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Shabar Mantra (शाबर मंत्र : दुर्लभ, दुष्प्राप्य, गोपनीय मंत्रों पर अनमोल जानकारी)
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Ebook363 pages2 hours

Shabar Mantra (शाबर मंत्र : दुर्लभ, दुष्प्राप्य, गोपनीय मंत्रों पर अनमोल जानकारी)

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About this ebook

Shabar Mantra is the most popular and most accepted Mantra in the world, which is practiced in different languages in different parts of the world. What is Shabar mantra? What is the uniqueness of Shabar Mantras? When did these mantras begin to prevail? You will get the right answers to many such unresolved questions for the first time through this book. Enlightened readers often complain that mantras are not effective even after taking many measures. In this context, the mentality of 'seekers who pronounce' Mantras and about disciple without guru 'has been blocked'. The mantra Sadhana highlights the importance of various postures. Where posture, place, rosary are important in the success of mantra practice, the importance of initiation is paramount. Mantra initiation with true faith, devotion and perseverance towards the Guru rejuvenates the human body. Through initiation, the 'Sadhana Marg' is paved and illuminated. Lord Shiva is the originator of Shabar mantras. Lord Shankar also performed tough penance being in the guise of Shabar, Kirat and Bhil. His wife Parvati, who wandered in the mountains, also took the guise of Bhilani many times. All the couplets and chaupaias are counted in the Siddha Shabar-mantras, belonging to Lord Shankar's Anshavatar 'Shri Hanuman Ji'. Apart from this, there are many Shabar mantras in the Jain community, in the name of Mahavir Swami, in the Muslim community, in the name of Memdapir. Many such famous and popular mantras have been compiled in this book. Apart from many ancient manuscripts, assistance has also been taken by compiling material from Kalyan's specials and other voluminous books.
Languageहिन्दी
PublisherDiamond Books
Release dateJul 30, 2020
ISBN9789352617753
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    Shabar Mantra (शाबर मंत्र - Pt. Ramesh Dwivedi

    श्रीहनुमत्सहस्रनामस्तोत्रम्

    शाबर मंत्र क्या है?

    प्रा चीन लोकमान्यता के अनुसार ‘शबर ऋषि' द्वारा प्रणीत सभी मंत्र ‘शाबर मंत्र' कहलाते हैं। शबर ऋषि किस काल में हुए? कब हुए? शाबर मंत्रों का प्रचलन कब (किस काल) से प्रारंभ हुआ, यह बताना बहुत मुश्किल है।

    ब्राह्मण ग्रंथों में ऐतरेय ब्राह्मण (अ. 7-18 -2) में विश्वामित्र ऋषि के ज्येष्ठ पचास पुत्र उसी के शाप से आंध्र, पुण्डु, शबर, पुलिन्द एवं मूतिब आदि म्लेच्छ कहलाने लगे। ये लोग दक्षिण भारत में पेन्नार नदी के प्रदेश में रहते थे। महाभारत में 95/38 के अनुसार ये लोग पहले क्षत्रिय थे किन्तु बाद में हीन आचारों के कारण म्लेच्छ बन गए। महाभारत युद्ध में ये लोग कौरवों के पक्ष में शामिल थे जहां सात्यकि ने इनका संहार किया।

    शबर एक जातिसूचक शब्द भी है। प्राचीन चरित्रकोश पू. 944 के अनुसार शबर जाति ‘दक्षिण पथवरसिन' कहा गया है। जंगल में रहने वाले अनपढ़, अविकसित समाज व भील जाति के लोगों को प्राचीन काल में शबर कहते थे। कथा प्रसिद्ध है शबरी नामक भीलनी के जूठे बेर भगवान् श्रीराम ने खाए थे। लोकमान्यता के अनुसार जंगली इलाकों व ग्रामीण क्षेत्रों में बोलचाल की भाषा में प्रचलित मंत्र ही शाबर मंत्र कहलाते हैं।

    यजुर्वेद एवं अथर्ववेद के कई कांड अनेक प्रकार के अभिचार, वशीकरण, मारण, उच्चाटन, आकर्षण, विद्वेषण एवं चमत्कारिक मंत्रों से भरा हुआ है। यद्यपि इन वैदिक मंत्रों की प्रभावोत्पादक शक्ति से इंकार नहीं किया जा सकता तथापि शाबर मंत्रों की भी अपनी एक अलग ही प्रभावोत्पादक शक्ति है, अपना अलग वैशिष्ट्य व चमत्कार है। हमारे केंद्र द्वारा किए गए अन्वेषण व शोध के आधार पर निम्नलिखित तथ्य प्राप्त हुए हैं -

