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Aurat Farosh Ka Hatyara: Jasusi Dunia Series
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Aurat Farosh Ka Hatyara: Jasusi Dunia Series
Ebook177 pages1 hour

Aurat Farosh Ka Hatyara: Jasusi Dunia Series

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About this ebook


Excellent murder mystery! First an evening of celebrations at a hotel by two police officers, gunshot which claims one life which is first said to be a suicide and then turns out to be a murder. The man killed was a known pimp, but who killed him? Why was he murdered? We invite you to get glued to the book to know who was the "Aurat Farosh Ka Hatyara".
Languageहिन्दी
PublisherHarperHindi
Release dateSep 13, 2014
ISBN9789351367307
Aurat Farosh Ka Hatyara: Jasusi Dunia Series
Author

Ibne Safi

Ibne Safi was the pen name of Asrar Ahmad, a bestselling and prolific Urdu fiction writer, novelist and poet from Pakistan. He is best know for his 125-book Jasoosi Duniya series and the 120-book Imran series. He died on 26 July 1980.

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    Aurat Farosh Ka Hatyara - Ibne Safi

    औरत फ़रोश का हत्यारा

    ख़ूनी नाच

    आज शाम ही से सार्जेंट हमीद ने काफ़ी हड़बोंग मचा रखी थी, बात सिर्फ़ इतनी थी कि आज उसने नुमाइश जाने का प्रोग्राम बनाया था। कई बार उसने अलग-अलग रंगों के सूट निकाले और उन पर तरह-तरह की टाइयाँ रख कर देखता रहा। इन्स्पेक्टर फ़रीदी उसकी इन बचकानी हरकतों पर मन-ही-मन मुस्कुरा रहा था, लेकिन उसने हमीद को टोकना ठीक न समझा। आज वह भी नुमाइश जाने के लिए तैयार हो गया जिसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि आजकल वह बेकार था, वरना उस जैसे आदमी को खेल-तमाशों के लिए वक़्त कहाँ और वैसे भी उसे इन चीज़ों से दिलचस्पी न थी। ख़ाली वक़्त में वह ज़्यादातर अपने पालतू जानवरों से दिल बहलाया करता या फिर हमीद के चुटकलों का आनन्द उठाया करता था। दूसरे शब्दों में अगर यह कहा जाये तो ग़लत न होगा कि हमीद भी उसके अजायब-घर का एक जानवर था।

    हमीद उसका मातहत ज़रूर था, लेकिन उन दोनों के बीच किसी तरह की कोई रस्मी ऊँच-नीच न थी और यही चीज़ उसके दूसरे मातहतों को बहुत बुरी लगती थी। अकसर वे दबी ज़बान से अपनी नाराज़गी का इज़हार भी कर दिया करते थे, लेकिन फ़रीदी हमेशा हँस कर टाल देता था। कई लोगों ने इस बात की कोशिश भी की कि सार्जेंट हमीद का किसी दूसरी जगह ट्रांसफ़र करा दिया जाये, लेकिन वे इसमें कामयाब न हो सके, क्योंकि बड़े अफ़सरों को कोई काम फ़रीदी की म़र्जी के ख़िलाफ़ करने में कुछ-न-कुछ परेशानी ज़रूर होती थी। यही वजह थी कि हमीद का तबादला किसी दूसरी जगह न हो सका, वरना सार्जेंटों के तबादले तो आये-दिन हुआ करते थे।

    इन्स्पेक्टर फ़रीदी एक जौहरी की नज़र रखता था और उसने पहले ही दिन हमीद को परख लिया था, इसलिए उसने उसको अपने दो-तीन मामलों में साथ रखा था। धीरे-धीरे दोनों बहुत घुल-मिल गये और फिर एक दिन वह आया कि हमीद इन्स्पेक्टर फ़रीदी के साथ रहने लगा।

    ‘‘आप कौन-सा सूट पहन रहे हैं?’’ हमीद ने फ़रीदी से पूछा।

    ‘‘कोई-सा पहन लिया जायेगा... आख़िर आजकल तुम कपड़ों का इतना ध्यान क्यों रखने लगे हो?’’ फ़रीदी ने पूछा।

    ‘‘कोई ऐसी ख़ास बात तो नहीं।’’ हमीद हँस कर बोला।

    ‘‘नहीं! तुमने ज़रूर कोई नयी बेवकूफ़ी की है।’’ फ़रीदी ने कहा। ‘‘मैं मान नहीं सकता।’’

    ‘‘बात दरअसल यह है कि आज...’’ हमीद रुकते हुए बोला। ‘‘बात यह है कि घूमना तो एक बहाना है। क्या आपको नहीं मालूम कि आज ‘गुलिस्ताँ होटल’ में ख़ास प्रोग्राम है। सच कहता हूँ, बड़ा मज़ा आयेगा।’’

