Fareedi Aur Leonard: Jasusi Dunia Series
By Ibne Safi
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About this ebook
Leonard is a blackmailer of the first order, he can stoop to any levels and is not restricted to blackmail. He commits other crimes including murder. The fast paced read offers you a very interesting story of how Leonard goes on to commit crimes and how ultimately he falls in the trap of detective Faridi. Come and join the game between Leonard and Faridi; we promise you would love it.
Ibne Safi
Ibne Safi was the pen name of Asrar Ahmad, a bestselling and prolific Urdu fiction writer, novelist and poet from Pakistan. He is best know for his 125-book Jasoosi Duniya series and the 120-book Imran series. He died on 26 July 1980.
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Book preview
Fareedi Aur Leonard - Ibne Safi
दो शब्द
१९७० में आलमी डाइजेस्ट में अपने उपन्यासों के शुरुआती प्रभावों की चर्चा करते हुए इब्ने सफ़ी ने लिखा था—
‘तिलिस्मे-होशरूबा और राइडर हैगर्ड के प्रभावों ने आपस में गड्ड-मड्ड हो कर मेरे लिए एक अजीब-सी ज़ेहनी फ़िज़ा मुहैया कर दी थी, जिसमें मैं हर वक़्त डूबा रहता। ऐसे-ऐसे सपने देखता कि बस। सपनों और पढ़ाई का यह सिलसिला जारी रहा।’
लेकिन इब्ने सफ़ी ने किताबों ही को नहीं, ज़िन्दगी को भी गहरी ऩजर से देखा था और इसलिए उन्होंने अपने जासूसी उपन्यासों में जुर्म और मुजरिमों की तस्वीरें कल्पना और हक़ीक़त के मेल से तैयार कीं। शुरुआती उपन्यासों में अपराध की आम उलझी हुई गुत्थियाँ मिलती हैं, लेकिन जैसे-जैसे इब्ने सफ़ी का क़लम मँजता चला गया, उनके उपन्यासों में परत-दर-परत अपराध के अलग-अलग और अनोखे पहलू चित्रित होने लगे। उनकी ऩजर सिर्फ़ आदमी की पेचीदगियों पर ही नहीं रही, बल्कि उन्होंने बदलते हुए समाज के साथ जुर्म के बदलते हुए रूपों को भी अपने उपन्यासों में बुना।
‘फ़रीदी और लियोनार्ड’ ऐसा ही एक दिलचस्प उपन्यास है जिसमें इब्ने सफ़ी ने पहली बार अपना दायरा फैलाते हुए एक विदेशी मुजरिम को उपन्यास में उतारा। लियोनार्ड बेहद चालाक, लेकिन घटिया क़िस्म का ब्लैकमेलर है, जो सिर्फ़ ब्लैकमेलिंग तक ही नहीं रुकता, बल्कि क़त्ल और दूसरे ओछे हथकण्डे अपनाने पर उतर आता है। यहाँ तक कि वह ख़ुफ़िया त़फतीश के महकमे तक में घुसपैठ कर लेता है।
जासूसी उपन्यास के सिलसिले में सबसे पहला फ़ैसला जो उपन्यासकार को करना होता है, वह खलनायकों की पहचान और उनकी रचना से ताल्ल़ुक रखता है। अपराध और अपराधियों की बात किसी बुनियाद के बिना सम्भव नहीं। इसलिए जुर्मों के और उन्हें अंजाम देने वाले मुजरिमों के ख़ाके उपन्यासकार से बहुत ख़ास क़िस्म की फ़नकारी चाहते हैं, ताकि वे किसी ऩकली बनावटी दुनिया के अबूझ खलनायक न लग कर, हमारी ही दुनिया के, हमारे ही समाज के, भटके हुए लोग जान पड़ें। इब्ने सफ़ी के उपन्यासों में इस लिहा़ज से हैरत-अंग़ेज विविधता ऩजर आती है।
इब्ने सफ़ी अपने गढ़े किरदारों को ले कर कितने सावधान रहते थे, इसका पता ‘फ़रीदी और लियोनार्ड’ के दूसरे संस्करण की भूमिका से चलता है, जिसमें उन्होंने लिखा -
‘‘जब भी मैं जासूसी दुनिया का कोई शुरुआती उपन्यास दोबारा छापने लगता हूँ तो बेअ़िख्तयार यही दिल चाहता है कि उसमें कुछ तब्दीलियाँ की जायें, लेकिन यह सोच कर रुक जाना पड़ता है कि ऐसा करने से मेरे पढ़ने वालों को फ़रीदी और हमीद के किरदारों में धीरे-धीरे जो सूझ-बूझ सुधरी-सँवरी है, उसका अन्दाज़ा करना मुश्किल हो जायेगा...
