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Mujhse Bura Koi Nahi
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Mujhse Bura Koi Nahi

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About this ebook

A nail-biting sequel to MUJHSE BURA KAUN!
A notorious underworld don-turned-politician is critically injured in a blast that almost destroys his empire. His family and aides will now leave no stone unturned in finding and killing the men behind the gruesome attack. Jeet Singh was the last person to be seen in the room where the bomb was planted even though he had no inkling of the danger zone he was entering.Caught in the vicious circle of assault and revenge, will Jeet Singh be able to prove his innocence?
Languageहिन्दी
PublisherHarperHindi
Release dateJun 10, 2016
ISBN9789351778547
Mujhse Bura Koi Nahi
Author

Surender Mohan Pathak

Surender Mohan Pathak is considered the undisputed king of Hindi crime fiction. He has nearly 300 bestselling novels to his credit. He started his writing career with Hindi translations of Ian Flemings' James Bond novels and the works of James Hadley Chase. Some of his most popular works are Meena Murder Case, Paisath Lakh ki Dakaiti, Jauhar Jwala, Hazaar Haath, Jo Lare Deen Ke Het and Goa Galatta.

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    Am a fan, since long time, of SMP and that too an unabashed and shameless one. So for me, he is the Tolstoy and he is the Bard.

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Mujhse Bura Koi Nahi - Surender Mohan Pathak

पूर्वाभास

जीतसिंह को गोवा से मुम्बई लौटे चार महीने हो चुके थे, अपना — यानी जीतसिंह का — ताला-चाबी मिस्त्री का पुराना धन्धा और चिंचपोकली का आवास उसे त्याग देना पड़ा था क्योंकि जीतसिंह तो पणजी में रौशन बेग द्वारा बहरामजी के हवाले किया जा चुका था, खालिद के हाथों जान गंवा चुका था और उसे — रौशन बेग को — दस पेटी के ईनाम से नवाजा गया था। उन हालात के जेरेसाया अब वो जीतसिंह बन के मुम्बई में नहीं रह सकता था इसलिये अब वो मुम्बई में रौशन बेग टैक्सी ड्राइवर था। चार महीने में उसकी दाढ़ी मूंछ घनी हो गयी थीं और कुछ और भी जिस्मानी तब्दीलियां उसमें आयी थीं जिन की वजह से अब वो जीतसिंह बिल्कुल नहीं लगता था।

फिर भी एक ऐसे शख्स ने, जो अपना नाम आकाश चावरिया बताता था और जो बतौर पैसेंजर उसकी टैक्सी में सवार हुआ था, उसे पहचान लिया; न सिर्फ पहचान लिया, उसके पुरजोर इंकार करने पर — जिद करने पर कि वो रौशन बेग था — उसे हेरोइन समगलिंग के तहत पुलिस केस में ऐसा फंसाया कि जान बचाने के लिये उसे कुबूल करना पड़ा कि वो जीतसिंह था और पांच लाख की फीस की एवज में आने वाले इतवार को होने वाली एक बड़े आदमी की बड़ी पार्टी में जाना और वहां एक सेफ खोलना कबूल करना पड़ा। उसे बताया गया कि सेफ में खाली कागजात थे और उसके खुलते ही उसका काम खत्म था।

उन्हीं दिनों पुलिस को एक गुमनाम टिप मिलती है कि पूना की ओर से नॉरकॉटिक्स की एक बड़ी खेप मुम्बई में दाखिल होने वाली है। सब-इन्स्पेक्टर गर्गे की सदारत में नाके पर दबिश होती है तो हजूरीलाल नाम का एक व्यक्ति पकड़ा जाता है जिसकी वैन में से नॉरकॉटिक्स की जगह कीमती घड़ियों की एक खेप बरामद होती है। हजूरीलाल दावा करता है कि वो खाली ड्राइवर था जिसका काम खण्डाला से कोलाबा, मुम्बई तक वाहन को चला कर लाना था। लम्बी हील हुज्जत और भारी दबाव के तहत, जिस में ठोका जाना भी शामिल था, वो कबूल करता है कि माल बहरामजी कान्ट्रैक्टर का था।

