इतना भर प्रेम
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कहा जाता है कि निराशा की चोट आशा के स्रोत का पता बताती है और विफल इच्छाओं की छटपटाहट यथार्थ से परिचय कराती है। बस आवश्यकता होती है तो सावधानी से सकारात्मक सोच को, सकारात्मक शब्दों को सुनने और चुनने की।ऐसे ही तीन जादुई शब्द हैं, "यह संभव है", जिनके कारण मैं अपने लेखों के संग्रह को एक पुस्तक का आकार दे पाई। "इतना भर प्रेम" मात्र मेरी पुस्तक का नाम नहीं बल्कि यह मेरा प्रेम अपने लेखन के प्रति, दूसरों तक रचनाओं के माध्यम से पहुंचने के प्रति, समाज के प्रति, समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति, सुविधाविहीन, साधनविहीन, जरूरतमंदों के प्रति, इस समष्टि में उपस्थित प्रकृति, मानव व अन्य जीवों के प्रति है।
कहा जाता है कि निराशा की चोट आशा के स्रोत का पता बताती है और विफल इच्छाओं की छटपटाहट यथार्थ से परिचय कराती है। बस आवश्यकता होती है तो सावधानी से सकारात्मक सोच को, सकारात्मक शब्दों को सुनने और चुनने की।ऐसे ही तीन जादुई शब्द हैं, "यह संभव है", जिनके कारण मैं अपने लेखों के संग्रह को एक पुस्तक का आकार दे पाई। "इतना भर प्रेम" मात्र मेरी पुस्तक का नाम नहीं बल्कि यह मेरा प्रेम अपने लेखन के प्रति, दूसरों तक रचनाओं के माध्यम से पहुंचने के प्रति, समाज के प्रति, समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति, सुविधाविहीन, साधनविहीन, जरूरतमंदों के प्रति, इस समष्टि में उपस्थित प्रकृति, मानव व अन्य जीवों के प्रति है।
वर्जिन साहित्यपीठ
सम्पादक के पद पर कार्यरत
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Book preview
इतना भर प्रेम - वर्जिन साहित्यपीठ
इतना भर प्रेम
(प्रेरणात्मक लेख)
अंशु सारडा ‘अन्वि’
वर्जिन साहित्यपीठ
प्रकाशक
वर्जिन साहित्यपीठ
virginsahityapeeth@gmail.com / 9971275250
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम संस्करण - अक्टूबर 2020
कॉपीराइट © 2020
लेखक
मूल्य:
कॉपीराइट
इस प्रकाशन में दी गई सामग्री कॉपीराइट के अधीन है। इस प्रकाशन के किसी भी भाग का, किसी भी रूप में, किसी भी माध्यम से - कागज या इलेक्ट्रॉनिक - पुनरुत्पादन, संग्रहण या वितरण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक लेखक द्वारा अधिकृत नहीं किया जाता। सामग्री के संदर्भ में किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में जिम्मेदारी लेखक की रहेगी।
पूजनीय दादाजी स्व. रामपाल जी काबरा
और
पूजनीय पापाजी स्व. श्रीप्रकाश जी काबरा
द्वारा प्रदत्त
सहज, सरल संस्कारों को सादर समर्पित
आशीर्वचन
अंशु सारडा 'अन्वि' एक प्रतिभाशाली युवा लेखिका हैं। वह बहुत सी विधाओं में अपना लेखन कार्य करती हैं। साथ ही उन्होंने रचनात्मक और सामाजिक कार्यों से भी अपनी एक अच्छी पहचान बनाई है। कलाकर्म में भी उनकी गहरी रुचि है। बहुमुखी प्रतिभा होने से रचनाकार को कभी-कभी असमंजस की स्थिति से गुजरना पड़ता है। अंशु ने अपनी पहचान आरंभ में कवयित्री के रूप में बनाई और धीरे-धीरे वे स्तंभ लेखन और अनुवाद के क्षेत्र में भी खुद को प्रमाणित कर रही हैं। पूर्वोत्तर के क्षेत्रीय समाचार पत्रों में वे एक अग्रणी स्तंभकार हैं। पिछले कुछ वर्षों में पूर्वोत्तर के समाचार पत्रों में उनके अग्रलेख और स्तंभ लेख पाठकों को आकर्षित और प्रभावित करते रहे हैं। उन्हीं रुचिकर लेखों का यह संकलन 'इतना भर प्रेम' अनेक संभावनाओं के साथ प्रकाशित हो रहा है।
