Maa ke Anchal se
By Swati Sain
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About this ebook
इस किताब का लिखना मेरे लिए कई कारणों से भरपूर रहा। सबसे बड़ा कारण, मेरी माँ, जिन्होंने हमेशा चाहा कि मेरी कहानियों को एक किताब में प्रस्तुत किया जाए। किताब का शीर्षक 'माँ के आँचल से' है, क्योंकि यहाँ संगृहीत कहानियाँ और क़िस्से मेरी माँ की आस-पास की दुनिया से लिए गए हैं। यहाँ कुछ कारण और भी थे, जैसे कि कहानियाँ गूगल ड्राइव में दफ़न हो गई थीं, लेकिन एक दिन मुझे इन्हें एक साकार रूप में प्रस्तुत करने का मन हुआ। इस किताब में मैं आपको अपने आस-पास के क़िरदारों का परिचय दिला रही हूँ। ये कहानियाँ और क़िस्से शायद आपके लिए पुराने ना हों, लेकिन वे मेरी जैसी लग सकती हैं। अगर आप भी इसमें अपने क़रीब के क़िस्से देखते हैं, तो मुझे बताएं। इस किताब में संबंधों, कोणों, और परिस्थितियों के बारे में लिखा गया है, और यह मेरी तरह अनगढ़ है, बिना किसी तय किए फॉर्मेट के। मैंने बहुत सोचा, लेकिन यह उन सभी चीज़ों का एक संक्षेप है जो मेरे जीवन को रूपित करते हैं।
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Maa ke Anchal se - Swati Sain
माँ के आँचल से
स्वाति सैन
कॉपीराइट © 2024, स्वाति सैन
सभी अधिकार सुरक्षित हैं। इस प्रकाशन का कोई भी हिस्सा, सारित, या संबंधित किसी भी रूप में या किसी भी साधन या यंत्र से, सहित कि गई छवियों, रिकॉर्डिंग, या अन्य इलेक्ट्रॉनिक या मैकेनिकल तरीकों के बिना, प्रकाशक की पूर्व लिखित अनुमति के बिना पुनर्निर्मित, प्रसारित या प्रसारित नहीं किया जा सकता है, केवल अधिक संक्षेप में आलेखों और कृतिक समीक्षाओं में समाहित उद्धृतियों के मामले में, और कॉपीराइट कानून द्वारा अनुमति दी गई कुछ अन्य गैर-वाणिज्यिक उपयोगों के मामले में, उपयोग किया जा सकता है। अनुमति के लिए अनुरोध करने के लिए, प्रकाशक को नीचे पते पर ध्यान: अनुमतियां समन्वयक
के साथ पत्र लिखें। यह एक काल्पनिक काम है। नाम, पात्र, स्थान, और घटनाएँ या तो लेखक की कल्पना का उत्पाद हैं या काल्पनिक रूप से प्रयुक्त की गई हैं। यदि किसी व्यक्ति, जीवंत या मृत, घटनाएँ, या स्थानों से कोई समानता है, तो यह पूरी तरह संयोजनात्मक है।
ISBN: 978-93-95083-93-5 (पेपरबैक)
पहला संस्करण: मार्च 2024
डिज़ाइन: ज्ञानवृक्ष पब्लिकेशन्स
कवर फोटोग्राफी: स्वाति सैन
प्रूफरीडिंग: परितोष विश्वास
ज्ञानवृक्ष पब्लिकेशन्स
gyanvrikshapublications@gmail.com
प्रिंट किया गया: बुक्सक्लब इंडिया
भारत में प्रिंट किया गया है
समर्पण
माँ को,
जिनसे शुरुआत हुई है सम्बन्धों की
और मेरे अस्तित्व की
मेरी बात
इस किताब को लिखने के एक नहीं कई कारण थे। सबसे ज़रूरी और बड़ा कारण, मेरी माँ। मेरी माँ हमेशा से चाहती थीं कि मेरी कहानियों को, मेरे क़िस्सों को एक किताब का रूप दिया जाए। इसलिए किताब का शीर्षक भी माँ के आँचल से