पुलिस सन्न रह जाती है।

बहरामजी कान्ट्रैक्टर मराठा मंच नामक शक्तिशाली सियासी पार्टी का सुप्रीमो था लेकिन सर्वविदित था कि पॉलिटिक्स में कदम रखने से पहले समगलर और कालाबाजारिया था।

वस्तुत: हजूरी की गिरफ्तारी एक दूसरे अन्डरवर्ल्ड डान की बहरामजी के खिलाफ साजिश के तहत होती है जो अपना माल और अपने आदमी पकड़वा कर जाहिर करता था कि माल और आदमी दोनों बहरामजी के थे और यूं स्थापित करना चाहता था कि वो वापिस समगलिंग के धन्धे में लौट आया हुआ था क्योंकि हाल में गोवा के इलैक्शंस में उसकी पार्टी की करारी हार हुई थी जिसकी वजह से उसे करोड़ों की चपत लगी थी और अब वो अपने नुकसान की भरपाई अपने पुराने, समगलिंग के धन्धे में वापिस कदम डाल कर करना चाहता था। इस अभियान में उस डान का फ्रंट — जो बादशाह कहलाता था — उसके लेफ्टीनेंट असद हयात और हनीफ लोधी थे जो कि शाह और छोटा शाह कहलाते थे और जिन्होंने एक बड़ी रकम के ईनाम के लालच में हजूरीलाल को बलि का बकरा बनने के लिये तैयार किया था जिसके बहरामजी की तरफ मजबूत उंगली उठा चुकने के बाद जेल में ही बाजरिया जहर उसका कत्ल करवा दिया जाता है।

ऐसा ही एक दूसरा जमूरा उन्होंने सावन झंकार नाम का एक गोदी कर्मचारी तैयार किया हुआ था जो हजूरीलाल के साथ कोई अनहोनी हो जाती तो उसकी जगह लेता।

जीतसिंह की आकाश चावरिया के साथ जो बीती थी, उसकी कहानी वो अपने दोस्त और हमदर्द गाइलो को इस बात पर जोर रख कर सुनाता है कि उसके खिलाफ कोई भारी साजिश हो रही थी क्यों कि नाके पर हिरासत में लिये जाने के बाद उसे जिस चौकी पर ले जाया गया था, बाद में उसे मालूम हुआ था कि, उसका कोई वजूद ही नहीं था — वो तो भां भां करता एक खाली पड़ा मकान था — लेकिन वहां मिले पुलिसियों में से कम से कम एक असली था क्यों कि बाद में इत्तफाक से उसने उसे करीबी एलजे रोड की चौकी पर ड्यूटी करते देखा था और मालूम किया था कि वो हवलदार था और उसका नाम शिवराम धोवाले था।

जीतसिंह के अनुरोध पर गाइलो बाजरिया डेविड परदेसी हवलदार धोवाले की निगाहबीनी का इन्तजाम करता है। नतीजतन मालूम पड़ता है कि शाम को ड्यूटी से छुट्टी करके वो खार में स्थित एक काफी हाउस में एक गोरे चिट्टे क्लीनशेव्ड आदमी से मिला था जिसने उसे वहाँ एक मोटा लिफाफा सौंपा था और जो अपना हैट, गागल्स, नकली फ्रेंचकट दाढ़ी मूंछ हटाकर आकाश चावरिया ही क्लीनशेव्ड बन गया हो सकता था, उस का हवलदार धोवाले से खुफिया मीटिंग करने का कोई प्रयोजन नहीं हो सकता था, सिवाय इसके कि यूं वो धोवाले को उसकी सेवाओं की उजरत अदा करता था। डेविड परदेसी उस क्लीनशेव्ड चेहरे वाले की सूरत की खुफिया कैमरे से फोटो निकालने में कामयाब हो जाता है लेकिन उसको निगाह में रखे रहने में कामयाब नहीं हो पाता। वो शख्स उसे अन्धेरी के एक होटल में डाज दे जाने में कामयाब हो जाता है।

