Palatwaar
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About this ebook
Vimal reaches Khairgarh to rescue his old friend Jagmohan, but there he comes face to face with his murky past.
Surender Mohan Pathak
Surender Mohan Pathak is considered the undisputed king of Hindi crime fiction. He has nearly 300 bestselling novels to his credit. He started his writing career with Hindi translations of Ian Flemings' James Bond novels and the works of James Hadley Chase. Some of his most popular works are Meena Murder Case, Paisath Lakh ki Dakaiti, Jauhar Jwala, Hazaar Haath, Jo Lare Deen Ke Het and Goa Galatta.
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Book preview
Palatwaar - Surender Mohan Pathak
पूर्वाभास
इन्टरनेशनल ड्रगलॉर्ड रीकियो फिगुएरा की शह पर ‘भाई’ की जगह लेने का तमन्नाई इनायत दफेदार अण्डरवर्ल्ड में ये स्थापित करने की कोशिश करता है कि ‘भाई’ मरा नहीं था, सोहल के हाथों गम्भीर रूप से घायल हुआ था और अब दुबई में बैठा शफा पाता था। तदोपरान्त वो सोहल को ढेर करने का और होटल सी-व्यू को खण्डहर बनाने का संकल्प धारण करता है। पलटवार के तौर पर सोहल के खेमे से अण्डरवर्ल्ड में फैलाया जाता है कि सोहल को दफेदार माँगता था।
सोहल को अपने चैम्बूर का दाता के रोल में जीतसिंह तालातोड़ और विकास गुप्ता की सूरत में दो नये मुरीद मिलते हैं।
छुप के वार करने में माहिर दफेदार सोहल पर कई वार करता है, लेकिन इरफान और शोहाब की होशियारी और दूरन्देशी से सब नाकाम हो जाते हैं।
खैरगढ़ में रहता विमल का पुराना जोड़ीदार जगमोहन, जो लूट की बारह वारदातों को पहले अंजाम दे चुका होता है, दिलीप चौधरी और उसकी भतीजी मुग्धा के साथ मिलकर सुनामपुर के गार्जियन बैंक का पचास करोड़ रुपये कीमत का सोना लूटने की योजना बनाता है। चौधरी बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी का कोड ब्रेक कर लेता है और सी-गार्डन बार का मालिक धीरज परमार लूट में काम आने वाला बाकी सामान मुहैया कराता है और लोकल ज्वैलर मनकोटिया की सूरत में सोने का ग्राहक ठीक कर के देता है। चौधरी अपने भांजे दामोदर की मदद से बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी जैसा डुप्लीकेट ट्रक तैयार करता है। सोने को रातों-रात सुनामपुर से राजनगर के करीब कैसाना समुद्र तट तक ढोने के लिए इब्राहीम शेख का स्टीमर किराये पर लिया जाता है। शेख को सोने की भनक लग जाती है, वो अपने चार साथियों के साथ उस पर घात लगाने की तैयारी करने लगता है।
खैरगढ़ चौकी के इंचार्ज दारोगा भगवती सिंह डोभाल को जगमोहन पर शक हो जाता है कि वो कोई शातिर मुजरिम था और वो बाजरिया सिपाही किशोरलाल उसकी निगरानी करवाने लगता है। उन हालात में जगमोहन सोहल को गैलेक्सी दिल्ली के पते पर चिट्ठी लिखता है लेकिन लगभग एक महीना गुजर जाने के बाद भी चिट्ठी का कोई नतीजा सामने नहीं आता। दारोगा डोभाल का जब दाँव लगता है, जगमोहन से खोद खोद कर उसकी गुजश्ता जिन्दगी की बाबत सवाल पूछता है। उन सवालों से आजिज आकर और चिट्ठी का जवाब न आने से मायूस हो कर जगमोहन डोभाल को मार डालने का मन बना लेता है।
