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Sadhana Panchakam साधना पंचकम्
FromRajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers
Sadhana Panchakam साधना पंचकम्
FromRajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers
ratings:
Length:
4 minutes
Released:
Apr 28, 2022
Format:
Podcast episode
Description
Sadhna Panchakam साधना पंचकम् ◆ गुरु: ब्रह्मा: गुरु: विष्णु: गुरु देवो महेश्वर: |
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः || [गुरु ही ब्रह्मा विष्णु महेश हैं…. गुरु ही ब्रह्म हैं इसलिये उस गुरु को प्रणाम …]
वेदो नित्यम्धीयताम तदुदितं कर्म स्वनुष्ठियतम |
तेनेशस्य विधीयतामपचिती: काम्ये मतिस्त्यज्यताम ||
पापौघ: परिभूयताम भवसुखे दोषो अनुसंधीयता |
मात्मेछा व्यव्सीयताम निजगृहातूर्णम विनिर्गाम्यताम ||१||
[हम नित्य वेदों का पाठ करें, वेद आधारित रीति से कर्मकाण्ड और देवताओं का पूजन करें, हमारे कर्म अनासक्त भाव से हो और हमें पाप समूहों से दूर ले जाने वाले हो, हम अपने जीवन में गलतियो को जान सकें , आत्म-ज्ञान प्राप्त करें और मुक्ति की ओर बढें]
संग: सत्सु विधीयताम भगवतो भक्तिदृढा धीयताम |
शान्त्यादि: परिचीय्ताम दृढतरं कर्माशु सन्त्यज्यताम ||
सिद्विद्वानुपसर्प्याताम प्रतिदिनं तत्पादुका सेव्यताम |
ब्रह्मैकाक्षरमथर्यताम श्रुतिशिरोवाक्यम स्माकर्न्याताम ||२||
[ हम अच्छे संग में रहे, दृढ भक्ति प्राप्त करें, हम शान्ति जैसी मन की अवस्था को जान सकें, हम कठिन परिश्रम करें, सद्गुरु के समीप जाकर आत्म समर्पण करें और उनकी चरण पादुका का नित्य पूजन करें, हम एकाक्षर ब्रह्म का ध्यान करें और वेदों की ऋचाएं सुनें… ]
वाक्यार्थश्च विचार्यताम श्रुतिशिर: पक्ष: स्माश्रीयताम |
दुस्तर्कात्सुविरम्यताम श्रुतिमतर्कात्सो अनुसंधीयताम ||
ब्रह्मैवास्मि विभाव्यताम हरहर्गर्व: परित्ज्यताम |
देहे अहम्मतिरुज्झ्यताम बेधजनैर्वाद: परित्ज्यताम ||३||
[हम महावाक्यों और श्रुतियो को समझ सकें, हम कुतर्को में ना उलझें, “में ब्रह्म हूँ” ऐसा विचार करें, हम अभिमान से प्रतिदिन दूर रहे, “में देह हूँ” ऐसे विचार का त्याग कर सकें और हम विद्वान बुद्धिजनों से बहस न करें… ]
क्षुद्व्याधि:च चिकित्स्य्ताम प्रतिदिनं भिक्षोषधम भुज्यताम |
स्वाद्वन्नम न तु याच्यताम विधिवशातप्राप्तेन संतुश्यताम ||
शीतोष्नादि विषह्यताम न तु वृथा वाक्यं समुच्चार्यता |
मौदासीन्यमभिपस्यताम जनकृपा नैष्ठुर्यमुत्सृज्यताम ||४||
[ हम भूख पर नियंत्रण पा सकें और भिक्षा का अन्न ग्रहण करें (संन्यास की नियमानुसार), स्वादिष्ट अन्न की कामना न करें और जो कुछ भी प्रारब्ध वशात हमें प्राप्त हो उसी में संतुष्ट रहे, हम शीत और उष्ण को सहन कर सकें, हम वृथा वाक्य न कहें, सहनशीलता हमें पसंद हो और हम दयनीय बनकर न निकलें… ]
एकान्ते सुखमास्यताम परतरे चेत: समाधीयताम |
पूर्णात्मा सुस्मीक्ष्यताम जगदिदम तद्बाधितम दृश्यताम ||
प्राक कर्म प्रविलाप्यताम चितिब्लान्नाप्युत्तरै: श्लिष्यताम |
प्रारब्धम त्विह भुज्यतामथ परब्रह्मात्मना स्थियाताम ||५||
[ हम एकांत सुख में बैठ सकें और आत्मा के परम सत्य पर मन को केन्द्रित कर सकें, हम समस्त जगत को सत्य से परिपूर्ण देख सकें, हम पूर्व कृत बुरे कर्मो के प्रभाव को नष्ट कर सकें और नवीन कर्मो से न बंधे, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचें की सब कुछ प्रारब्धानुसार है और हम परम सत्य के साथ रहें… ]
य: श्लोकपंचक्मिदम पठते मनुष्य: संचितयत्यनुदिनम स्थिरतामुपेत्य |
तस्याशु संसृतिद्वानल तीव्र घोर ताप: प्रशांतिमुप्याति चिति प्रसादात ||
[ जो मनुष्य इस पंचक के श्लोको का पाठ नित्य करता है, वह जीवन में स्थिरता को अर्जित और संचित करता है… इस तपस्या से प्राप्त प्रशांति के फलस्वरुप जीवन के समस्त घोर दुख शोकादि के ताप उसके लिए प्रभाव हीन हो जाते हैं… ]
