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आँसुओं के बीच (मार्मिक कहानियाँ)
आँसुओं के बीच (मार्मिक कहानियाँ)
आँसुओं के बीच (मार्मिक कहानियाँ)
Ebook328 pages2 hours

आँसुओं के बीच (मार्मिक कहानियाँ)

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About this ebook

वैसे तो आज की इस इंटरनेट की दुनिया में पढ़ने का शौक लोगो में बहुत तेज़ी से घटने लगा है क्योंकि लोग फिल्में देखना या कहानियां सुनना ज्यादा पसंद करने लगे हैं, पर ऐसे लोग उस रस से वंचित रह जाते हैं जो किसी कहानी या उपन्यास को पढ़ने से मिलता है.

आप जब किसी कहानी को पढ़ रहे होते हैं तो कुछ समय के लिए आप अपने आप को भूलकर उस कहानी का हिस्सा हो जाते हैं और कहानी के पात्रों में वो खोजने की कोशिश करने लगते हैं जो आपके जीवन में होता है या जिसके बारे में आपने किसी से सुना होता है. किसी भी कहानी को पढ़ने का पूरा मजा तभी आता है जब उसको रुक रुक कर समझ कर, कुछ सोचकर, धीरे धीरे पढ़ा जाए।

कहानी सिर्फ मनोरंजन का एक साधन नहीं होती है; कहानी एक शिक्षक भी होती है; कहानी समाज का दर्पण भी होती है; कहानी आपको यादों में ले जाने की योग्यता भी रखती है; कहानी आपसे बातें भी करती है; कहानी आपको उस समय साथ देती है जब आप बिलकुल अकेले होते हैं; कहानी आपको बहुत सी ऐसी बातें बताती हैं जिनके बारे में आप शायद अनभिज्ञ ही होते हैं!

तो दोस्तों, हमारी इन कहानियों में आपको जीवन के इतने रंग मिलेंगे जितने शायद आपने कभी सोचे भी ना हों। तो लीजिये, तैयार हो जाइये और हमारी इन कहानियों की यात्रा पर कहानियों के पात्रों के साथ साथ चलिये!

शुभकामना

LanguageEnglish
PublisherRaja Sharma
Release dateFeb 27, 2023
ISBN9798215066683
आँसुओं के बीच (मार्मिक कहानियाँ)

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    आँसुओं के बीच (मार्मिक कहानियाँ) - टी सिंह

    दो शब्द

    वैसे तो आज की इस इंटरनेट की दुनिया में पढ़ने का शौक लोगो में बहुत तेज़ी से घटने लगा है क्योंकि लोग फिल्में देखना या कहानियां सुनना ज्यादा पसंद करने लगे हैं, पर ऐसे लोग उस रस से वंचित रह जाते हैं जो किसी कहानी या उपन्यास को पढ़ने से मिलता है.

    आप जब किसी कहानी को पढ़ रहे होते हैं तो कुछ समय के लिए आप अपने आप को भूलकर उस कहानी का हिस्सा हो जाते हैं और कहानी के पात्रों में वो खोजने की कोशिश करने लगते हैं जो आपके जीवन में होता है या जिसके बारे में आपने किसी से सुना होता है. किसी भी कहानी को पढ़ने का पूरा मजा तभी आता है जब उसको रुक रुक कर समझ कर, कुछ सोचकर, धीरे धीरे पढ़ा जाए।

    कहानी सिर्फ मनोरंजन का एक साधन नहीं होती है; कहानी एक शिक्षक भी होती है; कहानी समाज का दर्पण भी होती है; कहानी आपको यादों में ले जाने की योग्यता भी रखती है; कहानी आपसे बातें भी करती है; कहानी आपको उस समय साथ देती है जब आप बिलकुल अकेले होते हैं; कहानी आपको बहुत सी ऐसी बातें बताती हैं जिनके बारे में आप शायद अनभिज्ञ ही होते हैं!