दफेदार अपनी नयी चाल के तहत बाजरिया हैदर शोहाब को सोहल से गद्दारी के लिए उकसाता है लेकिन कामयाब नहीं हो पाता। फिर सोहल के खेमे में दफेदार की उस नयी स्ट्रेटेजी का तोड़ सोचा जाने लगता है। दफेदार अपनी कोशिश जारी रखता है, वो अपना अगला निशाना पहले होटल के सिक्योरिटी चीफ तिलक मारवाड़े को फिर उसके सहायक पवन डांगले को बनाता है जो कि पाँच करोड़ की एडवांस पेमेंट के एवज में होटल उड़ाने में दफेदार की मदद करने को तैयार हो जाता है, जब कि असल में उसका ऐसा कोई इरादा नहीं होता। नतीजतन होटल तो ढेर नहीं हो पाता, दफेदार अपना पाँच करोड़ रुपया खो बैठता है।
क्रिसमस ईव पर सान्ता क्लाज बना जगमोहन सुनामपुर के गार्जियन बैंक की डकैती में कामयाब होता है, वो और उसके साथी दिलीप चौधरी और मुग्धा बैंक की बख्तरबन्द गाड़ी समेत इब्राहीम शेख के स्टीमर पर सवार होकर सुनामपुर से कूच कर जाते हैं। दिलीप चौधरी जब नकली बन्धक बना बैंक में बन्द होता है तो बेनीवाल नाम का एक व्यक्ति अपनी बीवी को पहुँचाने के लिए उसे पाँच पाँच सौ यूरो के साठ नोट सौंपता है जो कि चौधरी खुद हज्म कर जाता है और बेनीवाल पुलिस को उन नोटों के नम्बर बताता है जो कि बाद में चौधरी और उसकी भतीजी की गिरफ्तारी की वजह बनते हैं। गवाहों के बयानात की बिना पर पुलिस लुटेरों की कम्पोजिट पिक्चर्स तैयार करती है जो कि फाइनल हो जाने पर बाद में इतवार के अखबारों में छपती हैं और वो भी चाचा भतीजी की गिरफ्तारी की वजह बनती हैं।
स्टीमर के सफर के दौरान इब्राहीम शेख एवं जगमोहन के बीच घात प्रतिघात का दौर शुरू होता है जिसमें शेख के तीन आदमी मारे जाते हैं, लेकिन उसका स्टीमर पर कब्जा होने की वजह से बाजी फिर भी उसी के हाथ में रहती है। लिहाजा वो जगमोहन वगैरह को मजबूर करता है कि वो माल का सौदा जान से करें और एक बोट पर सवार होकर स्टीमर छोड़ कर चले जायें। वो ऐसा ही करते हैं लेकिन स्टीमर छोड़ने से पहले चौधरी उसमें बारूद लगा देता है जो उनके पीछे फटता है तो सोने से लदी बैंक की गाड़ी समेत स्टीमर समुद्र में डूब जाता है। किनारे लगने पर चौधरी भतीजी को बताता है कि उसके पास नेवीगेटर नाम का एक उपकरण था जो कि ऐन कील ठोक कर बता सकता था कि स्टीमर कहाँ डूबा था और वो नौबत आने तक रहने के लिए उसने राजनगर में कूपर रोड पर एक फ्लैट ठीक किया हुआ था।
संयोगवश चाचा भतीजी का वो वार्तालाप जगमोहन भी सुन लेता है और यूँ वो नेवीगेटर और उनके राजनगर के ठिकाने की बाबत जान जाता है।
धीरज परमार को बाजरिया मनकोटिया पता चलता है कि जगमोहन वगैरह सोने के साथ कैसाना समुद्र तट पर—जहाँ कि उन्हें शूट करके सोना हथिया लेने का सीन सैट था—नहीं पहुँचे थे।
जगमोहन अपनी माशूक सिमरन—जो कि उसके सदके ‘सी-गार्डन’ में परमार की बराबर की पार्टनर होती है—के फ्लैट पर उसे तमाम वाकयात कह सुनाता है, जिसमें नेवीगेटर और चाचा भतीजी का मौजूदा पता भी शामिल होता है। जगमोहन उसे सोहल को लिखी अपनी चिट्ठी की बाबत भी बताता है और कहता है कि क्योंकि उस चिट्ठी की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी थी इसलिये एक हफ्ता पहले वैसी ही चिट्ठी उसने अपने अपराध जगत के एक दूसरे साथी हीरालाल हजरती को लिखी थी।
सिमरन वो तमाम बातें आगे धीरज परमार को कह सुनाती है।
जगमोहन खैरगढ़ वापिस लौटता है तो इस बार डोभाल इशारों में बात करने की जगह जगमोहन की तमाम पोल पट्टी खोलकर रख देता है, उसके पास मौजूद करोड़ों की लूट की रकम में से आधे की माँग करता है और जगमोहन के इंकार करने पर उसे धुन के रख देता है।
