Colaba Conspiracy
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About this ebook
A new novel from the King of Hindi crime fictionJeet Singh's ex-girlfriend Sushmita's rich industrialist husband is brutally stabbed to death. Her stepchildren destroy all evidence of Sushmita's marriage to their slain father, and implicate her in the case along with JeetSingh. Jeet Singh, who is known to be able to open any safe in the country, takes it upon himself to clear their names and solve the murder mystery. Set in Mumbai, Colaba Conspiracy is a whodunit that will keep you guessing all the way.
Surender Mohan Pathak
Surender Mohan Pathak is considered the undisputed king of Hindi crime fiction. He has nearly 300 bestselling novels to his credit. He started his writing career with Hindi translations of Ian Flemings' James Bond novels and the works of James Hadley Chase. Some of his most popular works are Meena Murder Case, Paisath Lakh ki Dakaiti, Jauhar Jwala, Hazaar Haath, Jo Lare Deen Ke Het and Goa Galatta.
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Book preview
Colaba Conspiracy - Surender Mohan Pathak
मंगलवार : 19 मई
मोबाइल की घण्टी बजी।
जीतसिंह ने मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर निगाह डाली तो उस पर फ्लैश करता नम्बर उसकी पहचान में न आया। उसने नोट किया कि नम्बर लैण्डलाइन का था।
कौन होगा!
होगा कोई! अभी हाल ही में तो उसने मोबाइल पकड़ा था, कैसे कोई उस पर काल लगा सकता था! जरूर रांग नम्बर लग गया था।
उस घड़ी वो चिंचपोकली में अपनी खोली में था और उस के सामने खोली को झाड़ने बुहारने का, फिर से रहने लायक बनाने का, बड़ा प्रोजेक्ट था।
‘खोली’ नौ गुणा चौदह फुट का एक ही लम्बा कमरा था और उसी में माचिस जैसा बाथरूम था और किचन थी। कभी वो खोली उसकी सालों पनाहगाह रही थी, मुम्बई जैसे महँगे शहर में ऐसी रिहायश हासिल होना बड़ी नियामत थी बावजूद इसके कि चिंचपोकली का वो इलाका झौंपड़पट्टे से जरा ही बेहतर था। उसकी जरूरत के लिहाज से वो ऐन फिट जगह थी लेकिन फिर सुष्मिता नाम की एक युवती से—जो कभी वहीं उसके पड़ोस में कुछ ही घर दूर रहती थी—एकतरफा आशनाई का ऐसा झक्खड़ चला था कि वो तिनके की तरह कहां कहां उड़ता फिरा था! अब वो जहाज के पंछी की तरह फिर वहां था।
आइन्दा जिन्दगी में ठहराव की उम्मीद करता, बल्कि दुआ मांगता।
घण्टी बजनी बन्द हो गयी।
बढ़िया!
जीतसिंह तीस के पेटे में पहँुचा, रंगत में गोरा, क्लीनशेव्ड हिमाचली नौजवान था जो कि रोजगार की तलाश में छ: साल पहले धर्मशाला से मुम्बई आया था। उसकी शक्ल सूरत मामूली थी, जिस्म दुबला था, होंठ पतले थे, नाक बिना जरा भी खम एकदम सीधी थी, बाल घने थे, और भवें भी बालों जैसी ही घनी और भारी थीं। कहने को ताले-चाबी का मिस्त्री था लेकिन नौजवानी की एकतरफा आशिकी के हवाले कई डकैतियों में शरीक हो चुका था, कई बार खून से अपने हाथ रंग चुका था। जुर्म की दुनिया उसके लिये ऐसा कम्बल बन गया था जिसे वो तो छोड़ता था लेकिन कम्बल उसे नहीं छोड़ता था।
मोबाइल की घण्टी फिर बजी।
उसने फिर स्क्रीन पर निगाह डाली।
वही नम्बर।
इस बार उसने काल रिसीव की।
‘‘हल्लो!’’—वो बोला।
‘‘बद्री!’’—दूसरी ओर से सुसंयत आवाज आयी।
‘‘कौन पूछता है?’’
‘‘बोलूंगा न! फोन किया है तो बोलूंगा न! पहले तसदीक तो कर, बिरादर, कि बद्रीनाथ ही है!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘मशहूर-ओ-मअरूफ...’’
‘‘फारसी नहीं बोलने का ।’’
‘‘...कारीगर! हुनरमन्द!’’
‘‘नम्बर कैसे जाना?’’
‘‘भई, जब मोबाइल है, उस पर काल रिसीव करता है, उससे काल जनरेट करता है तो किसी से तो जाना!’’
‘‘क्या मांगता है?’’
‘‘तेरे लिये काम है ।’’
‘‘क्या काम है?’’
‘‘वही, जिसका तू उस्ताद है। जिसमें तेरा कोई सानी नहीं। समझ गया?’’
‘‘आगे बोलो ।’’
‘‘कुछ खोलना है। खोलने के अलावा तेरी कोई जिम्मेदारी नहीं। तेरे लिये चुटकियों का काम होगा। नजराना पचास हजार ।’’
‘‘किधर?’’
‘‘हाँ बोलने पर मालूम पड़ेगा ।’’
‘‘नाम बोलो!’’
‘‘वो भी हां बोलने पर। मुलाकात फिक्स करेंगे न! तब तआरुफ भी हो जायेगा ।’’
‘‘नहीं मांगता ।’’
‘‘उजरत कम है? ठीक है, साठ ।’’
‘‘नहीं मांगता ।’’
‘‘भई, तो अपनी मँुहमांगी फीस बोल!’’
‘‘नहीं...’’
‘‘ठीक है, एक लाख। अब खुश!’’
‘‘...नहीं मांगता ।’’
‘‘अरे, क्या एक ही रट लगाये है!’’
‘‘बोले तो मैं वो भीड़ू हैइच नहीं जो तू मेरे को समझ रयेला है ।’’
‘‘खामखाह! मैंने तसदीक करके फोन किया है ।’’
‘‘तुम्हेरी तसदीक में लोचा ।’’
‘‘तू....तू बद्रीनाथ तालातोड़ नहीं है?’’
‘‘नहीं है ।’’
‘‘तो कौन है?’’
‘‘जीतसिंह तालाजोड़! ताले चाबी का मिस्त्री। क्राफोर्ड मार्केट में एक हार्डवेयर के शोरूम के बाहर ठीया है। किसी ताले का चाबी खो गया हो, किसी चाबी का डुप्लीकेट मांगता हो तो उधर आना। किसी से भी पता करना जीतसिंह ताला-चाबी किधर मिलता है। बरोबर!’’
‘‘यार, तू मसखरी तो नहीं मार रहा?’’
‘‘नक्को!’’
‘‘तेरी कोई खास डिमाण्ड है?’’
‘‘नक्को। कैसे होयेंगा! जब मैं उस लाइन में हैइच नहीं तो...कैसे होयेंगा!’’