ग़ालिबन इन दोनों किरदारों की म़कबूलियत की भी यही वजह है कि पढ़ने वालों की सूझ-बूझ के साथ ही इनमें भी तब्दीलियाँ होती गयी हैं।
हमीद साहब के बारे में यह कहा जा रहा है कि वे अब संजीदा होते जा रहे हैं, उनमें गम्भीरता आ रही है, लेकिन आप आख़िर यह क्यों भूल जाते हैं कि फ़रीदी में भी तो बेहतरी की तरफ़ तब्दीलियाँ हो गयी हैं। यह कहना ग़लत होगा कि हमीद में बहुत ज़्यादा गम्भीरता आ गयी है।...आप जानते ही हैं कि फ़रीदी की ऩजर में संजीदगी का क्या पैमाना है। लेकिन क्या हमीद इस पैमाने पर पूरा उतरता है?’’
‘फ़रीदी और लियोनार्ड’ की ख़ूबी मह़ज इस उपन्यास के दिलचस्प और अनोखे चरित्रों की वजह से नहीं है, बल्कि इसके सनसनी़खे़ज कथानक और घटनाओं के पेच-दर-पेच उलझने-सुलझने से भी है। लियोनार्ड जासूसी महकमे में कैसे घुसपैठ करता है, क्या-क्या गुल खिलाता है और फिर कैसे फ़रीदी के हत्थे चढ़ता है–इसे जानने के लिए आइए, इस उपन्यास के हैरत-अंगे़ज स़फर पर चलें। हमारा यक़ीन है आप निराश न होंगे।
—नीलाभ
फ़रीदी और लियोनार्ड
एक दिलचस्प ख़बर
डिपार्टमेंट ऑफ़ इनवेस्टिगेशन की इमारत सुबह की धुन्ध में डूबी कुछ अजीब-सी लग रही थी। हिन्दुस्तान के उत्तरी इला़के में यूँ ही कड़ाके की ठण्ड पड़ती है। लेकिन बर्फ़बारी हो जाने की वजह से भी आज कई दिनों से ठण्ड बहुत ही ज़्यादा हो गयी है। डिपार्टमेंट ऑफ़ इनवेस्टिगेशन की इमारत बड़े-बड़े चौकोर पत्थरों को जोड़ कर बनायी गयी है। ऐसा मालूम हो रहा है जैसे वह ग़ुरूर में कोहरे की गहरी चादर पर हँसी-हँसती हुई कह रही हो कि हमें क्या परवाह, चाहे जितनी ठण्ड पड़े, हमारे ऊपर उसका कोई असर नहीं होने वाला। हमारे अन्दर ऐसे-ऐसे रा़ज दफ़्न हैं, जिनकी हवा भी दुनिया को नहीं लगी। दुनिया के सैकड़ों रा़ज हमारे सीने में दफ़्न होने के लिए आते हैं और हमारे ही हो कर रह जाते हैं।
इसी इमारत के कम्पाउण्ड में कई शानदार बँगले बने हुए हैं। इन्हीं बँगलों में से एक के बरामदे में एक ख़ूबसूरत अंग्रेज़ औरत शायद किसी का इन्तज़ार कर रही थी। उसने सोने वाले कपड़ों के ऊपर ऊनी कपड़ा पहन रखा था। उसकी निगाहें बार-बार बरामदे में लगे हुए गुलाब के पेड़ की तरफ़ उठ जाती थीं।
थोड़ी देर के बाद एक कार कम्पाउण्ड में दाख़िल हुई। अंग्रेज़ औरत बेताबी के साथ बरामदे से उतर कर आगे बढ़ी।
एक अधेड़ उम्र का तन्दुरुस्त अंग्रेज़ कार से उतरा। उसने आगे बढ़ कर औरत की कमर में हाथ डाल दिया।