चौधरी ने कूपर रोड पर जो पन्द्रह लाख का फ्लैट खरीदा होता है उसकी पाँच लाख की बाकी अदायगी वो लैण्डलार्ड मेहरोत्रा को यूरो में चुकता करता है। यही बात अन्तत: उसकी, उसकी भतीजी की गिरफ्तारी की वजह बनती है। एसपी यदुनाथ सिंह सुनामपुर से राजनगर आता है और दोनों को पकड़कर ले जाता है। उससे पहले वो जगमोहन की टोह में खैरगढ़ पहुँचता है तो उसे मालूम पड़ता है कि दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो चुकी थी। लाश देखकर वो ये फैसला नहीं कर पाता कि वो बैंक की डकैती में शामिल डकैत था या नहीं। एसपी की जुबानी जब दारोगा डोभाल को पता चलता है कि जगमोहन ने पचास करोड़ के सोने पर हाथ साफ किया था तो वो उस दौलत के सपने देखने लगता है और अपने उस अभियान के तहत जगमोहन की बाबत एसपी यदुनाथ सिंह को खूब गुमराह करता है।
मुम्बई में चिरकुट दफेदार के सामने ये सनसनीखेज रहस्योद््घाटन करता है कि डेविड परदेसी का असली नाम सफदर अली खाँ था और वो हैदर का सगा भाई था। वो हैदर को बुलाकर उसके भाई से मिलने की ख्वाहिश जाहिर करता है तो उसे हैदर का टालू जवाब मिलता है। नतीजतन वो हैदर के पीछे इस हुक्म के साथ आदमी लगा देता है कि जब भी दोनों भाई मिलें, दोनों को खत्म कर दिया जाये। लेकिन अपनी होशियारी से हैदर सब को उल्लू बना देता है और दोनों भाइयों में से कोई भी न सिर्फ दफेदार के आदमियों के काबू में नहीं आता, दोनों ऐसे गायब होते हैं कि उन्हें ढूँढ़े नहीं मिलते।
मुम्बई में विमल का चैम्बूर का दाता वाला रोल जोर पकड़ता जाता है, उसे नये नये फरियादियों से दो चार होना पड़ता है और आदत से मजबूर वो किसी को नाउम्मीद नहीं करता। ऐसे ही एक अभियान के दौरान बतौर राजा गजेन्द्र सिंह मुम्बई के पुलिस कमिश्नर जुआरी से उसका फिर आमना-सामना होता है तो कमिश्नर साफ इशारा करता है कि वो जानता था कि राजा गजेन्द्र सिंह असल में सोहल था, लेकिन साथ ही उसे आश्वस्त करता है कि उसे सोहल का चैम्बूर का दाता वाला रोल पसन्द था।
विमल को आखिरकार जगमोहन की चिट्ठी मिलती है वो उस जज्बाती चिट्ठी को पढ़ता है जिसमें जगमोहन ने उसे ‘जमीर का कैदी’ बताया था और मदद के लिए गुहार लगायी थी।
इरफान और शोहाब के लाख एतराजों के बावजूद विमल तत्काल रवानगी के लिए कमर कस लेता है।
(यहाँ तक की कहानी आपने ‘जमीर का कैदी’ में पढ़ी)
मंगलवार उनतीस दिसम्बर की सुबह, राजनगर में बाजरिया परमार जगमोहन की मौत की खबर सिमरन को लगती है, जिससे वो जरा भी द्रवित नहीं होती और लाश के करीब भी न फटकने में अपनी भलाई मानती है। परमार महसूस करता है कि अब उन्होंने बिना किसी की मदद के दिलीप चौधरी से, जो कि गिरफ्तार कर के सुनामपुर ले जाया चुका था, नेवीगेटर की कोई खोज खबर निकालनी थी ताकि उसके जरिये सोना उनके हाथ लग पाता। इस काम के लिए परमार अपने एक भरोसे के कर्मचारी रणजीत पासी को सुनामपुर रवाना करता है।
विमल खैरगढ़ पहुँचता है तो जगमोहन के पड़ोस के लड़के पीयूष वर्मा से उसे मालूम होता है कि जगमोहन की पहले ही मौत हो चुकी होती है, जबकि मौत की वजह उसे मालूम नहीं हो पाती। अगले रोज वो पुराने अखबार की तलाश में तारकपुर जाता है तो लोकल चौकी के दारोगा भगवती सिंह डोभाल को अपने पीछे लगा पाता है। अखबार में छपे एक इश्तिहार से उसे मालूम होता है कि खैरगढ़ के विद्युत शवदाह गृह में लावारिस के तौर पर जगमोहन का अन्तिम संस्कार हो भी चुका था।
होटल में वो हीरालाल हजरती से टकराता है जो कि अपनी माशूक सुहानी चौहान के साथ उसी होटल में ठहरा होता है, जो विमल की तरह जगमोहन के ही बुलावे पर वहाँ पहुँचा होता है, जो विमल को सोहल के तौर पर पहचान जाता है और जो खुद को और विमल को एक ही राह का राही बताता है। विमल उस पर आक्रमण कर देता है, उसे बेहोश करके उसके कमरे में डाल आता है, जहाँ कि उसका सुहानी से आमना सामना होता है, लेकिन सुहानी उसके लिए कोई प्रॉब्लम खड़ी नहीं करती।