    स्कन्दपुराण 3.3.17 के अनुसार कीकट देश में रहने वाला एक शिवभक्त शबर ऋषि के नाम से विख्यात था जो अन्त्यज था। शबर नामक वह ऋषि चिता भस्म की प्राप्ति के लिए स्वयं को दग्ध करने के लिए प्रवृत्त हुआ।

    पद्मपुराण में वर्णित एक विष्णु भक्त का नाम शबर था, जो अन्त्यज था तथा तुलसी पत्र के प्रसाद से वह अन्त्यज यमदूतों के पंजे से मुक्त हुआ।

    शाबर मंत्रों की विशेषता

    शाबर-मंत्र संस्कृत निष्ठ नहीं होते। इसमें संस्कृत के ज्ञान की आवश्यकता नहीं।

    शाबर मंत्रों में व्याकरण शुद्धि नहीं होती। इसमें व्याकरण के ज्ञान की आवश्यकता नहीं।

    शाबर-मंत्र में विनियोग, न्यास, छन्द, ऋषि वगैरह नहीं होते।

    शाबर मंत्र बोलचाल की भाषा, ग्रामीण किवां जंगली भाषा में होते हैं।

    शाबर मंत्र में देह शुद्धि, आंतरिक व बाह्य शुद्धि पर भी विचार नहीं किया जाता।

    शाबर मंत्र में व्यक्ति की इष्ट साधना व गुरु की शक्ति प्रधान होती है। गुरु की कृपा एवं गुरुमुख से ग्रहित किए बिना शाबर मंत्र सिद्ध नहीं होते।

    शाबर मंत्र में अपने आराध्य देव अथवा मंत्र में निर्दिष्ट देवता को वांछित कार्य की पूर्ति हेतु नाना प्रकार की सौगंध दिलाई जाती है।

    शाबर मंत्रों में साधक को स्वयं की साधना, भक्ति पर स्वाभिमान विशेष होता है। जिसको साधक गुरु की शक्ति के साथ जोड़ देता है तथा गुरुकृपा का पद-पद पर सहारा लेता है।

    वैदिक मंत्र प्राय : स्तुतिपरक होते हैं, अपने इष्टदेव या मंत्रानुसार विशिष्ट देवता की ओर उदृिष्ट होकर साधक अपना अमुक कार्य करने के लिए देवता से अनुनय विनय व प्रार्थना करता है तथा देवता प्रसन्न होकर साधक का कार्य करते हैं जबकि शाबर मंत्र एकदम उलटे होते हैं। शाबर मंत्रों में आराध्य देव को सेवक व नौकर की भांति आज्ञा दी जाती है, इसमें मंत्रज्ञ, साधक देवताओं पर हावी बना हुआ रहता है तथा लक्षित देवता से चुनौतीपूर्ण भाषा में बात करता है यथा उठ रे हनुमान, चौंसठ जोगिनी चलो, अरे नारसिंह वीर, डाकण का नाक काट, भंवरवीर तू चेला मेरा, देखूं रे अजयपाल तेरी शक्ति, देखूं रे भैरव तेरी शक्ति इत्यादि।

    शाबर मंत्रों के प्रयोग में नक्षत्र-कलाप की प्रधानता देखी गई है।

    जहां वैदिक व अन्य मंत्रों की भाषा शिष्ट, सभ्य व सुसंस्कृत होती हैं वहीं शाबर-मंत्रों में एक प्रकार की गाली गलौच या भद्दी भाषा का इस्तेमाल होता है तथा साधक अपने आराध्य देव को बड़ी से बड़ी सौगन्ध देता है कि मेरे इस कार्य को हर हाल में करो। एक शिष्ट व सज्जन व्यक्ति अपने पूज्य व आराध्य देव के प्रति ऐसी भावना भी नहीं रख सकता वैसे इन मंत्रों को जानने वाले बेझिझक बोल जाते हैं यथा-उठ रे हनुमान जति, मेरा यह काम नहीं करे तो माता अंजनी का दूध हराम। सति की सेज पर पांव धरे। महादेव की जटा पर घाव करे, मेमदा पीर थी आन। सुलेमान पैगम्बर की दुहाई। पार्वती की चूड़ी चूके, सूलेमान पीर की पूजा पांव ठेली, गुरु गोरखनाथ लाजे वगैरह-वगैरह।