तय किया गया। माँ के आँचल से
इसलिए क्यूँकि इस किताब में संगृहीत कहानियाँ और क़िस्से जिन क़िरदारों को समेटे हुए हैं वे मुझे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मेरी माँ की आस-पास की दुनिया से ही मिले हैं।
कई कारणों में से एक कारण यह भी रहा कि यह कहानियाँ और क़िस्से गूगल ड्राइव के किसी फ़ोल्डर में लगभग दफ़न से हो चुके थे। एक अरसे बाद जी चाहा कि इन्हें एक किताब की शक्ल दे दी जाए। अतः इस किताब के रूप में मैं आपको अपने आस-पास के क़िरदार आपके हवाले करती हूँ। इन कहानियों और क़िस्सों में शायद आपको कोई नयापन ना दिखे, क्यूँकि यह कहानियाँ और क़िस्से अपने से लगते हैं। अगर यह कहानियाँ और क़िस्से आप भी अपने क़रीब देखते और पाते हैं तो मुझे मेल करके ज़रूर बताइएगा।
एक बात और, मैंने यह किताब लिखी है सम्बन्धों के बिम्बों पर, कुछ कोणों पर, कुछ परिस्थितियों पर। यह किताब अनगढ़ सी है बिल्कुल मेरे जैसी। कोई तय फॉर्मेट नहीं है। संशय में थी किस तरह से यह किताब बनाऊँ, किस तरह से इसे सँवारूँ, किस तरह से समेटूँ अपनी कहानियाँ, क़िस्से, संवाद और ना जाने क्या क्या। जिस तरह नदी लेती हैं करवटें ज़मीन पर उसी तरह यह क़िस्से करवटें ले रहे हैं इन पन्नों पर। सोचती बहुत ज़्यादा हूँ, लिखती हूँ उसका अंश मात्र। उसी अंश का एक झोंका आप सबके लिए.
.
अनुक्रमांक
समर्पण
मेरी बात
ट्रैफ़िक जाम
यादों की चुस्कियाँ
राशि
मासी जी
यादों के लम्हें
फ़र्स्ट डील
फ़र्स्ट ऑफ़ मे
मेरी नानी
लिपस्टिक के निशान
यादशहर
लक्की
पतीला
धर्म
खाली टोकरी
चार बहुएँ
फ़ोन
केसर वाली चाय
भ्रम
याद
उसे शायद पहाड़ पसंद थे...
चार्म
प्रेम और यात्राएँ
सोचना
एक खत उसकी प्रेमिका के नाम
हॉर्मोन हाइजैक
लगाव
कुछ विरह, कुछ इंतज़ार
प्रेम मंदिर
कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ, दिल में मेरे आज क्या है...
साँस आती है साँस जाती है...
आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर जबान पर...
छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा...
रिएक्शन्स इन लव
देखा एक ख़्वाब तो ये सिलसिले हुए...
जब चाहूँ तुझे मिल तो नहीं सकता लेकिन...
वादा किया जो निभाना पड़ेगा
चिट्ठी
कहाँ हो?
अपेक्षाएँ
थोड़ा आगे...
इम्तिहान
क्या तुमने किसी से प्यार किया?
दिल्ली
क्रिया या कर्म
शिकायतें
कहानी
नोस्टेलजिआ!
टूटे हुए दिल
ज़ेहनी बकवास है यह सब!
ट्रैफ़िक जाम
आज रेलवे स्टेशन पर इतनी भीड़ थी मानो सारे शहर को एक जगह से दूसरी जगह सिर्फ़ और सिर्फ़ ट्रेन से ही जाना हो। अपने भारी-भरकम बैग को उसके छोटे-छोटे टायरों से घसीटते हुए मैं जैसे-तैसे स्टेशन की भीड़ को चीरते हुए ऑटो स्टैंड पर पहुँची। शाम हो चली थी और मुझे घर पहुँचने की जल्दी थी। इतनी थक चुकी थी कि बस घर जाकर थोड़ी देर सो जाना चाहती थी। ट्रेन का सफ़र मुझे हमेशा से ही थका देता है। ऑटो स्टैंड पर खड़े एक ऑटो चालक ने पूछा – मैम! कहाँ जाना है?
