अकाल मृत्यु तथा रोग नाशक मंत्र
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शांति कर्म के द्वारा साधक किसी व्यक्ति की कुंडलीगत, दैहिक, दैविक, आध्यात्मिक या पैतृक दोष या प्रयोग के निवारण के लिए कर्मकांड करता है तथा संबंधित व्यक्ति के जीवन की रक्षा का प्रयास करता है । शांति कर्म के अंतर्गत अकाल मृत्यु तथा रोग निवारण के लिए किए जाने वाले प्रयोग आते हैं ...
सबसे प्रमुखता से किया जाने वाला अकाल मृत्यु तथा रोग निवारक प्रयोग महामृत्युंजय प्रयोग है । इसके लिए विभिन्न प्रकार के मंत्रों का विधान है ।
S Anil Shekhar
Just a common man....
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अकाल मृत्यु तथा रोग नाशक मंत्र - S Anil Shekhar
॥ श्री सद्गुरू चरण कमलेभ्यो नमः ॥
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ॥
ध्यानमूलं गुरो मूर्ति : पूजामूलं गुरो: पदं ।
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा ॥
गुरुकृपाहि केवलं ।
गुरुकृपाहि केवलं ।।
गुरुकृपाहि केवलं ॥।
॥ श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नम: ॥
अकाल मृत्यु तथा रोग नाशक मंत्र
अकाल मृत्यु तथा रोग नाश के लिए अनेक प्रकार के मंत्र तथा विधियों का विधान तंत्र मार्ग में किया गया है । तंत्र में छह प्रकार के कर्म होते हैं । जिन्हें षट कर्म कहा जाता है ।
इनके नाम है :-
1. मोहन
2. उच्चाटन
3. वशीकरण
4. विद्वेषण
5. मारण तथा
6. शांति ।
इसे आप विपरीत प्रकार की जोड़ियां समझ सकते हैं ॥
अर्थात एक कर्म दूसरे कर्म का विपरीत या उसको शांत करने वाला कर्म है....
पहला कर्म है मोहन !
जिसका मतलब होता है कि किसी व्यक्ति को आकर्षित करना ।
इसका विपरीत कर्म है उच्चाटन !!
जिसका मतलब है कि किसी व्यक्ति को जो किसी के प्रति आकर्षित है उस आकर्षण को समाप्त करना या संबंधित व्यक्ति के प्रति जो लगाव है उसको समाप्त करके उससे अलग रहने की भावना पैदा करना ।
तीसरे नंबर पर है वशीकरण !
इसका मतलब होता है कि किसी स्त्री या पुरुष को पूरी तरह से अपने वश में कर लेना । यह एक ऐसी स्थिति होती है, जहां संबंधित स्त्री या पुरुष प्रयोग कर्ता के द्वारा कहे गए उचित अनुचित सभी प्रकार के कार्यों को सहज ही मानकर करने लगता है ।
इसका विपरीत कर्म है विद्वेषण !!
विद्वेषण का मतलब होता है - दो व्यक्तियों के बीच में झगड़ा या विरोध खड़ा कर देना । ऐसी स्थिति में वह दोनों व्यक्ति आपस में बेवजह उलझते या लड़ते झगड़ते रहते हैं ।
पांचवें नंबर पर आता है मारण प्रयोग !
यह षटकर्म में सबसे कठिन और सबसे जटिल क्रिया होती है । इसे करने वाला साधक साधनात्मक रूप से काफी प्रबल होना चाहिए । अधिकांश