    तो दोस्तों, हमारी इन कहानियों में आपको जीवन के इतने रंग मिलेंगे जितने शायद आपने कभी सोचे भी ना हों। तो लीजिये, तैयार हो जाइये और हमारी इन कहानियों की यात्रा पर कहानियों के पात्रों के साथ साथ चलिये!

    शुभकामना

    Chapter 2

    मैं ही जानती हूँ मैं क्या हूँ

    उस रात जब उसका हवाई जहाज भारत में उतरा, मेरा दिल ख़ुशी से उछल रहा था। मैं उसके आगमन से इतना उत्तेजित था के मैं उसको एयरपोर्ट से लेने के लिए समय से तीन घंटे पहले ही पहुँच गया था!

    तीन घंटे का समय यूं बीत गया जैसे के सिर्फ तीन मिनट ही थे। मैं धूम्रपान करना चाहता था परन्तु मैने ऐसा नहीं किया क्योंकि मेरे मुंह से दुर्गन्ध आने लगती। और फिर मेरे पास च्युइंग गम भी नहीं था चबाने के लिए।

    तभी थाई एयरवेज की उड़ान के आगमन की सूचना दी गयी। मेरी आंखें सिर्फ आगमन गेट पर लगी हुई थी। सभी यात्री आने लगे थे पर सिर्फ वो ही नहीं दिखी।

    मैं लाउन्ज में एक कोने की कुर्सी पर बैठ गया। मेरी आँखों में नींद अभी भी थी। मैंने घड़ी देखी। रात के एक बजे से ऊपर का समय हो गया था।

    आखिर नीली आँखों वाली वो सुंदरी आ ही गयी। कुछ सेकंड के लिए जैसे मेरा दिल ही रुक गया।

    लम्बी, सुन्दरपतली, हिरणी जैसी चाल वाली वो बहुत ही खूबसूरत थी जिसने काली जींस और नीली जींस की जैकेट पहने हुए थे।

    उसकी सलेटी रंग की टीशर्ट में खूबसूरत चित्र बना हुआ था प्रकृति का।

    हलके रंग की लिपिस्टिक और आँखों में काजल उसको और भी खूबसूरत बना रहे थे। उसकी काली ऊंची ऐड़ी के सैंडल उसके कपड़ों के साथ मेल खा रहे थे।

    मैं एकदम घबरा गया क्योंकि मैंने खुद को कभी भी ऐसी परिस्थिति में नहीं पाया था। मैंने उससे उसकी ट्राली ले ली और कहा,यात्रा कैसी रही?

    उसने अपने भूरे लम्बे बालों को चेहरे से पीछे हटाकर कुछ कहा लेकिन मुझे सुनाई नहीं दिया। मैंने बाहर आकर उसके लिए कार का दरवाजा खोला।और उसको आराम से सीट पर बैठा दिया।

    मुझे लगा के मैं दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत के साथ बैठा था।।उस ठंडी रात को मैं अपनी कार को कलकत्ता के नेताजी सुभाषचंद्र एयरपोर्ट से दूर ले जाने लगा।

    वो अपने दो छोटे बच्चो को नौकरानी के साथ छोड़कर भारी मन से सिंगापुर से आयी थी।

    भारत में कलकत्ता में उसके पिताजी जीवन से संघर्ष कर रहे थे और डॉक्टर उनको दवाइयों के साथ दर्द कम करने वाली गोलियां देकर ज़िंदा रखे हुए थे। उन्होंने खाना खाना भी लगभग बंद ही कर दिया था।

    कुछ ही देर में हम उसके घर पहुँच गए। सुबह के सात बजे का समय हो गया था।रास्ते में वो कुछ बोलती रही लेकिन मेरी रूचि वो क्या कह रही थी में नहीं थी, मेरी रूचि बस उसकी मीठी आवाज में थी।

    घर जाने की बजाये उसने मुझे अस्पताल ही चलने को कहा। वो अपनी मुस्कान के पीछे किसी बड़े दर्द या दुःख को छुपा रही थी। उसकी मम्मी ने मुस्कुराकर हमारा स्वागत किया।

    उस मोनिका नाम की औरत ने तुरंत ही अपने पिताजी के अस्पताल के कमरे में दाखिल होकर अपने बापू से पूछा,बाबा, आप कैसे हैं?