‘‘कोई मुगालता है। मैं रूबरू बात करना चाहता हूँ ।’’
‘‘वान्दा नहीं। आना उधर। क्राफोर्ड मार्केट ।’’
‘‘रहता कहां है?’’
‘‘चिल्लाक भीड़ू है, मोबाइल नम्बर पता किया न! ये भी पता करना ।’’
‘‘अरे, यार, तू समझता क्यों नहीं! मुश्किल से दस या पन्द्रह मिनट के काम का एक लाख...’’
‘‘नहीं मांगता ।’’
‘‘तो जो मांगता है, वो तो बोल!’’
‘‘मांगता हैइच नहीं ।’’
‘‘लेकिन...’’
‘‘अभी एक बात और सुनने का ।’’
‘‘कौन सी बात?’’
‘‘खास बात ।’’
‘‘क्या खास बात?’’
‘‘ये खास बात कि मैं पक्की करता है कि तू चिल्लाक भीड़ू बरोबर। इसी वास्ते हर टेम ऐसे काल लगाता है जैसे फस्र्ट टेम लगाया...’’
‘‘क्या!’’
‘‘नवें फोन से नवां भीड़ू बन के फोन लगाता है। ये थर्ड टेम काल किया मेरे को...’’
‘‘अरे, नहीं! मैं तो पहली बार...’’
‘‘कैसे नहीं! तेरी आवाज मेरी पकड़ में आयी न! तेरे बात करने के स्टाइल ने मेरे मगज में घण्टी बजाई न! पहले दस देता था, फिर पच्चीस, अभी पचास, साठ के रास्ते लाख पर पहँुच गया। अभी चौथी बार फोन करेगा तो क्या देने को बोलेगा? डेढ़ या दो?’’
लाइन पर खामोशी छा गयी।
‘‘अभी मगज से जाला निकाल और मेरी बात को काबू में कर कि जो मैं बोला वो फाइनल। नहीं मांगता। अभी भी और बाद में भी। इस वास्ते बोले तो भोला बाबू बन के चौथी, पांचवी, छटी बार ट्राई नहीं करने का। फिर फोन नहीं लगाने का। लगायेगा तो टेम खोटी करेगा। जवाब नहीं मिलेगा। क्या!’’
‘‘बहुत कड़क बोलता है, भई ।’’
‘‘कट करता है ।’’
जीतसिंह ने लाइन काट दी।
कुछ क्षण बाद उसने उत्सुकतावश वो नम्बर बजाया तो घण्टी बजती रही, कोई जवाब न मिला।
इतनी उसको समझ थी कि आठ अंकों का वो फोन महानगर टेलीफोन निगम का था। उसने डायरेक्ट्री इक्वायरी से उस नम्बर की बाबत दरयाफ्त किया तो मालूम पड़ा कि वो चर्चगेट स्टेशन पर चलता एक पीसीओ था।
‘साला चिल्लाक भीड़ू!’—वो बड़बड़ाया—‘खबरदार भीड़ू! पीसीओ से काल लगाता था।’
तभी मोबाइल फिर बजा।
साला फिर!
उसने स्क्रीन पर निगाह डाली तो ‘साला फिर’ नहीं था, वालपोई गोवा से एडुआर्डो का फोन था।
बिग डैडी!
एडुआर्डो वो शख्स था जिस की वजह से वो आजाद था वर्ना तारदेव के सुपर सैल्फसर्विस स्टोर की डकैती के केस में, जिसमें कि वो गिरफ्तार था, उसका पांच से सात साल तक नप जाना महज वक्त की बात था। एडुआर्डो वो शख्स था जो उसकी एक गुहार पर वालपोई से मुम्बई दौड़ा चला आया था और न सिर्फ पल्ले से पचास हजार रुपये भर कर उसकी जमानत कराई थी बल्कि गाइलो नाम के पुलिस के उसके खिलाफ उस मजबूत चश्मदीद गवाह के भी अपने बयान से पलटी खाने के हालात पैदा किये थे जिसने चार महीने पहले, जनवरी में, जेकब सर्कल के पुलिस लॉकअप में हुई शिनाख्ती परेड में निसंकोच उसे सुपर स्टोर की डकैती में शामिल भीड़ू के तौर पर पहचाना था लेकिन जो बाद में गवाही के लिये पेश होने पर अदालत के कठघरे में खड़ा हो कर अपनी मजबूत शिनाख्त से मुकर गया था—इसलिये मुकर गया था क्योंकि एडुआर्डो के बताये वक्त रहते उसे मालूम पड़ा था कि मुजरिम जीतसिंह उसके फस्र्ट कजन ऐंजो का जिगरी था। ऐंजो तब उस दुनिया में नहीं था और एडुआर्डो ने उसे ‘डिपार्टिड सोल’ का सदका दिया था कि वो किसी भी तरह से जीतसिंह को बचाये। गाइलों के अपनी गवाही से फिरने की वजह से ही मंगलवार, छ: जनवरी को जीतसिंह जमानत पर रिहा हुआ था और फिर तदोपरान्त करिश्मा हुआ था, किस्मत का ऐसा नाकाबिलेएतबार खेल हुआ था कि आखिर सोमवार बीस अप्रैल को उसे सन्देह लाभ दे कर कोर्ट द्वारा बरी कर दिया गया था। तब तक जनवरी के महीने में ही सारे फसाद की जड़ तारदेव थाने का एसएचओ इन्स्पेक्टर गोविलकर जीतसिंह के ही हाथों जान से जा चुका था और इरादतन खून से हाथ रंगने के बावजूद उस पर आंच इसलिये नहीं आयी थी क्योंकि गोविलकर का डीसीपी प्रधान किन्हीं वजुहात से वक्ती तौर पर उसका तरफदार बन गया था। उसी की सक्रिय मदद से जीतसिंह को एलीबाई हासिल हुई थी कि गुरुवार उनतीस जनवरी को टिम्बर बन्दर, सिवरी में इन्स्पेक्टर गोविलकर के कत्ल के वक्त ‘प्राइम मर्डर सस्पैक्ट’ जीतसिंह तारदेव थाने के लॉकअप में बन्द था क्योंकि कोर्ट के हुक्म के मुताबिक थाने की रोजाना हाजिरी भरने में उसने कोताही की थी।
एडुआर्डो ही वो शख्स था जिसके अण्डर में जीतसिंह ने मुम्बई से बाहर अपने पहले बड़े कारनामे को अंजाम दिया था—पणजी, गोवा में डबलबुल कैसीनो के अभेद्य वाल्ट को खोलने के असम्भव काम को सम्भव कर के दिखाया था। एडुआर्डो का वो आखिरी मुजरिमाना कारनामा था जबकि जीतसिंह का घोर पतन ही उस कारनामे के बाद होना शुरू हुआ था।
एडुआर्डो तब से उसका जिगरी दोस्त था, रहनुमा था, खैरख्वाह था, सरपरस्त था, साठ साल का था इसलिये जीतसिंह के लिये पितातुल्य था।
उसने काल रिसीव की।
‘‘बिग डैडी को फर्शी सलाम पहँुचे ।’’—जीतसिंह प्रसन्न भाव से बोला।
‘‘पहँुच गया ।’’—एडुआर्डो की आवाज आयी—‘‘गॉड ब्लैस यू, माई डियर। कैसा है?’’
