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Karmyoddha
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About this ebook


Vimal reaches Khairgarh to rescue his old friend Jagmohan, but soon he realizes that it's a trap and his own life is in danger.
Languageहिन्दी
PublisherHarperHindi
Release dateJan 15, 2017
ISBN9789352643653
Karmyoddha
Author

Surender Mohan Pathak

Surender Mohan Pathak is considered the undisputed king of Hindi crime fiction. He has nearly 300 bestselling novels to his credit. He started his writing career with Hindi translations of Ian Flemings' James Bond novels and the works of James Hadley Chase. Some of his most popular works are Meena Murder Case, Paisath Lakh ki Dakaiti, Jauhar Jwala, Hazaar Haath, Jo Lare Deen Ke Het and Goa Galatta.

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    Karmyoddha - Surender Mohan Pathak

    पूर्वाभास

    ‘भाई’ के सोहल के हाथों कत्ल के लगभग छ: महीने बाद इंटरनेशनल ड्रग लार्ड रीकियो फिगुएरा साउथ एशिया में अपना हेरोइन का धँधा चलाये रखने की मजबूरी के तहत ‘भाई’ के खास लेफ्टीनेंट इनायत दफेदार की पीठ पर हाथ रखता है, उसे खुद को ‘भाई’ की जगह लेने के काबिल साबित करके दिखाने को तीन महीने का टाइम देता है तो दफेदार शेर हो जाता है और सबसे पहले अन्डरवर्ल्ड में ये स्थापित करने का अभियान शुरू करता है कि ‘भाई’ वस्तुत: मरा नही था, सोहल के हाथों खाली गम्भीर रूप से घायल हुआ था और अब दुबई में शफा पा रहा था। यूँ ‘भाई’ के नाम का परचम बुलन्द करके वो अन्डरवर्ल्ड में ‘भाई’ की—और यूँ अपनी—दहशत फैलाता है और सोहल की लाश गिराने के और होटल सी-व्यू को खण्डहर बनाने के दो बड़े संकल्प धारण करता है। ऐसा हो पाने से पहले विमल के खेमे में दफेदार को ढेर कर दिये जाने का फैसला होता है लेकिन वो किसी को ढूँढे नहीं मिलता। लिहाजा अन्डरवर्ल्ड में फैलाया जाता है कि सोहल को दफेदार माँगता था।

    उस दौरान सोहल बतौर चैम्बूर का दाता चौतरफा मकबूलियत हासिल कर चुका होता है। उस मकबूलियत से मुतासिर एक लोकल तालातोड़ जीतसिंह और राजनगर का एक ठग विकास गुप्ता उससे मिलने आते हैं जो चैम्बूर का दाता के—सोहल के—परोपकार के घड़े में अपना योगदान क्रमश: पैंतीस लाख और छ: करोड़ रुपये की सूरत में टपकाते हैं।

    एक टैक्सी ड्राइवर की मदद से दुश्‍मन द्वारा चैम्बूर के ठीये को तब उड़ाने की कोशिश की जाती है जबकि सोहल की भीतर मौजूदगी अपेक्षित होती है। इरफान की होशियारी और चौकसी की वजह से वो कोशिश नाकाम होती है और बम टैक्सी में बैठे उस टैक्सी ड्राइवर की गोद में फटता है जोकि उस वारदात को अंजाम देने के लिए दफेदार के एक लेफ्टीनेंट हैदर अली खां द्वारा मोहरा बनाया गया होता है।

    फिर चैम्बूर वालों को हड़काने के लिए, परेशान करने के लिए लोहकरे नाम का एक सब-इन्स्पेक्टर उधर भेजा जाता है जिसको इरफान जलील करके भगा देता है।

    इनायत दफेदार चिरकुट पर—जोकि ‘भाई’ की मौत के वक्त विंस्टन प्वायंट पर, मौकायवारदात पर मौजूद था, ‘भाई’ से गद्दारी करने का इलजाम लगाता है और उसे हुक्म देता है कि या तो वो दूसरे गद्दार जेकब परदेसी का पता निकाले या खुद जान से जाये।

    उसी दौरान राजनगर के करीब एक कस्बे खैरगढ़ में रहता विमल का पुराना—राजनगर में अमेरिकी डिप्लोमैट सिडनी फोस्टर के अपहरण के कारनामे के वक्त का—जोड़ीदार जगमोहन, जो तब तक चोरी, डकैती की बारह वारदातों में या शरीक हो चुका होता है या उन्हें अकेले अंजाम दे चुका होता है, अपनी जिन्दगी का सबसे बड़ा दाँव खेलने की, सुनामपुर के गार्जियन बैंक से पचास करोड़ रुपये कीमत का सोना चुराने की, तैयारी कर रहा होता है। उस अभियान में उसके जोड़ीदार दिलीप चौधरी और उसकी भतीजी मुग्धा चौधरी होते हैं। चौधरी बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी की, जिसमें कि वो आठ सौ किलो सोना लदा होना था, इलैक्ट्रॉनिक सैंट्रल लाकिंग का कोड ब्रेक करने में कामयाब हो जाता है तो डकैती की तारीख चौबीस दिसम्बर निर्धारित की जाती है।

