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Haar Jeet
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Ebook582 pages5 hours

Haar Jeet

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About this ebook

Another blockbuster from the very popular 42-novel-strong Vimal Series.  

Vimal is tired of being a convict on the loose, of drifting from one palce to another. He wishes to settle down now and live a peaceful life. But before that, he must confront his dark and devious past.

Languageहिन्दी
PublisherHarperHindi
Release dateJan 10, 2017
ISBN9789352643615
Haar Jeet
Author

Surender Mohan Pathak

Surender Mohan Pathak is considered the undisputed king of Hindi crime fiction. He has nearly 300 bestselling novels to his credit. He started his writing career with Hindi translations of Ian Flemings' James Bond novels and the works of James Hadley Chase. Some of his most popular works are Meena Murder Case, Paisath Lakh ki Dakaiti, Jauhar Jwala, Hazaar Haath, Jo Lare Deen Ke Het and Goa Galatta.

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    Awesome novel . I'm huge fan of Vimal series . This is 20th time that I read this novel in one sitting .

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Haar Jeet - Surender Mohan Pathak

भाग एक

चंडीगढ़

विमल फ्लैट की बालकनी में एक आराम कुर्सी पर अधलेटा-सा बैठा अपने पाइप के छोटे-छोटे कश लगा रहा था।

वह फ्लैट सत्रह सैक्टर की एक इमारत की पहली मंजिल पर था।

नीलम सुबह से ही कहीं गयी हुई थी।

तारकपुर से चण्डीगढ़ आये हुए उसे दो महीने हो गये थे। राजनगर में सुनील की मेहरबानी से हुए उसके ऑपरेशन की कामयाबी के बावजूद पहले एक महीने में उसकी हालत काफी डावांडोल रही थी। नीलम उसका उपचार चण्डीगढ की भारत में प्रसिद्ध मैडीकल इन्स्टीच्युशन पीजीआई के सबसे बड़े डॉक्टर से करवा रही थी, लेकिन फिर भी कोई न कोई ऐसी अप्रत्याशित पेचीदगी पैदा हो जाती थी, जो न केवल उसको सम्पूर्ण स्वास्थ्यलाभ की तरफ अग्रसर होने से रोक देती थी, बल्कि ऐसा भी लगने लगता था कि वह इन्तहाई कामयाब ऑपरेशन के बाद भी बचने वाला नहीं था।

वह सारा महीना नीलम ने उसके पलंग की पट्‍टी से लगकर गुजारा था।

विमल ने जब भी आँखें खोली थीं, उसे अपने सामने मौजूद पाया था। उस पहले महीने में, दिन रहा हो या रात, नीलम को उसने अपने पास पाया था, हमेशा जागती पाया था, अपनी किसी भी सेवा के लिए तत्पर पाया था।

फिर एक महीने के बाद उसकी जान का खतरा टला था और वह थोड़ा-बहुत उठने-बैठने और चलने-फिरने के काबिल हुआ था।

तभी शायद नीलम को भी इतना अरसे में पहली बार आराम और इत्मीनान महसूस हुआ था।

विमल नीलम के बारे में सोचता था तो उसका दिल भर आता था।

वह सुनील के बारे में सोचता था तो उसकी आँखें छलछला जाती थीं, वह उन दोनों के बारे में सोचता था तो शराफत, भाईचारे और इन्सानियत पर से उसका कब से उठ चुका विश्‍वास उसके दिल में फिर से स्थापित होने लगता था। दुनिया में हर तरह के लोग होते थे। यह उसकी बद्किस्मती थी कि उसके हिस्से में बुरे लोग ही ज्यादा आये थे, लेकिन वाहेगुरु ने उसे भले लोगों की हिस्सेदारी से एकदम महरूम नहीं रखा था।