    उसके बापू सिर्फ एक हड्डियों का ढांचा ही दिख रहे थे। उनके पास छोटे से मेज पर बहुत सी दवाइयों का ढेर लगा हुआ था।शयद वो अब किसी को पहचान भी नहीं रहे थे।

    मोनिका की आँखों से आंसू गिरने लगे। वो अपनी माँ के गले लग गयी। उसकी माँ ने कहा,अब तो बस प्रार्थना करो के तुम्हारे बापू शांति से इस दुनिया से जाएँ!

    मोनिका एक कुर्सी पर बैठकर अपने पति, बच्चोंदफ्तर, बॉस, एयरपोर्ट, यात्रा, अस्पताल तक आना और माँ के बारे में श्रंखला में सोचने लगी।

    उसके पिताजी के साथ अब जो होने वाला था वो तो होना ही था पर मोनिका को अपने परिवार के पास सिंगापुर वापिस जाना था।

    उसको चार दिन के बाद हर हाल में वापिस जाना ही था। उसके साथ अगले चार दिन बिताने का सौभाग्य मेरा नहीं था।

    आखिर उसके जाने का दिन आ गया। कोई भी उसको एयरपोर्ट छोड़ने नहीं आया था। वो सिंगापुर की फ्लाइट में बैठने का इंतजार कर रही थी के तभी उसके भाई का फ़ोन आया,डैडी अब नहीं रहे!

    उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे और उसने इशारा करके मुझे अपने पास बुला लिया। उसने धीरे से मुझे कहा,मुझे तो अब वापिस सिंगापुर जाना होगा लेकिन तुम मेरी तरफ से फूल खरीदकर मेरे घर ले जाना और डैडी की अर्थी पर रख देना।

    उस समय तक मैं सोच रहा था के वो एक बहुत सुन्दर जीवन जी रही थी। तभी उसने मुझसे कहा,अभी जहाज उड़ने में दो घंटे बाकी हैं आओ कॉफ़ी पी लेते हैं।

    मैं उसके सामान की ट्राली को खींचते हुए एयरपोर्ट के कॉफ़ी हाउस में चला गया। हमने बचपन साथ बिताया था लेकिन बड़ी होने के बाद वो ज्यादा ही पढ़ लिख गयी थी और मैं अपने डैडी की मोटर पार्ट्स की दुकान संभालने लगा था। मैं उसको बचपन से ही चाहता था लेकिन मैंने कभी भी उसको ये नहीं बताया था।

    कॉफ़ी हाउस में जब हम बैठ गए उसने मेरी आँखों में देखकर कहा,"रमन, तुम सोच रहे होंगे के मेरा जीवन बहुत सुन्दर है। हैं के नहीं? लेकिन ऐसा नहीं है। मैंने अपने विदेशी पति से शादी करने के लिए भारत के हर रिश्ते को ठुकरा दिया था।

    आज आठ वर्षों के बाद मैं आयी भी तो उस समय जब डैडी इस दुनिया से चले गए ।लेकिन तुम नहीं जानते के मैं कैसा नरक सा जीवन बिता रही हूँ सिंगापुर में।

    हालाँकि मेरे दो बच्चे है। बेटा चार साल का और बेटी पांच साल की। लेकिन तुम नहीं जानते के मेरा विदेशी पति एक नंबर का अय्याश है। ये बात मुझे सिंगापुर पहुँचते ही मालूम चल गयी थी। तुम नहीं जानते लेकिन मैं एक सिंगापुर की ऊंची सोसाइटी में एक बहुत महंगी वैश्या हूँ और मैं एक एक रात के तीन हज़ार डॉलर लेती हूँ।