‘‘आजाद है ।’’
‘‘वो तो है ही। आलमाइटी मर्सी किया तो है ही। वैसे कैसा है?’’
‘‘ठीक। अपना बोलो!’’
‘‘अभी थोड़ा प्राब्लम है ।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘चोटें खरोंचें सब ठीक हैं, चारों टूटी पसलियां जुड़ गयी हैं, तीन में से दो उंगलियां भी जुड़ गयी हैं, पण कलाई पर अभी प्लास्टर कास्ट है। उधर दो बोंस होता है न! दोनों टूटीं। डबल फैक्चर ! कम्पाउन्ड कर के जो बोलते हैं। इधर का डाक्टर बोलता है टेम लगेगा ।’’
‘‘वो तो लगेगा ही! अभी तीन हफ्ता ही तो हुआ मार लगे!’’
‘‘ज्यास्ती। वन मंथ। पण वो तो है ।’’
‘‘अभी बोले तो फोन कैसे किया?’’
‘‘वो तो मैं बोलता है। पण कल ये छापे में क्या पढ़ा मैं?’’
‘‘क्या पढ़ा?’’
‘‘वो सिन्धी स्टोर वाला...पुरसूमल चंगुलानी...जिस से सुष्मिता तेरे को डिच कर के शादी बनाया...खल्लास! कोई मर्डर किया...’’
‘‘हाँ। तीन दिन पहले का, शनिवार शाम का, वाकया है। कहते हैं लेमिंगटन रोड पर के अपने डिपार्टमेंट स्टोर को बन्द करा के कोलाबा अपने घर लौट रहा था कि रास्ते में लुटेरे पड़ गये। आजकल हाई एण्ड नयी कारें झपटने की वारदात बहुत हो रही हैं। उसके पास नयी खरीदी होंडा थी। कोई छापे वाला बोलता है कार छीनने की कोशिश में गया, कोई बोलता है स्टोर की डेली सेल वाला जो कैश उसके पास था, उसको लूटने की कोशिश में गया, कोई बोलता है दोनों बातें, उसने रिजिस्ट किया, टपका दिया! पेट में स्टैब किया। कई बार ।’’
‘‘पुअर मैन। आजकल पैसेवाला, हैसियतवाला होना भी प्राब्लम! छापे में लिखा है कोई लुटेरा पकड़ में नहीं आया!’’
‘‘अभी तक तो नहीं आया ।’’
‘‘कोई चश्मदीद?’’
‘‘नक्को!’’
‘‘पुअर मैन। एज कितना था?’’
‘‘साठ के पेटे में था। एकाध साल कम होगा!’’
‘‘टू बैड। तू गया उधर?’’
‘‘किधर?’’
‘‘कोलाबा! उसके घर पर! बेवा को अफसोस करने!’’
जीतसिंह खामोश हो गया। उसके जेहन पर पुरसूमल के ऐंगेज किये प्राइवेट डिटेक्टिव शेखर नवलानी का अक्स उबरा, उसके तब के अल्फाज उसके कानों में गूंजे जब कि वो बुरी तरह से जला हुआ नर्सिंग होम में पड़ा था :
‘‘अगर जरा सी भी गैरत बाकी हो तो दोबारा कभी तुलसी चैम्बर्स का रुख न करना। पुरसू की गैरहाजिरी में ही नहीं, उसकी हाजिरी में भी। किसी की माशूक किसी और की बीवी बन जाये, ये बड़ा हादसा है लेकिन किसी की बीवी किसी की माशूक कहलाये, यह ज्यादा बड़ा हादसा है। कोई गैरत बाकी हो तो ज्यादा बड़े हादसे से बच के रहना ।’’
‘‘हल्लो!—उसके कान में एडुआर्डो की व्यग्र आवाज गूंजी—‘‘जीते! लाइन पर है?’’
‘‘हं-हां ।’’—जीतसिंह फंसे कण्ठ से बोला।
‘‘तो बोलता काहे नहीं?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘क्या नहीं?’’
‘‘मैं अफसोस करने नहीं गया ।’’
‘‘क्या बोला! नहीं गया?’’
‘‘हां ।’’
‘‘ईवन आफ्टर थ्री डेज...’’
‘‘ऐसीच है ।’’
‘‘पण काहे?’’
‘‘मैं उधर वैलकम नहीं है ।’’
‘‘क्या! वैलकम नहीं है! कौन बोला ऐसा?’’
‘‘बोला कोई ।’’
‘‘कौन?’’
‘‘लम्बी कहानी है, तुम नहीं समझोगे ।’’
‘‘जीते, किसी ने ऐसा बोला भी होगा तो अण्डर नार्मल सरकमस्टांसिज बोला होगा। अभी सरकमस्टांसिज नार्मल किधर है! एक भीड़ू जिससे तू वाकिफ था, जिसने तेरी बाबत झूठ बोल कर तेरी जान बचाई; तुझे—एक हिस्ट्रीशीटर को, वाल्टबस्टर को, बैड कैरेक्टर को—अपना मुलाजिम बताकर, जो रोकड़ा तूने खुदकुशी के लिये, जल मरने के लिये लिफ्ट में फँूका, उसे अपना बताकर तेरे को उस डेविल इनकार्नेशन इन्स्पेक्टर गोविलकर के कहर से बचाया, वो जान से गया तेरे को कोई अफसोस नहीं, कोई हमदर्दी नहीं! जीते, किसी की खुशी में शरीक होना नजरअन्दाज किया जा सकता है लेकिन किसी के गम में...’’
‘‘नक्की करने का, डैडी। अभी बोलो, फोन क्यों किया?’’
‘‘फोन क्यों किया!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘बोलता है, भई, बोलता है ।’’
‘‘मैं सुनता है ।’’
‘‘कोई, पूछ रहा है तेरे को ।’’
‘‘कौन?’’
‘‘जिसके पास तेरे मतलब का काम है ।’’
‘‘कैसा काम?’’
‘‘पूछता है, कैसा काम! तेरे को नहीं मालूम?’’
‘‘कोई वाल्ट खोलना है?’’
‘‘या वाल्ट जैसा कुछ खोलना है ।’’
‘‘और ये काम मैं ही कर सकता है!’’
‘‘परफेक्ट कर के तू ही कर सकता है। जीते, फोन करने वाले को वहीच लॉकमैन मांगता है जिसने पणजी में डबल बुल कैसीनो का वाल्ट खोला, जिसने कनाट रोड, पूना के होटल ब्लू स्टार का वाल्ट खोला और कायन कनवेंशन को हिट किया। वहीच भीड़ू मांगता है उसको ।’’
‘‘उसको मालूम वो भीड़ू मैं?’’