    ‘‘तो ऐसा कहिए।’’ फ़रीदी उसे घूरता हुआ बोला। ‘‘क्यों न आप ही तशरीफ़ ले जाइए। मेरे पास फ़ालतू कामों के लिए वक़्त नहीं है।’’

    ‘‘ख़ुदा की क़सम मज़ा आ जायेगा... आज आप भी नाचिएगा, शहनाज़ के साथ... उसकी एक सहेली भी होगी।’’

    ‘‘अच्छा...’’ फ़रीदी ने मज़ाक़ में सिर हिलाया और पूछा, ‘‘यह शहनाज़ क्या बला है?’’

    ‘‘ही ही ही... बात यह है कि... वह मेरी दोस्त है... यानी कि बात यह है... ही ही ही।’’

    ‘‘जी हाँ, बात यह है कि आपने कोई नया इश्क़ फ़रमाया है।’’

    ‘‘जी हाँ... जी हाँ... आप तो समझते हैं, लेकिन मैं आपसे कहता हूँ कि इस बार सौ फ़ीसदी सच्चा इश्क़ हुआ है। बस, यह समझ लीजिए कि मैं उसके बग़ैर...’’

    ‘‘ज़िन्दा नहीं रह सकता।’’ फ़रीदी ने जुमला पूरा करते हुए कहा।

    ‘‘और अगर ज़िन्दा रह सकता हूँ तो इस घर में नहीं रह सकता और अगर इस घर में रह भी गया तो दिन-रात रोने के अलावा और कोई काम न होगा।’’

    यह कह कर हमीद खिसियानी हँसी हँसने लगा।

    ‘‘आप चलिए तो...’’ उसने कहा। ‘‘अच्छा आप न नाचना।’’ उसने आगे जोड़ा।

    ‘‘ख़ैर, चला जाऊँगा, क्योंकि मैं भी थोड़ी-सी सैर करना चाहता हूँ, लेकिन मैं एक शर्त पर वहाँ जाऊँगा और वह यह कि तुम वहाँ मुझे किसी से मिलवाओगे नहीं।’’

    ‘‘चलिए म़ंजूर...’’ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘अच्छा अब जल्दी से अपना सूट निकलवा लीजिए... पहले नुमाइश चलेंगे।’’

    ‘‘तो क्या तुम्हें नाचना आता है?’’ फ़रीदी ने कहा।

    ‘‘क्यों नहीं... मैं फ़ॉक्स ट्रॉट नाच सकता हूँ... वॉल्ज़ नाच सकता हूँ और...’’

    ‘‘बस-बस...’’ फ़रीदी ने हाथ उठा कर कहा। ‘‘अभी इम्तहान हुआ जाता है।’’

    फ़रीदी ने रिकॉर्डों के डिब्बे में से एक रिकॉर्ड निकाल कर ग्रामोफोन पर चढ़ा दिया। एक अंग्रेज़ी गाना कमरे में गूँजने लगा।

    ‘‘अच्छा बताओ! क्या बज रहा है?’’ फ़रीदी ने हमीद की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए पूछा।

    हमीद बौखला गया। अपनी घबराहट को मुस्कुराहट में छिपाते हुए बोला। ‘‘मॉडर्न फ़ॉक्स... ट्रॉट...’’ फ़रीदी ने क़हक़हा लगाया।

    ‘‘इसी बलबूते पर नाचने चले थे जनाब।’’

    ‘‘अच्छा... तो फिर आप ही बताइए कि क्या है।’’ हमीद ने झेंप मिटाते हुए कहा।

    ‘‘वॉल्ज़...’’

    ‘‘मैं मान नहीं सकता।’’

    ‘‘अच्छा अगर फ़ॉक्स ट्रॉट है तो नाच कर दिखाओ।’’

    ‘‘किसके साथ नाचूँ?’’

    ‘‘मेरे साथ...’’

    ‘‘आप नाचना क्या जानें?’’