विमल विद्युत शवदाह गृह जाकर उसके मालिक केदारनाथ आहूजा से मिलता है तो उसे जगमोहन दिल का दौरा पड़ा होने से मरा बताया जाता है और उस बात की तसदीक डाक्टर आलोक पुरोहित भी करता है। शवदाह गृह के बाहर हजरती विमल से फिर टकरा जाता है और जगमोहन के माल की बरामदी के बाद, उसमें उसका पार्टनर बनने की पेशकश करता है। विमल फिर उसे ठोकता है तो उसका उससे पीछा छूटता है। वो सर्कुलर रोड जगमोहन की कोठी पर पहुँचता है और उसकी मौत सम्बन्धी किसी क्लू की तलाश में वहाँ की तलाशी लेता है। अपने उस अभियान के तहत जब वो तहखाने की सीढ़ियाँ उतरने लगता होता है तो एक नकाबपोश उस पर पीछे से आक्रमण कर देता है जिसकी वजह से वो बेहोश होकर तहखाने में जा गिरता है। जब उसे होश आता है तो वो खुद को दारोगा डोभाल के रूबरू पाता है जो उस पर इलजाम लगाता है कि उस पर हमला उसके पार्टनर ने किया था और वो ही तहखाने में गड़ा माल लेकर फरार हो गया था। वो विमल को समझाता है कि उन हालात में फरार पार्टनर को वो नहीं पकड़ सकता था, लेकिन पुलिस के व्यापक तन्त्रजाल को इस्तेमाल में ला कर वो पकड़ सकता था इसलिए विमल उसे पार्टनर की बाबत बताये। उस सन्दर्भ में विमल को प्रभावित करने के लिए वो डॉक्टर आलोक पुरोहित को बुलाकर उसको डाक्टरी इमदाद भी मुहैया कराता है। विमल किसी सूरत कबूल नहीं करता कि उसका कोई पार्टनर था और वो उसका हमलावर था। दोनों की उस तकरार के दौरान वहाँ फोन आता है जिससे पता चलता है कि हजरती का—जिसे कि डोभाल विमल का पार्टनर समझता था—विमल के होटल के कमरे में कत्ल हो गया था। डोभाल जानता होता है कि विमल कातिल नहीं हो सकता, फिर भी वो उसे कत्ल में फँसा देने की धमकी देता है लेकिन माल की बरामदी में उससे सहयोग करने की सूरत में खुद उसकी एलीबाई बनने की पेशकश करता है। दिखावे के लिए और उस दुश्वारी से निजात पाने के लिए विमल फिफ्टी फिफ्टी का सौदा कबूल कर लेता है।
कत्ल की तफ्तीश तारकपुर से आये काबिल इंस्पेक्टर कौशिक के हाथ में होती है जिसके दौरान विमल हजरती से पूर्वपरिचित होने से इंकार करता है, कहता है कि वो हजरती को सिर्फ इसलिये जानता था क्योंकि दोनों एक ही होटल में ठहरे हुए थे। दोनों जगमोहन के परिचित थे और इत्तफाक से थोड़ा आगे पीछे ही उसके अन्तिम संस्कार में शामिल होने के लिए वहाँ पहुँचे थे। उस पूछताछ के दौरान एकाएक सुहानी वहाँ पहुँचती है और चिल्ला चिल्ला कर विमल पर इलजाम लगाती है कि वही हजरती का कातिल था। इंस्पेक्टर वक्ती तौर पर इस हिदायत के साथ, कि वो शहर छोड़कर न जाये, विमल का पीछा छोड़ देता है।
विमल होटल से जगमोहन की कोठी में शिफ्ट कर जाता है, जहाँ उसकी सुहानी से मुलाकात होती है और वो उसे यकीन दिलाने की कोशिश करता है कि वो हजरती का कातिल नहीं था। जवाब में सुहानी कहती है कि जिस माल की फिराक में हजरती वहाँ आया था, उसमें जो हजरती का हिस्सा बनता था, वो उसे मिलना चाहिये था। विमल उसकी माँग कबूल करके, उससे फिर मिलने का वादा करके उसे रुखसत कर देता है।
