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Kavi Ke Man Se
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Ebook168 pages33 minutes

Kavi Ke Man Se

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इस कविता-शृंखला के बारे में

आधुनिक हिन्दी कविता की अलग-अलग कई सरणियाँ हमारे सामने हैं। यह कविता शृंखला हिन्दी कविता की उदारवादी धारा है। इस कविता-धारा के पहले सैट में सात कवियों की कविताओं एक-एक संग्रह प्रस्तुत है। विचारधारा मनुष्य के लिए है, मनुष्य विचारधारा के लिए नहीं। जीवन किसी भी विचारधारा से बड़ा है। उसे समझने की कोशिशें बार-बार होती रही हैं, आने वाले समय में भी होती रहेंगी। साहित्य को उदारवादी दृष्टिकोण की ज़रूरत है, जहाँ उन सबका स्वागत और सम्मान हो जो मनुष्यता और मानव-मूल्यों में विश्वास करते हैं। इस शृंखला में प्रस्तुत कवियों के पास अपने-अपने जीवन से अर्जित अनुभवों की समृद्ध संपदा है और उसे कविता में ढालने की कला की अदभुत क्षमता भी। जब यह प्रस्ताव मैंने इंडिया नेटबुक्स के स्वामी श्री संजीव कुमार, जो स्वयं एक कवि हैं, के सामने रखा तो उन्होंने इसके प्रकाशन का दायित्व लेने में तत्काल अपनी सहमति दी। आज प्रकाशन के बिना कहा हुआ रेखांकित नहीं होता। जब यही प्रस्ताव इस काव्य-शृंखला के पहले सैट में आने वाले कवियों के सामने रखा तो उन्होंने भी इसे सहर्ष स्वीकार किया और शीघ्र ही अपनी-अपनी पांडुलिपियाँ दे दीं। 'कवि के मन से' कविता-शृंखला में प्रस्तुत प्रत्येक कवि ने स्वयं अपनी-अपनी कविताओं का चुनाव किया और उसके साथ ही एक भूमिका प्रस्तुत की है। पहले सैट में सर्वश्री रामदरश मिश्र, प्रमोद त्रिवेदी, कुसुम अंसल, शशि सहगल, दिविक रमेश और संजीव कुमार के साथ ही इस काव्य-शृंखला के प्रस्तावक प्रताप सहगल के कविता संग्रह आपके सामने प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। आप इन कवियों की काव्य-यात्रा की झलक इन संग्रहों में पा सकते हैं। अगले सैट में हम कई और कवियों की कविताओं के साथ प्रस्तुत होंगे।

                                                      प्रताप सहगल

                                                      प्रस्तावक

LanguageEnglish
Release dateApr 30, 2022
ISBN9789393028778
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    Kavi Ke Man Se - INDIA NETBOOKS indianetbooks