    जगमोहन चौधरी चाचा-भतीजी से राजनगर के बन्दरगाह के इलाके में स्थित सी-गार्डन नामक बार में मिलता है जिसके मालिकान—बराबर के पार्टनर—धीरज परमार और सिमरन नाम की एक युवती होते हैं। सिमरन जगमोहन की माशूक होती है और उसको वो पार्टनरशिप दिलवाने में जगमोहन का ही हाथ होता है। जगमोहन डकैती में काम आने वाले सामान का इन्तजाम बाजरिया धीरज परमार करता है और सामान को सुनामपुर से दस किलोमीटर बाहर स्थित यादव डेयरी फार्म भिजवाता है जिसके संचालक दिलीप चौधरी की विधवा बहन सरस्वती यादव और उसका बेटा दामोदर होते हैं। धीरज परमार ही मनकोटिया की सूरत में उन्हें सोने का ग्राहक सैट करके देता है जोकि पचास करोड़ के सोने के उन्हें खड़े पैर पैंतीस करोड़ रुपये नकद अदा करता।

    डकैती की तैयारियों में बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी जैसा एक डुप्लीकेट ट्रक भी शामिल होता है जोकि वस्तुत: यादव डेयरी का मवेशी ढोने वाला ट्रक होता है जिसे कि दामोदर की मदद से देखने में बख्तरबन्द गाड़ी जैसा बनाया जाता है।

    दिलीप चौधरी जिद करता है कि वारदात के बाद बख्तरबन्द गाड़ी को सिर्फ वो हैंडल करेगा ताकि बद्किस्मती से अगर गिरफ्तारी की नौबत आ जाये तो सिर्फ वो गिरफ्तार हो।

    सुनामपुर से राजनगर के करीब कैसाना समुद्र तट पर रातोंरात सोना पहुँचाने के लिए इब्राहीम शेख का स्टीमर पाँच लाख रुपये की फीस की एवज में ठीक किया जाता है। इब्राहीम शेख एक आदतन बेइमान आदमी होता है जिसे कि माल की भनक लग जाती है और वो अपने असलम, जाकिर, अयूब और अख्तर नामक चार सहायकों के साथ पहले ही माल पर घात लगाने की तैयारी करने लगता है।

    उस दौरान जगमोहन के सामने एक नयी, गम्भीर समस्या ये होती है कि खैरगढ़ की चौकी के इंचार्ज सब-इन्स्पेक्टर भगवती सिंह डोभाल को किसी वजह से उस पर शक हो जाता है और वो ऐसा उसके पीछे पड़ता है कि जगमोहन खैरगढ़ से बाहर जहाँ भी जाता है, किशोरलाल नाम के एक सिपाही को अपने पीछे लगा पाता है।

    अपनी उस दुश्‍वारी के तहत जगमोहन को सोहल की याद आती है जिसको वो उसके गैलेक्सी, दिल्ली के पते पर चिट्ठी लिखता है लेकिन एक महीना होने को आ रहा होता है चिट्ठी का कोई नतीजा सामने नहीं आता।

    सोहल को अपने चैम्बूर के दाता के रोल में ऐसे फरियादियों से भी मिलना पड़ता है जोकि किसी माली इमदाद के तलबगार नही होते। ऐसी ही एक फरियादी मिसेज मैग्नारो नाम की एक बूढ़ी विधवा औरत होती है जिसका मकान मालिक, शहजाद दादरवाला नाम का एक बड़ा बिल्डर, उसे फ्लैट से निकालने पर तुला होता है क्योंकि वो सालों से वहाँ बहुत ही कम किराये पर रह रही होती है। उसकी खातिर विमल राजा साहब का सैक्रेट्री बनकर शहजाद दादरवाला से मिलता है जोकि विमल से बहुत बेरुखी से पेश आता है और मिसेज मैग्नारो पर से अपनी कोप दृष्टि हटाने को तैयार नहीं होता।

    उसी रात को दादरवाला के कोलाबा में चलते एक मल्टीस्टोरी प्रोजेक्ट का एक विंग ढेर हो जाता है।

    अगले दिन दोपहर को बद्हवास दादरवाला होटल सी-व्यू पहुँचता है और आइन्दा मिसेज मैग्नारो को तंग न करने के वादे के साथ अपनी खता माफ करवाता है।

    जगमोहन राजनगर से खैरगढ़ लौटता है तो उसकी कोठी पर दारोगा भगवती सिंह डोभाल पहुँच जाता है और जगमोहन की बाबत खोद खोद कर सवाल पूछकर, उसको हिंट देकर कि वो राजनगर में लिंक रोड पर स्थित उसके फ्लैट और उसकी माशूक के बारे में भी जानता था, उसको एसपीओ या रेजीडेंट वैलफेयर एसोसिऐशन का सैक्रेटरी बनाने की आफर देकर, उसके साथ जैसे चूहे-बिल्ली का खेल खेलता है।