जीतसिंह बादशाह नामक बहरामजी से मुखालिफ डॉन की शरण में जाने का सपना देखता है जो कि, उसकी समझ कहती थी कि, अगर उस पर मेहरबान होता तो उसे बहरामजी के उस कहर से बचा लेता जो उस पर तब टूटता जब बहरामजी को पता लगता कि उसकी खण्डाला वाली सेफ खोलने वाला और उसके इकबाल रजा नाम के खास आदमी की पोंडा में मौत की वजह बना जीतसिंह जिन्दा था, वो अब रजा के पोंडा के जोड़ीदार की शिनाख्त अख्तियार करके मुम्बई में टैक्सी ड्राइवर बना हुआ था। वो गाइलो से दरख्वास्त करता है कि क्योंकि उसके अन्डरवर्ल्ड में कान्टैक्ट थे इसलिए वो पता निकाले कि बादशाह के नाम से जाना जाने वाला डॉन कौन था और आने वाले इतवार को कम से कम हजार मेहमानों वाली बड़ी पार्टी कहां होने वाली थी।

गाइलो उस कोशिश के लिये हामी भरता है और साथ में क्लीनशेव्ड भीड़ू — जो कि आकाश चावरिया हो सकता था — की तसवीर पर ग्राफिक आर्टिस्ट द्वारा कम्प्यूटर से हैट, गागल्स, फ्रेंच कट दाढ़ी-मूंछ जुड़वाने का इन्तजाम करता है और नतीजा जीतसिंह को दिखाता है।

जीतसिंह फैसला नहीं कर पाता कि वो आकाश चावरिया था या नहीं।

सावन झंकार अखबार में हजूरीलाल की थाने के लॉक अप में जहर से हुई मौत की खबर पढ़ता है और हैरान होता है कि थाने में बन्द कैदी को खुदकुशी करने के लिये जहर कहां से हासिल हो गया! वो इसी नतीजे पर पहुँचता है कि उस का कत्ल करवाया गया था ताकि दबाव में आकर कहीं वो बक न देता कि उसने गलत बयान दिया था जिसमें उसने बहरामजी को किसी और के हुक्म पर झूठा लपेटा था। सावन ये सोच के सिहर उठता है कि — जैसा कि वो चाहता था — अगर हजूरी वाला काम उसे मिला होता तो हजूरी की जगह उसकी जान गयी होती। वो अपनी गर्ल फ्रेंड और धारावी में पड़ोसन कारमला की मदद से थाने से पता निकालने का फैसला करता है कि हजूरी की मौत के पीछे क्या राज था।

थाने के हवलदार शान्ताराम मोडक से कारमला मृतक हजूरीलाल की बेवा बनकर मिलती है जो उसकी खूबसूरती से थर्राया, ललचाया ऐसा कुछ बक देता है जिस से सावन को गारन्टी हो जाती है कि हजूरी की मौत कोई हादसा नहीं थी, छोटे शाह हनीफ लोधी ने खुद थाने में उसकी मौत का सामान किया था। सावन बुरी तरह से डर जाता है, वो हजूरी जैसे आइन्दा किसी काम के बदले में ईनाम का लालच छोड़ देता है।

हजूरी की मौत और उसकी वजह से नेताजी बहरामजी कान्ट्रैक्टर की तरफ उठी इलजाम लगाती उंगली की रू में पुलिस के टॉप ब्रॉस में मन्त्रणा होती है तो ये फैसला होता है कि बहरामजी — जो अब बड़ा नेता था, बड़ी पार्टी मराठा मंच का सदर था — पर सीधे हाथ तो नहीं डाला जा सकता था लेकिन उस बाबत उससे जवाबतलबी फिर भी की जा सकती थी। ये काम डीसीपी शशिकांत दलवी अपने हाथ में लेता है और थानाध्यक्ष इन्स्पेक्टर राजेश महाले के साथ बहरामजी के आवास सी-रॉक एस्टेट पर उससे मिलने पहुँचता है। वो बड़े संयम के साथ हजूरी सम्बन्धी वारदात की परतें बहरामजी के सामने खोलता है, उसे बताता है कि अपने बयान में उसने कबूल किया था कि पकड़ा गया समगलिंग का माल बहरामजी कान्ट्रैक्टर का था और वो उसका रेगुलर कैरियर था, यानी समगलिंग के माल की ऐसी कई खेप वो पहले भी बड़ी कामयाबी से ढो चुका था।