सत्रह सैक्टर वाले उस फ्लैट में वे केवल पन्द्रह दिन से थे। उससे पहले वे नीलम के बाईस सैक्टर वाले अपने मकान में रहते रहे थे, जहाँ कि वह उसे तारकपुर से सीधे लेकर आयी थी। वह मकान नीलम का अपना था, जबकि मौजूदा फ्लैट किराये का था। नीलम का कहना था कि बाईस सैक्टर के उसके फ्लैट में विमल की मौजूदगी की वजह से लोग बातें बनाने लगे थे और उससे इशारों से पूछने लगे थे कि विमल कौन था और उसका क्या लगता था। नीलम कहती तो यही थी कि वैसे असुविधापूर्ण सवालों से बचने के लिए ही उसने उस किराये के फ्लैट का इन्तजाम किया था, लेकिन विमल उसके उस जवाब से आश्‍‍वस्त नहीं था। जैसे असुविधाजनक सवाल उससे उसके अपने मकान में पूछे जा सकते थे, वैसे उस किराये के फ्लैट के गिर्द रहने वाले लोगों द्वारा भी तो पूछे जा सकते थे ! कोई और ही बात थी जो नीलम उसे बताना नहीं चाहती थी और विमल को जिद करके पूछना मुनासिब नहीं लग रहा था।

नीलम से अब तक उसकी जितनी मुलाकातें हुई थीं, बहुत ही संक्षिप्‍त हुई थीं। मौजूदा मुलाकात सबसे लम्बी साबित हुई थी। विमल अक्सर मन ही मन सोचता था कि क्या वह मुलाकात हमेशा का साथ बन सकती थी !

उसी सन्दर्भ में उसके जेहन में अपनी बीवी का भी खयाल आये बिना नहीं रहता था। और वह उस बेवफा और हरजाई औरत का मुकाबला नीलम नाम की उस लड़की से किये बिना नहीं रह पाता था, जो कभी एक गुण्डे की रखैल थी, जो कभी एक हाई प्राइस्ड काल-गर्ल थी।

विमल से अपनी पहली मुलाकात के बाद से ही नीलम ने अपने काल-गर्ल के धन्धे से किनारा कर लिया था। चण्डीगढ़ में मकान उसका अपना था ही और बैंक में इतना काफी रुपया फिक्स्ड डिपॉजिट के तौर पर मौजूद था कि उसने हासिल होने वाले ब्याज से वह ऐश की तो नहीं, लेकिन सहूलियत की जिन्दगी जरूर बसर कर सकती थी, कर रही थी।

कैसी अजीब बात थी !

एक वेश्‍या एक इश्‍तिहारी मुजरिम की सोहबत में सुधर गयी थी।

लेकिन एक शरीफजादी, एक कुलवन्ती, एक गृहिणी एक निहायत भलेमानस आदमी की बीवी बन चुकने बावजूद अपने को वेश्‍याओं से ज्यादा बद्कार साबित करके दिखा चुकी थी।

उसे फिर सुरजीत का खयाल आया।

किस हालत में होगी सुरजीत कौर ?

कहाँ होगी उसकी बेवफा बीवी ?

क्या अभी भी एरिक जॉनसन कम्पनी के मैनेजर से ही उसकी आशनाई चल रही होगी या कोई नया यार फाँस लिया होगा ?

कैसी जिन्दगी जी रही होगी ?

जो दगाबाजी उसने अपने पति के साथ की थी, क्या कभी एक क्षण के लिए भी उसके मन में उसके लिए पछतावे का भाव नहीं आया होगा ? क्या उसकी अन्तरात्मा ने, उसके विवेक ने, कभी उसे नहीं कचोटा होगा कि उसने एक इन्तहाई शरीफ आदमी, एक बेहद निष्‍ठावान पति के साथ बहुत बुरा सलूक किया था ? वह इश्‍तिहारी मुजरिम था। उसके सिर पर एक लाख रुपये का इनाम था। आये दिन अखबारों में खूब मोटी-मोटी सुर्खियों में उसके कारनामों का विवरण छपता था, चार-चार कॉलम चौड़ी उसकी तसवीर छपती थी। अपने पति की गुनाहों से पिरोई हुई जिन्दगी से वह बेखबर रही हो, यह तो कभी हो ही नहीं सकता था। तो क्या उसके मन में यह सोचकर कभी पश्‍‍चाताप की भावना आयी होगी कि एक शरीफ, नेकनीयत, खुदा का बेतहाशा खौफ खाने वाले आदमी की जिन्दगी के मुकम्मल सत्यानाश के लिए वह जिम्मेदार थी ?