फिर डोभाल वहाँ पहुँचता है और विमल को बताता है कि उसके इन्स्पेक्टर कौशिक के पास से जाने के बाद सुहानी विमल की बाबत अपने पहले बयान से मुकर गयी थी और कहने लगी थी कि बतौर कातिल विमल को पहचानने में उसे मुगालता लगा था। तब डोभाल इस बात का खुलासा करता है कि कैसे उसे मालूम था कि जगमोहन के पास करोड़ों का माल था। वो बताता है कि जगमोहन अपने जुदा जुदा ग्यारह साथियों के साथ—जिनमें से एक सोहल भी था और एक हजरती था—बारह बार कामयाब डकैतियों को अंजाम दे चुका था और करोड़ों रुपया पीट चुका था। वो ये भी मालूम कर चुका था कि वो पटना से चार खून करके भागा इश्तिहारी मुजरिम था और बतौर मोहन बाबू पासवान अपनी शिनाख्त के लिए जो कुछ भी वो बताता था, सब गलत था, झूठ था। माल की तलाश में कोठी के हर कोने खुदरे की और उसके राजनगर वाले फ्लैट की तलाशी वो पहले ही ले चुका था, लेकिन वो कहीं से बरामद नहीं हुआ था। आखिरकार उसने जगमोहन से माल की बाबत सीधे सवाल किया लेकिन उसने वैसा कोई माल पास होना कबूल न किया। तब दारोगा ने उसे जम के मार लगायी। नतीजतन उसने कबूल किया कि माल राजनगर में था और दारोगा की मंशा के मुताबिक उसका आधा हिस्सा उसे सौंपने की खातिर उसे खैरगढ़ मँगाने के लिए चौबीस घण्टे की मोहलत माँगी। मोहलत का वो वक्त खत्म होने से पहले ही उसने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली शवदाह गृह के मालिक केदारनाथ आहूजा और डॉक्टर आलोक पुरोहित की मदद से जिसे उसने अपनी सेफ्टी के लिए स्वाभाविक मौत का केस बनाया, ताकि पोस्टमार्टम न हो, और लाश को लावारिस जलाने का इन्तजाम किया।
आखिरकार दारोगा और विमल में ये फैसला होता है कि वो माल को मिलकर तलाश करेंगे और माल हाथ आ जाने पर उसे आधा आधा बाँट लेंगे।
मुम्बई में हैदर इरफान और शोहाब को ये खास खबर पहुँचाता है कि दफेदार के लिए हेरोइन की एक बड़ी खेप ‘भाई’ के टाइम के दहिशर के करीब के एक कॉटेज में पहुँचने वाली थी। इरफान उस टिप पर अमल करता है और हेरोइन की खेप को दफेदार के बापू बजरंगी समेत चार आदमियों को, कॉटेज समेत बारूद से उड़ा देता है और यूँ दफेदार को एक बड़ी चोट पहुँचाता है।
अगले रोज खैरगढ़ में ऐसे हालात पैदा होते हैं कि विमल जान जाता है कि तहखाने की सीढ़ियों पर बेलचे से उस पर हमला करने वाला शख्स पड़ोस का लड़का पीयूष वर्मा था, जो ‘सी-गार्डन’ वाले धीरज परमार का भांजा था और मामा के हुक्म पर जगमोहन की निगाहबीनी करता रहा था। वो कबूल करता है कि जगमोहन की मौत के बाद तहखाने का फर्श खोद कर उसी ने वहाँ से दस करोड़ से ऊपर की कीमत के डालर के नोटों से भरा एक ट्रंक बरामद किया था और उसे आगे परमार को सौंपा था। वो ये भी कबूल करता है कि परमार के हुक्म पर विमल की असलियत भाँपने की नीयत से वो विमल के होटल के कमरे में पहुँचा था, जहाँ की वो तलाशी ले रहा था तो एकाएक ऊपर से हजरती वहाँ आ गया था; भाग निकलने की कोशिश में उसने वहाँ पड़ी एक शीशे की भारी ऐश-ट्रे उठाकर हजरती के सिर में दे मारी थी जिससे वो मर गया था, जबकि उसकी जान लेने का उसका कोई इरादा नहीं था।
विमल उससे उसके माँ-बाप के नाम ये उजागर करती चिट्ठी लिखवाता है कि वो अपने एक दोस्त के साथ गोवा भ्रमण पर जा रहा था, चिट्ठी को उसकी कोठी पर प्लांट करवाता है और फिर उसे ‘हमेशा के लिए’ आजाद कर देता है।
दफेदार अपना नया वार करने के लिए मोहिनी सपरे नाम की एक बारबाला को चुनता है जो कि होटल सी-व्यू के, तिलक मारवाड़े के कत्ल के बाद बने, मौजूदा सिक्योरिटी चीफ पवन डांगले की प्रेमिका और होने वाली पत्नी थी। बड़ी शिद्दत से वो काबू में आती है और फिर दफेदार के कहने पर पवन डांगले को फोन लगाती है कि वो हर हाल में उसे रात बारह बजे रूबरू हैपी न्यू ईयर विश करना चाहती थी। डांगले उसे होटल में बुला लेता है। आधी रात को डांगले जब उसके कमरे में उसे विश करने पहुँचता है तो वहाँ पहले से मौजूद दफेदार का जल्लाद सोमया उसको शूट कर देता है। वो मोहिनी सपरे को और एक हाउस डिटेक्टिव को भी शूट कर देता है, ताकि डांगले के कत्ल का कोई गवाह न बचे।