बहरामजी भड़कता है, हजूरी के कथित बयान को सफेद झूठ करार देता है और बाजरिया डीसीपी दलवी पुलिस पर इलजाम लगाता है कि उन्होंने ऐसा कहने वाले का मुंह क्यों न पकड़ा! वो पुरजोर दावा करता है कि वो उसके दुश्मनों की उस को नीचा दिखाने की सोची विचारी चाल थी लेकिन डीसीपी के इसरार करने पर भी ऐसे किसी दुश्मन का नाम वो नहीं लेता। वो मांग करता है कि उसकी तरफ उंगली उठाने वाले को उसके सामने पेश किया जाये और फिर जो वो कहता था, बहरामजी के मुंह पर कहे।

डीसीपी उस काम में असमर्थता दिखाता है क्योंकि हजूरी मर चुका था लेकिन बहरामजी को उसकी एक टेप रिकार्डिंग सुनाता है जिसमें हजूरी ये कहता साफ सुना जाता है कि पकड़ा गया माल बहरामजी का था, वो बहरामजी का कैरियर था। बहरामजी उस रिकार्डिंग को ये कह कर नकार देता है कि बयान देने वाले की मौत हो गयी होने की रू में अब कानूनी तौर पर उस रिकार्डिंग की कोई कीमत नहीं थी और बाकायदा डीसीपी को अपनी बड़ी सियासी हैसियत की ये कह कर हूल देता है कि कल वो चीफ मिनिस्टर बन सकता था। जिस के आगे किसी डीसीपी की तो कोई हैसियत ही न होती, जिसे खुद उन का कमिश्नर भी लाइन में लग कर सैल्यूट मारता।

डीसीपी हैरान होता है कि कैसा दबंग, दीदादिलेर आदमी था नेता जी बहरामजी कान्ट्रैक्टर जो दबने की जगह दबा रहा था, डरने की जगह डरा रहा था। इस बात से भड़क कर वो भी इलजाम लगता है कि ये बात जगविदित थी कि राजनीति में आने से पहले वो समगलर था, कालाबाजारिया था। बहरामजी दिलेरी से उस बात को ये कह कर नकारता है कि अगर वो ऐसा होता तो उसका मुकाम जेल होता जिस की सूरत देखने की उसकी जिन्दगी में कभी नौबत नहीं आयी थी। वो डीसीपी को जोर दे कर कहता है कि जैसी वारदात अब हुई थी, वैसी उस पर कीचड़ उछालने के लिये फिर हो सकती थी, फिर हो सकती थी जिस को रोकना, उसके खिलाफ होती साजिश का पता लगाना पुलिस का काम था और पुलिस को चाहिये था कि उसके पीछे पड़ने की जगह वो अपना वो काम करने को तरजीह दे।

डीसीपी दलवी, जो नेता जी को जिच करने आया था, खुद जिच हो कर पिटा सा मुंह लेकर लौट जाता है।

पीछे बहरामजी अपने चचेरे भाई और एस्टेट के सिक्योरिटी चीफ सोलोमन कान्ट्रैक्टर और भांजे जहांगीर कान्ट्रैक्टर के साथ डीसीपी की आमद की बाबत मंत्रणा करता है। दोनों कबूल करते हैं कि कोई बड़ी साजिश नेताजी के खिलाफ पांव पसार रही थी। नेताजी अभी भी समगलिंग के धन्धे में बराबर था लेकिन अपने वफादार बेजान मोरावाला के माध्यम से जो कि धन्धे का फ्रंट था और कोई उलटी पड़ जाने पर जो उंगली उठती, मोरावाला की तरफ उठती, न कि बहरामजी की तरफ जैसे कि अब उठ रही थी। यानी ये बात किसी तरह से अन्डरवर्ल्ड में लीक हो गई थी कि बजातेखुद मोरावाला कुछ नहीं था, वो महज बहरामजी का फ्रंट था। बहरहाल जो साजिश बहरामजी के खिलाफ सिर उठा रही थी उसके आपे से बाहर हो जाने से पहले, उस का कोई अचानक तबाह कर देने वाला नतीजा पेश आने से पहले उस पर अंकुश लगाना जरूरी थी। उस सन्दर्भ में तब उन नामों पर विचार किया जाता है जो कि उस साजिश की पीठ पर हो सकते थे।