    जगमोहन और आन्दोलित हो जाता है, और मायूस हो जाता है कि तब तक भी उसकी चिट्ठी के जवाब में विमल की कोई प्रतिक्रिया सामने नही आयी थी, और डोभाल को कत्ल कर देने की बाबत सोचने लगता है।

    अपनी ताकत बनाने के लिए दफेदार अँधेरी में मोटर गैराज की ओट में जुए का हाई क्लास अड्डा चलाने वाले अवधूत का अड्डा एक बार फिर ध्वस्त कर देता है, उससे नियमित वसूली मुकर्रर करता है और उसे मजबूर करता है कि वो अन्डरवर्ल्ड में इस बात को स्थापित करने में, कि ‘भाई’ जिन्दा था और दुबई में बैठा था, दफेदार की मदद करे। मरता क्या न करता के अन्दाज में अवधूत वो काम करना कबूल करता है।

    बुधवार तेइस तारीख को जगमोहन अपने पीछे लगे पुलिसिये किशोरलाल से राजनगर में पीछा छुड़ाता है और सुनामपुर की गाड़ी चढ़ जाता है। सुनामपुर में वो यादव डेयरी फार्म पहुँचता है, डुप्लीकेट गाड़ी का मुआयना करता है, डकैती की और तैयारियों का जायजा लेता है और डकैती का निशाना बनने वाले बैंक का चक्कर लगाता है।

    हैदर होटल सी-व्यू पहुँचता है, शोहाब से मिलता है और उसे खबर करता है कि दफेदार उससे मिलना चाहता था और बाहर होटल से परे सड़क पर खड़ी अपनी काली मैटाडोर वैन में बैठा उसका इन्तजार करता था। शोहाब दफेदार से मिलता है तो दफेदार उसके अपना जातभाई होने की दुहाई देकर उसे सोहल के खिलाफ उसका साथ देने के लिए उकसाता है। जवाब में शोहाब उसको खूब जलील करता है।

    शोहाब वो बात आगे विमल को बताता है तो विमल को दफेदार की ये नयी स्ट्रेटजी समझ में आती है कि दफेदार किसी विभीषण के जरिये लंका ढाने की फिराक में था। नतीजतन होटल के सारे स्टाफ की फिर से स्क्रीनिंग का फैसला होता है।

    अपनी स्ट्रेटजी के तहत दफेदार अपना अगला निशाना होटल के सिक्योरिटी चीफ तिलक मारवाड़े को बनाता है। वो उसको अगवा कर लेता है लेकिन मारवाड़े को जमीरफरोश बनना किसी कीमत पर कबूल नहीं होता, वो विभीषण बनने से साफ इंकार कर देता है। तब दफेदार को उसका जूनियर—सिक्योरिटी के महकमे में सैकण्ड-इन-कमाण्ड—पवन डांगले सूझता है, क्रिसमस ईव पर बाजरिया बापू बजरंगी जिस तक वो पहुँच बनाता है तो पवन डांगले पाँच करोड़ की एवज में—दस लाख बोहनी, दो करोड़ चालीस लाख एडवांस, बाकी बाद में—उसका साथ देना कबूल कर लेता है।

    क्रिसमस ईव पर ही शाम चार बजे से पहले सान्ता क्लाज बना जगमोहन हडसन रोड पहुँचता है जहाँ कि उसका निशाना गार्जियन बैंक होता है। वो बैंक में घुसकर, खुद को मानव-बम बताकर, उस पर कब्जा कर लेता है और सारे स्टाफ और ग्राहकों को बन्धक बना लेता है। बन्धकों में बाहर लावारिस खड़ी—आठ सौ किलो सोने से लदी—इलैक्ट्रॉनिक कण्ट्रोल वाली बख्तरबन्द गाड़ी का स्टाफ भी होता है और बन्धकों में बन्धक बनकर शामिल दिलीप चौधरी और उसकी भतीजी मुग्धा चौधरी भी होते हैं। बाहर पुलिस सुपरिन्टेंडेंट यदुनाथ सिंह की अध्यक्षता में बैंक को सशस्त्र पुलिस घेर लेती है। जगमोहन फोन पर उससे बात करता है और बन्धकों को मार देने की धमकी के तहत गैटअवे व्हीकल के तौर पर एक हैलीकॉप्टर, एक बस, एक कार और एक मोटरसाइकल की माँग करता है जिससे एसपी ये, गलत, नतीजा निकालता है कि भीतर मौजूद डकैत गिनती में चार थे।

