिर बस गया लेकिन धँधा फिर न खड़ा हो सका और वो पायर फिर आबाद न हो सका जहाँ से स्टीमरों पर लदकर फर्नीचर राजनगर की बन्दरगाह पर पहुँचता था।
वो पायर अब उन के काम आने वाला था।
उसने चौबीस की रात को आठ बजे एक स्टीमर उस उजड़े पायर पर मुहैया कराना था और सुबह होने से पहले उसे राजनगर के एक वैसे ही बियावान समुद्र तट पर पहुँचाना था।
पचास करोड़ का माल जिस के पैंतीस करोड़ इस हाथ ले उस हाथ दे के अन्दाज से हासिल होते।
ये दुनिया एक खेला
—उसके मुँह से निकला—जिसके किरदार बदलते रहते हैं, खेला नहीं रुकता। चलता रहता है। चलता रहता है।
दौलतमन्द बनने की चाह में जिस शुरुआती क्राइम में उसने विमल के साथ शिरकत की थी, वो तो अब उसकी गुनाहों से पिरोई जिन्दगी में बहुत पीछे रह गया था लेकिन अपनी उसके बाद की कई कामयाबियों के बाद आज भी उसे इस बात का मलाल था कि अमरीकी डिप्लोमैट सिडनी फोस्टर के अपहरण को पूरी कामयाबी से अंजाम दे चुकने के बावजूद पल्ले कुछ नहीं पड़ा था। दो साथी—पोपली और महेन्द्र नाथ—मारे गये थे, विमल एक करिश्माई तरीके से मरने से बाल बाल बचा था और खुद वो एक बार फिर बेयारोमददगार अकेला रह गया था। छाती में धँसे सूये की वजह से हुई सर्जरी के बाद विमल को नीलम अपने साथ चण्डीगढ़ ले गयी थी और पीछे वो हाथ में विमल के दिये बत्तीस हजार रुपये लेकर सोचता ही रह गया था कि कहाँ जाऊँ, किधर का रुख करूँ, कहाँ पनाह पाऊँ?
फरार अपराधी तो वो तब भी था—पटना से चार खून करके भागा हुआ था—इसलिये प्लास्टिक सर्जरी से नया चेहरा हासिल करने का तमन्नाई था जिसके लिए प्लास्टिक सर्जन डाक्टर अर्ल स्लेटर की मोटी फीस भरना उसके बस का नहीं था। ऐसा ही बेबस शख्स डाक्टर स्लेटर के क्लीनिक में उसे विमल मिल गया था और फिर दो नाउम्मीद, नामुराद लोगों को मुराद हासिल करने का जरिया सिडनी फोस्टर के अपहरण और उससे हासिल होने वाली फिरौती में दिखाई दिया था।
पटना में वो एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी में कैशियर की नौकरी करता था। एक दिन वो कम्पनी में बैठा कैश गिन रहा था तो किसी ने आ कर उसे बताया कि उस की बीवी का एक्सीडेंट हो गया था। दौड़ा-दौड़ा घटनास्थल पर पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि उस की बीवी और उसका सात साल का लड़का दोनों परलोक सिधार चुके थे। बीवी लड़के को स्कूल से लेकर एक रिक्शा पर सवार घर वापिस लौट रही थी कि एक ट्रक ने रिक्शा को अपनी चपेट में ले लिया था। अपनी बीवी और बच्चे को उसने मांस के लोथड़ों की शक्ल में सारे बाजार में बिखरे देखा था।
ट्रक ड्राइवर एक्सीडेंट के बाद भाग नहीं सका था। उस का ट्रक दुर्घटनास्थल से थोड़ा ही आगे जाकर बिजली के एक खम्बे से टकरा गया था और फिर वहाँ से हिल नहीं सका था। बीवी, बच्चे के भीषण अंजाम से उसका दिमाग हिला हुआ था, ट्रक के किसी भाग से उखड़ी एक लोहे की छड़ उसके हाथ में आ गयी थी जिससे उसने ट्रक ड्राइवर का सिर तरबूज की तरह खोल दिया था और वैसे ही क्लीनर को भी ठौर मार डाला था। उसी क्षण एक सिपाही और हवलदार वहाँ पहुँचे, उन्होंने उसे गिरफ्तार करने की कोशिश की तो उसने उन दोनों का भी ट्रक ड्राइवर और क्लीनर जैसा हाल कर डाला था। आखिरकार छ: लाशों को रौंदता वो उसी ट्रक पर सवार होकर मौकायवारदात से फरार हुआ था जो खम्बे से टकराने के बाद उसके ड्राइवर से स्टार्ट होकर नहीं दे रहा था।
उसकी भटकन राजनगर में जाकर खत्म हुई जहाँ इत्तफाक से ही वो मोटर मैकेनिक के धन्धे में पड़ा।
