Meri Kahani Ka Nayak
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About this ebook
One day while writing a story, a fiction writer's protagonist steps out of his notebook and disappears. After devoting a lifetime to the service of his country, Acharya-ji feels like a failure and eventually loses his mind. Akanksha's life is shattered by technology that makes life easier for everyone and completes the world today. Deepti finds the cool shade of love after years of pain and struggle, but not quite. Contemporary, yet sentimental, the stories in this volume tug at the heartstrings and force the reader to sit up and think about the society caught in a flux of changes.
Pamela Manasi
Pamela Manasi is associate professor at SP Mukherji College, Delhi University. She has published four short-story collections and edited two short-story collections for Penguin Books India and HarperCollins India. She has also translated several authors' works into Hindi including those of Agatha Christie, Paulo Coelho and Krishna Sobti.
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Meri Kahani Ka Nayak - Pamela Manasi
सहारे
रिश्ते जो एक बार बन जाते हैं टूटते नहीं कभी। केवल हम समझते हैं कि वे टूट गए हैं या हमने स्वयं ही झटककर उन्हें तोड़ दिया है। अगर ऐसा नहीं होता तो सैकड़ों मील दूर बैठे उन लोगों के विषय में विचार या स्वप्न क्यों आते जिन से वर्षों से सम्बन्ध टूट गए हों? क्यों ऐसे पूर्वाभास या स्वप्न सच होते हैं?
माँ से अलग हुए मुझे बीस वर्ष हो चुके थे। यह तो नहीं कह सकती इस अन्तराल में मुझे माँ की याद नहीं आई। लेकिन हर याद अपने में एक कड़वाहट लिए आई। कभी जी भी चाहा मिलने को तो पैरों को किसी अनजानी ज़ंजीर ने बाँध लिया। शुरू में कुछ वर्ष तक माँ दो चार दिन में फोन कर लेती थी लेकिन मैं ही कभी ढंग से बात नहीं कर पाई। फोन बन्द होते ही माँ की भीगी आवाज़ मुझे भीतर ही भीतर कहीं काटने लगती। माँ ने कभी मिलने आने की इच्छा प्रकट की तो मैंने कोई न कोई बहाना बना दिया। एयर होस्टेस हूँ। आधे दिन तो यूँ ही देश से बाहर कट जाते हैं। जब¬जब माँ के प्रति कोई कोमल भावना मन में उठी मैंने उसे कुचल दिया।
रेगिस्तान जैसे रिश्ते में फिर ऐसा क्यों हुआ कि जो बिजली माँ पर गिरने वाली थी वह मेरी नींद उड़ा गई? अभी एक महीना ही हुआ है उस दिल दहला देने वाली घटना को। मैं दफ़्तर से थक कर आई थी। अगली सुबह ही फ़्लाइट पर जाना था। देर रात तक सामान पैक करती रही। उसके बाद लेटते ही नींद आ गई।
अचानक मेरी आँखों के सामने माँ उभर आई—रोती, बिलखती, एकदम मैली और सिकुड़ी हुई। मैं दहलकर उठ बैठी। इस हाल में माँ को मैंने कभी नहीं देखा। माँ अपने समय की प्रसिद्ध मॉडल रह चुकी है। उसकी छवि एक ग्लैमर युक्त छवि है। मेरे स्वप्न में यह मैली बिलखती हुई औरत कौन थी। मैं पसीने से भीग गई। मैंने यह क्या देख लिया था। सामने दीवार घड़ी अभी रात के दो बजा रही थी। उठकर पानी पिया और दोबारा सोने का यत्न करने लगी लेकिन शेष रात मैं सो नहीं पाई। चार बजे उठकर मैंने अपनी तैयारी करनी शुरू कर दी। दो घण्टे बाद मुझे हवाई अड्डे पहुँचना था। घर से निकलने के बाद स्वप्न धीरे-धीरे मन-मस्तिष्क के किसी पिछले अन्धेरे कोने में सरकने लगा। केवल रह-रहकर दिल का काँपना जारी रहा।
