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शरीरों का रखवाला (रोमांच और रहस्य)
शरीरों का रखवाला (रोमांच और रहस्य)
शरीरों का रखवाला (रोमांच और रहस्य)
Ebook55 pages26 minutes

शरीरों का रखवाला (रोमांच और रहस्य)

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उस बेरोजगार नौजवान को जब कोई और नौकरी नही मिली तो उसने मुर्दाघर में सरकारी नौकरी स्वीकार कर ली और जीवन के एक ऐसे लम्बे अनुभव में डूब गया जिसमें से जब वो बाहर निकला तो वो पहले वाला हँसता खेलता मुस्कुराता नौजवान नहीं था!

वो मुर्दों का रखवाला उस मुर्दाघर के अपने अनुभवों के बाद खुद भी एक मुर्दे की तरह हो गया था, पर बस फर्क इतना था के वो जिन्दा था और दिमाग की उस चरम सीमा पर पहुँच गया था जिसको ब्रह्म ज्ञान कहते हैं!

शुभकामना

प्रोफेसर राजकुमार शर्मा

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJan 14, 2023
ISBN9798215402054
शरीरों का रखवाला (रोमांच और रहस्य)

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    शरीरों का रखवाला (रोमांच और रहस्य) - प्रोफेसर राजकुमार शर्मा

    अध्याय एक

    लाशों की कतारों के बीच चलते हुए बूढ़े ने जवाब दिया,यहाँ हमेशा ठंड होती है।

    चेतन ने आगे कोई प्रश्न नहीं किया।

    वो अपनी भूरी निगाहों से ढकी हुई लाशों को कुछ इस तरह से गौर से देख रहा था जैसे के उसको भय था के कहीं उसको भरम ही ना हो जाए के किसी लाश में कोई हलचल हो रही थी।

    यह एक बड़ा हॉल था, जो लाशों से भरा हुआ था। सभी लाशें चमकीले सफेद कपड़े से ढकी हुई थी।

    थोड़ा डरे तो हो तुम, बूढ़े ने आगे कहा,तुम्हें इसकी आदत हो जाएगी।

    वे आगे अगले हॉल में चले गए, जो विशाल अलमारियों से भरा था।

    "और यह वह जगह है जहां लावारिस शरीर और ... तुम जानते हो, अन्य शरीर रखे जाते हैं।

    उनमें से कुछ में ताले हैं। यदि यह एक महत्वपूर्ण शव है जिसमें सबूत मिटाने के लिए छेड़छाड़ की संभावना है, तो तुमको उस लाश को इनमें से एक अलमारी में डाल देना होता है।"

    हाँ सर, चेतन ने उस आदमी की तरह ठंडेपन से जवाब देने की कोशिश की।

    बूढ़े ने उसकी ओर देखा।

    इतने वर्षों की सेवा के दौरान किसी ने भी उन्हें 'सर' नहीं कहा था, और आज मुर्दाघर में उनका आखिरी दिन होने के नाते एक पूर्ण अजनबी, जिससे वह फिर कभी नहीं मिलेंगे, उनका अभिवादन 'सर' कहके कर रहा था।

    बूढ़े ने पहली बार उसकी तरफ गौर से देखा।

    वर्षो से उस मुर्दाघर में काम करते करते जैसे उस बूढ़े की जिन्दा लोगों में कोई रूचि ही नहीं रह गयी थी क्योंकि उसका ज्यादा समय उस मुर्दाघर में सफ़ेद कपड़ों से ढकी हुई लाशो के साथ ही व्यतीत होता था!

    संभवतः, दशकों के बाद उन्होंने पहली बार किसी खड़े जिन्दा व्यक्ति का इस तरह अध्ययन किया था।

    लड़का लंबा, गोरा था। गहरी संवेदनशील आंखें, ऐसा लग रहा था जैसे वह लगातार किसी चीज की तलाश में था। थोड़ा दुबला, लेकिन अन्यथा एक अच्छा व्यक्तित्व।

    जल्द ही तुम्हारी मिठास इन शरीरों की तरह सड़ जाएगी, बूढ़ा चुपचाप बाहर निकलने के लिए दरवाजे की ओर मुड़ा,"तुम्हारे पास केवल मृतकों की संगति है अब। यहां कोई ज्यादा नहीं बोलता है, और अब तुम भी इन निर्जीव लाशो के साथ रहकर खुद भी जैसे बेजुबान

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