    मेरा पति मुझे हमेशा उसकी नज़रों में रखता था। उसने सिंगापुर पहुँचते ही मेरे सब कागज़ कब्ज़े में ले लिए थे।मैं तो ये भी नहीं जानती के मेरे बच्चे मेरे पति के ही हैं या किसी और ग्राहक के। इस बार उसने मुझे वापिस आने दिया लेकिन मेरे बच्चों को अपने पास जमानत के तौर पर रख लिया ताकि मैं वापिस सिंगापुर चली जाऊं बच्चों की खातिर।

    रमन, मैं इसलिए अब किसी से बात नहीं करती और पिछले चार दिनों में मैंने तुम्हारे साथ भी अच्छे से बात नहीं की। मैं अब एक शरीर बेचने वाली महंगी औरत हूँ। मैं कैसे कह सकती थी किसी को के मैं सिंगापुर में क्या करती थी। मेरे मम्मी डैडी बस इसीलिए खुश रहते थे क्योंकि मैं उनको बहुत पैसे भेज देती थी।

    अब तुम मेरे राज को जानते हो ।मुझे अपने बच्चो की खातिर वापिस जाना ही होगा। मेरा मन कई बार किया के मैं तुमसे कहूँ के रमन मुझे यहीं रोक लो लेकिन एक वैश्या होने के कारण मेरी हिम्मत ही नहीं हुई तुम्हारे जैसे अच्छे इंसान को ये कहने की।"

    उसने कॉफ़ी समाप्त की और अपनी ट्राली को खींचती हुई जाने लगी लेकिन फिर मुड़कर बोली,लेकिन मैं हमेशा तुम्हारी दोस्त रहूंगी। अगर कभी सिंगापुर आओ तो सबसे पहले मुझे फ़ोन करना। मेरा एक बँगला समुद्र के किनारे भी है तुम वहाँ जितने दिन चाहोगे रह सकते हो। और हाँ ये फूलों के पैसे, उसने मेरे हाथ में जबरदस्ती बहुत से डॉलर थमा दिए और अपने आँसुओँ को पोंछती हुई सुरक्षा गेट की तरफ चल दी।

    मैं सोचने लगा के क्या वास्तव में ही जीवन सुन्दर था। वो दूर होती गयी और मैं खुद को आंसू बहाने से रोक नहीं सका!

    Chapter 3

    आ अब यहाँ से चलें

    कृष्णा ने पीछे चलते चलते, उसको आवाज लगाकर कहा,अरे प्रमिला, तुम इतनी तेज तेज क्यों चल रही हो? मेरे लिए रुको तो सही! मैं भी तुम्हारे साथ चलना चाहता हूँ!

    कृष्णा की ये बात सुनकर प्रमिला कुछ धीमी हो गयी, और फिर उसने पीछे मुड़कर पीछे आ रहे अपने पति की तरफ देखकर कुछ मुस्कुराते हुए लेकिन थोड़ा सा शर्माते हुए कहा,कृष्णा, अब तुमपर उम्र भारी पड़ने लगी है। बूढ़े हो गए हो!

    कृष्णा हंस दिया और फिर बोला,ये बात तो ठीक है तुम्हारी,बूढ़ा तो हो गया हूँ, और फिर तुमसे दस बरस बड़ा भी हूँ!"

    प्रमिला उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा दी और फिर उसने कृष्णा का हाथ अपने हाथ में ले लिया और उसके साथ साथ ही चलने लगी।

    प्रमिला?

    हम्म्म?

    क्या हमने ज्यादा जल्दी नहीं कर दी है?

    क्या? किस बात की जल्दी? उनको, उनके घर, और उनकी दुनिया को छोड़ने में? प्रमिला ने कृष्णा की आँखों में देखकर कहा।

    आखिर हैं तो वो हमारा बेटा, बहु, और हमारा पोता ही! उनको हमारी जरूरत है, कृष्णा ने कहा।

    "नहीं नहीं, कृष्णा! अब उनको जरूरत नहीं है हमारी! देखो, मेरे प्यारे पति! वो अब बड़े हो गए हैं कोई घुटनो के बल चलने वाले बच्चे नहीं हैं।

    वो अपना ख़याल खुद रख सकते हैं और वो हमारे पोते का भी ख़याल रख सकते है!" प्रमिला ने कहा।