    शाबर मंत्र हिन्दी भाषा के अलावा बंगाली, गुजराती, आसामी, उर्दू, पंजाबी, नेपाली व अनेक बोलचाल की भाषा में पाए जाते हैं।

    * * *

    अलौकिक व सर्वाधिक चमत्कारी

    संसार का पहला शाबर मंत्र

    1. अ इ उ ण्

    2. ऋ लृ क्

    3. ए ओ ङ्

    4. ऐ औ च्

    5. ह य व र ट्

    6. ल ण्

    7. ञ म ङ ण न म्

    8. झ भ ञ्

    9. घ ढ ध ष्

    10. ज ब ग ड द श्

    11. ख फ छ ठ थ च ट त व्

    12. क प य्

    13. श ष ल र्

    14. ह ल्

    सृष्टि के आदिकाल में तांडव-नृत्य के समय भगवान् शिवजी ने डमरू बजाया। यह डमरू कुल 14 बार बजा। उनमें से जो शब्दों की ध्वनि निकली वे ‘माहेश्वर-सूत्र' कहलाए। संस्कृत व्याकरण एवं बारहखड़ी का आविष्कार यहीं से हुआ। इसलिए ये सूत्र बड़े महत्त्वपूर्ण हैं।

    विद्वानों ने इन सूत्रों को शाबर मंत्र का दर्जा दिया। इसका एक-एक अक्षर एक दिव्य मंत्र का काम कर रहा है। इन सूत्रों को 18 बार बोलते हुए जलधारी से शिवलिंग पर जल चढ़ावे और वह जल साधक शिवजी का प्रसाद समझ कर पी जावे। ऐसा प्रयोग 108 दिन तक करें। जातक की स्मरण शक्ति परम तेजस्वी हो जाएगी। जातक अत्यन्त मेधावी एवं महत् विद्वान होगा। उसे शास्त्रार्थ में कोई हरा नहीं सकेगा। जातक सभी प्रकार की प्रतियोगी परीक्षाओं में सर्वोत्कृष्ट अंकों को प्राप्त करेगा। लघु सिद्धान्त कौमुदी में लिखा है-

    नृत्तावसाने नट राज राजो

    ननाद ढक्कां नव पंचवारम्।

    उद्धर्तुकामः सनकादि सिद्धा

    नेतद्विमशें शिवसूत्र जालम्।।

    शाबर मंत्रों में गुरु-परम्परा

    पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान् शिव व पार्वती ने जिस समय अर्जुन के साथ किरात वेश में युद्ध किया था। उस समय भगवान् शंकर एवं शक्ति स्वरूपा माता पार्वती सागर के समीप सुखारण्य में विराजित थे। उस समय माता पार्वती ने भगवान् शंकर से आत्मा विषयक ज्ञान को जानने की इच्छा प्रकट की और भक्ति-मुक्ति का क्या मंत्र है, जानना चाहा। तब भगवान् शंकर ने जन्म, मृत्यु व आत्मा संबंधी ज्ञान देना आरम्भ किया। माता पार्वती कब समाधिस्थ हो गईं, भगवान् शंकर को इसका आभास भी नहीं हुआ।

    तब चंद्रमौलीश्वर भगवान् शिव ने पार्वती को ज्ञान विषयक एक प्रश्न किया किंतु माता समाधिस्थ होने के कारण भगवान् शंकर को समुद्र से उत्तर मिला। उत्तर सुन भगवान् शंकर चकित हुए।

    भगवान् शंकर ने पार्वती को अतिसिद्ध षट्कर्मों के मंत्रों का उपदेश दिया था यह षट्कर्म (छह कर्म) शांति, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण कर्म हैं। भगवान् शंकर को यह आश्चर्य हुआ कि जिसने भी इन षट्कर्मों के विधान को सुना वह इनसे प्रभावित क्यों नहीं हुआ। शांति मंत्रों से शांत, स्तम्भन मंत्रों से स्तम्भित, विद्वेषण मंत्रों से विद्वेषित, उच्चाटन मंत्रों से उच्चाटित, वशीकरण मंत्रों से वशीभूत तथा मारण मंत्रों से मृत्यु को प्राप्त क्यों नहीं हुआ। भगवान् शंकर ने देखा कि समुद्र के किनारे एक मछली (मत्स्य) लेटी हुई है।