।।इति श्री जगद्गुरु आदि शंकराचार्य कृत साधना पंचकं समाप्त:
।।
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः || [गुरु ही ब्रह्मा विष्णु महेश हैं…. गुरु ही ब्रह्म हैं इसलिये उस गुरु को प्रणाम …]
वेदो नित्यम्धीयताम तदुदितं कर्म स्वनुष्ठियतम |
तेनेशस्य विधीयतामपचिती: काम्ये मतिस्त्यज्यताम ||
पापौघ: परिभूयताम भवसुखे दोषो अनुसंधीयता |
मात्मेछा व्यव्सीयताम निजगृहातूर्णम विनिर्गाम्यताम ||१||
[हम नित्य वेदों का पाठ करें, वेद आधारित रीति से कर्मकाण्ड और देवताओं का पूजन करें, हमारे कर्म अनासक्त भाव से हो और हमें पाप समूहों से दूर ले जाने वाले हो, हम अपने जीवन में गलतियो को जान सकें , आत्म-ज्ञान प्राप्त करें और मुक्ति की ओर बढें]
संग: सत्सु विधीयताम भगवतो भक्तिदृढा धीयताम |
शान्त्यादि: परिचीय्ताम दृढतरं कर्माशु सन्त्यज्यताम ||
सिद्विद्वानुपसर्प्याताम प्रतिदिनं तत्पादुका सेव्यताम |
ब्रह्मैकाक्षरमथर्यताम श्रुतिशिरोवाक्यम स्माकर्न्याताम ||२||
[ हम अच्छे संग में रहे, दृढ भक्ति प्राप्त करें, हम शान्ति जैसी मन की अवस्था को जान सकें, हम कठिन परिश्रम करें, सद्गुरु के समीप जाकर आत्म समर्पण करें और उनकी चरण पादुका का नित्य पूजन करें, हम एकाक्षर ब्रह्म का ध्यान करें और वेदों की ऋचाएं सुनें… ]
वाक्यार्थश्च विचार्यताम श्रुतिशिर: पक्ष: स्माश्रीयताम |
दुस्तर्कात्सुविरम्यताम श्रुतिमतर्कात्सो अनुसंधीयताम ||
ब्रह्मैवास्मि विभाव्यताम हरहर्गर्व: परित्ज्यताम |
देहे अहम्मतिरुज्झ्यताम बेधजनैर्वाद: परित्ज्यताम ||३||
[हम महावाक्यों और श्रुतियो को समझ सकें, हम कुतर्को में ना उलझें, “में ब्रह्म हूँ” ऐसा विचार करें, हम अभिमान से प्रतिदिन दूर रहे, “में देह हूँ” ऐसे विचार का त्याग कर सकें और हम विद्वान बुद्धिजनों से बहस न करें… ]
क्षुद्व्याधि:च चिकित्स्य्ताम प्रतिदिनं भिक्षोषधम भुज्यताम |
स्वाद्वन्नम न तु याच्यताम विधिवशातप्राप्तेन संतुश्यताम ||
शीतोष्नादि विषह्यताम न तु वृथा वाक्यं समुच्चार्यता |
मौदासीन्यमभिपस्यताम जनकृपा नैष्ठुर्यमुत्सृज्यताम ||४||
[ हम भूख पर नियंत्रण पा सकें और भिक्षा का अन्न ग्रहण करें (संन्यास की नियमानुसार), स्वादिष्ट अन्न की कामना न करें और जो कुछ भी प्रारब्ध वशात हमें प्राप्त हो उसी में संतुष्ट रहे, हम शीत और उष्ण को सहन कर सकें, हम वृथा वाक्य न कहें, सहनशीलता हमें पसंद हो और हम दयनीय बनकर न निकलें… ]
एकान्ते सुखमास्यताम परतरे चेत: समाधीयताम |
पूर्णात्मा सुस्मीक्ष्यताम जगदिदम तद्बाधितम दृश्यताम ||
प्राक कर्म प्रविलाप्यताम चितिब्लान्नाप्युत्तरै: श्लिष्यताम |
प्रारब्धम त्विह भुज्यतामथ परब्रह्मात्मना स्थियाताम ||५||
[ हम एकांत सुख में बैठ सकें और आत्मा के परम सत्य पर मन को केन्द्रित कर सकें, हम समस्त जगत को सत्य से परिपूर्ण देख सकें, हम पूर्व कृत बुरे कर्मो के प्रभाव को नष्ट कर सकें और नवीन कर्मो से न बंधे, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचें की सब कुछ प्रारब्धानुसार है और हम परम सत्य के साथ रहें… ]
य: श्लोकपंचक्मिदम पठते मनुष्य: संचितयत्यनुदिनम स्थिरतामुपेत्य |
तस्याशु संसृतिद्वानल तीव्र घोर ताप: प्रशांतिमुप्याति चिति प्रसादात ||
[ जो मनुष्य इस पंचक के श्लोको का पाठ नित्य करता है, वह जीवन में स्थिरता को अर्जित और संचित करता है… इस तपस्या से प्राप्त प्रशांति के फलस्वरुप जीवन के समस्त घोर दुख शोकादि के ताप उसके लिए प्रभाव हीन हो जाते हैं… ]
।।इति श्री जगद्गुरु आदि शंकराचार्य कृत साधना पंचकं समाप्त:
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Released:
Apr 28, 2022
Format:
Podcast episode
Titles in the series (100)
Namokar Mantra Paath 9 times. A must daily prayer. णमोकार मंत्रपाठ 9 बार by Rajat Jain ? #Chanting and #Recitation of #Jain & #Hindu #Mantras and #Prayers