    उस दौरान बैंक का डिप्टी जनरल मैनेजर सलिल घोष वहाँ पहुँचता है और पुलिस को सोने से लदी बख्तरबन्द गाड़ी की बाबत बताता है। गाड़ी को उसकी दरख्वास्त पर बैंक के करीब से धकेलकर वहाँ से दूर की एक गली से पहुँचा दिया जाता है।

    भीतर बैंक में बेनीवाल नाम का एक बन्धक अपने साथ के एक बन्धक कपिल सक्सेना को—जोकि असल में दिलीप चौधरी होता है—तीस हजार यूरो के नोट ये भाँपकर सौंपता है कि शुरू में जो बन्धक छोड़े जाने वाले थे उन में उसने होना था और दरखास्त करता है कि वो रकम—पन्द्रह लाख रुपये—वो उस की बीवी को पहुँचा दे। उसके खयाल से वो रकम उसके पास रहती तो लुटेरा यकीनन लूट लेता लेकिन रिहा होने वाले बन्धक के जरिये वो सुरक्षित बाहर पहुँच सकती थी।

    जगमोहन सबसे पहले गर्भवती बैंक क्लर्क चेतना को छोड़ता है, फिर कपिल सक्सेना उर्फ दिलीप चौधरी को छोड़ता है और फिर सान्ता क्लाज का बहुरूप त्यागकर, खुद को बन्धक बताकर, अन्य बन्धक मुग्धा के साथ बाहर निकलता है। चेतना के अलावा वो सब पुलिस को गुमराह करने वाले बयान देते हैं और प्रूफ ऑफ आइडेंटिटी चैक कराने के बाद छोड़ दिये जाते हैं। तदोपरान्त जगमोहन और मुग्धा मोटरसाइकल पर सवार होकर इब्राहीम शेख के स्टीमर पर पहुँच जाते हैं और दिलीप चौधरी बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी को गार्ड करते एक पुलिसिये को शूट करके बख्तरबन्द गाड़ी कब्जा लेता है, अपनी ईजाद आले से गाड़ी को खोल लेता है और एक पेटी तोड़कर ये तसदीक भी कर लेता है कि गाड़ी में सोना लदा था।

    पीछे पुलिस को आखिरकार पता लगता है कि पंछी उड़ चुका था। वो बैंक में दाखिल होते हैं तो इस बात की तसदीक होती है। फिर बख्तरबन्द गाड़ी गायब मिलती है तो सबकी समझ में आता है कि लुटेरों का असली निशाना बैंक नहीं, बख्तरबन्द गाड़ी था।

    पुलिस गवाहों के बयानात की बिना पर कम्प्यूटर से लुटेरों की कम्पोजिट पिक्चर्स तैयार कराती है जिनमें जगमोहन की दो—एक क्लीनशेव्ड और एक फ्रेंचकट दाढ़ी मूँछ वाली—तसवीरें होती हैं। दूसरा मेजर क्लू उन्हें बन्धक बेनीवाल से हासिल होता है जिसने एक फर्जी बन्धक को पाँच-पाँच सौ यूरो के साठ नोट सौंपे थे और जिनके रनिंग सीरियल वाले नम्बर उसे याद थे।

    स्टीमर पर मौजूद जगमोहन और मुग्धा ये सोच सोच कर हलकान होते हैं कि बख्तरबन्द गाड़ी के साथ चौधरी वहाँ नहीं पहुँचा था। एक लम्बे इन्तजार के बाद वो इसी नतीजे पर पहुँचते हैं कि चौधरी पकड़ा गया था। वो निकल भागने का इरादा कर ही रहे होते हैं कि चौधरी बख्तरबन्द गाड़ी के साथ स्टीमर पर पहुँच जाता है। वो बताता है कि गाड़ी रास्ते में खराब हो गयी थी और बहुत वक्त खाने के बाद बहुत मुश्‍किल से ठीक हुई थी।

    तदोपरान्त स्टीमर पर इब्राहीम शेख और जगमोहन वगैरह के बीच घात प्रतिघात का दौर शुरू होता है जोकि सारी रात चलता है और जिसमें शेख के तीन आदमी मारे जाते हैं। बावजूद उसके बाजी शेख के ही हाथ में होती है क्योंकि स्टीमर पर उसका कब्जा होता है। वो जगमोहन को धमकाता है कि वो लोग माल के बदले जान का सौदा कबूल करें, एक बोट पर सवार होकर स्टीमर छोड़कर चले जायें वर्ना वो माल समेत उनको गिरफ्तार करवा देगा और उस ईनाम से सब्र कर लेगा जो माल बरामद कराने की एवज में उसको हासिल होता। उन लोगों को वो सौदा कबूल करना पड़ता है, वो स्टीमर से कूच कर जाने की तैयारी करने लगते हैं, जिसके दौरान चौधरी स्टीमर पर बारूद लगा देता है जो जब फटता है तो बख्तरबन्द गाड़ी समेत स्टीमर समुद्र में डूब जाता है और वो लोग निर्विघ्न किनारे पर पहुँच जाते हैं जहाँ जगमोहन उनसे अलग हो जाता है। चौधरी भतीजी के सामने कबूल करता है कि उसके पास नेवीगेटर नाम का एक आला था जोकि ऐन कील ठोक कर बता सकता था कि समुद्र में सोना कहाँ डूबा था। लिहाजा मामला ठण्डा होने के बाद वो समुद्र से सोना निकाल सकते थे और तब तक कूपर रोड पर स्थित एक फ्लैट में रह सकते थे जोकि चौधरी ने पहले से ही ठीक किया हुआ था।

