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मंत्र साधना और गुरु की आवश्यकता
मंत्र साधना और गुरु की आवश्यकता
मंत्र साधना और गुरु की आवश्यकता
Ebook78 pages25 minutes

मंत्र साधना और गुरु की आवश्यकता

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About this ebook

गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-
गुकारस्त्वंधकारश्च रुकारस्तेज उच्यते ।
अज्ञान तारकं ब्रह्‌म गुरुरेव न संशयः॥
गुरु शब्द के पहले अक्षर ‘गु' का अर्थ है, अंधकार जिसमें शिष्य डूबा हुआ है, और ‘रु' का अर्थ है, तेज या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक होता है, और ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु साक्षात ब्रह्‌म के तुल्य होता है ।

Languageहिन्दी
Release dateJul 3, 2020
ISBN9781005620745
मंत्र साधना और गुरु की आवश्यकता
Author

S Anil Shekhar

Just a common man....

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    मंत्र साधना और गुरु की आवश्यकता - S Anil Shekhar

    समर्पण

    पूज्यपाद सद्गुरुदेव डॉ.नारायण दत्त श्रीमाली जी

    (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी )

    मैं एक सामान्य सा व्यक्ति था ।

    जो अपने जीवन के सफर में विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से गुजरता हुआ विभिन्न प्रकार के अवरोधों को पार करता हुआ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था ।

    जीवन के एक मोड़ पर मुझे मेरे गुरू डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी मिले ....

    जब एक समर्थ गुरु आपको मिलता है तो वह आपके जीवन की परिभाषा बदल देता है ......

    वह आपके व्यक्तित्व को बदल देता है ......

    वह आपके जीने का तरीका बदल देता है ......

    कुल मिलाकर वह आपको औरों से अलग बना देता है ......

    गुरूदेव ज्ञान के अथाह सागर थे ।

    उस सागर में से कुछ बूँदे प्राप्त करने का सौभाग्य मुझे भी मिला ।

    इस ग्रंथ में लिखे हुए शब्दों में जो भी आपको अच्छा लगे ...

    वह उन्हीं का आशीर्वाद है ....

    जो भी अस्पष्टता, न्यूनता या त्रुटि लगे ! वह मेरी अक्षमता है ।

    गुरु के विषय पर प्रकाश डालने के लिए यह शब्द पुष्प गुरु चरणों में समर्पित करता हुआ आप लोगों के लिए प्रस्तुत है ।

    इसमे दी गयी विधियाँ प्रारम्भिक साधकों के लिए है जो सामान्य गृहस्थ हैं । इसलिए विधियों को सरलतम रखा गया है ।

    अनुभवी साधक अपने गुरु के निर्देशनुसार साधनाएं करें ।

    सादर गुरु चरणों मे समर्पित

    अनिल शेखर

    03 जुलाई 2020

    एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है

    एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,

    शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....

    रास्ते में पडा !

    लोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थर !

    जब योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है, तो वह उसे तराशकर ,अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुये, इस योग्य बना देता है, कि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है ।

    करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं......

    रास्ते के

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