तभी उसने अनुभव किया कि पाइप बुझ चुका था। अपनी पिछली जिन्दगी के खयालात में वह ऐसा डूबा था कि पाइप का कश लगाना भूल गया था।

उसने ड्रैसिंग गाउन की जेब में से माचिस निकाली और पाइप दोबारा सुलगा लिया।

फिर उसे जगमोहन का खयाल आया।

पता नहीं कहाँ होगा बेचारा !

और किस हालत में होगा !

नीलम की सूरत में विमल को कोई तो सहारा हासिल था, लेकिन जगमोहन तो इतनी बड़ी दुनिया में एकदम तनहा था। पता नहीं उसकी जिन्दगी किस हौलनाक अँजाम तक पहुँचने वाली थी—या शायद पहुँच भी चुकी थी।

सिडनी फोस्टर के अपहरण का सिलसिला ऐन मौके पर बैकफायर न कर गया होता तो आज दोनों की जिन्दगियाँ सँवर चुकी होतीं। लेकिन आखिर होना तो वही था जो वाहेगुरु को मंजूर था और वाहेगुरु को शायद अभी यही मंजूर था कि उन्हें अपने गर्दिश के दौर से निजात न मिलने पाये।

जो तुध भावे नानका—वह होंठों में बुदबुदाया—सोई भली कार।

उसने एक गहरी साँस ली और कलाई पर बँधी घड़ी पर दृष्‍टिपात किया।

एक बजने को था।

सुबह की गयी नीलम अभी तक नहीं लौटी थी।

कहाँ गयी थी वो ?

तारकपुर में डॉक्टर चतुर्वेदी के घर पहुँचने तक वह होश में था, लेकिन उसके बाद क्या कुछ हुआ था, वह सब उसे नीलम की ही जुबानी सुनने की मिला था। सुनील ने—एक ऐसे आदमी ने, जो उसकी गिरफ्तारी पर घोषित एक लाख रुपये का इनाम हासिल करने का ख्वाहिशमन्द था—उसकी जान बचाने के लिए जो कुछ किया था, वह उसके लिए एक करिश्‍मे से भी बढ़कर था। बिना किसी स्वार्थ के कोई इन्सान किसी इन्सान के इस हद तक काम आ सकता था, यह एक ऐसी बात थी जो शायद किस्से-कहानियों में भी विश्‍‍वसनीय न लगती। उस शख्स ने उसे जिन्दगी बख्शी थी। उसके इतने बड़े अहसान का बदला, उसे नहीं लगता था कि, वह अपनी आने वाली कई जिन्दगियों में भी चुका सकता था।

फोस्टर के अपहरण के सिलसिले में उसने अपनी सारी जिन्दगी की रूप-रेखा बदल दी, दौलत की खातिर बिना किसी के दबाव या बिना किसी मजबूरी के वह अपहरण और फिरौती जैसे अपराध में शरीक हुआ, लेकिन, तकदीर की मार कि, दौलत तो हाथ आयी नहीं, पल्ले जो थोड़ी-बहुत जमा पूँजी थी, जो दो-चार जरूरत की चीजें थी, वे भी हाथ से निकल गयी और जिन्दगी का दामन तो हाथों से जैसे छूट ही गया था।

अपहरण से हासिल होने वाली दौलत पर उसकी आने वाली जिन्दगी का बहुत दारोमदार था। उस दौलत से वह डॉक्टर स्लेटर से नया चेहरा हासिल होने की उम्मीद कर रहा था। फोस्टर के अपहरण वाले केस के बाद से वह बहुत ही ज्यादा मशहूर हो गया था। प्लास्टिक सर्जरी से हासिल होने वाला नया चेहरा ही उसे गली में दुर-दुर करते आवारागर्द कुत्ते जैसी अपनी जिन्दगी से निजात दिला सकता था। उसके बिना कभी भी उसके हिस्से में फाँसी का फन्दा या पुलिस की गोली आ सकती थी। अब वह एक बेहद खतरनाक इश्‍तिहारी मुजरिम मशहूर हो चुका था और सारे मुल्क की पुलिस को उसकी तलाश थी। डॉक्टर स्लेटर ने उसके चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी की एवज में उसके पाँच लाख रुपये की माँग की थी। फोस्टर के बदले में जो फिरौती मुकर्रर हुई थी, उसमें उसका हिस्सा डेढ़ करोड़ रुपये का होता। वह दौलत अगर उसके हाथ लग जाती तो डॉक्टर स्लेटर की फीस अदा करना उसके लिए मामूली बात होती। उसको डॉक्टर स्लेटर से नया चेहरा हासिल हो जाता तो उसे अपने सामने मुँह बाए खड़ी अँधेरी जिन्दगी में रोशनी और सलामती की उम्मीद का उजाला दिखाई देने लगता। उसको डॉक्टर स्लेटर से हासिल हुए नये चेहरे से उसकी गुनाहों से पिरोई जिन्दगी और उसके दुश्‍मन समाज और उसके खून की प्यासी पुलिस के बीच एक पर्दा खिंच जाता, जिसके पार झाँककर सहज ही कोई यह दुहाई न दे पाता कि वह रहा इश्‍तिहारी मुजरिम सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल ! गोली से उड़ा दो इसे ! फाँसी पर टाँग दो इसे ! टुकड़े-टुकड़े कर दो इसके नापाक जिस्म के !

