पीड़िता (लघु उपन्यास)
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पीड़िता (लघु उपन्यास)
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तालिका
दो शब्द
कुकर्म के बाद
अम्मा
फिर से प्रयास
अम्मा
और थोड़ी हिम्मत
अम्मा
और अधिक प्रयास
डेविड और नैंसी
अदालत में
आखिर बोल पड़ी
तीन वहशियोँ ने उस मासूम कॉलेज में पढ़ने वाली लड़की को जिस बेदर्दी से रौंदा था, उसकी इज़्ज़त को तार तार किया था, उसको बुरी तरह घायल करके आबादी से दूर एक सुनसान इलाके में छोड़ दिया था जहाँ कोई भी नहीं था उसकी मदद करने को आस पास मीलों तक, इस सबको सुनकर कोई भी यही कहेगा के वो तड़प तड़प कर मर गयी होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वो घंटो एक एक मिलीमीटर रेंग रेंग कर धीरे धीरे उस जगह पर पहुँच गयी जहां पर भगवान् के दो दयालु फरिश्तों ने उसको उठाकर अस्पताल तक पहुंचा दिया और उसका इलाज हुआ।
ये तो थी उसके दुर्भाग्य और यातना की बात, लेकिन जब उस पीड़िता ने अदालत में अपनी जुबान खोली तो वहां बैठे लोगों की आँखों में तो आंसू आ ही गए थे, लेकिन माननीय जज महोदय भी फैसला देने से पहले सोचने लगे के जिस कानून की वो रक्षा कर रहे थे उसको बदलना जरूरी हो गया था!
इस दुःख, दर्द, अत्याचार, अपराध, और रोमांच से भरी कहानी को पढ़कर आप भी शायद सोचने को मजबूर हो जाएंगे क्योंकि आपको भी अपनी बेटी, बहन, या बीवी की चिंता होने लगेगी!
शुभकामना
प्रोफेसर राजकुमार शर्मा
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पीड़िता (लघु उपन्यास) - प्रोफेसर राजकुमार शर्मा
दो शब्द
तीन वहशियोँ ने उस मासूम कॉलेज में पढ़ने वाली लड़की को जिस बेदर्दी से रौंदा था, उसकी इज़्ज़त को तार तार किया था, उसको बुरी तरह घायल करके आबादी से दूर एक सुनसान इलाके में छोड़ दिया था जहाँ कोई भी नहीं था उसकी मदद करने को आस पास मीलों तक, इस सबको सुनकर कोई भी यही कहेगा के वो तड़प तड़प कर मर गयी होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वो घंटो एक एक मिलीमीटर रेंग रेंग कर धीरे धीरे उस जगह पर पहुँच गयी जहां पर भगवान् के दो दयालु फरिश्तों ने उसको उठाकर अस्पताल तक पहुंचा दिया और उसका इलाज हुआ।
ये तो थी उसके दुर्भाग्य और यातना की बात, लेकिन जब उस पीड़िता ने अदालत में अपनी जुबान खोली तो वहां बैठे लोगों की आँखों में तो आंसू आ ही गए थे, लेकिन माननीय जज महोदय भी फैसला देने से पहले सोचने लगे के जिस कानून की वो रक्षा कर रहे थे उसको बदलना जरूरी हो गया था!
इस दुःख, दर्द, अत्याचार, अपराध, और रोमांच से भरी कहानी को पढ़कर आप भी शायद सोचने को मजबूर हो जाएंगे क्योंकि आपको भी अपनी बेटी, बहन, या बीवी की चिंता होने लगेगी!
शुभकामना
प्रोफेसर राजकुमार शर्मा
Chapter 2
कुकर्म के बाद
उसने बार-बार बहुत कोशिश की लेकिन आंख नहीं खोल पाई। कुछ चिपचिपा उसकी आँखों को ढँक गया था। उसने अपनी आँखों से चिपचिपा पदार्थ साफ़ करने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाया।
वह एक गलती थी और उसे इसका पछतावा था। उसकी बाहों के कोहनी से नीचे के हिस्से टेढ़े मेढ़े दिख रहे थे, मानो वे बहुत ही सफाई से तोड़ दिए गए थे, यानी अंदर की हड्डियां तोड़ दी गयी थी। दोनों बाहों में भयानक दर्द था।
आँखें रहने दो...आँखें रहने दो...
उसने अपने आप से कहा ।
धीरे-, भारी प्रयासों से, वह अपनी आँखें बहुत थोड़ी सी खोल सकी थी। वह शुरू में कुछ भी नहीं देख सकी थी; उसकी आंखों के सामने सब अंधेरा था।
ओह! भगवान! क्या मैं अंधी हो गयी हूँ?
वह घबरा गई।
तब उसने महसूस किया कि वास्तव में अंधेरा था। वह आकाश में टिमटिमाते तारों को देख सकती थी और पतले-पतले बादलों के झुरमुटों को