‘‘हां। बाई नेम पूछा तेरे को। एस लॉकमैन बद्रीनाथ बोल के पूछा। मेरे को पूछा तो बोले तो ये भी मालूम कि मैं तेरा पोस्ट आफिस। बीच की कड़ी। कान्टैक्ट सोर्स। तू किसी को डायरेक्ट कर के न मिले तो वालपोई में बिग डैडी एडुआर्डो को फोन लगाने का ।’’
‘‘बोले तो वो कोई पुराना पापी है!’’
‘‘या किसी पुराने पापी से ये सब जानकारी निकाला ।’’
‘‘हूँ। नाम क्या बोला?’’
‘‘नहीं बोला। फोन नम्बर बोला। मोबाइल। तू उसको फोन लगायेगा तो वो सब कुछ बोलेगा। नम्बर नोट कर ।’’
‘‘वो तो मैं करता है पण और क्या बोला?’’
‘‘और तेरे को आप्शन दिया ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘चाहे तो उन का हाइस्ट में पार्टनर बन के शामिल हो सकता है, चाहे तो खाली वाल्ट खोलने का काम कर सकता है। पहला काम करेगा तो उनका बराबर का हिस्सेदार होगा, दूसरा करेगा तो खाली वाल्ट खोलने की फीस मिलेगी ।’’
‘‘हाइस्ट बोले तो!’’
‘‘लूट! झपट्टा!’’
‘‘किधर? इधर मुम्बई में?’’
‘‘मालूम नहीं। नहीं बोला। पूछने पर भी न बोला। बोला, ऐसी बातें बद्रीनाथ के काम की। वो कान्टैक्ट करेगा तो उसको बोलेगा। अब बोल, करेगा?’’
‘‘डैडी, मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’’
लाइन पर खामोशी छा गयी।
जाहिर था कि बिग डैडी सोचता था, विचार करता था।
‘‘मैं नक्की करता ।’’—आखिर एडुआर्डो की आवाज आयी।
‘‘ऐसा?’’
‘‘जीते, इधर मैं तेरा पोस्ट आफिस। कोई पोस्ट मैं रिसीव करे तो तेरे को फारवर्ड करने का न!’’
‘‘बरोबर ।’’
‘‘वो मैं किया पण ये टेम तेरे को नक्की करने का। कुछ टेम कोई नया पंगा नहीं लेने का...’’
जीतसिंह के जेहन में अपने वकील विनोद रावल की वार्निंग गूंजी :
‘‘तुम्हारी रिहाई पुलिस के मुंह पर तमाचा है। अच्छा हुआ तुम्हारे हक में कि इन्स्पेक्टर गोविलकर के कत्ल के बाद उसकी जगह लेने वाला इन्स्पेक्टर—एसएचओ तारदेव—उस जैसा कड़क न निकला वर्ना पुलिस तुम्हारे खिलाफ दस नये केस खड़े कर देती। इसलिये आइन्दा कुछ अरसा पुलिस की लाइन क्रॉस नहीं करने का। जिस केस में बरी हुए हो, उस में भी पुलिस तुम्हें फिर गिरफ्तार कर सकती है। नये सबूत, एडीशनल ईवीडेंस, हाथ आने का दावा कर सकती है। तुम्हे गिरफ्तार करके रीट्रायल के लिये कोर्ट में पेश कर सकती है ।’’
‘‘वो वकील भीड़ू’’—प्रत्यक्षत: वो बोला—‘‘विनोद रावल भी मेरे को ऐसीच बोला था ।’’
‘‘ठीक बोला था ।’’—एडुआर्डो बोला—‘‘ऐन परफेक्ट कर के बोला था। जीते, आई रिपीट, कुछ टेम कोई नया पंगा नहीं लेने का, इस्ट्रेट लाइफ पर जोर रखने का। इसी में तेरी भलाई है। नहीं?’’
‘‘हां ।’’
‘‘अभी लास्ट मंथ मिरेकल हुआ कि तेरे को कोर्ट ने उस रॉबरी के तेरे खिलाफ बोले तो ओपन एण्ड शट केस में बैनिफिट आफ डाउट दे कर बरी किया...’’
‘‘पण बरी होते ही बड़ा पंगा किया। मिडनाइट क्लब्स करके गैरकानूनी ठीये चलाने वालों से, पुलिस की फुल सरपरस्ती में ऐसे ठीये चलाने वालों से, जिनमें से एक में—नोबल हाउस करके मिडनाइट क्लब में—तुम्हेरे को लूट लिया, लाख रुपया निकाल लिया, एतराज किया, गलाटा किया तो कचरा कर दिया साला फुल। सरकारी हस्पताल में पड़ा मरता था और मैं अक्खी मुम्बई में गोवा से आये अपने मेहमान, मेहरबान मेहमान, को तलाश करता मारा मारा फिरता था ।’’
‘‘वो सब तूने मेरी खातिर किया। जो किया वो करना जबरन तेरे गले पड़ा, इसलिये किया। अपनी मर्जी से कुछ न किया। लाइक ए गुड सन अपने बिग डैडी की दुरगत का बदला लिया। कौन करता है इतना किसी गैर की खातिर!’’
‘‘गैर बोला, डैडी! तुम कोरट में मेरा जमानत कराया, पल्ले से रोकड़ा भरा, गैर के लिये किया! मेरी हर दुश्वारी में मेरे बाजू में खड़ा दिखाई दिया, गैर के लिये! मेरी रिहाई का जश्न मनाता था, वो क्या बोलता था...यस...‘पेंट दि डाउन रैड’ करके कुछ—गैर के लिये! गैर के साथ! मेरी खुशी से खुश होता था। काहे! क्योंकि मैं गैर!’’
‘‘अरे, नहीं रे! यू आर लाइक माई ओन सन ।’’
‘‘तो सन ने बिग डैडी की दुरगत पर तड़प कर दिखाया, गलत किया! उसकी दुरगत का बदला उतारने की ठानी, जिम्मेदार भीड़ूओं का वैसीच कचरा करने की ठानी जैसा उन्होंने तुम्हेरा किया, गलत किया! सन ने अपना फर्ज समझ कर कुछ किया तो क्या बिग डैडी पर अहसान किया!’’
‘‘अरे, नहीं रे, पण एक्सपोज हो जाता तो साला प्राब्लम तो होता न तेरे वास्ते! साला फिर अन्दर होता ।’’
‘‘हुआ तो नहीं!’’
‘‘गॉड आलमाइटी सेव किया। मैं साला इसी संडे जाता है इस्पेशल कर के सेंट फ्रंासिस चर्च में बड़े वाला कैंडल जलाने तेरे वास्ते ।’’
‘‘जाना। मेरे जैसी खोटी तकदीर वाले भीड़ू को दुआओं की सख्त जरूरत है ।’’
‘‘अब खोटी काहे! आजाद है न!’’
‘‘पता नहीं कब तक!’’
‘‘जब तक आसमानी बाप है, उस की रहमत की छतरी सिर पर है, तब तक। उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये, जीते, उम्मीद पर दुनिया कायम है। कोई दुश्वारी आन खड़ी होती है तो समझ आसमानी बाप इम्तहान लेता है। कोई प्राब्लम साला फार ऐवर नहीं होता। नो?’’