नीलम से हुई मौजूदा मुलाकात से पहले विमल उससे तभी मिला था, जब उसने जयपुर के बीकानेर बैंक की डकैती में अपने हिस्सेदार ठाकुर शमशेरसिंह से निपटने के लिए नीलम को खासतौर से चण्डीगढ़ टेलीफोन करके दिल्ली बुलाया था। तब के बाद उसे नीलम की सूरत तभी दिखाई दी थी, जब उसने तारकपुर में ऑपरेशन के बाद आँखें खोली थीं और उसे उसके अँजाम से त्रस्त, जार-जार रोती नीलम अपने सामने खड़ी दिखाई दी थी। उन दो मुलाकातों के बीच विमल के गुनाहों की फेहरिस्त में कई और गुनाह जुड़ गये थे और पिछले दो महीनों में नीलम ने बहुत जिद कर-करके उसकी गुनाहों से पिरोई जिन्दगी की मुकम्मल दास्तान कई-कई बार सुनी थी। इसी वजह से उसे यह भी मालूम था कि प्लास्टिक सर्जरी के लिए विमल को पाँच लाख रुपये चाहियें थे और उस प्रकार हासिल नया चेहरा ही उसकी आने वाली जिन्दगी में सुरक्षा की कोई छाप छोड़ सकता था।

अगर मुझे नया चेहरा हासिल हो जाता।—उसने बड़े अरमान से कहा था—तो मेरे जेहन पर हर क्षण छाया रहने वाला कानून का खौफ मेरा पीछा छोड़ देता। फिर मैं भी और लोगों की तरह इत्मीनान और सुकून की जिन्दगी गुजार पाता।

अगर तुम्हें नया चेहरा हासिल हो जाये—नीलम ने पूछा था—तो तुम फिर कोई नया गुनाह नहीं करोगे ?

नहीं करूँगा।—वह एक क्षण ठिठका था और फिर बोला था—सिवाय एक गुनाह के ?

सिवाय एक गुनाह के ?—नीलम ने दोहराया था।

हाँ मैं उस हरजाई और बेवफा औरत से बदला जरूर लूँगा, जो कभी मेरी बीवी थी और जिसकी वजह से मेरी जिन्दगी तबाही और बरबादी की एक मिसाल बनकर रह गयी है, जिसकी वजह से मेरा दर्जा दर-दर की ठोकरें खाने वाले एक आवारागर्द कुत्ते से बद्तर हो गया है, जिसकी वजह से आज मैं एक खतरनाक इश्‍तिहारी मुजरिम हूँ और दुनिया की निगाहों में एक खौफनाक डाकू हूँ।

ऐसा क्या कर दिया था तुम्हारी बीवी ने ?

तुम एक औरत हो। खुद ही सोचो, मर्द के साथ सबसे बड़ा जुल्म औरत क्या कर सकती है ?

ओह !