सोलोमन महबूब फिरंगी का नाम सुझाता है, नेता जी को वो सुझाव कबूल नहीं होता क्योंकि फिरंगी कभी उसके अन्डर में काम कर चुका था इसलिये उसकी मुखालफत का खयाल भी नहीं कर सकता था।

दूसरा उन का प्रबल विरोधी पब्लिक पार्टी का सुप्रीमो सदाराव नगरकर था जिस की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं को बहरामजी के राजनीति में आ कूदने की वजह से ग्रहण लग गया था। बहरामजी को वो नाम भी कबूल नहीं होता, नगरकर सियासी लीडर था, मवालियों जैसी कोई हरकत उसकी कार्यप्रणाली के दायरे में नहीं आती थी।

अमर नायक! सलमान गाजी!

दोनों बड़े गैंगस्टर थे लेकिन बहरामजी उन्हें छोटे खिलाड़ी करार देता है।

लेकिन आखिर यही फैसला होता है कि सब की तरफ तवज्जो दी जाये, सबको टटोला जाय और मालूम किया जाये कि कौन किस फिराक में था।

गाइलो अन्डरवर्ल्ड से अपनी पूछताछ का ये नतीजा पेश करता है कि हर किसी का कहना था कि बहरामजी अब अपने पुराने धन्धे में नहीं था, इतना बड़ा नेता बन जाने के बाद नहीं हो सकता था। अन्डरवर्ल्ड की राय में आज की तारीख में समगलिंग का टॉप बॉस महबूब फिरंगी था लेकिन ये भी पता चला था कि बहरामजी से उस का कतई कोई टकराव नहीं था।

दूसरा बड़ा बाप अमर नायक था जिसका एक इन्टरनेशनल समगलर से गंठजोड़ होने की वजह से खुद उसकी हैसियत भी उस फील्ड के बड़े खिलाड़ी वाली बन गयी थी। अन्डरवर्ल्ड में भरपूर चर्चे थे कि वो बहरामजी के इतना मुखालिफ था कि हर घड़ी उसकी मौत की कामना करता था। यानी चाहता था कि उसको मौत खुद आ जाये, उसकी मौत बुलाने की उसकी मजाल नहीं हो सकती थी।

फिर बल्लू कनौजिया और सलमान गाजी थे, वो दोनों भी ताकतवर समगलर और अन्डरवर्ल्ड डॉन बताये जाते थे और अगर बहरामजी वापिस समगलिंग के धन्धे में था तो उसे बाहर धकेलने के ख्वाहिशमन्द हो सकते थे।

यानी आकाश चावरिया इन चारों में से किसी के भी अन्डर चलने वाला भीड़ू हो सकता था। जिस किसी का भी वो खास था, वो ही बहरामजी के खिलाफ कोई ऐसा षड्यन्त्र रच रहा था जिसमें जीतसिंह के ताला-चाबी के हुनर का खास रोल था।

बहरामजी से बचने के लिए जीतसिंह को उस बिग बॉस की पनाह कबूल थी भले ही इस कोशिश में आइन्दा वो पक्का ही मवाली बन जाता।