‘‘यस ।’’
‘‘तो फिर क्या फैसला है तेरा? उस फोन करने वाले का फिर फोन आयेगा, क्या जवाब देने का?’’
‘‘नक्की बोलने का। नहीं मांगता। ऐन फाइनल करके बोलने का ।’’
‘‘वो तो बोलेगा। उसका मोबाइल नम्बर तो नोट कर ले!’’
‘‘काहे कू! जब काम को नक्की बोला तो क्या मेरे को फिरेंड बनाने का उस भीड़ू को!’’
एडुआर्डो जोर से हँसा।
‘‘कट करता है, जीते ।’’—फिर बोला।
‘‘अपना खयाल रखना, डैडी ।’’
‘‘बरोबर ।’’
गाइलो ने जीतसिंह की खोली में कदम रखा।
गाइलो कुछ दुबला लग रहा था लेकिन चहक रहा था। चार महीने पहले जनवरी में दो बार वो बुरी तरह ठुका था और दोनों बार ठुकाई की वजह जीतसिंह था। पहले बड़ा बटाटा नाम के एक मवाली ने जीतसिंह का कोई पता निकलवाने के लिये उसे धुन दिया था, उस धुनाई से अभी वो उबरा नहीं था कि—जीतसिंह की दरख्वास्त पर—फरार होने की कोशिश कर रहा था तो पुलिस ने थाम लिया था और फिर इन्स्पेक्टर गोविलकर ने अपने तारदेव थाने में उसे ऐसी मार लगायी थी कि वो त्राहि-त्राहि कर उठा था, इस हद तक कि लिखत में ये बयान देने को तैयार हो गया था कि उसने कोर्ट में झूठी गवाही दी थी, किसी मुलाहजे में जीतसिंह को बचाने के लिये शिनाख्ती लाइन अप में निसंकोच उसकी शिनाख्त कर चुकने के बाद कोर्ट में उस शिनाख्त से मुकर गया था। वो ऐसा बयान दर्ज न कराने की जिद बरकरार रखता तो जरूर इन्स्पेक्टर गोविलकर उसे थाने में ही मार डालता। बाद में करिश्मा ही हुआ था कि इन्स्पेक्टर गोविलकर के आला अफसर डीसीपी प्रधान ने खुद उस का वो बयान नष्ट कर दिया था और यूं झूठे गवाह गाइलो की जान छूटी थी और जीतसिंह आखिर डकैती के केस में सन्देहलाभ पा कर रिहा हुआ था।
गाइलो टैक्सी ड्राइवर था और अपने जैसे ही चन्द और टैक्सी ड्राइवर दोस्तों के साथ जम्बूवाडी, धोबी तलाव के इलाके में एक चाल में रहता था।
‘‘गाइलो!’’—जीतसिंह हर्षित भाव से बोला—‘‘अरे, आ न! चौखट पर काहे खड़ेला है?’’
‘‘आता है ।’’—गाइलो मुस्कराता हुआ बोला।
‘‘आ, बैठ ।’’
‘‘बैठता है ।’’
‘‘इधर कैसे आ गया?’’
‘‘तेरे से मिलना मांगता था। उधर विट्ठलवाडी, कालबा देवी वाले तेरे नये ठीये पर पहुंचा तो फिलेट को ताला लगा पाया। पड़ोस से मालूम किया तो कोई बोला ‘पुराने घर जाता था’ बोल के गया, लौटने का कुछ बोल के न गया। तब मेरे को फीलिंग आया कि मेरे को इधर टिराई करने का था ।’’
‘‘ऐन फिट फीलिंग आया। मैं है न इधर! नहीं?’’
‘‘हां। बरोबर ।’’
‘‘अब बोल, चाय पियेगा?’’
‘‘पियेगा, पण तेरे को कुछ नहीं करने का ।’’
‘‘बोले तो?’’
‘‘नुक्कड़ पर जो चायवाला है, मैं उसको बोल के आया दो चाय इस्पेशल कर के इधर भेजने का था। आता होयेंगा ।’’
‘‘पण काहे...’’
‘‘पैसा तू देना न छोकरे को!’’
‘‘ओह! फिर ठीक है। अभी बोल कैसा है?’’
‘‘फिट है बाई दि ग्रेस आफ गॉड आलमाइटी एण्ड एक्टिव हैल्प आफ जीतसिंह ताला-चाबी वाला ।’’
‘‘फिट ही होना मांगता है। पण तू बहुत टेम से, बोले तो दो हफ्ते से, मुम्बई में नहीं था! मैंने आजू बाजू बहुत पूछा, तेरा डिरेवर दोस्त शम्सी मिला, अबदी मिला सभी बोला तू किधर बाहर। पण किधर, क्यों, किसी को मालूम नहीं था ।’’
‘‘डिकोस्टा को मालूम था ।’’
‘‘वो तो मिला नहीं!’’
‘‘तभी ।’’
‘‘पण तू था किधर?’’
‘‘लॉग हॉल पर था ।’’—गाइलो शान से बोला—‘‘आल इन्डिया परमिट वाली टैक्सी चलाता था, एक फॉरेन टूरिस्ट कपल को महाराष्ट्र दर्शन कराता था। टू वीक्स तो नक्को, पण ट्वैल्व डेज बाहर था ।’’
‘‘अरे, गाइलो, आल इंडिया परमिट वाला टैक्सी तेरे पास किधर है ।’’
‘‘किधर है! नहीं है। दूसरे डिरेवर भीड़ू का पकड़ा। उसको अपना लोकल टैक्सी पकड़ा कर। साला फिरकी टूर। साला डे एण्ड नाइट एकीच। ट्वैल्व डेज में साला फाइव थाउजेंट केएम गाड़ी चलाया। पैट्रोल निकाल कर, टैक्सी के मालिक को भी थोड़ा थैक्यू रोकड़ा देकर साला ट्वेंटी सब से बड़े वाला गान्धी कमाया। ऊपर से जानता है पार्टिंग टेम में फिरंगी लोग मेरे को कितना टिप दिया?’’
‘‘कितना?’’
‘‘तू बोल, जीते, गैस कर ।’’
‘‘पांच सौ! हजार!’’
‘‘अरे, पांच हज्जार! फाइव थाउ!’’
‘‘कमाल है! तो अभी अपने गाइलो की अंटी में पच्चीस हजार रुपिया!’’
‘‘नहीं ।’’—वो संजीदा हुआ।
‘‘नहीं?—जीतसिंह की भवें उठीं।
‘‘नहीं। जीते, यही तो वो सैड इस्टोरी है जो मैं तेरे से शेयर करने का वास्ते इधर आया ।’’
‘‘ओह! बोले तो...’’
तभी छोकरा चाय ले कर आया।
जीतसिंह ने उसे दस का नोट देकर विदा किया। पीछे दोनों दोस्तों ने चाय के गिलास थामे।
‘‘साला कितना महँगाई है!’’—गाइलो बड़बड़ाया—‘‘एक तो एक ठो चाय का पांच रुपिया। दूसरा साला क्वांटिटी में इतना कम...’’