    शशि सहगल

    इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड,

    इस कविता-शृंखला के बारे में

    आधुनिक हिन्दी कविता की अलग-अलग कई सरणियाँ हमारे सामने हैं। यह कविता शृंखला हिन्दी कविता की उदारवादी धारा है। इस कविता-धारा के पहले सैट में सात कवियों की कविताओं एक-एक संग्रह प्रस्तुत है। विचारधारा मनुष्य के लिए है, मनुष्य विचारधारा के लिए नहीं। जीवन किसी भी विचारधारा से बड़ा है। उसे समझने की कोशिशें बार-बार होती रही हैं, आने वाले समय में भी होती रहेंगी। साहित्य को उदारवादी दृष्टिकोण की ज़रूरत है, जहाँ उन सबका स्वागत और सम्मान हो जो मनुष्यता और मानव-मूल्यों में विश्वास करते हैं। इस शृंखला में प्रस्तुत कवियों के पास अपने-अपने जीवन से अर्जित अनुभवों की समृद्ध संपदा है और उसे कविता में ढालने की कला की अदभुत क्षमता भी। जब यह प्रस्ताव मैंने इंडिया नेटबुक्स के स्वामी श्री संजीव कुमार, जो स्वयं एक कवि हैं, के सामने रखा तो उन्होंने इसके प्रकाशन का दायित्व लेने में तत्काल अपनी सहमति दी। आज प्रकाशन के बिना कहा हुआ रेखांकित नहीं होता। जब यही प्रस्ताव इस काव्य-शृंखला के पहले सैट में आने वाले कवियों के सामने रखा तो उन्होंने भी इसे सहर्ष स्वीकार किया और शीघ्र ही अपनी-अपनी पांडुलिपियाँ दे दीं। 'कवि के मन से' कविता-शृंखला में प्रस्तुत प्रत्येक कवि ने स्वयं अपनी-अपनी कविताओं का चुनाव किया और उसके साथ ही एक भूमिका प्रस्तुत की है। पहले सैट में सर्वश्री रामदरश मिश्र, प्रमोद त्रिवेदी, कुसुम अंसल, शशि सहगल, दिविक रमेश और संजीव कुमार के साथ ही इस काव्य-शृंखला के प्रस्तावक प्रताप सहगल के कविता संग्रह आपके सामने प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। आप इन कवियों की काव्य-यात्रा की झलक इन संग्रहों में पा सकते हैं। अगले सैट में हम कई और कवियों की कविताओं के साथ प्रस्तुत होंगे।

    प्रताप सहगल

    प्रस्तावक

    मैं क्या लिखूँ?

    कविता मेरे जीवन में आकस्मिक घटना की तरह से अवतरित हुई है। कभी सोचा नहीं था कि मेरे अंदर कविता का ज्वार इस कदर समाया हुआ था कि जब कविता लिखने का मन हुआ तो कोई व्यवधान उसे रोक नहीं सका। इसीलिए आत्मकथ्य लिखना या भूमिका लिखवाना मुझे कुछ विचित्र सा लगता है। मैं असहज हो जाती हूँ। कविता क्या है? आत्मकथ्य ही तो है। और सोचा जाए तो गद्य भी क्या है? वह भी तो 'स्व' का शब्दों में मुखरित होना है। तब पाठक को कोई चश्मा क्यों दिया जाए कि वह हमारी रचना को उसी चश्मे से पढ़े। यह एक तरह से पाठक पर अविश्वास करना है। पाठक का हमारी रचना के साथ या तो तादात्म्य होगा या नहीं होगा। दोनों ही स्थितियों में रचना जहाँ है, वहीं रहेगी। जरा ठहर का सोचा जाए तो क्या रचना स्वयं में वह आईना नहीं होती, जिसमें पाठक लेखक के अंतर्मन में झाँक सके। उसके चेहरे के, सोच के, पीड़ा के और व्यक्तित्व के हर पहलू को आईने में प्रतिबिम्बित होता देख सके।

    कवि के मन से में मेरी लगभग सौ चुनी हुई कविताएँ इनमें घर की दुनिया भी है और बाहर भी दुनिया भी राजनीति के छलावे, मूल्यहीनता अथवा समझौतों की त्रासदी, सहज-असहज स्थितियाँ, विवशताएँ और मनोकामनाएँ सभी कुछ तो इन कविताओं की वस्तु है। तब आप ही बताइए कि मैं खुद क्या लिखूँ। आप समझिए यही मेरा आत्मकथ्य है, जो कहीं आपके आत्म से भी जुड़ जाता है।

    - शशि सहगल

    कविता लिखने की कोशिश में

    मैंने बहुत बार

    लिखनी चाही कविता

    संवेदना से अभिभूत होकर

    पर

    लिखने तक संवेदना

    चिथड़े चिथड़े होकर बिखर जाती है

    अब मैं

    उन बिखरे हुए चिथड़ों को

    समेट-सहेज कर

    रखती हूँ

    करती हूँ कोशिश

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