इरफान और शोहाब पर वो वारदात बहुत भारी गुजरती है। दुश्मन का वो हौसला उन्हें बहुत शर्मसार करता है। दुश्मन तब होटल में तीन कत्ल करके साफ निकल जाता है जबकि नये साल के जश्न का आनन्द लेता खुद कमिश्नर होटल में मौजूद होता है। फिर होटल की साख बचाने के लिए ये फैसला होता है कि मोहिनी सपरे—जो कि वहाँ अजनबी थी—की लाश गायब कर दी जाये और पवन डांगले और हाउस डिटेक्टिव मोदी को दूर कहीं किसी रास्ते पर किसी लुटेरे के हाथों मरा बताया जाये। तभी ये फाइनल फैसला होता है कि विमल की गैरहाजिरी में होटल बन्द कर दिया जाये।
होटल क्योंकि खड़े पैर बन्द नहीं किया जा सकता था, वो उसी रोज से नयी बुकिंग्स लेना बन्द कर देते तो भी बन्द होते होते होता इसलिये उस वक्फे के लिए पवन डांगले के फर्स्ट असिस्टेंट बालपाण्डे को सिक्योरिटी इंचार्ज बना दिया जाता है। जिन बुकिंग्स को नहीं टाला जा सकता था, उनमें से एक बैंगलोर के बिशप मैथ्यू स्कूल के चालीस बच्चों की होती है, जो कि मुम्बई दर्शन के लिए पहुँचने वाले थे।
खैरगढ़ में विमल चोरी से घर से निकलता है और रेलवे स्टेशन पर जाकर अपने और सुहानी चौहान के लिए मुम्बई की टिकटें बुक कराता है। फिर वो होटल में जाकर सुहानी से मिलता है। वो सुहानी को नये सिरे से यकीन दिलाता है कि उसने हजरती का कत्ल नहीं किया था लेकिन जब तक असल कातिल न पकड़ा जाता पुलिस न उसे और न सुहानी को खैरगढ़ से कूच करने देती। वो सुहानी को एक ऐसी कहानी सुझाता है जो वो जब आगे पुलिस को सुनाती तो पुलिस चार्ली ब्राउन नाम के एक ऐसे शख्स को कातिल समझती जो कि कभी पकड़ा नहीं जा सकता था, क्योंकि वो शख्स पहले ही मर चुका था। उस कहानी को मजबूती देने के लिए सुहानी को ये फर्जी बयान देना पड़ता कि हजरती ने खुद उसे कहा था कि उसे चार्ली नाम के एक शख्स से जान का खतरा था, जो पता नहीं कैसे खैरगढ़ पहुँच गया था और जो एक बार उसे पीट भी चुका था। सुहानी के नये बयान की बिना पर पुलिस चार्ली ब्राउन को हजरती का कातिल मान लेती, वो जब चार्ली ब्राउन की पड़ताल करती तो मालूम पड़ता कि वो नोन क्रिमिनल था, लेकिन जब वो उन्हें ढूँढ़े न मिलता तो वो मजबूरन फाइल क्लोज कर देती।
विमल वापिस सर्कुलर रोड जगमोहन की कोठी पर लौटता है और दारोगा डोभाल को वहाँ बुलाकर चार्ली ब्राउन के कातिल होने की बाबत उसे भी वही पट्टी पढ़ाता है जो कि उसने सुहानी को पढ़ाई थी। विमल उसे समझाता है कि चार्ली ब्राउन को कातिल मान लिया जाता तो केस को हल हो गया मान लिया जाता। तब कौशिक अपने थाने वापिस लौट जाता और पीछे डोभाल और विमल माल की तलाश में कुछ भी कर गुजरने के लिए आजाद होते। डोभाल को वो स्कीम जँचती है और वो उस पर अमल करने के लिए हामी भर देता है।
अगले रोज सुबह इंस्पेक्टर कौशिक विमल से मिलने पहुँचता है। वो उसे बताता है कि कातिल का पता चल गया था इसलिये वो केस को चौकी इंचार्ज डोभाल के हवाले करके वापिस तारकपुर अपने थाने जा रहा था। वो विमल पर तंज कसता है कि चार्ली ब्राउन का नाम उछालकर एक तरह से केस तो उसी ने हल किया था। किसी तरह से विमल चार्ली ब्राउन का नाम देर से जुबान पर लाने के बारे में उसे मुतमईन कर देता है। इंस्पेक्टर का फिर भी सवाल होता है कि अगर उस नाम का कातिल शहर में था तो उसका कोई अता-पता क्यों नहीं मिल रहा था। जवाब में विमल सुझाता है कि जरूर वो किसी फर्जी नाम से उस शहर में कहीं रह रहा था। उस बात से इत्तफाक जाहिर करता इन्स्पेक्टर रुखसत हो जाता है।