‘‘पण बनी बढ़िया है ।’’—जीतसिंह बोला—‘‘ऐन चखाचख। शिकायत छोड़। पी के देख ।’’
गाइलो ने चाय का एक घूंट भरा और फिर तृप्तिपूर्ण भाव से सहमति में सिर हिलाया।
‘‘अभी बोल’’—जीतसिंह बोला—‘‘क्या सैड स्टोरी है?’’
‘‘बोलता है। बोलने का वास्ते ही आया। पण पहले तू बोल, इधर चिंचपोकली में क्या करता है? इधर काहे बैठेला है?’’
‘‘क्योंकि अब मैं इधरीच रहने का ।’’
‘‘क्या! क्या बोला?’’
‘‘यही घर है मेरा। जैसे पहले सालों से था, वैसे अब आगे भी होगा ।’’
‘‘क्या बात करता है! और वो कालबा देवी का फैंसी फिलेट...’’
‘‘किराये का है। ये खोली मेरा अपना है। उस फ्लैट का इस महीने का किराया चुकता है इसलिये अभी उधर आता जाता रहने का, महीने के आखिर में उधर से नक्की करने का ।’’
‘‘पण काहे?’’
‘‘भाड़ा बाइस हजार। नहीं भरना मांगता। मेरे को सेंविग करना मांगता है ।’’
‘‘फट्टा है ।’’
‘‘मेरे को इधर कोई प्राब्लम नहीं ।’’
‘‘फेंक रहा है ।’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘रोकड़े का पिराब्लम तेरे को?’’
‘‘अभी नहीं है। आगे होयेंगा ।’’
‘‘काहे?’’
‘‘देखना। तू भी इधर है, गाइलो, मैं भी इधर है, देखना ।’’
‘‘पण...’’
‘‘नक्की कर न! अभी बोल, सैड स्टोरी बोल अपना ।’’
‘‘अच्छा!’’
‘‘हां। वो जो पच्चीस सब से बड़े वाला गान्धी खड़ा किया, किधर गया वो?’’
‘‘जीते, लम्बी कहानी है ।’’
‘‘टेम है न मेरे पास! तेरे पास भी होयेंगा ही, तभी तो इधर आया!’’
‘‘वो तो है बरोबर!’’
‘‘तो बोल!’’
‘‘बोलता है। सुन ।’’—उसने चाय का गिलास एक तरफ रखा, कुछ क्षण खामोश रहा—जैसे सोचता हो किधर से शुरू करे—फिर तनिक नर्वस, तनिक धीमे, लेकिन सुसंयत स्वर में बोला—‘‘वो डिकोस्टा—मेरा फिरेंड, मेरा फैलो टैक्सी डिरेवर, मेरा जात भाई—परसों रात मेरे को एक जुए की फड़ में ले के गया...’’
‘‘क्या! तू जुआ खेलता है!’’
‘‘अरे नहीं, बाप। नहीं खेलता। पण नवें कमाये रोकड़े का जोश! पॉकेट में साला ट्वेंटी फाइव थाउ का हीट! फिर आइडिया सरकाने वाला अपना करीबी डिकोस्टा! सोचा, हाफ दि अमाउन्ट का रिस्क लेता है ।’’
‘‘लिया?’’
‘‘लिया न! तभी तो सैड इस्टोरी बना ।’’
‘‘आधा रोकड़ा गया न!’’
‘‘सारा गया ।’’
‘‘पण अभी तो तू बोला तेरे को आधी रकम का, साढ़े बाहर हजार रुपये का रिस्क लेने का था!’’
‘‘अरे, सेफ तो क्या हाफ, क्या फुल, टोटल अमाउन्ट था, पण पंगा, बहुत बड़ा पंगा, तो कोई और ही पड़ा ।’’
‘‘तू पहेलियां बुझाता है ।’’
‘‘तू टोकता ज्यास्ती है ।’’
‘‘सारी। अभी टोकाटाकी नक्को। पण एकाध बात फिर भी बोल, पहले बोल ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘फड़ किधर थी?’’
‘‘पनवेल में। उधर एक मोटर गैराज था जो शाम को छ: बजे तक बन्द हो जाता था। उस गैराज के ऊपर फस्र्ट फिलोर पर एक रूम था, पहुंचने के लिये बैक से लोहे की गोल सीढ़ी थीं फायर एस्केप का माफिक। काफी बड़ा रूम था। नाइस एण्ड कम्फर्टेबल। फर्श पर ये मोटा कार्पेट, ए सी, दि वक्र्स ।’’
‘‘कितने भीड़ू?’’
‘‘सात उधर पहले से थे पण फड़ में शामिल खाली छ:। बाद में मालूम पड़ा सातवां भीड़ू फड़ का आर्गेनाइजर था, जीत का टैन पर्सेंट कलैक्ट करता था जो कि फड़ की और उधर की सिकोटरी की फीस थी ।’’
‘‘सिकोटरी क्या?’’
‘‘भई, उधर कोई पंगा नहीं होयेंगा, पुलिस का रेड नहीं होयेंगा, वगैरह ।’’
‘‘ओह! सिक्योरिटी ।’’
‘‘वही तो मैं बोला!’’
‘‘ठीक! ठीक! आगे?’’
‘‘आगे! हां। मैं बोला न, फड़ में छ: भीड़ू उधर पहले से थे, दो मैं और डिकोस्टा पहुंच गये तो आठ हो गये ।’’
‘‘डिकोस्टा भी फड़ में शामिल? जुए में शामिल?’’
‘‘खाली टैन मिनट्स। फिर नक्की किया ।’’
‘‘किधर गया?’’
‘‘मालूम नहीं। मेरे को तो टैन मिनट्स के बाद वो उधर न दिखाई दिया ।’’
‘‘दलाल था? फड़ के लिये, उधर ऐसे भीड़ू खींचकर लाता था जिन की अंटी में रोकड़ा और जिनको टोपी पहनाना इजी!’’
‘‘जीते, वो मेरा फिरेंड, मेरा जातभाई, ये सब न होता तो मैं यही समझता पण वो मेरे साथ ऐसा कैसे करना सकता! कैसे मेरे को—अपने फिरेंड को, अपने जातभाई को—मूंडने का वास्ते बकरा बनाना सकता!’’
‘‘कलयुग है। क्या पता चलता है!’’
‘‘बरोबर बोला तू। पण मैं मुंडा किधर! मैं तो साला तीन लाख जीत गया!’’
‘‘क्या!’’
‘‘बाई दि ग्रेस आफ गॉड ऐसा पत्ता पड़ा, ऐसा अगेन एण्ड अगेन एण्ड अगेन पत्ता पड़ा कि मैं साला जीता, फिर जीता, फिर जीतता ही चला गया ।’’
‘‘कमाल है! फिर तो अपना डिकोस्टा स्ट्रेट भीड़ू!’’