    जगमोहन चाचा भतीजी का वो वार्तालाप सुन लेता है और यूँ नेवीगेटर और उनके राजनगर के ठिकाने की बाबत जान जाता है।

    क्रिसमस की सुबह पवन डांगले—जिसका दुश्‍मन के हाथों बिकने का कोई इरादा था ही नहीं—इरफान की मौजूदगी में तमाम वाकया विमल को कह सुनाता है और वो दस लाख रुपया भी पेश करता है जो उसे बतौर एडवांस हासिल हुआ था और जो विमल उसे उसकी ईमानदारी के ईनाम के तौर पर लौटा देता है। आइन्दा स्ट्रेटजी की रू में दो करोड़ चालीस लाख का पहला एडवांस भी हासिल कर लिया जाता है और फिश मटन चिकन की सप्लाई के साथ बाकी की ढाई करोड़ की रकम भी कब्जा ली जाती है। सप्लाई में फिश के क्रेटों में आरडीएक्स निकलता है जिसे कि निष्क्रिय कर दिया जाता है और सप्लाई के साथ आये बापू बजरंगी के पीछे दो टीमों में बुझेकर और पिचड़ को और मतकरी और परचुरे को लगा दिया जाता है।

    राजनगर से धीरज परमार को बाजरिया मनकोटिया पता चलता है कि जगमोहन वगैरह सोने के साथ—जहाँ कि उन्हें शूट करके सोना हथिया लेने का सीन सैट था—कैसाना समुद्र तट पर नहीं पहुँचे थे। परमार उस बाबत खबर निकालने का मनकोटिया को आश्‍वासन देता है।

    जगमोहन अपनी माशूक सिमरन के हर्नबी रोड पर स्थित फ्लैट पर दोपहरबाद सो के उठता है और फिर करिश्‍माई आले नेवीगेटर के वजूद के समेत, चाचा भतीजी के मौजूदा पते के समेत, तमाम वाकया सिमरन को कह सुनाता है।

    सिमरन वो तमाम बातें आगे धीरज परमार तक पहुँचा देती है।

    जगमोहन सिमरन को ये भी बताता है कि खैरगढ़ चौकी का दारोगा भगवती सिंह डोभाल उसके पीछे पड़ा था और उस बाबत उसने सोहल को चिट्ठी लिखी थी जिसकी कि कोई प्रतिक्रिया क्योंकि तब तक सामने नहीं आयी थी इसलिये पिछले हफ्ते एक दूसरी—वैसी ही—चिट्ठी उसने अपने पाँच वारदातों के जोड़ीदार हीरालाल हजरती को लिखी थी। सिमरन तसदीक करती है कि सोहल वही शख्स था जोकि मशहूर इश्‍तिहारी मुजरिम था और उसे बताती है कि वो उधर चैम्बूर के दाता के नाम से मशहूर था, लोगबाग इधर उसके नाम से चन्दा उगाही करते थे और यूँ हासिल रकम को खुद हड़प जाते थे।

    मुम्बई में इरफान अँधेरी में अवधूत से मिलता है और उसे धमकाता है कि दफेदार की शह पर वो अन्डरवर्ल्ड में ये गलत प्रचार करना बन्द करे कि ‘भाई’ जिन्दा था। अवधूत दावा करता है कि ‘भाई’ ने खुद दुबई से फोन पर उससे बात की थी। इरफान उसके दावे को गलत करार देता है और उसे सोहल की छत्रछाया में आने की पेशकश करता है जोकि अवधूत को कबूल नहीं होती।

    राजनगर में चौधरी ने पन्द्रह लाख का जो फ्लैट लिया होता है उसकी पाँच लाख की अदायगी अभी बाकी होती है, चाचा भतीजी के फ्लैट में पहुँचते ही जिसकी वसूली के लिए इमारत का मालिक मेहरोत्रा वहाँ पहुँच जाता है। चौधरी को वो पेमेंट मजबूरन पाँच पाँच सौ यूरो के बीस नोटों की सूरत में करनी पड़ती है। लैंडलार्ड मेहरोत्रा जब उन नोटों को रुपयों में तब्दील कराने मनीचेंजर के पास जाता है तो उन नोटों की बाबत मनीचेंजर के पास पुलिस का सर्कुलर पहले से ही पहुँचा होने की वजह से गिरफ्तार कर लिया जाता है और गिरफ्तारी की खबर सुनामपुर एसपी यदुनाथ सिंह को भिजवाई जाती है।

