Kavi Ke Man Se
()
About this ebook
इस कविता-शृंखला के बारे में
आधुनिक हिन्दी कविता की अलग-अलग कई सरणियाँ हमारे सामने हैं। यह कविता शृंखला हिन्दी कविता की उदारवादी धारा है। इस कविता-धारा के पहले सैट में सात कवियों की कविताओं एक-एक संग्रह प्रस्तुत है। विचारधारा मनुष्य के लिए है, मनुष्य विचारधारा के लिए नहीं। जीवन किसी भी विचारधारा से बड़ा है। उसे समझने की कोशिशें बार-बार होती रही हैं, आने वाले समय में भी होती रहेंगी। साहित्य को उदारवादी दृष्टिकोण की ज़रूरत है, जहाँ उन सबका स्वागत और सम्मान हो जो मनुष्यता और मानव-मूल्यों में विश्वास करते हैं। इस शृंखला में प्रस्तुत कवियों के पास अपने-अपने जीवन से अर्जित अनुभवों की समृद्ध संपदा है और उसे कविता में ढालने की कला की अदभुत क्षमता भी। जब यह प्रस्ताव मैंने इंडिया नेटबुक्स के स्वामी श्री संजीव कुमार, जो स्वयं एक कवि हैं, के सामने रखा तो उन्होंने इसके प्रकाशन का दायित्व लेने में तत्काल अपनी सहमति दी। आज प्रकाशन के बिना कहा हुआ रेखांकित नहीं होता। जब यही प्रस्ताव इस काव्य-शृंखला के पहले सैट में आने वाले कवियों के सामने रखा तो उन्होंने भी इसे सहर्ष स्वीकार किया और शीघ्र ही अपनी-अपनी पांडुलिपियाँ दे दीं। 'कवि के मन से' कविता-शृंखला में प्रस्तुत प्रत्येक कवि ने स्वयं अपनी-अपनी कविताओं का चुनाव किया और उसके साथ ही एक भूमिका प्रस्तुत की है। पहले सैट में सर्वश्री रामदरश मिश्र, प्रमोद त्रिवेदी, कुसुम अंसल, शशि सहगल, दिविक रमेश और संजीव कुमार के साथ ही इस काव्य-शृंखला के प्रस्तावक प्रताप सहगल के कविता संग्रह आपके सामने प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। आप इन कवियों की काव्य-यात्रा की झलक इन संग्रहों में पा सकते हैं। अगले सैट में हम कई और कवियों की कविताओं के साथ प्रस्तुत होंगे।
प्रताप सहगल
प्रस्तावक
Related to Kavi Ke Man Se
Related ebooks
Kavi Ke Man Se Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDhoop Ki Machliayaan Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsताण्डव आकांक्षा: कविता संग्रह Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDozakhnama Rating: 4 out of 5 stars4/5Mep Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsАўтакамунікацы... Я Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsLes Poemes Philosophique (Volume 1): The Voices of Existentialism Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsआत्मा की स्वयं अभिव्यक्ति - Self Expression of Soul - Hindi Edition Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsBoundary Province of Distance Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMemory Mist Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsVernika Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsPoorer Than Glory: Are Emotions Just By-Products Of Life? Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsLes Poemes Philosophique (Volume 2): The Voices of the Heretics and Saints Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDaman Chakra Rating: 5 out of 5 stars5/5A Name for Every Leaf: Selected Poems, 1959-2015 Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsVayuputron Ki Shapath (The Oath of the Vayuputras) Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsEllipses Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsDo Log Rating: 4 out of 5 stars4/5Science of Mind Simplified Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSmiling Buds Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSamar jo Shesh abhi hai Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsIn that We Share Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsThorns of a Rose / جزب Rating: 5 out of 5 stars5/5Poems of Reflection: Pan Poetica Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsMetamorphoses: Poetic Discourses Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsमीमांसा: रेल्म ऑफ पोयम्स द्वारा- कविता संकलन Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsInner and Outer: A Collection of Inspirations in Poems Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsRising Sun Melting Mists: Knowledge of Self dispels Ignorance Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsSurmayi Sanjh - Ek Kavya Sangrah Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsHeart Warming Traces: Vol. 1 Tanka Rating: 0 out of 5 stars0 ratings
Poetry For You
Selected Poems Rating: 4 out of 5 stars4/5Bedtime Stories for Grown-ups Rating: 5 out of 5 stars5/5Poems That Make Grown Men Cry: 100 Men on the Words That Move Them Rating: 4 out of 5 stars4/5The Things We Don't Talk About Rating: 4 out of 5 stars4/5Love Her Wild: Poems Rating: 4 out of 5 stars4/5Beyond Thoughts: An Exploration Of Who We Are Beyond Our Minds Rating: 5 out of 5 stars5/5The Complete Poems of Emily Dickinson Rating: 4 out of 5 stars4/5Dante's Inferno: The Divine Comedy, Book One Rating: 4 out of 5 stars4/5Daily Stoic: A Daily Journal On Meditation, Stoicism, Wisdom and Philosophy to Improve Your Life Rating: 5 out of 5 stars5/5The Way Forward Rating: 5 out of 5 stars5/5You Better Be Lightning Rating: 4 out of 5 stars4/5Dream Work Rating: 4 out of 5 stars4/5Inward Rating: 4 out of 5 stars4/5The Complete Poems of John Keats (with an Introduction by Robert Bridges) Rating: 4 out of 5 stars4/5The Prophet Rating: 5 out of 5 stars5/5Twenty love poems and a song of despair Rating: 4 out of 5 stars4/5Edgar Allan Poe: The Complete Collection Rating: 5 out of 5 stars5/5The Complete Works Of Oscar Wilde Rating: 5 out of 5 stars5/5The Odyssey Rating: 0 out of 5 stars0 ratingsThe Road Not Taken and other Selected Poems Rating: 4 out of 5 stars4/5For colored girls who have considered suicide/When the rainbow is enuf Rating: 4 out of 5 stars4/5Beowulf Rating: 4 out of 5 stars4/5Tao Te Ching: A New English Version Rating: 5 out of 5 stars5/5Enough Rope: Poems Rating: 4 out of 5 stars4/5The Complete Poems of Emily Dickinson (ReadOn Classics) Rating: 4 out of 5 stars4/5The Iliad: The Fitzgerald Translation Rating: 4 out of 5 stars4/5The Odyssey: (The Stephen Mitchell Translation) Rating: 4 out of 5 stars4/5Gilgamesh: A New English Version Rating: 4 out of 5 stars4/5The Divine Comedy: Inferno, Purgatory, and Paradise Rating: 5 out of 5 stars5/5
Related categories
Reviews for Kavi Ke Man Se
0 ratings0 reviews
Book preview
Kavi Ke Man Se - Pratap Sehgal
प्रताप सहगल
इंडिया नेटबुक्स प्राइवेट लिमिटेड,
इस कविता-शृंखला के बारे में
आधुनिक हिन्दी कविता की अलग-अलग कई सरणियाँ हमारे सामने हैं। यह कविता शृंखला हिन्दी कविता की उदारवादी धारा है। इस कविता-धारा के पहले सैट में सात कवियों की कविताओं एक-एक संग्रह प्रस्तुत है। विचारधारा मनुष्य के लिए है, मनुष्य विचारधारा के लिए नहीं। जीवन किसी भी विचारधारा से बड़ा है। उसे समझने की कोशिशें बार-बार होती रही हैं, आने वाले समय में भी होती रहेंगी। साहित्य को उदारवादी दृष्टिकोण की ज़रूरत है, जहाँ उन सबका स्वागत और सम्मान हो जो मनुष्यता और मानव-मूल्यों में विश्वास करते हैं। इस शृंखला में प्रस्तुत कवियों के पास अपने-अपने जीवन से अर्जित अनुभवों की समृद्ध संपदा है और उसे कविता में ढालने की कला की अदभुत क्षमता भी। जब यह प्रस्ताव मैंने इंडिया नेटबुक्स के स्वामी श्री संजीव कुमार, जो स्वयं एक कवि हैं, के सामने रखा तो उन्होंने इसके प्रकाशन का दायित्व लेने में तत्काल अपनी सहमति दी। आज प्रकाशन के बिना कहा हुआ रेखांकित नहीं होता। जब यही प्रस्ताव इस काव्य-शृंखला के पहले सैट में आने वाले कवियों के सामने रखा तो उन्होंने भी इसे सहर्ष स्वीकार किया और शीघ्र ही अपनी-अपनी पांडुलिपियाँ दे दीं। 