जहाज़ में जाकर काम शुरू करते ही मैंने दूसरे प्रत्येक विचार को परे धकेल दिया। लोगों के स्वागत के लिए चेहरे पर मुस्कान ले आई। यात्रियों की देखभाल करते, जहाज़ के आइल में इधर से उधर जाते हुए जाने क्यों लगता जैसे कहीं कोई मेरी माँ का नाम ले रहा है। ले भी रहा हो तो उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं थी। वह एक बहुत प्रसिद्ध मॉडल रह चुकी थी और अब अपने पति के साथ एक विज्ञापन एजेंसी चला रही थी। गत वर्ष ही उसे वर्ष की श्रेष्ठतम विज्ञापन फिल्म बनाने के लिए पुरस्कार भी मिला था। डेढ़-दो घण्टे बाद मैंने एक सहयोगी से अख़बार माँगा। मुखपृष्ठ पर नया कुछ नहीं था। वही पुरानी बातें। किसी राजनैतिक पार्टी ने दूसरी पर कीचड़ उछाला जिसके कुछ छींटे स्वयं उस पर भी पड़े। कहीं ट्रक दुर्घटना में कुछ लोग मारे गये। कहीं किसी की हत्या कर दी गई। एक परिवार के चार सदस्यों ने मिलकर आत्महत्या कर ली। बोर होकर मैंने पन्ना पलटा। तीसरे पृष्ठ पर बाएँ हाथ, नीचे के कोने में लिखा था ‘‘भयंकर दुर्घटना में दिव्या का उन्नीस वर्षीय बेटा नहीं रहा।’’ मेरे हाथों में पकड़ा अख़बार काँपकर थरथराने लगा। रोती-बिलखती माँ एक बार फिर मेरी आँखों के आगे उभर आई। मेरे घुटने आप से आप मुड़ गए। मैं गिरने ही वाली थी कि सहयोगियों ने मिलकर सम्भाल लिया। उसके बाद मुझे कोई भी काम नहीं करने दिया गया।
वर्षों से मेरा माँ से कोई सम्बन्ध नहीं था। फिर भी अब माँ का चेहरा आँखों के आगे घूमने लगा। बेटे के बिना माँ कितनी अकेली रह गयी होगी। माँ का अकेलापन जैसे मेरे भीतर उतरने लगा। संसार कितना सूना है— एक बीहड़ जंगल की भाँति जहाँ केवल हवा सांय-सांय करती है और हवा की यह सांय-सांय हमें अपने भीतर कहीं गहरे में सुनाई देती है। दो चार धुँघले चित्र याद आए विकास के। माँ उसके जन्मदिन पर मुझे उसका एक चित्र ज़रूर भेजती थी। लेकिन मैंने ही विकी-विकास-को कभी भाई नहीं माना और माँ के पत्रों सहित इन चित्रों को आलमारी के किसी ऐसे कोने में फेंक देती जिसकी कभी सफाई नहीं होती थी। विकी के लिए मेरे मन और जीवन के सारे द्वार बन्द थे। अब सोचती हूँ मैंने अपने को इतना संकीर्ण कैसे कर लिया था।
मेरे पिता की मुझे कोई याद नहीं। मैं अभी माँ की कोख में ही थी जब वह उनसे अलग हो गई। लोग कहते हैं कि ऐसी स्थिति में पले-बढ़े बच्चों के जीवन में एक बहुत बड़ी कमी रही जाती है। लेकिन मेरा जीवन इस बात का अपवाद रहा है। माँ ने मुझे पूरा प्यार दिया, मुझे पालने में पूरा ध्यान, हालाँकि वह स्वयं बहुत व्यस्त रहती थी। वह मॉडल थी और शुरू के उन दिनों में उसे बहुत संघर्ष करना पड़ा था मॉडिंलग जगत में अपना स्थान बनाने के लिए।
मैं जैसे-जैसे बड़ी होती गई, माँ प्रसिद्ध और र्चिचत होती गई। शायद ही कोई पत्रिका देश में छपती जिसमें माँ का चित्र न होता। मेरे लिए माँ प्रेम और सुन्दरता दोनों को दैवी छवि थी। कॉलेज में लड़कियाँ मुझसे ईर्ष्या करतीं और लड़के मुझे हर प्रकार से खुश करने का यत्न। फिर जाने क्या हुआ कि मेरे और माँ के बीच एक अलगाव आने लगा—एक खिंचाव सा।