राजनगर में वो जो ऑटो रिपेयर शाप चलाता था, सूरत तब्दील हो जाने के बाद—ताकि बतौर कातिल उसे कोई पहचान न पाता—वो उसी में तरक्की के ख्वाब देखता था। जो बड़ी छलाँग उसने लगायी, उस में बावजूद कामयाबी के हाथ भले ही कुछ न आया लेकिन उस बड़ी छलाँग के बाद फुदकते रहना उसे अपने बस का न लगा। नतीजा ये हुआ कि अपहरण और फिरौती के—वन टाइम, वन फर्स्ट एण्ड लास्ट टाइम—गुनाह की जो कालिख चेहरे पर पुती, वो कभी न धुल सकी। नया चेहरा भी विडम्बना बन गया जो कि डॉक्टर स्लेटर की फीस की रकम हासिल होने का मोहताज था लेकिन वो रकम—उससे कहीं ज्यादा दौलत—हासिल हो जाने के बावजूद नया चेहरा उसे न हासिल हो सका क्योंकि उस जुस्तजू में जब वो वापिस सोनपुर पहुँचा तो उसे मालूम हुआ कि डॉक्टर स्लेटर का कत्ल हो चुका था और उस वजह से उसका क्लीनिक उजड़ चुका था। नया चेहरा तो उसे हासिल न हुआ लेकिन उसकी खोटी तकदीर ने उसका इतना साथ जरूर दिया कि उसे पटना से फरार हुए ढाई साल से ऊपर हो गये थे, अभी तक एक बार भी उसकी शिनाख्त और गिरफ्तारी का मौका नहीं आया था।
न ही अब तक अंजाम दी अपनी वारदातों में उसके पकड़े जाने की नौबत आयी थी।
इसी वजह से उसमें इतनी दिलेरी थी कि पिछले दो साल से वो राजनगर के करीबी कस्बे खैरगढ़ में बसा हुआ था और बेहिचक, बेझिझक राजनगर अक्सर आता जाता था।
जैसे कि अपनी तकदीर को ललकारने, उससे पंजा लड़ाने।
ये भी भाग्य की विडम्बना थी कि अपने पहले गुनाह का फल चखने का मौका उसे मिल गया होता तो आगे गुनाह करने की नौबत ही न आती। जब कामयाबी की गारण्टी थी तो तब तो वो एक छलावे की तरह हाथ से निकल गयी और अब कभी कामयाबी की गारण्टी नहीं होती थी—वो जो करता था रिस्क लेकर करता था—तो भी कामयाब होता था।
इसीलिए उसका दिल गवाही दे रहा था कि उस बार भी वो नाकाम नहीं रहने वाला था।
इसीलिये पिछले दस दिनों से अपने चेहरे पर वो फ्रेंच कट दाढ़ी मूँछ यूँ तैयार कर रहा था कि किसी की उस पर नजर न पड़ती। इन दिनों में खैरगढ़ में कहीं देखा जाने से उसने खास परहेज किया था। फिर भी कहीं जाना पड़ता था तो वो मुँह अँधेरे गले में यूँ मफलर लपेट कर जाता था कि उसकी नाक के नीचे तक उसका चेहरा मफलर में छुप जाता था। दिसम्बर की सर्दी में उसकी वो हरकत किसी देखने वाले को स्वाभाविक जान पड़ती थी। आइन्दा अभियान के समापन के बाद जब वो दाढ़ी मूँछ साफ कर देता तो किसी को सूझता तक नहीं कि बीच में उसने यूँ अपनी शक्ल में कोई तब्दीली पैदा कर ली थी।
विमल ने आँख भर कर उस शख्स को देखा जिसका नाम विकास गुप्ता था।
वो लगभग तीस साल का लम्बा ऊँचा कद्दावर नौजवान था और इरफान ने जब उसको खूबसूरत कहा था तो उसकी पर्सनैलिटी को कम कर के आँका था। वस्तुत: वो फिल्म अभिनेताओं जैसा खूबसूरत था। वो ब्राउन कलर का बहुत हाई क्लास सूट पहने था और हल्के ब्राउन कलर की कमीज के साथ सूट जैसी टाई लगाये था। उसके चेहरे पर ऐसे बुद्धिमत्ता के भाव थे कि किसी मल्टीनैशनल कॉर्पोरेशन का टॉप एग्जीक्युटिव जान पड़ता था।
विमल किसी भी लिहाज से उसकी कल्पना एक कॉनमैन के तौर पर न कर सका।
उसके साथ एक खूबसूरत नौजवान लड़की थी जो कि उम्र में उस से तीन चार साल कम जान पड़ती थी। उसके बाल बड़े आधुनिक, स्टाइलिश ढंग से कटे हुए थे और उसने चेहरे पर बड़ा सलीके का मेकअप लगाया हुआ था। वो फिरोजी रंग की शिफॉन की साड़ी पहने थी और वैसा ही लो-कट स्लीवलैस ब्लाउज पहने थी।
दिसम्बर के महीने में वो परिधान मुम्बई में ही चल सकता था।
तो आप
—विमल बोला—विकास गुप्ता हैं और कलाकार हैं?