'कवि के मन से' कविता-शृंखला में प्रस्तुत प्रत्येक कवि ने स्वयं अपनी-अपनी कविताओं का चुनाव किया और उसके साथ ही एक भूमिका प्रस्तुत की है। पहले सैट में सर्वश्री रामदरश मिश्र, प्रमोद त्रिवेदी, कुसुम अंसल, शशि सहगल, दिविक रमेश और संजीव कुमार के साथ ही इस काव्य-शृंखला के प्रस्तावक प्रताप सहगल के कविता संग्रह आपके सामने प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है। आप इन कवियों की काव्य-यात्रा की झलक इन संग्रहों में पा सकते हैं। अगले सैट में हम कई और कवियों की कविताओं के साथ प्रस्तुत होंगे।
प्रताप सहगल
प्रस्तावक
लिखने का कारण प्रताप सहगल
बयान : एक
कभी-कभी सोने की प्रक्रिया में कहीं कुछ तेज कौंध जाता है। कौंध धीरे-धीरे तरतीब लेने लगती है और सिलसिलेवार एक के बाद एक गरम-गरम सलाखें दिमाग को दागने लगती हैं.... एक पीड़ा, एक तकलीफ़, एक छटपटाहट। छटपटाहट को को अस्पष्ट चित्र मिलते हैं....चित्रों को आकार, आकारों को शब्द, जुड़ते हुए शब्द-दर- शब्द रचना शक्ल अख्तियार करने लगती है, जैसे एक ताकत, पूरी ताकत के साथ एक हमलावर है और मैं पस्त लेटा हूँ। तकलीफ़ खत्म नहीं होती, आकार बढ़ते चले जाते है, साँसे तेज़ धौंकनी सी चलने लगती हैं और मैं घबराकर उठ बैठता हूँ... खुद को संभालने लगता हूँ। कुलम, कागज़ तलाशने लगता हूँ.... जब तक कुलम काग़ज़ हाथ में आए और दिमाग पर घिरे आकार उन पर छपने लगें, तभी दिमाग से हाथ तक की यात्रा में कहीं कुछ फिसल जाता है...कई अनुभव और मेरे सारे कारनामे आकर जुड़ने लगते हैं..... एक-दूसरे से गुत्थमगुत्था होते हुए। कभी आसमान, कभी पाताल, कभी देश, कभी दुनिया, कभी मैं कभी तुम कभी बीवी कभी माँ, कभी बाप, कभी दोस्त कभी दुश्मन, कभी परंपरा कभी विद्रोह न जाने एक साथ क्या-क्या उलझने लगता है। उस उलझाव में चेहरा तराशने में कितनी दिक्क्त होती है, इसका अहसास तेजी के साथ मन को कचोटने-काटने लगता है। इसी में कुछ फिसल जाता है। वो जो 'कुछ' फिसल गया था, उसे फिर से पकड़ने की कोशिश करता हूँ. पर वो पूरी तरह से पकड़ में कहाँ आता है। वो फिसला हुआ पूरी तरह से पकड़ में आ जाए.... काश! रचना की आवाज़ आकाश को चीर दे, पर वही हाथ नहीं आता। आता है तो बहुत कम। उसी फिसले हुए को ढूँढने और हासिल को शब्द देने की प्रक्रिया में रचना की शक्ल कुछ की कुछ हो जाती है। जैसी कौंधी थी, वैसी कभी नहीं। बस यही एक दिक्कत है, एक कमजोरी, एक परेशानी, केरा है। नतों से जो काही से जिससे मुक्त होने की इच्छा लगातार बनी रहती है और इसी बजह से कविता लिखी जाती है। कुछ जाता है, कुछ मुक्ति और नही सोध (1981)लिखने का कारण आखिर है क्या? आमंथन का आत्मशोधा आत्मनि या आत्मपीड़ना आत्मग्लानि या आत्मदया। आत्मा या आत्मचिंतन या आत्मदर्शना आत्ममुख या फिर आत्मविश्वास अंदर से बाहर की ओर जाना है या बाहर से अंदर की ओर लौटना सुर को पहचानना है खुद को रेखांकित करना, आनंद की उपलब्धि है आनंद तक पहुंचने की प्रक्रिया, लिखना पीड़ा है या पीड़ा से मुकि लिखने का कारण आखिर है क्या? हर लेखक ने दार्शनिक की मुद्रा अख्तियार कर इसे यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजने की कोशिश की है, पर यह प्रश्न है कि आज भी यक्ष प्रश्न है।
शायद यह कारण शायद वह हेतु! शायद साँस लेने की विवशता । शायद अकारण ही कुछ करते चले जाने की आदता फिर भी प्रश्न तो है, प्रश्न है जो सिर पर फैले अंतरिक्ष में त्रिशंकु की तरह लटका है, त्रिशूल की तरह वहन में धंसा है और त्रिभुज की रेखाओं की