डोभाल और विमल दोपहरबाद खैरगढ़ से राजनगर के लिए निकलते हैं जहाँ उनका इरादा जगमोहन के लिंक रोड वाले फ्लैट को टटोलने का होता है। रास्ते में विमल डोभाल को पट्टी पढ़ाता है कि उसका विमल पर एतबार न करना गलत था क्योंकि आइन्दा प्रोग्राम बेएतबारी के माहौल में नहीं चलने वाला था। वो राय देता है कि दोनों एक-एक चिट्ठी तैयार करके एक दूसरे को सौंपें जो कि एक का दूसरे पर होल्ड बना सकती हों; विमल एक चिट्ठी लिखे जिसमें वो हीरालाल हजरती का कातिल होना कबूल करे और डोभाल एक चिट्ठी लिखे जिसमें वो मोहन बाबू पासवान का उर्फ जगमोहन का कातिल होना कबूल करे और दोनों उन चिट्ठियों की अदला बदली करें, ताकि भविष्य में दोनों की मुट्ठी में एक दूसरे की जान हो। काफी हील हुज्जत के बाद डोभाल वो बात स्वीकार कर लेता है। तदोपरान्त जगमोहन के फ्लैट में वो डोभाल की सर्विस रिवाल्वर से उसका यूँ कत्ल करता है कि वो खुदकुशी लगे और उसके जगमोहन के कत्ल के इकबालिया बयान के तौर पर उसकी हस्तलिखित चिट्ठी उसके सिरहाने रख देता है। वो फ्लैट की तलाशी लेता है तो बैडरूम में से फ्रेम में लगी जगमोहन, धीरज परमार और सिमरन की एक तसवीर बरामद करता है जिसे वो फ्रेम में से निकाल कर अपने काबू में कर लेता है। फ्लैट से निकल कर वो सुहानी को फोन करता है, उसे रेल की उन दो टिकटों के बारे में बताता है जो कि पिछली मुलाकात में वो उसके होटल के कमरे में छोड़ आया होता है और उसे मुम्बई की गाड़ी यूँ चढ़ने की हिदायत देता है कि दूसरी बर्थ खाली गयी न जान पड़े।
गाड़ी के राजनगर पहुँचने के टाइम तक वो ‘सी-गार्डन’ पहुँचता है, वहाँ धीरज परमार और सिमरन की शिनाख्त करता है और यूँ इस बात की तसदीक करता है कि तसवीर में जगमोहन के साथ वो ही दोनों थे।
ट्रेन में वो सुहानी से मिलता है, उसे बताता है कि आइन्दा सफर में उसने उसके साथ नहीं जाना था लेकिन वो ये भरम आगे भी बनाये रखे कि दूसरी बर्थ आकूपाइड थी और उसे ये बुरी खबर सुनाता है कि माल पहले ही लुट चुका था इसलिये वो अपने हिस्से को भूल जाये। सुहानी उस बात पर बहुत भड़कती है, विमल को बहुत कोसती है, लेकिन अपनी कोई पेश न चलती पाकर आखिरकार खामोश हो जाती है। विमल उससे विदा लेता है तो उसे नहीं मालूम हो पाता कि हिस्से की चाह तब भी दिल में लिये सुहानी ट्रेन से उतर जाती है और चुपचाप उसके पीछे लग जाती है।
विमल के स्टेशन से बाहर निकलते ही उसे राघव, अकील और खोसा नाम के तीन नौजवान लड़के घेर लेते हैं जो चैम्बूर के दाता के नाम पर उससे चन्दा वसूलने की कोशिश करते हैं। विमल उनसे उनके उस्ताद मंजूर भाई कादरी की जानकारी निकालता है, फिर उन्हें चन्दा तो करारा देता है लेकिन बदले में उनसे माँग करता है कि सिमरन जब ‘सी-गार्डन’ से बाहर निकले तो वो उसको थाम लें, तब विमल वहाँ पहुँचकर उनके चंगुल से सिमरन को छुड़ाता, सिमरन अहसानमन्द होती और यूँ उसमें और विमल में दोस्ती स्थापित होती। उस काम को अंजाम देते वो तीनों सिमरन पर लार टपकाने लगते हैं, तब विमल आकर सच में ही सिमरन को उनके हाथों बलात्कार का शिकार होने से बचाता है। उसकी उस कोशिश में तीनों युवक—अकील गोली खाकर गम्भीर रूप से—घायल हो जाते हैं तो विमल उन्हें अकील को प्राइवेट नर्सिंग होम में ले जाने को भी पैसे देता है। फिर आत्मीयता के जबरन बनाये—लेकिन फर्जी—माहौल के तहत विमल परमार तक पहुँचता है, उसे अपना परिचय पूना से बड़ी वारदात करके भागे मुजरिम के तौर पर देता है और खुद को उन दिनों काम की तलाश में बताता है। परमार उसको उसकी किस्म का काम दिलाने का वादा करता है।
वो रात विमल सिमरन के फ्लैट पर गुजारता है।