    लेकिन मेरी जान। अपने बेटे के माता पिता के रूप में हम।

    "देखो कृष्णा। हमने अपनी सभी जिम्मेदारियां पूरी कर दी है और अपनी क्षमता और योग्यता से भी अधिक किया है बेटे के लिए। उसको शानदार शिक्षा दिलवाई, उसकी सेहत का ख़याल रखा, उसको दुनिया का सामना करने के योग्य बनाया।

    अब हमारा बेटा उच्च पद पर है और कई लाख रूपए प्रति माह तनख्वाह लेता है। अच्छी लड़की से हमने उसकी शादी की है। अब उसका बेटा भी है।

    हमारी बहु पढ़ी लिखी है और ज्यादा इच्छायें नहीं हैं उसकी! बहु हमारे बेटे की खूब देखभाल करती है। अब हमारा काम समाप्त हो गया है!"

    कृष्णा ने प्रमिला को रोकते हुए कहा,सिर्फ इसलिए के हमारे बीच में कुछ गलतफहमिया पैदा हो गयी थी हमें क्या घर छोड़ देना चाहिए।

    "नहीं नहीं, कृष्णा।ऐसा नहीं है! गलतफहमियां तो किसी भी परिवार में हो सकती हैं।

    हमारे बेटे और बहु ने हमारा कभी भी अपमान नहीं किया है।वो दोनों तो हमें बहुत प्रेम करते है," प्रमिला ने कहा।

    तो फिर?

    बात सिर्फ इतनी सी है, कृष्णा, के अब हमारा समय पूरा हो गया है। अब हमें आगे बढ़ना है और उनको उनका जीवन उनकी इच्छा के अनुसार जीने के लिए छोड़ना है।

    शायद तुम ठीक ही कह रही हो, कृष्णा ने कहा, एक तरह से ना चाहते हुए हार मानते हुए!

    मैं हमेशा की तरह ही ठीक कह रही हूँ, प्रमिला ने मुस्कुरा कर कहा।

    दोनों आगे बढ़ने लगे हाथ में हाथ थामे हुए। तभी कृष्णा ने पूछा,लेकिन मेरी जान। हम जा कहाँ रहे है?

    प्रमिला ने मुस्कुराकर कहा,अब तो सारी दुनिया ही हमारी है, है के नहीं?

    निश्चय ही! लेकिन फिर भी मैं ये जानना चाहता हूँ के हम कहाँ जा रहे है, कृष्णा ने जिद करते हुए कहा।

    आपको मुझपर विश्वास हैं ना? कोई शंका तो नहीं है ना? वो फिर से मुस्कुराई।

    निश्चय ही मुझे तुमपर पूरा विश्वास है, मेरी जान!

    तो फिर उस विश्वास को कायम रखो और चलते रहो!

    ठीक है जैसा तुम कहो, मेरी जान!

    अब बेहतर है, प्रमिला फिर से मुस्कुरा दी।

    दोनों हाथ थामे हुए कुछ देर फिर चलते रहे। कुछ देर बाद एक जगह पर रुक गए।

    एक छोटे से बंगले के ड्राइंग रूम में बहुत से लोग इकठ्ठा हुए थे। घर के सामने बगीचे में एक शामियाना लगाया गया था।

    बहुत से लोग स्टील की बंद खुलने वाली कुर्सियों पर बैठे थे और धीमी आवाजों में बातें कर रहे थे।

    घर के अंदर से जोर जोर से रोने की आवाजें आ रही थी। रमन और श्यामा अपने दो बरस के बच्चे के साथ बैठे थे।

    उनके सामने फर्श पर दो शरीर पड़े थे, एक बूढ़ा आदमी और एक बूढी औरत। एक पुजारी मन्त्र पढ़ रहा था।

    एक कोने में दो रिश्तेदार एक दूसरे से बातें कर रहे थे,"माँ या बाप में से किसी एक को भी खो देना कितना दुखदायी होता है। लेकिन दोनों को साथ साथ ही

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