वह अलगाव आया विशाल के कारण। ऐसा नहीं था कि मुझे हर समय माँ की छाया में ही रहने की आदत थी। माँ का तो काम ही ऐसा था जिसमें उसे समय-असमय घर से बाहर रहना पड़ता था—कभी शूटिंग के लिए कभी किसी पार्टी के लिए कभी लोगों से मिलने के लिए। हमारे घर भी माँ के मित्र व सहयोगी आते जाते रहते थे। घर में कभी-कभी बहुत हलचल बहुत मौजमस्ती रहती। यह सब मैं लगभग किनारे से देखती क्योंकि छोटी थी। लेकिन जितना भी, जो भी देखती मुझे अच्छा लगता। मैं स्वप्न देखती बड़ी होकर मैं भी इसी व्यवसाय में जाऊँगी जहाँ केवल सुन्दरता और ग्लैमर हो। माँ हंस देती, ‘‘तू अभी छोटी है। इस व्यवसाय की मारधाड़ और तनाव तूने नहीं देखें। यहाँ बहुत कुछ ऐसा है जो बनावटी है।’’
विशाल ने अपनी विज्ञापन एजेंसी शुरू की। इसी सिलसिले में माँ की उससे भेंट हुई। वह एक दो बार घर भी आया। मेरी केवल नमस्ते हुई उससे। उसने कभी मुझ में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई माँ के अन्य परिचितों के समान। स्पष्ट है कि मैंने भी उसे कभी कुछ नहीं माना। सात आठ महीने बाद मुझे अनुभव हुआ माँ में कोई परिवर्तन आ रहा था। यह परिवर्तन माँ के चेहरे पर एक नई कांति ला रहा था और मेरे जीवन में विष। कभी यह भी लगता माँ मेरी ओर से लापरवाह होती जा रही है। यह भी समझ में आने लगा कि यह परिवर्तन विशाल के कारण है। जिस दिन माँ उसे मिलने जा रही होती मुझे जाने कैसे पता चल जाता। एक रात वह माँ को घर छोड़ने आया तो माँ ने उसे कॉफी के लिए रोक लिया और बड़े प्यार और अधिकार से मुझे कॉफी बनाने के लिए कहा। मैंने बेरुखी से उत्तर दिया, ‘‘मैं नहीं बना सकती कॉफी आधी रात को। नींद आ रही है।’’
अगले दिन मैं कॉलेज के लिए तैयार हो रही थी कि माँ मेरा नाश्ता कमरे में ही ले आई। वह चुपचाप मुझे निहारने लगी और उसकी सूनी आँखों में एक प्रश्न तैर आया। मुझे पिछली रात के अपने व्यवहार पर बहुत लज्जा आई। मैंने माँ से लिपटकर ‘सॉरी’ कह दिया। माँ की आँखों में आँसू भर आए।
‘‘कभी मत भूलना मैंने अपना रेगिस्तान जैसा जीवन तेरी सूरत देखकर काटा है।’’ चार दिनों के लिए हम दोनों के बीच की सारी दूरियाँ मिट गईं।
विशाल के प्रति माँ का आकर्षण बढ़ता गया। उनके इस बढ़ते सम्बन्ध को मैं सहज रूप से स्वीकार नहीं कर पा रही थी। लगता था जैसे कोई मेरे जीवन की नींव हिला देने पर तुला हो। माँ मेरी प्रतिक्रिया जानते हुए भी खुद को रोक नहीं पा रही थी।
फिर एक रात ऐसी आई जिसने हम दोनों को अलग-अलग द्वीपों में धकेल दिया। छोटे-छोटे सूने द्वीप, जिनके बीच रास्ता तो था लेकिन हमारे ही कदम आगे नहीं बढ़ सके। उस रात सोने से पहले मैं पलंग पर बैठकर कोई उपन्यास पढ़ने लगी और माँ ने प्रतिदिन की भाँति उदास संगीत चला दिया। माँ कुछ बेचैन सी लग रही थी। दस मिनट भी नहीं बीते होंगे कि माँ ने संगीत बन्द कर दिया और बोली, ‘‘तुमसे एक बात करनी है, टीना।’’ यह उसने कुछ इस भाव से कहा जैसे कोई अनचाहा काम उसे करने को कहा जा रहा हो।
‘‘क्या माँ!’’
‘‘बेटी तुझे शायद बहुत अच्छा न लगे सुनकर। मैं जानती हूँ तुझे विशाल ख़ास पसन्द नहीं। लेकिर फिर भी समझने की कोशिश