    होटल में तिलक मारवाड़े के कत्ल की खबर पहुँचती है।

    दफेदार को मालूम होता है कि होटल में आरडीएक्स नहीं फटा था, वो शान से सही सलामत खड़ा था और यूँ उसका पाँच करोड़ रुपया मिट्टी हो गया था। वो बापू बजरंगी को खबरदार करता है कि उसके पीछे आदमी लगे हो सकते थे और उसने हरगिज भी उन के उस तक पहुँचने की वजह नहीं बनना था। नतीजतन बापू बजरंगी बाकायदा धमकाकर अपने पीछे लगे आदमियों को दफा करता है।

    जगमोहन खैरगढ़ वापिस अपनी कोठी पर पहुँचता है तो कोठी की निगरानी करते सिपाही किशोरलाल के जरिये वो खबर चौकी में दारोगा डोभाल तक पहुँचती है।

    सी-गार्डन में धीरज परमार और सिमरन में समुद्र में डूबा सोना खुद हथियाने की बाबत मन्त्रणा होती है जिसके दौरान सिमरन मनकोटिया की जुगलबन्दी पर सख्त एतराज जाहिर करती है क्योंकि उसके खयाल से मनकोटिया जो धोखा जगमोहन के साथ करने की तैयारी किये बैठा था, वो परमार के साथ भी कर सकता था। नतीजतन ये फैसला होता है कि जुगलबन्दी के लिए बेहतर कैंडीडेट मनकोटिया नहीं, जगमोहन था।

    दारोगा डोभाल जगमोहन की कोठी पर उससे मिलता है और इस बार उसकी तमाम पोल पट्टी खोल के रख देता है। वो कहता है कि उसे मालूम था कि पिछले ढाई सालों में अपने ग्यारह साथियों के साथ वो बारह बड़े हाथ मार चुका था और यूँ करोड़ों रुपया इकट्ठा कर चुका था। दारोगा डोभाल ये तक मालूम होने का दावा करता है कि जगमोहन पटना से चार खून करके भागा हुआ इश्‍तिहारी मुजरिम था। वो जगमोहन का इतना लिहाज फिर भी करता है कि पूरा माल हथियाने की जगह आधे माल की माँग करता है और जगमोहन के इंकार करने की सूरत में उसे धुन के रख देता है।

    इतवार को एसपी यदुनाथ सिंह खास गवाह बेनीवाल के साथ राजनगर पहुँचता है और लोकल एसएचओ अटल के साथ दिलीप चौधरी के फ्लैट पर धावा बोलता है।

    तब तक पुलिस के आर्टिस्ट द्वारा तैयार किया बैंक लुटेरों की कम्पोजिट पिक्चर्स का फाइनल वर्शन उस रोज के अखबारों में छप चुका होता है।

    चौधरी फ्लैट पर पुलिस पहुँची पाकर यूरो के बाकी बचे चालीस नोट जला देता है और राख किचन के सिंक में बहा देता है। वो मुग्धा को बताता है कि नेवीगेटर वो पहले ही किसी सुरक्षित जगह पर छुपा चुका था। फिर वो डट कर पुलिस का मुकाबला करता है, इस बात से सरासर इंकार करता है कि अखबार में छपी लुटेरों की तसवीरों में से दो उसकी और मुग्धा की थीं और वो पुलिस के साथ आये लैंडलार्ड को यूरो में पेमेंट की होने से भी पुरजोर इंकार करता है। वो दावा करता है कि पेमेंट उसने इंडियन करेंसी में की थी और पेमेंट के पाँच लाख रुपये उसने अपने दोस्त मोहन बाबू—जोकि जगमोहन का कवर नेम था—से, जोकि लिंक रोड के एक फ्लैट में रहता था, हासिल की थी। डकैती के वक्त वो सी-गार्डन में मौजूद होने का दावा करता है और बतौर गवाह उसके मालिक धीरज परमार का नाम लेता है। वो बेनीवाल की गवाही को सरासर झुठलाता है और कहता है कि उसे पहचानने में उसे मुगालता लगा था। पुलिस धीरज परमार को तलब करती है। वो चौधरी को जानता होना कबूल करता है लेकिन इस बात से सरासर इंकार करता है कि अखबार में छपी तसवीरें उसकी या उसकी भतीजी की थीं।

    मोहन बाबू उस बाबत कुछ कहने के लिए लिंक रोड के अपने फ्लैट में उपलब्ध नहीं होता। लोकल पुलिस आस पड़ोस में उसकी बाबत पूछताछ करती है और उसके फ्लैट की निगरानी का इन्तजाम करती है।

    चौधरी के फ्लैट की बारीक तलाशी ली जाती है लेकिन तलाशी में चौधरी के खिलाफ जाने वाला कुछ बरामद नहीं होता।