    भगवान् शंकर ने अपने दिव्य चक्षुओं से देखा कि इस मत्स्य के गर्भ में जगत् पिता ब्रह्मा का अंश विराजमान है और इस पर भगवान् शंकर ने गर्भ स्थित उस शिशु को तत्त्व चिंतन का आशीर्वाद व आदेश दिया तथा यह भी आशीर्वाद दिया कि उनकी दीक्षा त्रिदेवों के अवतार तंत्र-मंत्र में महासिद्ध गुरु दत्तात्रेय भगवान् से होगी ।

    वही गर्भस्थ बालक आगे चलकर मत्स्येन्द्रनाथ जी के नाम से प्रसिद्ध हुए। मत्स्य के गर्भ से जन्म होने के कारण इनका नाम मत्स्येन्द्रनाथ पड़ा।

    इस प्रकार आशुतोष भगवान् शंकर के मुख से शाबर मंत्रों की उत्पत्ति हुई। भगवान् शंकर ने पार्वती से जो आगम संबंधी चर्चा की, वही आगे चलकर शाबर मंत्रों के नाम से प्रचलित हुई, जिनका मत्स्य के गर्भ में स्थित होकर मत्स्येन्द्रनाथ जी ने उनका श्रवण किया।

    उस मत्स्य को मछुआरा ने काटा तो उसके गर्भ से एक अलौकिक दिव्य बालक निकला जिसका पालन-पोषण मछुआरा दंपति ने किया।

    10- 12 वर्ष की आयु में ही मत्स्येन्द्र साधनोमुखी हो गए। उनकी तपस्या देख शिव ने गुरु दत्तात्रेय को उन्हें दीक्षा देने हेतु प्रेरित किया।

    गुरु दत्तात्रेय ने मत्स्येन्द्र को दीक्षा प्रदान की तथा तंत्र के आदि देव भगवान् शंकर ने उन्हें शाबर मंत्रों की रचना का आदेश दिया।

    पार्वती से आगमादि विषय पर चर्चा करते हुए भगवान् शंकर शबर वेश में थे तथा भगवती पार्वती शबरी वेश में अतः उस समय जो तंत्र संबंधी चर्चा हुई तथा जो मंत्र भगवान् शंकर ने कहे वे शाबर मंत्र कहलाए। जिनको मत्स्येन्द्रनाथ जी ने भगवान् शंकर के आदेश से जन-जन में प्रचारित किया व उनका निर्माण भी भगवान् शंकर के आदेश के अनुरूप किया।

    कलियुग के परम सिद्ध औघड़ तपस्वी गुरु श्री मत्स्येन्द्रनाथ जी के काल से शाबर मंत्रों की प्रक्रिया प्रारंभ हुई क्योंकि वैदिक काल पौराणिक काल में ऐसे मंत्रों की कहीं कोई चर्चा नहीं मिलती। गुरु श्री मत्स्येन्द्रनाथ जी के शिष्य गुरु गोरखनाथ सिद्ध योगी व तांत्रिक रूप में विश्वविख्यात हुए। गुरु गोरखनाथ जी ने जनहित में लोकभाषा के कुछ मंत्र बनाए वे मंत्र ही शाबर मंत्र के नाम से विख्यात हैं। आगम शास्त्र में शाबर मंत्रों की सिद्धि देने वाले ग्यारह आचार्य माने गए हैं।

    1. नागार्जुन, 2. जड़भरत, 3. हरिश्चंद्र, 4. सत्यनाथ, 5. भीमनाथ, 6. गोरखनाथ, 7. चर्पट नाथ, 8. अवघटनाथ, 9. कन्यधारी, 10. जलन्धरनाथ, 11. मलयार्जुन

    शाबर मंत्रों का अपना एक अलग ही इतिहास व अस्तित्व है। जिससे इंकार नहीं किया जा सकता। वैदिक कर्मकांड से अनभिज्ञ व्यक्तियों के लिए शाबर मंत्र सहज, सुलभ प्राप्य अनमोल रत्न की तरह उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

    मंत्र शक्ति में छिपा रहस्य

    मंत्र + अच् निर्मित मंत्र शब्द का अर्थ होता है किसी भी देवता को संबोधित किया गया वैदिक सूक्त या प्रार्थना पूरक वेद मंत्र। यही कारण है कि वेद से इतर प्रयुक्त आप्त वाक्यों जैसे श्रीमद्भागवत् गीता व अन्य पुराणों में प्रयुक्त संस्कृत श्लोकों को मंत्र नहीं कहा जाता। प्रार्थना पूरक यजुस् जो कि किसी देवता को उद्दिष्ट करके बोला गया है- यथा ॐ नम: शिवाय इत्यादि भी मंत्रों की संख्या में है। कालान्तर में अनेक प्रकार के तान्त्रिक श्लोक (दुर्गा-सप्तशती) वगैरह जो कि विशिष्ट देवता की उद्देश्य करके बोले गए तथा विशेष चमत्कारिक शक्ति के सम्पन्न होने से वे श्लोक भी मंत्र कहलाने लगे।