अगले रोज विमल मंजूर भाई कादरी नाम के उस शख्स को, जो कि चैम्बूर का दाता के नाम पर चन्दा वसूलता था और खुद हज्म कर जाता था, शूट कर देता है और तब तक वसूला चन्दा कब्जा लेता है।
दारोगा डोभाल की जगमोहन के फ्लैट में कथित आत्महत्या के बाद इन्स्पेक्टर कौशिक को फिर सक्रिय होना पड़ता है। उस बार वो सबसे पहले खैरगढ़ में डाक्टर आलोक पुरोहित की खबर लेता है और उससे कबुलवा के दम लेता है कि डोभाल के कहने पर उसने जगमोहन का फर्जी डैथ सर्टिफिकेट बनाया था, उसे दिल के दौरे से स्वाभाविक मौत मरा बताया था, जब कि असल में उसका कत्ल हुआ था। डाक्टर दबाव में फर्जी सर्टिफिकेट बनाया होना कबूल करता है लेकिन जिद करता है कि ऐसा उसने कत्ल को नहीं, खुदकुशी को कवर करने के लिए किया था। डोभाल के कथित सुइसाइड नोट में ये लिखा होने की वजह से कि उसने जगमोहन का कत्ल किया था वो सुइसाइड नोट को फर्जी बताता है। तब इन्स्पेक्टर इस नतीजे पर पहुँचता है कि अगर जगमोहन का कत्ल कत्ल नहीं था, खुदकुशी थी, तो दारोगा डोभाल की खुदकुशी खुदकुशी नहीं, कत्ल था और डोभाल से जो लिखवाया गया था, जबरन लिखवाया गया था।
तब एक नया सवाल सिर उठाता है।
ऐसा हुआ था तो किसने किया था?
डोभाल के आफिस की अलमारी से एक बेलचा बरामद होता है जिसकी वजह से इंस्पेक्टर कौशिक को जगमोहन के फ्लैट के तहखाने का खयाल आता है। वो जाकर तहखाने का मुआयना करता है तो पाता है कि उसके फर्श का एक हिस्सा खोदा गया था और फिर भरा गया था। उस हिस्से को फिर खुदवाया जाता है तो भीतर से पड़ोस के लड़के पीयूष वर्मा की लाश बरामद होती है, उसके माँ-बाप की निगाह में जो गोवा गया हुआ था।
लाश की बरामदी के बाद इन्स्पेक्टर का ध्यान फिर विमल उर्फ अरविन्द कौल की तरफ जाता है। कौल का पता किया जाता है तो उसे गायब पाया जाता है। उसके होटल के कमरे की पड़ताल की जाती है तो वो कैसे भी फिंगरप्रिंट्स से कोरा पाया जाता है। वैसा ही हाल जगमोहन की कोठी का पाया जाता है, जहाँ कि इतना अरसा कौल रह के गया था। और तफ्तीश से पता चलता है कि कौल और सुहानी ट्रेन से मुम्बई के लिए रवाना हो गये हुए थे। इन्स्पेक्टर दिल्ली, गैलेक्सी में फोन लगाता है तो उसे पता चलता है कि कौल मुम्बई से दिल्ली लौट आया हुआ था। वो फोन पर कौल से बात करता है तो उसे कौल की आवाज रत्ती भी उस कौल जैसी नहीं लगती जो अभी कल तक खैरगढ़ में था। वो कौल के लिए मुम्बई ‘मराठा’ में फोन लगाता है तो वहाँ से जवाब मिलता है कि कौल दिल्ली लौट गया हुआ था। उन बातों से इन्स्पेक्टर ये नतीजा निकालता है कि कौल की आइडेन्टिटी जेनुइन थी लेकिन उसे कोई और शख्स इस्तेमाल कर रहा था जो कि इतना शातिर मुजरिम था कि पीछे कहीं अपने फिंगरप्रिंट्स तक छोड़ के नहीं गया था।
ऐसा शातिर मुजरिम जगमोहन का दोस्त था जो कि, साबित हो चुका था कि, खुद भी एक शातिर मुजरिम था।
कौशिक फिर राजनगर पहुँचता है और नये सिरे से जगमोहन के लिंक रोड वाले फ्लैट का मुआयना करता है तो बैडरूम की साइड टेबल पर पड़े खाली फ्रेम पर फोकस बनता है जिस पर सामने की तरफ एक अँगूठे का और पिछली तरफ चार उँगलियों के निशान पाये जाते हैं और वो जगमोहन और डोभाल के अलावा किसी तीसरे शख्स के होते हैं। उनकी शिनाख्त के लिए इन्स्पेक्टर उन्हें फिंगरप्रिंट्स के महकमे के हवाले करता है तो मालूम पड़ता है कि वो प्रिंट्स मशहूर इश्तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल के थे।
इन्स्पेक्टर के छक्के छूट जाते हैं।
इतना बड़ा मुजरिम कौल बना इतने दिन तब खैरगढ़ में था।
लेकिन रिकार्ड में मौजूद सोहल की कोई सूरत कौल से मिलती नहीं पायी जाती, फिर भी फिंगरप्रिंट्स