    आखिरकार बेनीवाल की गवाही की बिना पर पुलिस चाचा भतीजी को बैंक डकैती में शिरकत के इलजाम में गिरफ्तार कर लेती है।

    मुम्बई में चिरकुट इनायत दफेदार के सामने ये सनसनीखेज रहस्योद््घाटन करता है कि डेविड परदेसी का असली नाम सफदर अली खां था और वो हैदर का सगा भाई था और बतौर सबूत कल्याण की बनातवाला चाल की उनकी खोली से चुराई दोनों भाइयों की तसवीर पेश करता है।

    दफेदार सन्नाटे में आ जाता है।

    वो हैदर को बुलाकर उससे उसके भाई के बारे में सवाल करता है तो उसे टालू जवाब मिलते हैं, वो उसके भाई को भरोसे के आदमी के तौर पर अपने गैंग में शामिल करने की पेशकश करता है तो हैदर बोलता है उसका भाई अकेला काम करना पसन्द करता था। दफेदार की फिर भी जिद होती है कि हैदर अपने भाई को बुलाकर लाये और उससे बात कराये। अनमने भाव से हैदर हामी भर देता है।

    बापू बजरंगी अपने चार नये आदमी हैदर की निगरानी पर लगाता है ताकि बाजरिया हैदर उसके भाई सफदर उर्फ जेकब परदेसी की खोज खबर लग पाती। हैदर को तत्काल इस बात की खबर लग जाती है। वो पहले कल्याण जाता है और अपनी माँ, बीवी और बेटे के जामनगर निकल लेने का इन्तजाम करता है। मुम्बई लौट कर आधी रात को वो पास्कल के बार में फोन पर पटना में अपने भाई से ये जानते बूझते बात करता है कि पैरेलल फोन पर वार्तालाप सुना जा रहा था और भाई से अपने पीछे लगे लोगों को भटकाने वाली, गुमराह करने वाली बातें करता है। उस वार्तालाप की बिना पर दफेदार को बताया जाता है कि दोनों भाई नेपाल भाग जाने की फिराक में थे। फौरन दफेदार बापू बजरंगी को उसके आदमियों के साथ काठमाण्डू रवाना करता है ताकि दोनों भाइयों को एक दूसरे की मौजूदगी में ढेर किया जा सकता।

    विमल को इरफान से खबर लगती है कि इंसाफ ही दुहाई देती कालेज की कुछ नौजवान लड़कियाँ चैम्बूर में डेरा डाले थीं। किसी रईसजादे ने उनकी एक सहपाठिनी को अपनी कार की चपेट में लेकर जान से मार डाला था। रईसजादा स्थानीय ज्वेलर वसदमल अटलानी का इकलौता लड़का चन्दन अटलानी था जिसे बचाने के लिए गिरफ्तारी के लिए हशमत नाम के ड्राइवर को पेश कर दिया गया था। वसदमल के हुक्म पर ड्राइवर हशमत ने एक्सीडेंट किया होना इस आश्‍वासन पर कबूल कर लिया था कि चार छ: दिन में उसकी जमानत हो जाती, फिर अव्वल तो उसे सजा होती नहीं, होती तो छोटी मोटी होती जिसे भुगत लेने का उसे बहुत बड़ा ईनाम मिलता।

    विमल चन्दन अटलानी के पीछे पड़ता है, वो उसकी पचास लाख कीमत की बीएमडब्ल्यू गाड़ी उसके सामने तोड़ देता है और उस प्रक्रिया में उसे ऐसा खौफजदा करता है कि वो अपनी जुबानी अपना गुनाह कबूल करने को तैयार हो जाता है। उसके बाद विमल बतौर राजा गजेन्द्रसिंह पुलिस कमिश्‍नर जुआरी को फोन करता है और उस सिलसिले में मदद की गुहार करता है। कमिश्‍नर उसे खुद थाने पहुँचने का आश्‍वासन देता है।

    राजा गजेन्द्रसिंह के बहुरूप में विमल, इरफान, शोहाब, चन्दन अटलानी और मृत लड़की की तेरह सखियों के साथ थाने पहुँचता है जहाँ एसएचओ पाटिल और चन्दन अटलानी का बाप वसदमल चन्दन के हक में खूब पसरने की कोशिश करते हैं लेकिन जब खुद पुलिस कमिश्‍नर वहाँ पहुँच जाता है तो उनकी एक नहीं चलती, तो हशमत कबूल करता है कि एसएचओ और वसदमल के कहने पर एक्सीडेंट की बाबत उसने झूठ बोला था, असल में वो एक्सीडेंट चन्दन ने किया था जोकि तब अपनी जुबानी—पिता के बार बार मना करने के बावजूद—अपना अपराध कबूल करने को तैयार था। नतीजतन असली अपराधी चन्दन गिरफ्तार होता है, एसएचओ सस्पेंड होता है, वसदमल बेइज्जत होता है, हशमत परजुरी के नये चार्ज के साथ गिरफ्तार होता है और तेरह युवा लड़कियों को इंसाफ हासिल होता है।