फिर पहले वार की तरह — जिसमें हजूरीलाल प्रमुख पात्र था — ही बहरामजी पर दूसरा वार होता है। पहले की ही तरह गुमनाम टिप पर काम करते हुए इस बार पुलिस की पकड़ में जीवाजीराव खोटे नाम का एक मछुआरा आता है रात की घड़ी जिसकी बोट में से करोड़ों की कीमत का हाई ऐण्ड मोबाइल फोनों का जखीरा बरामद होता है। हजूरी जैसी ही दुहाई वो भी देता है कि वो तो खाली बोटमैन था जिसने अपनी बोट जिन दो लोगों को किराये पर दी थी वो ऐन मौके पर फरार हो गये थे और पुलिस की पकड़ में खाली वो आया था जो कि निर्दोष था। वस्तुत: वो भी पहले की ही तरह सिखाया पढ़ाया तोता था जिसने हील हुज्जत के बाद हजूरीलाल वाला ही राग अलापना था कि पकड़ा गया माल बहरामजी कान्ट्रैक्टर का था। हजूरी की तरह ही वो भी पुलिस के सामने जहांगीर और खालिद के नाम उछालता है ताकि उसका दावा मजबूत होता कि माल बहरामजी का था।

जीतसिंह की आकाश चावरिया से फिर मुलाकात होती है। पहले उसे आजू-बाजू खूब दौड़ाया जाता है, आखिर वो उसे माटुंगा स्टेशन के एक कबाड़ जैसे कमरे में तब मिलता है जब कि जीतसिंह के हितचिन्तकों का — गाइलो वगैरह का — उसकी किसी मदद के लिये उसके पीछे लगा रहना कतई मुमकिन नहीं रहा था। वहां आकाश चावरिया का एक कबाड़ सी टेबल में से निकले कील पर से अंगूठा छिल जाता है, वो स्टेशन पर ही छिले अंगूठे पर बैंडएड लगाने का प्रबन्ध करता है।

बाद में बैंडएड लगा लिया हुआ अंगूठा ही उसकी शिनाख्त का जरिया बनता है।

उस के हुक्म पर जीतसिंह लाख रुपये में मुहैया की जर्मन टूल किट उसके हवाले इस आश्वासन के तहत करता है कि ऐन मौके पर वो उसे वहीं वापिस मिल जायेगी जहां कि उसने अपना हुनर दिखाना होगा। फिर वो उसे बताता है कि वो जगह सी-रॉक एस्टेट थी जो कि जीतसिंह को उसके बताये बिना ही मालूम था बड़े नेता जहांगीर कान्ट्रैक्टर का आवास था। ये उसे तब बताया जाता है कि इतवार रात वहां बहरामजी के इकलौते बेटे सोराब की शादी की रिसैप्शन की भव्य पार्टी थी जिस में उसने भी पार्टी के लिये माकूल हैसियत बना कर शिरकत करनी थी और उसको साथ ले जाने वाले शख्स का नाम विभोर सावन्त था। जीतसिंह चावरिया पर इलजाम लगाता है कि वो ही विभोर सावन्त था जिसने हैट, गागल्स, नकली फ्रेंच कट दाढ़ी-मूंछ को तिलांजलि दे कर क्लीनशेव्ड विभोर सावन्त बन जाना था।

चावरिया वो बात कबूल नहीं करता। वो जीतसिंह को बताता है कि जो सेफ उसने खोलनी थी वो मैंशन में मास्टर बैडरूम में थी जहां कि पार्टी की एक होस्टेस उसे पहुँचाती और वो ही वहां उसे टूल किट मुहैया कराती। पार्टी में उसने विभोर सावन्त के साथ उस का सेक्रेट्री बन कर जाना था। विभोर सावन्त का बॉस वस्तुत: उस पार्टी का आमन्त्रित मेहमान था लेकिन किसी वजह से उसका आना मुमकिन नहीं था इसलिये उसके प्रतिनिधि के तौर पर वर वधु को उसकी तरफ से शादी का तोहफा पहुँचाने के लिये विभोर सावन्त और उसके सैक्रेट्री ने जाना था।

इसके अलावा चावरिया ने उसे कुछ नहीं बताया।

सावन झंकार को अपने ड्यूटी टाइम में डॉक पर हनीफ लोधी मिलता है जो उसको खड़का के जाता है — और सावन का कलेजा कंपा के जाता है — कि जल्दी ही वो टाइम आने वाला था जबकि उसने हजूरी की तरह ही बादशाह के एक काम को अंजाम देना था और बड़ा ईनाम कमाना था। वो सावन को उस काम के लिये उपलब्ध रहने की वार्निंग जैसी हिदायत दे के जाता है।