‘‘टोटल इस्ट्रेट भीड़ू। नहीं भी तो अपुन का वास्ते बरोबर ।’’
‘‘गेम कौन सा था?’’
‘‘तीन पत्ती ।’’
‘‘कब तक चला?’’
‘‘मालूम नक्को। मैं दो बजे नक्की किया। वन थर्टी पर ही उठ खड़ा हुआ था जब कि मैं साला तीन पेटी अप था पण फड़ वाले भीड़ू बोले यूं एकाएक उठ के चल देना गलत ।’’
‘‘क्या करने का था? पहले नोटिस देने का था?’’
‘‘यहीच बोले वो लोग। सब बोले सडनली नक्की करना गलत। मेरे को उन को रिकवरी का चांस देने का था ।’’
‘‘फिर?’’
‘‘मैं दिया। साला हाफ एन आवर का नोटिस भी दिया कि टू एएम पर मेरे को उधर से आउट मांगता था ।’’
‘‘फिर?’’
‘‘हाफ एन आवर में सेवेंटी फाइव थाउ और जीत गया ।’’
‘‘अरे!’’
‘‘प्लस ट्वेंटी फाइव थाउ मेरा अपना। दो बजे मैं चार पेटी के साथ उधर से नक्की किया। पीछे फड़ मेरे कू नहीं मालूम कब तक चलने का था, कब तक चला ।’’
‘‘ठीक! ठीक! पण गाइलो, तूने उधर चार लाख रुपया बनाया, ये सैड स्टोरी है या ग्लैड स्टोरी है?’’
‘‘सैड इस्टोरी है। अभी आगे आता है। वो क्या है कि टैक्सी में मेरा एक सूटकेस था जिस में मेरे कपड़े थे पण वो हार्डली हाफ फुल का। मैंने रोकड़ा सूटकेस में बन्द किया, सूटकेस को डिकी में बन्द किया और उधर से निकल पड़ा। वापिसी में मैंने सायन पनवेल हाइवे पकड़ा क्योंकि आया भी उधरीच से था, ठाणे क्रीक क्रॉस किया तो आगे एक बिल्कुल उजाड़ स्ट्रेच, जहां कि मेरे को डाकू पड़ गये ।’’
‘‘क्या!’’
‘‘बड़ा गाड़ी था, दो भीड़ू थे, दोनों सिर पर हैट पहने थे और मुंह पर आंखों के ऐन नीचे तक काला रूमाल बाँधे थे। पहले उन्होंने मेरे को एक फायर कर के डराया फिर अपनी गाड़ी आगे लाकर मेरा टैक्सी को इंटरसेप्ट किया। मेरा को गाड़ी रोकना पड़ा। फिर लाइक ए फ्लैश मैं उन दोनों के कब्जे में। गन वाले की गन की नाल मेरी कनपटी पर। बोला, माल किधर बोल वर्ना बुलेट डालता है मगज में। मेरे को बोलना पड़ा। उसके साथी दूसरे भीड़ू ने मेरा सूटकेस डिकी से निकाल के काबू में कर लिया। फिर दोनों अपनी गाड़ी में सवार हुए और निकल लिये। मैं साला ईडियट का माफिक उधर अपना टैक्सी में बैठा सोचता था कि सपना था अभी टूट जायेगा। पण साला सपना किधर था! सपना तो थाईच नहीं ।’’
‘‘तो ये है अपने गाइलो की सैड स्टोरी?’’
‘‘हां ।’’
‘‘थे कौन वो लोग?’’
‘‘लुटेरे थे ।’’
‘‘वो तो थे पण उन्हें कैसे खबर थी कि तेरे पास रोकड़ा था?’’
‘‘क्या पता कैसे थी, पण थी बरोबर। उनके इस्टाइल से ही साफ पता लगता था कि मेरे पास के रोकड़े की उन्हें इस्पेशल करके खबर थी ।’’
‘‘लूट की कोई आम वारदात होती तो वो तेरी जेबें टटोलते, तेरा पर्स काबू में करते। गले में क्रॉस पर क्राइस्ट के इमेज वाली सोने की जंजीर पहनता है, हाथ में सोने की अंगूठी पहनता है, वो काबू में करते और फिर पूछते टैक्सी में और क्या माल था!’’
‘‘ऐग्जैक्टली! जीते, जब मेरे को मालूम पड़ा कि मैं कोई सपना नहीं देख रयेला था तो ऐग्जैक्टली यहीच फीलिंग साला मेरा मगज में आया। मैं साला उधर फड़ से उठ के खड़ा हुआ, उधर से नक्की किया कि डाकू पड़ गये ।’’
‘‘फड़ से किसी ने किसी को फोन किया कि तेरे पास चार पेटी रोकड़ा, तेरे को रास्ते में थामने का था!’’
गाइलो पहले ही इंकार में सिर हिलाने लगा।
‘‘ऐसा नहीं हो सकता?’’
‘‘हो सकता। बरोबर हो सकता। सौ टंका बरोबर हो सकता पण हुआ नहीं ।’’
‘‘हुआ नहीं!’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘तेरे को क्या मालूम!’’
‘‘मेरे को ही मालूम बाई दि ग्रेस आफ गॉड आलमाइटी ।’’
‘‘क्या? क्या मालूम?’’
‘‘जीते, मैंने गन वाले को पहचाना ।’’
‘‘तू बोलता है उसके सिर पर हैट था, मुंह पर नकाब था...’’
‘‘फिर भी पहचाना ।’’
‘‘कमाल है! कैसे?’’
‘‘साला थोबड़े से ही पहचान नहीं होता, पहचान के और भी जरिये होते हैं ।’’
‘‘बोले तो!’’
‘‘गन वाले के राइट हैण्ड की मिडल फिंगर का एक पोर गायब था ।’’
‘‘पण उस हाथ में तो गन...’’
‘‘लैफ्ट हैण्ड में था। साफ मालूम पड़ता था कि लेफ्टी था। राइट हैण्ड को मुट्ठी में बन्द कर के रखे था, जरूर इसी वास्ते कि मेरे को उसकी मिडल फिंगर न दिखाई दे। पण जब मेरा टैक्सी से बाहर निकलने को हैंडल पकड़ कर डोर को ओपन करता था तो मैं देखा न उस का ओपन राइट हैंड! साला वन थर्ड मिडल फिंगर थाइच नहीं ।’’
‘‘वो खब्बू था, उसके दायें हाथ की बीच की उंगली का एक पोर नहीं था, इससे तूने सूरत देखे बिना भी गन वाले को पहचाना?’’
‘‘और मैं क्या बोलना मांगता है!’’
‘‘कौन था?’’
‘‘जुए की फड़ का आर्गेनाइजर!’’
‘‘ओह! और दूसरा?’’
‘‘दूसरा साला काला चोर हो। वो तो डिरेवर था, फड़ के आर्गेनाइजर भीड़ू का गाड़ी ड्राइव करता था ।’’
‘‘हूं। तो तेरे को आर्गेनाइजर ने लूटा!’’