    ‘‘हुज़ूर तशरीफ़ तो लायें।’’

    फ़रीदी ने बायाँ हाथ हमीद की कमर में डाल दिया और हमीद का बायाँ हाथ अपने कन्धों पर रखने लगा।

    ‘‘तो आप मुझे औरत समझ रहे हैं। मैं कन्धों पर हाथ नहीं रखूँगा।’’ हमीद ने झेंप कर पीछे हटते हुए कहा।

    ‘‘गधे हो।’’ फ़रीदी ने उसे अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा। ‘‘आओ, तुम्हें नाचना सिखा दूँ।’’

    दोनों लिपट कर रिकॉर्ड के गाने पर नाचने लगे।

    फ़रीदी बता रहा था।

    ‘‘पीछे हटो... दायाँ पाँव... बायाँ पाँव... पीछे... पीछे...आगे आओ... बायाँ... दायाँ। बरख़ुरदार यह वॉल्ज़ है... हाँ हाँ... बायाँ पाँव... फ़ॉक्स ट्रॉट नहीं है।’’

    रिकॉर्ड ख़त्म हो जाने के बाद दूसरा रिकॉर्ड लगाया गया। दोनों फिर नाचने लगे। थोड़ी देर में हमीद पसीने में तर हो गया।

    ‘‘बस, मेरे शेर... इतने ही में टीं बोल गये।’’ फ़रीदी ने हँस कर कहा।

    ‘‘ख़ुदा की क़सम... आपका जवाब नहीं।’’ हमीद ने हाँफते हुए कहा। ‘‘मैं तो आपको बेकार आदमी समझता था... आपने यह सब कैसे सीख लिया?’’

    ‘‘एक जासूस को सब कुछ जानना चाहिए।’’

    ‘‘मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ, वरना आज बहुत शर्मिन्दगी उठानी पड़ती।’’ हमीद ने कहा।

    ‘‘शर्मिन्दगी किस बात की। पचहत्तर परसेण्ट लोग अमूमन ग़लत नाचते हैं। तुम तो फिर भी ठीक नाच रहे थे।’’

    ‘‘अच्छा, तो फिर आज आपको भी नाचना पड़ेगा।’’ हमीद ने कहा।

    ‘‘यह ग़लत बात है। मैं तुम्हारे साथ इसी शर्त पर चल सकता हूँ कि मुझे नाचने पर मजबूर न करना।’’

    ‘‘अजीब बात है... अच्छा ख़ैर... मैं आपको मजबूर न करूँगा।’’

    थोड़ी देर बाद दोनों नुमाइश का चक्कर लगा रहे थे। जब-जब हमीद किसी ख़ूबसूरत औरत को क़रीब से गुज़रते देखता, वह फ़रीदी का हाथ दबा देता। हमीद की इस हरकत पर वह झुँझला जाता। कई बार समझाने के बाद भी हमीद अपनी हरकतों से बाज़ न आया। इस बार जैसे ही उसने फ़रीदी का हाथ दबाया, फ़रीदी ने चलते-चलते रुक कर उसे डाँटते हुए कहा। ‘‘हमीद, आख़िर तुम इतने गधे क्यों हो?’’

    ‘‘अक्सर मैं भी यही सोचा करता हूँ।’’ हमीद हँस कर बोला।

    ‘‘देखो, मैं तुम्हें फिर से समझाता हूँ कि अब तुम अपनी शादी कर डालो।’’

    ‘‘अगर कोई शादी-शुदा आदमी मुझे इस क़िस्म की नसीहत करता तो मैं ज़रूर मान लेता।’’ हमीद ने मुस्कुरा कर कहा।

    ‘‘अगर यह नहीं हो सकता तो फिर मेरी ही तरह औरतों के मामले में पत्थर हो जाओ।’’

    ‘‘आप तो बेकार ही में बात बढ़ा देते हैं।’’ हमीद ने बुरा मान कर कहा। ‘‘क्या किसी अच्छी चीज़ की तारीफ़ करना भी जुर्म है।’’

    ‘‘जुर्म तो नहीं, लेकिन हमारे पेशे के एतबार से यह रुझान ख़तरनाक ज़रूर है।’’

    हमीद ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। उसके अन्दाज़ से ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह इस वक़्त इस क़िस्म की नसीहतें सुनने के लिए तैयार नहीं है।

    लगभग एक घण्टे तक नुमाइश का चक्कर लगाने के बाद वे लोग ‘गुलिस्ताँ होटल’ की तरफ़ रवाना हो गये। ‘गुलिस्ताँ होटल’ का शुमार बड़े होटलों में होता था... यहाँ का सारा कारोबार अंग्रेज़ी त़र्ज पर चलता था। यहाँ नाच भी होता था जिसमें शहर के ऊँचे तबक़े के लोग हिस्सा लिया करते थे।

    दोनों ने ‘गुलिस्ताँ होटल’ पहूँच कर टिकट ख़रीदे और हॉल में दाख़िल हो गये। सारा हॉल क़ुमक़ुमों से जगमगा रहा था और संगीत की लहरें फ़िज़ा में फैल रही थीं।

    पहला राउण्ड शुरू हो गया था। बहुत सारे नौजवान जोड़े बग़ल में

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