सोलोमन बहरामजी को जीवाजीराव खोटे नाम के बोटमैन के जरिये हुए दूसरे वार की खबर करता है जिसके तहत इस बार हाई एण्ड मोबाइल बरामद हुए थे। बहरामजी के यकीन में बोटमैन की ये दुहाई बिल्कुल नहीं आती कि वो खाली निर्दोष, बोटमैन था, उसका समगलिंग की वारदात से कोई लेना देना नहीं था। वो सुझाता है कि हजूरी की तरह अब बोटमैन खोटे को मौत आ जाने से पहले वो उन के काबू में होना चाहिये था ताकि उससे कबुलवाया जा सकता कि उसकी पीठ पर कौन था जो बहरामजी पर वार पर वार कर रहा था। उसे काबू में करने के दो तरीके थे कि या तो उसकी जमानत करवाई जाती, लेकिन उसमें वक्त लगता — क्योंकि रिमांड की अवधि खत्म हो जाने से पहले जमानत पर विचार न होता — या किसी तरह से उसे पुलिस के चंगुल से छुड़ा कर अपने कब्जे में किया जाता।

सोलोमन दूसरे तरीके पर अमल किये जाने का नेता जी को आश्वासन देता है और नेताजी को खबर करता है कि इतवार की पार्टी में शामिल होने में सलमान गाजी ने असमर्थता जाहिर की थी क्योंकि वो गोवा में था जहां कि अगली ही सुबह उसके खिलाफ जारी हुए गैरजमानती वारन्ट के तहत उसने कोर्ट में हाजिरी भरनी थी।

हनीफ लोधी अपने बॉस असद हयात को खबर करता है कि वो बन्दरगाह पर सावन झंकार से मिला था तो उसे उसके तेवर बदले हुए दिखाई दिये थे। वो कहता है कि उनके काम से इंकार करने की तो उसकी मजाल नहीं हो सकती थी लेकिन काम से पीछा छुड़ाने के लिये वो उन को माफिक न आने वाला कोई कदम उठा सकता था। मसलन वो पाला बदल सकता था और दुश्मन से पनाह पाने की कोशिश कर सकता था। लिहाजा उस पर सख्त निगरानी की जरूरत थी।

शाह इस काम के लिये रवि मनेरिया का नाम सुझाता है जो अपने आदमियों के साथ दुश्मन के पाले की हर उस जगह की निगरानी कर सकता था जहां कि गद्दारी को तत्पर सावन झंकार पहुँच सकता था।

उदास, आशंकित, आतंकित सावन झंकार अपनी पाली समाप्त कर के धारावी पहुँचता है तो इत्तफाक से ही उसे अपने काम पर निकलती कारमला दिखाई दे जाती है। अपने बुरे मूड में वो कारमला से भावुक दरख्वास्त करता है कि वो उस रोज काम से किनारा करे और उसके साथ जुहू चले जहां कि वो बीच पर कहीं बैठ कर आपस में दुख सुख बांट सकें। उसका मूड भांप कर कारमला उसके साथ हो लेती है।

बीच की तनहाई में सावन कारमला पर अपना मन उजागर करता है कि यकीनन हजूरी का कत्ल हुआ था, जीवाजीराव खोटे कर के जो दूसरा भीड़ू पकड़ा गया था, उसका भी हजूरी की ही तरह कत्ल हो के रहना था और फिर आइन्दा आसार ऐसे दिखाई दे रहे थे कि खुद उसका भी वैसे ही किसी अंजाम तक पहुँचना महज वक्त की बात थी। लिहाजा अब उसके सामने बचाव का एक ही रास्ता था कि वो बहरामजी की शरण में जाता लेकिन उस काम में अड़चन ये थी कि सावन जैसे मामूली आदमी को कोई उसके करीब भी न फटकने देता। तब कारमला उसे सुझाती है कि कोई बिचौलिया उसकी इस समस्या का हल हो सकता था।

तब सावन को खालिद की याद आती है जो कि बहरामजी का खास था और जिस की इस रूटीन की उसको खबर थी कि वो हर शाम को आठ और नौ बजे के बीच ग्रैग्रीज़ बार में होता था जो कि सासून डॉक के करीब कोलाबा में था।

वो खालिद की तलाश में निकलने का फैसला करते हैं और एक टैक्सी पर सवार हो कर कोलाबा पहुँचते हैं। दोनों बार के प्रवेश द्वार की तरफ कदम बढ़ाते ही हैं कि एक ललकार जैसी आवाज आती है — वही रुक जा, सावन!