‘‘बरोबर। और किसी को इतनी जल्दी मालूम होइच नहीं सकता था कि मेरे पास चार पेटी रोकड़ा था ।’’
‘‘क्यों किया उसने ऐसा?’’
‘‘जैलसी में किया, खुन्नस में किया और क्यों किया? एक नवां भीड़ू फड़ में आया, मोटा माल खड़ा करके नक्की कर गया, साले को हजम न हुआ। हजम न हुआ कि एक मामूली टपोरी टैक्सी डिरेवर इतना रोकड़ा पीट के ले गया। उसको लगा वापिस छीन लेना ईजी। और साला ठीक लगा ।’’
‘‘हूं। तो ये है तेरी सैड स्टोरी!’’
‘‘बोले तो हां। मेरा साला चार पेटी...’’
‘‘तेरा साला पच्चीस हजार ।’’—जीतसिंह के स्वर में विनोद का पुट आया।
‘‘क्या बोला?’’
‘‘गाइलो, तेरा तो उसमें पच्चीस हजार ही था न! बाकी समझ जैसे एकाएक आया, वैसे एकाएक चला गया ।’’
‘‘वो तो तू बरोबर बोला पण...’’
‘‘बाकी रही पच्चीस हजार की बात तो वो मैं देता है तेरे को ।’’
‘‘तू काहे कू?’’
‘‘अरे, तेरा ब्रदर जैसा फिरेंड तेरे नुकसान की भरपाई करता है न!’’
‘‘वो तो मैं थैंक्यू बोलता है फ्राॅम दि कोर आफ माई हार्ट पण, जीते, मैं क्या इस वास्ते इधर आया!’’
जीतसिंह हड़बड़ाया, कुछ क्षण उसने अवाक् गाइलो का मुंह देखा।
गाइलो ने भावहीन ढंग से उससे निगाह मिलाई।
‘‘कुछ और है तेरे मगज में?’’—आखिर जीतसिंह बोला।
‘‘है न!’’
‘‘फिर तो सॉरी बोलता है। बोल, मैं सुनता है ।’’
‘‘जीते, कल अक्खा दिन मैंने उस फड़ के आर्गेनाइजर करके भीड़ू का जानकारी निकालने में लगाया। टैक्सी डिरेवर्स से कॉन्टैक्ट किया, भाई लोगों के प्यादों से कॉन्टैक्ट किया, यहां तक कि पनवेल थाने के एक हवलदार को भी सैट किया। मेरा टेम और एफर्ट वेस्ट न गया, आखिर मेरे को मालूम पड़ा कि वो भीड़ू कौन था!’’
‘‘कौन था?’’
‘‘उस का नाम मंगेश गाबले है और जुए की फड़ आर्गेनाइज करना उस का असल धन्धा नहीं है। उसका खास जानकार जो मेरे को मिला—जिस के जरिये कि मैंने आगे पुलिस वाले को सैट किया था—वो बोलता है कि वो कभी कभार का सिलसिला है जो वो खास फिरेंड्स के लिये, उनके कहने पर आर्गेनाइज करता है ।’’
‘‘असल धन्धा क्या है?’’
‘‘बोलता है। पण पहले ये सुन कि उस फड़ वाले ठीये का कल शाम को मैंने फिर चक्कर लगाया था ।’’
‘‘गाइलो, बहुत हौसला किया!’’
‘‘डिकोस्टा और अबदी के साथ। इस इन्तजाम के साथ कि कोई पंगा पड़े तो फौरन थाने खबर हो ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘कल उधर लोहे की सीढ़ियों पर एक गन वाला भीड़ू बैठेला था जो साफ मालूम पड़ता था कि उधर का रखवाली करता था। मैं बोला फड़ में जाने का तो बोला वाट फड़। डिकोस्टा जवाब दिया, बताया वाट फड़, ये भी बोला कि पिछले रोज शाम आठ बजे भी हम उधर आयेले थे। साला हरामी फिर बोला वाट फड़! मैं बोला जो मंगेश गाबले आर्गेनाइज करता था, बोला उधर इस नाम का कोई भीड़ू थाइच नहीं। मैं बोला ऊपर तो जाने दे, देख के तो आने दे, बोला ऊपर ताला था। डिकोस्टा उसको बोला फिर तू उधर क्या करता था, साला घौंचू बोला तुम्हेरे को क्या!’’
‘‘बोले तो उस भीड़ू को उम्मीद थी कि तू उधर चक्कर लगायेगा ।’’
‘‘यहीच मेरे मगज में भी आया ।’’
‘‘फड़ टैम्परेरी करके हटा दी गयी थी या चालू थी और तेरे को पास नहीं फटकने देने का था?’’
‘‘काहे! मेरे को मालूम था कि मेरे को लूटने वाला कौन था, उस को तो नहीं मालूम था कि मेरे को मालूम था!’’
‘‘ये बात भी ठीक है। बोले तो उसने एहतियात बरती!’’
‘‘क्या पता क्या किया पण हुआ यूँ कि उधर जाना किसी काम न आया ।’’
‘‘आता भी तो किस काम आता? जा के उस आर्गेनाइजर भीड़ू को मुंडी से थाम लेता और बोलता मेरा रोकड़ा निकाल?’’
‘‘जीते, मैं ऐसा डेयिंरग भीड़ू होता तो लुटता ही नहीं ।’’
‘‘तो फड़ में जा के तेरे को क्या हासिल होता?’’
‘‘मेरे को उसका रियेक्शन देखना मांगता था। मैं देखना मांगता था कि मेरे को उधर पहुंचा देख कर वो कैसे रियेक्ट करता था!’’
‘‘क्या फायदा होता?’’
‘‘कनफर्म होता कि मेरे को लूटने वाला वही भीड़ू था ।’’
‘‘कैसे? कैसे कनफर्म होता?’’
‘‘एक पिलान था न मेरे मगज में!’’
‘‘क्या? क्या प्लान था?’’
‘‘वो मिल जाता तो मैं उसको हिन्ट ड्रॉप करता ।’’
‘‘क्या? कि तेरे को मालूम था कि वोहीच भीड़ू था तेरे को लूटने वाला?’’
‘‘और ये कि मैं उसके असल धन्धे से भी वाकिफ था ।’’
‘‘असल धन्धा!’’
‘‘फैंस जैसा ।’’
‘‘फेंस जैसा, फेंस वाला नहीं?’’
‘‘नक्को ।’’
‘‘असल धन्धा क्या?’’
‘‘जीते, ये भीड़ू स्मगलिंग के माल की खरीद फरोख्त करने वालों के बीच में...बोले तो...बि...बि...बिचौलिये का काम करता है ।’’
‘‘फेंस ही हुआ न!’’
‘‘नहीं। फेंस का काम होता है चोरी का माल औने पौने में खरीदना और फिर गिराहक तलाश कर के उसे फैंसी प्राइस पर बेचना और मोटा रोकड़ा खड़ा करना। ये भीड़ू आर्गेनाइजर है, आर्गेनाइज करता है। ये माल को हैंडल नहीं करता, टच भी नहीं करता,