तुम्हें जानकर हैरानी होगी कि पूरी तरह से अपनी जिन्दगी का सर्वनाश कर चुकने के बाद भी जब कभी मुझे अपनी बीवी की करतूत की याद आती थी तो मैं उसे नहीं, अपनी तकदीर को कोसता था। अपनी बीवी को मैं याद करता था तो मुझे गुस्सा नहीं आता था, बल्कि मुझे अपनी तकदीर पर रोना आता था और मेरे दिल से एक आह निकल जाती थी। लेकिन अब मैं दुनिया के इतने धक्‍के खा चुका हूँ कि किसी के कुकर्म के लिए अपनी तकदीर को कोसना मुझे हिमाकत मालूम होता है, जहालत मालूम होता है। अब मैं अपने दिल से निकलती आह को एक ऐसे सिंहनाद में परिवर्तित कर देना चाहता हूँ जो सुनने वाले के प्राण ले ले।

तुम क्या करोगे ?

मैं उसे उसकी करतूत की सजा दूँगा।

कैसे ?

वह तो आने वाला वक्त बतायेगा। इस बात का फैसला तो वाहेगुरु के हाथ में है। अगर वह मुझे जिन्दगी बख्शेगा तो वह मुझे वह भी बतायेगा कि जो कुछ मैं करना चाहता हूँ, उसे मैं कैसे अँजाम दे पाऊँगा।

ऐसी खतरनाक बातें बाद में सोचना। पहले पूरी तरह तन्दुरुस्त तो हो लो !

वह तो मैं अब हो ही जाऊँगा। लेकिन तन्दुरुस्त हो जाने के बाद मैं जिन्दा भी बचा रह पाऊँगा, इस बात की क्या गारन्टी है ? इस घर की चारदीवारी में तो मैं सुरक्षित हूँ, लेकिन यहाँ से बाहर कदम रखने के बाद मैं किसी पागल कुत्ते की तरह शूट नहीं कर दिया जाऊँगा, इस बात की क्या गारन्टी है ?

तुम पहले ठीक तो हो लो।—नीलम ने बड़ी गम्भीरता से कहा था—ईश्‍‍वर ने जब इतने करिश्‍मासाज तरीके से तुम्हें इतनी निि‍श्‍‍चत मौत से बचाया है तो आगे तुम्हारी सलामती की कोई सूरत भी वही सुझायेगा।

विमल खामोशी से बैठा पाइप के कश लगता रहा।

अभी पिछले हफ्ते तक पीजीआई का बड़ा डॉक्टर उसे देखने आया करता था, उसने विमल से कभी यह नहीं पूछा था कि वह उस अनोखे प्रकार से कैसे घायल हुआ था और उसका उतना पेचीदा ऑपरेशन किसने किया था ? उसकी वजह भी शायद नीलम ही थी, वरना वह डॉक्टर ही उसकी पोल खोल सकता था और उसे गिरफ्तार करवा सकता था।

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था।

नीलम के साथ वह वहाँ सुरक्षित था। अपनी निि‍श्‍‍चत मौत से निजात पा चुकने के बाद फिलहाल वह सुरक्षित था और काफी हद तक स्वास्थ्यलाभ भी कर चुका था।

वाहेगुरु सच्‍चे पातशाह !—उसके मुँह से निकला—तेरे रंग न्यारे।

तभी उसे नीचे सड़क पर इमारत के सामने आकर एक स्‍कूटर रुकता दिखाई दिया। स्‍कूटर में से नीलम बाहर निकली। उसके हाथ में एक ब्रीफकेस था। उसने स्‍कूटर का भाड़ा चुकाया और ब्रीफकेस को हैंडल के सहारे हाथ में लटकाकर चलने के स्‍थान पर उसे एक नवजात शिशु की तरह मजबूती से अपनी छाती से चिपकाए वह इमारत में दाखिल हुई।

उस वक्‍त वह एक सादा शलवार-कमीज पहने थी और निहायत कमसिन, निहायत नाजुक, निहायत खूबसूरत लग रही थी।

और दो मिनट बाद वह फ्लैट में पहुँच गयी।

उसने फ्लैट का दरवाजा मजबूती से भीतर से बन्द कर दिया और बैडरूम में पहुँची।

जरा इधर आना।—उसने वहाँ से विमल को आवाज दी।

विमल अपने स्‍थान से उठा और बैडरूम में पहुँचा।

नीलम एक स्‍टूल पर बैठी थी। ब्रीफकेस उसने अपने सामने पलंग पर रखा हुआ था।

विमल ने नोट किया, वह बेहद गम्‍भीर थी।

बैठो।—वह बोली। उसका स्‍वर भी उसकी सूरत जैसा ही गम्‍भीर था।

विमल पलंग पर ब्रीफकेस के पास बैठ गया।

नीलम ने उसे यूँ निहारा, जैसे वह अपने मुद्दत से बिछुड़े किसी प्रियजन को देख रही हो।

क्‍या बात है ?—विमल तनिक विचलित स्‍वर में बोला।

विमल।—वह धीरे से बोली—मैं तुम्‍हारी क्‍या लगती हूँ ?