    शक्ति और तान्त्रिक सम्प्रदायों में प्रयुक्त अनेक सूक्ष्म रहस्यमय शब्द खंडों और अक्षरों यथा ‘ऐं ह्रीं क्लीं' को भी ‘मंत्र' कहते हैं तथा विश्वास किया जाता है कि इन बीज मंत्रों से शक्तियां और सिद्धियां प्राप्त होती हैं।

    मंत्र शब्द का लौकिक अर्थ है गुप्त परामर्श। योग्य गुरुदेव की कृपा से ही मंत्र प्राप्त होता है। मंत्र प्राप्त होने के बाद यदि उसकी साधना न की जाए, अर्थात् सविधि पुरश्चरण करके उसे सिद्ध न कर लिया जाए तो उससे कोई विशेष लाभ नहीं होता। श्रद्धा, भक्ति भाव और विधि के संयोग से जब मंत्रों के अक्षर अंतर्देश में प्रवेश करके दिव्य स्पन्दन उत्पन्न करने लगते हैं, तब उसमें जन्म-जन्मान्तर के पाप-ताप धुल जाते हैं, जीव की प्रसुप्त चेतना जीवंत, ज्वलंत और जाग्रत होकर प्रकाशित हो उठती है। मंत्र के भीतर ऐसी गूढ़ शक्ति छिपी है जो वाणी से प्रकाशित नहीं की जा सकती। अपितु उस शक्ति से वाणी प्रकाशित होती है। मंत्र शक्ति अनुभव-गम्य है, जिसे कोई चर्मचक्षुओं द्वारा नहीं देख सकता। वरन् इसकी सहायता से चर्मचक्षु दीप्तिमान होकर त्रिकालदर्शी हो जाते हैं।

    मंत्रों में वैदिक मंत्र सबसे प्राचीन व प्रामाणिक माने जाते हैं। वैदिक व अन्य तान्त्रिक किवां लौकिक मंत्रों में मुख्य भेद स्वर का रहता है। वैदिक मंत्रों में आरोह अवरोह को ध्यान में रखते हुए उदात्त, अनुदात्त, स्वरित अंक विभिन्न विसर्गों की व्यवस्थाएं दी हैं। स्वर वैशिष्ट्य व श्रुति परम्परा के कारण हजारों वर्षों के पश्चात भी वैदिक अपनी मूल अवस्था में आज भी सुरक्षित हैं। उच्चारण शुद्धता के अतिरिक्त प्रत्येक वैदिक मंत्रों में आठ बातें पाई जाती हैं, जो कि अन्य मंत्रों में नहीं होती।

    1. ऋषि 2. छंद 3. देवता 4. बीज 5. शक्ति 6. कीलक 7. विनियोग और 8. न्यास।

    ऋषि उसे कहते हैं जिसने उस मंत्र का सर्वप्रथम आत्म साक्षात्कार कर उसकी दिव्य शक्ति को दर्शन कर (अनुभव) किया हो एवं उस मंत्र का दूसरों को उपदेश दिया हो। जैसे विश्वामित्र जी गायत्री मंत्र ऋषि के हैं। एक बात और ध्यान में रखनी चाहिए कि मंत्र दृष्टा ऋषि मंत्रों के निर्माण करने वाले, रचने वाले नहीं माने जाते क्योंकि वैदिक मंत्रों के रचयिता साक्षात् ईश्वर हैं, अन्य कोई नहीं।

    प्रत्येक मंत्र का एक छंद होता है।

    प्रत्येक मंत्र का आराध्य देवता भी होता है।

    प्रत्येक मंत्र का ‘बीज' होता है, जो मंत्र में शक्ति प्रदान करता है तथा मंत्र का मूल तत्त्व होता है।

    प्रत्येक मंत्र की अलग-अलग शक्ति होती है।

    कीलक एक प्रकार से मंत्र की खूंटी होती है, जो मंत्र के चैतन्य शक्ति को धारण किए रहती है। दीप काल तक मंत्र मनन करने से यह खूंटी दूर हो जाती है और मंत्र का चैतन्य रूप प्रकट होकर साधक को

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