‘‘ओह जैक्सन डार्लिंग,’’ वह औरत अंग्रेज़ी में बोली। ‘‘ख़ुदा का शुक्र है कि मैं तुम्हें फिर तन्दुरुस्त देख रही हूँ।’’
अंग्रेज़ ने झुक कर औरत का माथा चूम लिया। फिर दोनों बँगले में दाख़िल हो गये। यह पी०एल० जैक्सन ख़ुफ़िया पुलिस का सुप्रिन्टेंडेण्ट था। लगभग दो महीने से बहुत बीमार था। उसकी ज़बान के नीचे एक फोड़ा निकल आया था, जिसकी वजह से वह लगभग गूँगा हो कर रह गया था। खाने-पीने में भी परेशानी होती थी, जब तक उसके दिल में विल पावर रही, वह बीमारी की तरफ़ से लापरवाही करता रहा, लेकिन जब तकलीफ़ ज़्यादा हो गयी तो उसे हस्पताल में दाख़िल होना पड़ा, जहाँ उसके फोड़े का ऑपरेशन कर दिया गया।
आज दो महीने के बाद वह पूरी तरह सेहतमन्द हो कर घर वापस आ गया। जो औरत उसका इन्तज़ार कर रही थी वह उसकी बीवी थी।
उसी दिन दोपहर की बात है दफ़्तर में हमीद फ़रीदी के कमरे में हँसता हुआ दाख़िल हुआ।
फ़रीदी अख़बार देखने में मश़गूल था। उसने चौंक कर हमीद की तरफ़ सवालिया अन्दाज़ से देखा।
‘‘शायद ऑपरेशन के सिलसिले में मिस्टर जैक्सन के दिमाग़ की भी कोई रग कट गयी है।’’ हमीद ने कहा।
‘‘क्या मतलब......’’
‘‘चपरासियों से ले कर डिप्टी सुप्रिन्टेंडेण्ट तक को एक-एक करके अपने कमरे में बुला चुके हैं। स्टा़फ की हाज़िरी का रजिस्टर सामने खोल रखा है।’’
‘‘क्यों....?’’
‘‘पता नहीं।’’ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘आप को सलाम कहा है।’’
‘‘हूँ....!’’ फ़रीदी ने उठ कर सिगार का जला हुआ टुकड़ा ऐश ट्रे में डालते हुए कहा। अख़बार मोड़ कर उसने जेब में रखा और पंजों के बल चलता हुआ कमरे से निकल गया। यह उसकी अजीबो-ग़रीब आदत थी कि वह दफ़्तर में आम तौर पर पंजों के बल चला करता था। शायद उसका मक़सद यह था कि जूतों की आवाज़ से किसी के काम में ख़लल न पड़े। वह पर्दा उठा कर मिस्टर जैक्सन के कमरे में दाख़िल हो गया।
‘‘हेलो मिस्टर फ़रीदी.... आप अच्छे तो हैं!’’ सुप्रिन्टेंडेण्ट ने पूछा।
‘‘मेहरबानी।’’ फ़रीदी ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘मैं आपको आपकी सेहतयाबी की मुबारकबाद देता हूँ।’’
‘‘शुक्रिया....।’’ जैक्सन ने कहा ‘‘बैठिए।’’
फ़रीदी बैठ गया।
‘‘मैं क्या बताऊँ कि मुझे अपने स्टा़फ से कितनी मुहब्बत है।’’ जैक्सन मुस्कुरा कर बोला। ‘‘मैंने दफ़्तर आ कर सबसे पहला काम यही किया है कि एक-एक करके सबको बुला कर मुला़कात की।’’
‘‘हम सब आपकी मुहब्बत की क़द्र करते हैं।’’