विमल हड़बड़ाया। उसने हैरानी से नीलम के गम्‍भीर चेहरे की तरफ देखा।

बड़ा अजीब सवाल पूछ रही हो !—वह बोला।

शायद मुश्‍किल भी। तुम्‍हारे लिए। लेकिन इस मुश्‍किल सवाल का जवाब भी मैं खुद ही दिये देती हूँ। मैं तुम्‍हारी कुछ नहीं लगती। शायद कभी कुछ लग भी नहीं सकूँगी।

नीलम, तुम...

कोई कानूनी रिश्‍ता शायद हम दोनों में मुममिन नहीं, लेकिन इन्सानियत का जो रिश्‍ता हमें एक-दूसरे से जोड़े हुए है, वह, मैं समझती हूँ कि, किसी कानूनी रिश्‍ते से कम मजबूत नहीं। प्यार और मुहब्‍बत का जज्‍बा एक ऐसे नाजुक धागे की तरह होता है, जिसे इन्सान तोड़ना चाहे तो चुटकियों में तोड़ सकता है, न तोड़ना चाहे तो हजार हाथियों के बल से भी वह टूटने वाला नहीं।

बड़ी अजीब बातें कर रही हो आज तुम ! बात क्‍या है ? कहना क्‍या चाहती हो तुम ?

मैं तुम्‍हें एक चीज देना चाहती हूँ, लेकिन उस चीज का जिक्र भी करने से पहले मैं तुमसे वादा लेना चाहती हूँ कि तुम उसे कबूल करने से इन्कार नहीं करोगे। विमल, अगर मेरे लिए तुम्‍हारे दिल में रत्ती-भर भी अपनेपन का एहसास है, रत्ती-भर भी लगाव है, जरा भी प्यार-मुहब्‍बत का कोई जज्‍बा है तो वादा करो कि जो कुछ मैं तुम्‍हें देने जा रही हूँ, उसे लेने से तुम इंकार नहीं करोगे।

क्‍या देने जा रही हो तुम मुझे ?—विमल तनिक उपहासपूर्ण स्‍वर में बोला—कोई बर्थडे प्रेजेन्ट ? लेकिन मेरा जन्मदिन तो अभी बहुत दूर है।

मजाक मत करो। और जो वादा मैंने तुमसे माँगा है, वह मुझे दो।

नीलम, तुम पहेलियाँ बुझा रही हो।

यही सही। बोलो, वादा करते हो या नहीं कि जो कुछ मैं तुम्‍हें दूँगी, तुम बिना हुज्‍जत किये उसे कबूल करोगे ? बोलो !

नीलम, मैं पहले ही तुम्‍हारे अहसानों के नीचे दबा हूँ। तुमने मुझे जिन्दगी बख्शी है। अब और क्‍या...

लफ्फाजी मत झाड़ो। मेरे सीधे-सीधे सवाल का सीधा सीधा जवाब दो।

ठीक है।—विमल गहरी साँस लेकर बोला—वादा करता हूँ।

क्‍या वादा करते हो ?

कि जो कुछ तुम मुझे दोगी, मैं उसे बिना हुज्‍जत के कबूल करूँगा।

अपने वादे से फिरोगे तो नहीं ?

नहीं।

शुक्रिया। ब्रीफकेस खोलो।

विमल ने ब्रीफकेस खोला।

ब्रीफकेस सौ-सौ के नोटों की गड्डियों से भरा पड़ा था।

विमल बुरी तरह चौंका। वह हक्‍का-बक्‍का-सा नीलम का मुँह देखने लगा।

यह पाँच लाख रुपया है।—नीलम धीरे से बोली—यह उतनी ही रकम है, जितनी की कि तुम्‍हें नया चेहरा हासिल करने के लिए जरूरत है। तुम्‍हारे चेहरे की प्लास्‍टिक सर्जरी करके तुम्‍हें नया चेहरा दे सकने वाले तुम्‍हारे डॉक्‍टर की यह मुकम्‍मल फीस है।

लेकिन... लेकिन तुम्‍हारे पास इतना रुपया कहाँ से आया ?