जी हाँ।
—उत्तर मिला।
ठगी को आप अपना कोई ऐब, कोई नुक्स, कोई खामी, कोई कमतरी नहीं मानते?
जी नहीं।
अपने कारोबार से सन्तुष्ट हैं?
कुछ अरसा पहले तक था, अब नहीं हूँ।
अब क्या हुआ?
वजह अभी आप खुद ही समझ जायेंगे।
हूँ। मैडम की तारीफ?
ये शबनम है, मेरी फ्रेंड है।
—वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला—हमपेशा।
विमल की भवें उठीं।
इसीलिये फ्रेंड है।
—उसका मतलब समझ कर वो बोला—दांत काटी रोटी है।
आई सी। तो आप सोहल से मिलने के ख्वाहिशमन्द हैं?
था। अब तो ख्वाहिश पूरी हो गयी।
इरफान और शोहाब उस घड़ी विमल के आजू बाजू बैठे हुए थे।
हम में से कौन सोहल है?
—विमल बोला।
आप मजाक कर रहे हैं।
अच्छा!
मैं आपका फैन और एडमायरर हूँ, सिर्फ आपसे मिलने के वन प्वायंट प्रोग्राम के तहत मैं हजार किलोमीटर के फासले से यहाँ आया हूँ, अगर मैं आपको नहीं पहचान सकता तो लानत है मेरे आपका फैन और एडमायरर होने पर।
वैरी वैल सैड।
गुस्ताखी से कहूँ तो मैं उसी तालाब की एक बहुत छोटी मछली हूँ जिसके आप बडे मगरमच्छ हैं; ‘कम्पनी’ के खातमे के बाद, ‘भाई’ के खातमे के बाद, जिसके आप सब से बड़े मगरमच्छ हैं।
‘भाई’, के खातमे की भी खबर है?
जी हाँ। उसके अन्डर में चलने वाला एक जमूरा इस बात को झुठलाता है लेकिन मुझे मालूम है कि ‘भाई’ खत्म है।
कैसे मालूम है?
मई में सारे अन्डरवर्ल्ड में, आप की रहमत के जेरेसाया पलने वाले एक खास तबके में, आम चर्चा थी कि ‘भाई’ रावण था और आप राजा रामचन्द्र थे। ‘भाई’ खत्म न हो गया होता तो क्या मई से अब तक राजा रामचन्द्र हाथ पर हाथ धर कर बैठे होते?
काफी समझदार आदमी हो।
मैं आपकी परछाईं भी नहीं हूँ।
एक इश्तिहारी मुजरिम के, जो कि पकड़ा जाते ही फाँसी पर चढ़ा दिया जायेगा, फैन एण्ड एडमायरर क्योंकर बन गये?
आपके परोपकारी किरदार से मुतासिर हो कर बना। कौन नहीं जानता कि आज मुल्क में कितने विधवाश्रम, कितने यतीमखाने, कितने दवाखाने, कितने लंगर उस माली इमदाद के सदके चल रहे हैं जो आप मुहैया कराते हैं। कौन नहीं जानता कि कितने नंगों के जिस्म पर कपड़ा आप की वजह से है, कितने भूखों के पेट में निवाला आप की वजह से है। कितने बच्चों को गलियों की धूल फाँकने की जगह, भीख माँगने की जगह, स्कूल जाना नसीब है। कितनी विधवा माइयों को आप भगवान का रूप नहीं, भगवान दिखाई देते हैं। कितने अपाहिज कहते हैं कि जब वो भगवान की चरणरज के अभिलाषी होंगे तो वो महालक्ष्मी मन्दिर का नहीं, चैम्बूर का रुख करेंगे। कितने मजलूम इंसाफ की गुहार लगाने कोर्ट कचहरी नहीं पहुँचते, चैम्बूर पहुँचते हैं। कितने...
देनहार कोऊ और है, भेजत सो दिन रैन; लोग भरम हम पर धरें, पाते नीचे नैन।
ये आपका बड़प्पन है...
नहीं, भाई, नहीं। ताकत कहीं और है, साधन कहीं और हैं, जिसको आर्गेनाइज करने का, चैनेलाइज करने का जरिया मैं हूँ। बजातेखुद मेरी कोई हस्ती नहीं, कोई औकात नहीं। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।
आप अकेले नहीं हैं, अकेले होते तो मैं ही यहाँ न होता।
विमल ने सकपका कर उसकी तरफ देखा।
मतलब?
—फिर बोला।
साधनों का घड़ा बूँद-बूँद से भरता है, मैं घड़े में एक बूँद टपकाने का तमन्नाई बन कर आया हूँ।
राजा रामचन्द्र ने
—शबनम दबे स्वर में बोली—"लंका पर चढ़ाई करने के लिए जब समुद्र में पुल बाँधा