सावन के प्राण काँप जाते हैं, घूम कर देखता है तो उसे अपने ही गैंग का प्यादा विजय शिवधरे दिखाई देता है जो उसे एक बाजू ले जा के ये कह कर उसकी हालत और खराब कर देता है कि उसे मालूम था कि सावन वहां क्यों आया था, खालिद भीतर मौजूद था लेकिन वो मूर्ख था जो समझता था कि बाजरिया खालिद हनीफ लोधी से कोई श्यानपन्ती कर सकता था। ये बता कर वो सावन के रहे सहे होश भी उड़ा देता है कि उस जैसे और कितने ही प्यादे हर उस जगह की ताक में थे दूसरे पाले में कदम रखने के अपने मिशन के तहत जहां कि वो पहुँच सकता था।

जैसे कि ग्रैग्रीज़ बार की ताक में वो था।

विजय शिवधरे दोस्त बन कर दोस्त को संजीदा राय देता है कि वो बहरामजी से कान्टैक्ट बनाने का खयाल हमेशा के लिए छोड़ दे और ये शुक्र मनाता वहां से चुपचाप वापिस लौट जाये कि ग्रैग्रीज़ बार पर उसे अपना दोस्त और खैरख्वाह विजय शिवधरे मिला, मनेरिया का कोई दूसरा प्यादा नहीं। उसने सावन को आश्वासन दिया कि वो किसी को नहीं बोलेगा कि वो उधर आया था। पूछे जाने पर वो यही कहेगा कि सावन के कदम वहां नहीं पड़े थे।

इतवार की सुबह माहिम थानाध्यक्ष इन्स्पेक्टर भाउराव बोरकर की सदारत में माहिम काजवे पर पुलिस की नाकाबन्दी थी क्योंकि इस बार पुलिस को सीधे गुमनाम टिप मिली थी कि सुबह आठ बजे माहिम काजवे पर से एक बड़ी गाड़ी समगलिंग के माल के साथ गुजरने वाली थी। ऐन निर्धारित टाइम पर एक फोर्ड फियेस्टा वहां रोकी जाती है जिसे इन्स्पेक्टर बोरकर खुद चैक करता है तो एक बाजू पहुँच कर ड्राइवर राजू दातार बड़े राजदाराना लहजे से उसे बोलता है कि गाड़ी में दस किलो सोना था, गाड़ी बिग बॉस बेजान मोरावाला की थी जिसकी कि उस सिलसिले में हर थाने में सैटिंग थी। सबूत के तौर पर ड्राईवर दातार अपने मोबाइल पर बाकायदा इन्स्पेक्टर बोरकर की मोरावाला से बात कराता है जो कबूल करता है कि माल उसका था, दावा करता है कि उसका माल कोई नहीं पकड़ता था और इन्स्पेक्टर बोरकर से उस गुलदस्ते का साइज पूछता है जो कि उसको मांगता था।

इन्स्पेक्टर बोरकर दस लाख रुपया मांगता है जो कि दस मिनट में नाकाबन्दी पर ही उसे पहुँचा दिया जाता है और गाड़ी को निर्विघ्न निकल जाने दिया जाता है।

वस्तुत: वो चाल भी बादशाह के कैम्प से चली गयी थी, ड्राइवर राजू दातार शाह का आदमी था, गाड़ी में सोना था ही नहीं और इन्स्पेक्टर बोरकर से बात मोरावाला बन कर खुद छोटे शाह हनीफ लोधी ने की थी।

यानी बहरामजी पर तीसरा वार सिर्फ दस लाख रुपये की लागत से हो गया था जो कि पिछली अस्सी लाख और डेढ़ करोड़ की रकमों के मुकाबले में कुछ भी लागत नहीं

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