नीलम ने उत्तर न दिया।

विमल ने अपना पाइप एक ओर रख दिया और उसे उसके दोनों कन्धों से थाम लिया।

मेरी तरफ देखो।—वह उसके कन्धों को तनिक झिंझोड़ता हुआ बोला।

नीलम ने उससे निगाह न मिलाई।

नीलम।—विमल कठोर स्‍वर में बोला—मेरी तरफ देखो।

बड़ी कठिनाई से नीलम विमल से निगाह मिला पायी।

इतना रुपया तुम्‍हारे पास कहाँ से आया ?—विमल ने अपना प्रश्‍‍न दोहराया।

इससे क्‍या फर्क पड़ता है कि...

फर्क पड़ता है। मुझे मालूम होना चाहिए कि इतना रुपया तुम्‍हारे पास कहाँ से आया ? बोलो। जवाब दो।

विमल, जो तुम सोच रहो हो, गलत सोच रहे हो। तुमसे पहली मुलाकात के बाद से ही मैंने अपना जिस्‍म न बेचने की कसम खा ली थी। वैसे यह बात दूसरी है कि तुम्‍हारे किसी भले की खातिर मैं अपनी वो कसम भी तोड़ने के लिए तैयार हूँ, लेकिन हकीकतन मैंने ऐसा नहीं किया है।

तो फिर इतनी बड़ी रकम एकाएक तुम्‍हारे पास कहाँ से आयी ?

मैंने—उसकी निगाहें कमरे के फर्श पर गड़ गयीं और वह यूँ बोली, जैसे कोई गुनाह कबूल कर रही हो—अपना बाईस सैक्‍टर वाला मकान बेच दिया है।

क्‍या !

मैंने अपना फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट का सारा रुपया निकलवा लिया है।

क्‍या !!

अपने सारे भारी जेवर मैंने बेच दिये हैं।

नीलम !

उनका अब फैशन भी नहीं रहा था, वे मेरे किसी काम के नहीं थे।

विमल अवाक् नीलम को देखता रहा।

लेकिन मैंने वो कुन्दन सैट, वो कड़े, वो नथ और वो चूड़ियाँ नहीं बेचीं, जो मुझे अपनी झूठमूठ की दुल्‍हन बनाने के लिए तुमने मुझे खरीदकर दिये थे। तुम्‍हारा दिया लाल चूड़ा और जरी की लाल साड़ी भी अभी तक मेरे पास सुरक्षित है।

विमल का दिल भर आया। न जाने क्‍यों उसका जी चाहने लगा कि वह नीलम को गले से लगा ले और जोर-जोर से रोने लगे। बड़ी मुश्‍किल से उसने अपने-आप पर जब्‍त किया।

अपना सब कुछ तुम मुझे दे रही हो ? एक ऐसे आदमी को दे रही हो, जो तुम्‍हारा कुछ नहीं लगता ? एक ऐसे इश्‍तिहारी मुजरिम को दे रही हो, जो आज पकड़ा जाये तो कल फाँसी पर लटका दिया जायेगा ?

तुमने खुद ही तो कहा है कि अगर तुम प्लास्‍टिक सर्जरी से नया चेहरा हासिल कर लोगे तो ऐसा नहीं होगा !

नीलम, तुमने सोचा है कि मेरी जिन्दगी बचाने के लिए तुम अपने भविष्‍य का सर्वनाश किये दे रही हो ! अपना सब कुछ मुझे दे दोगी तो तुम किस सहारे जिन्दा रहोगी ?

"मुझे नहीं मालूम कल क्‍या होगा ? लेकिन होगा तो वही जो ईश्‍‍वर की मर्जी होगी। जब मायाराम बावा अभिनेत्री बना देने का झाँसा देकर मुझे भगाकर लाया था और मेरा सब कुछ लूटकर मुझे एक काल-गर्ल बनने के लिए मजबूर बनाकर छोड़ गया था, तब भी मेरे पास क्‍या था ? तब क्‍या मैं इस घड़ी से ज्‍यादा बुरी हालत में थी

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