मैंने अपना ऐड्रेस बताया और ऑटो में अपना सामान लेकर बैठ गई। पहली बार मैंने ऑटो वाले से किराए को लेकर बहस नहीं की। मुझमें शायद इतनी एनर्जी ही नहीं थी कि दस-बीस रुपयों के लिए अपना सिर खपाऊँ। मेरी तरह शायद सूरज भी थक चुका था। ऑटो से एक झलक देखने को मिली। उस एक झलक में भी उसकी लाली आँखों में चित्र की तरह बस गई। सुर्ख़ सिंदूरी। जैसे लकड़ी के बहुत देर तक जल जाने के बाद जो अंगारे बन जाते हैं, वही चमक लेकर वह डूब जाना चाहता है। ऑटो ने अपनी एक रफ़्तार पकड़ ली।
मुझे शहर के एक कोने से दूसरे कोने की ओर जाना था। आजकल के शहर इतने बड़े हो चुके हैं कि पास वाले शहर जाने में कितना वक़्त लगता है, उससे कहीं ज़्यादा शहर के एक कोने से दूसरे कोने में जाने में लग जाता है। थकान से भरे सिर को ऑटो की बैक सीट से सटाकर मैंने आँखें मूँद ली। ऑटो में झूलते–झूलते अर्धनिद्रा में थी शायद कि अचानक हॉर्न की आवाज़ से आँखें खुल गईं। देखा तो ट्रैफ़िक जाम। ऑटो की गति सर्दियों के गिरते तापमान की तरह कम हो गई। एक किलोमीटर का रास्ता हमने एक घंटे में पूरा किया और अभी तो मेरी मंज़िल चौदह किलोमीटर दूर थी। गाड़ियों के धुएँ और उनकी आवाज़ मुझे अब खलने लगी थी। जब मालूम है कि आगे तक जाम लगा है, हम आगे नहीं बढ़ सकते, फिर भी हॉर्न बजा-बजाकर कौन से युद्ध का ऐलान करना चाहते हैं। यह सब सोचते हुए और थोड़ा लोगों के कॉमन सेंस पर गुस्सा करते हुए हम थोड़ा और आगे बढ़े, और जाम की वजह मालूम हुई। बारात
। एक बारात बड़ी ही धूमधाम से निकल रही थी बिना इस परवाह के कि उनकी वजह से लोग जाम में फँसे हैं। यह गुस्से की वजह बन सकती थी, लेकिन बारात को देखकर मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गई। भारत में लोगों को क्रिकेट और शादी का बहुत क्रेज़ है और क्यूँ ना हो? यह दोनों ही उत्साह से भर देने वाली चीज़ें हैं। यह बारात की वजह से जाम में फँसना मेरे लिए नया नहीं था।
दो साल पहले यूँ ही एक बारात की वजह से हम ट्रैफ़िक में फँस गए थे। यहाँ हम
मैं और ऑटो वाला नहीं, मैं और ईशान थे। मैं ईशान से ऐसी ही एक शादी में मिली थी। मेरे घर के सामने वाले घर में गुड़िया दी की शादी में। नज़दीकी पड़ोस होने के कारण मैंने उनका हर फंक्शन अटैंड किया। मैं और ईशान यूँ तो कई बार टकराए लेकिन मुस्कान के अलावा कोई अल्फ़ाज़ नहीं थे। ईशान गुड़िया दी का दूर का भाई था। शादी की भाग–दौड़ में या तो हम मिलते नहीं और अगर मिलते तो काम में बिज़ी हो जाते। शादी का दिन नज़दीक आ गया। कल गुड़िया दी की डोली उठ जाएगी और आँगन सूना हो जाएगा। सब यही बातें कर रहे थे। आज मेहंदी की रस्म थी। सब लड़कियाँ-औरतें मेहंदी लगवाने में बिज़ी थी। मेहंदी लगवा कर मैं गुड़िया दी के पास आकर बैठ गई। दुल्हन की मेहंदी तो हमेशा से ही स्पेशल रही है। बहुत ही सुंदर मेहंदी लगाई थी। ईशान ने आकर दी से बड़े स्नेह से बोला - अब तुझे कुछ खाना पीना हो तो मुझे बता देना।
मुझ पर नज़र पड़ते हुए उसने पूछा - हाय! कैसी हो?
बीते कुछ दिनों में हम एक-दूसरे को पहचानने तो लगे ही थे, बस