    कमिश्‍नर विमल को इस बाबत साफ इशारा करता है कि वो जानता था कि राजा गजेन्द्रसिंह असल में सोहल था लेकिन साथ ही ये भी आश्‍वासन देता है कि मुम्बई पुलिस को सोहल का चैम्बूर का दाता वाला रोल पसन्द था।

    जवाब में ‘राजा साहब’ कमिश्‍नर को नये साल की पार्टी में होटल सी-व्यू का मेहमान बनने की दावत देता है जोकि कमिश्‍नर सहर्ष कबूल करता है।

    सोमवार सुबह लोकल थाने में एसपी यदुनाथ सिंह को पता चलता है कि लिंक रोड वाले फ्लैट की रजिस्ट्री के सन्दर्भ में रजिस्ट्रार के दफ्तर में फ्लैट के खरीदार मोहन बाबू पासवान का पटना का जो पता दर्ज था, वो फर्जी था। तब एसपी को और भी एतबार आने लगा कि वो शख्स बैंक लुटेरा हो सकता था।

    दूसरी कारआमद खबर उसे ये मिलती है कि पुलिस हैडक्वार्टर में एक गुमनाम काल पहुँची थी कि पिछले रोज अखबार में छपी तसवीरों में से एक—क्लीनशेव्ड—खैरगढ़ में सर्कुलर रोड पर रहते एक शख्स की हो सकती थी। एसपी तत्काल खैरगढ़ का रुख करता है जहाँ पहुँचकर उसे मालूम होता है कि जिस शख्स की फिराक में वो वहाँ पहुँचा था, उसका पिछले रोज हार्टफेल हो जाने की वजह से स्वर्गवास हो गया था। वो चौकी पहुँचता है तो मालूम पड़ता है कि मरने वाला दिल का पुराना मरीज था और पिछले एक साल से आलोक पुरोहित नाम के एक लोकल डॉक्टर के ट्रीटमेंट में था जिसने कि उसका डैथ सर्टिफिकेट भी जारी किया था। वो शख्स लावारिस मरा था इसलिये अखबार में उसकी बाबत इश्‍तिहार दिया गया था जिसका अगले रोज शाम तक कोई नतीजा सामने न आता तो बुधवार सुबह पुलिस उसका दाह संस्कार करा देती। एसपी जिज्ञासा प्रकट करता है कि क्या वो ही शख्स वो मोहन बाबू पासवान हो सकता था जोकि राजनगर के लिंक रोड के एक फ्लैट में रहता था, जो सुनामपुर के गार्जियन बैंक की डकैती में शरीक रहा हो सकता था और पिछले रोज के अखबार में जिसकी तसवीर छपी थी। एसपी के दिखाये डोभाल अखबार में छपी तसवीर देखता है तो वो दंग रह जाता है। वो कम्प्यूटर से बनी कंपोजिट पिक्चर थी लेकिन फिर भी वो—क्लीनशेव्ड सूरत वाला—निरा मोहन बाबू लगता था। ये जानकर तो उसके छक्के ही छूट जाते हैं कि बैंक से पचास करोड़ का सोना लुटा था और डकैती में शरीक दिलीप चौधरी और मुग्धा चौधरी नाम के दो और जने गिरफ्तार भी हो चुके थे लेकिन उनसे लूट का माल बरामद नहीं हुआ था।

    तो क्या वो मोहन बाबू के कब्जे हो सकता था?

    ये खयाल ही उसे इतना रिझाता है कि वो इरादतन एसपी यदुनाथ सिंह की थ्योरी में फच्चर डालना शुरू कर देता है। वो पुरजोर लहजे से कहता है कि मृत मोहन बाबू बैंक लुटेरा मोहन बाबू नही हो सकता था क्योंकि उसकी कोठी से तो सोने का एक छदाम भी बरामद नहीं हुआ था। एसपी ऐसा कन्फ्यूज होता है कि वो दो क्या, कई मोहन बाबुओं की कल्पना करने लगता है।

    जोकि डोभाल के लिए फायदेमन्द बात थी; क्योंकि तभी तो एसपी की उस वाले मोहन बाबू पर से तवज्जो हटती।

    राजनगर में सिमरन फिक्रमन्द थी कि मोहन बाबू, जो इतवार को लौट के आने को बोलकर गया था, सोमवार दोपहर तक भी नहीं लौटा था।

    मुम्बई में आखिरकार होटल मराठा के मालि‍क सलाउद्दीन के जरिये वो चिट्ठी विमल तक पहुँची जोकि अरविन्द कौल के नाम गैलेक्सी दिल्ली के पते पर टाइम पर पहुँची थी लेकिन गैलेक्सी के मालिक शुक्ला की मौत हो जाने की वजह से क्योंकि आफिस कई दिन बन्द रहा था इसलिये वक्त पर आगे मुम्बई अरसाल

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