प्रेम का न कोई एक स्वरूप है, न कोई सीमा। रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति में अपने भीतर के प्रेम को ही प्रकट करता है। उसका प्रेम अपने प्रति, अपने परिवार, अपने समाज और अपने राष्ट्र किसी के प्रति भी हो सकता है। मगर एक व्यक्ति के प्रति दूसरे व्यक्ति का प्रेम विशेष रूप से स्त्री- पुरुष के बीच का प्रेम दुनिया भर के साहित्य और कलाओं में रचनाकार की सबसे खूबसूरत अभिव्यक्ति माना जाता है। अंशु अपने लेखन के माध्यम से अपने प्रेम को सीमित से असीमित की ओर या यूं कहें कि शेष से अशेष की ओर ले जाने की कोशिश करती हैं। चूंकि लेखन के तत्काल माध्यम के रूप में उनके पास समाचार पत्रों के नियमित स्तंभ और संपादकीय पृष्ठ के कॉलमों की सीमित जगह होती है, अतः वह थोड़े शब्दों में अपनी बड़ी बात कहने की कोशिश करती हैं। पुस्तक के शीर्षक आलेख में वे लिखती हैं -
"किसी किसान को अपने खेत से प्रेम, प्रवासी पंछी हो या हम आदम, अपने देश की मिट्टी के एहसास भर से प्रेम होता है। ऐसा कोई नहीं होता जो इस भाव से अछूता रहता हो। कैसा मधुर होता है यह ‘इतना भर प्रेम’ जो सब कुछ अलविदा होने के बावजूद जीवित रह जाता है।"
स्त्री विमर्श एवं विविध सामाजिक, सांस्कृतिक विषयों पर अपनी विचारोत्तेजक और प्रेरक लेखन शैली के साथ वे अपने इस पहले संकलन के माध्यम से पाठकों की अपेक्षाओं पर खरी उतरेंगी, ऐसी मुझे पूरी उम्मीद है। मैं हृदय से अपनी शुभकामनाएं और स्नेह आशीष उन्हें देता हूँ कि वे खूब पढ़ें, खूब लिखें व खूब पढ़ी जाएं और इतने भर प्रेम से अपने बड़े दायित्वों का निर्वाह करतीं हुई अपना मुकाम हासिल करें।
श्री विजय विज़न
संस्कृतिकर्मी, साहित्यकार, चित्रकार
दो शब्द
अंशु सारडा 'अन्वि' घर की खिड़कियों से खुले आसमान को देखती हैं। गृहिणी के रूप में घर की जिम्मेदारियों के बीच नियमित लेखन, समय के साथ उनके दोस्ताना संघर्ष का जीवंत प्रमाण है। घर-बाहर, देश-दुनियां की घटनाएं उन्हें सोचने को बाध्य करतीं हैं। उनका भोगा हुआ अनुभव, उनकी सोच और उनकी चेतना का स्पंदन शब्दों के रूप में बाहर आ ही जाता है। उनके लेख प्रेरणादायक होते हैं। वे सिर्फ किसी खास वर्ग या उम्र के लोगों के लिए नहीं लिखती हैं बल्कि सभी वर्ग और उम्र के पाठकों का संसार उनके पास है। वे अपनी बात कम शब्दों में करती हैं, लेकिन संदेश सीधा जाता है और पाठकों के पास भटकने का मौका ही नहीं होता है।
उनके लेख परिवार प्रबंधन, समाज प्रबंधन और टीम वर्क का संदेश देते हैं जैसे 'अंगूठे की दास्तान' तथा 'धैर्य और टीम वर्क सफलता की कुंजी होते हैं' आदि लेखों में। प्रेम जैसे गूढ़ विषय को 'इतना भर प्रेम', 'इश्क की किस्सागोई', 'तुमको मुझमें क्या अच्छा लगता है' जैसे लेखों में बड़ी ही सरल भाषा में लिखा गया है। प्रत्येक महिला की अपनी विशिष्टता होती है, फिर वह चाहे गृहिणी हो या कामकाजी, अतः उनकी श्रम की गरिमा का भी ध्यान रखना होगा। इस प्रकार का संदेश देने वाली अंशु की लेखनी स्त्री विमर्श के विषयों पर हमेशा ही लीक से कुछ हटकर सोचती है। दोस्तों की दोस्ती पर 'कॉफी विद रवि', 'संटी से सुताई' में अपने दोस्ती के अनुभवों को उन्होंने शब्दों का जामा पहनाया है।
अपने आप की, अपने सपनों को तलाशने की कसक है, 'जमीं की तलाश' और अंशु के अन्दर की 'अन्वि' की भी तलाश। पिछले दो वर्षों से भी अधिक समय से अंशु सारडा 'अन्वि' दैनिक पूर्वोदय के लिए प्रत्येक रविवार स्तंभ लेखन कर रहीं हैं। ऐसी युवा रचनाकार को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं उनके उज्जवल लेखन भविष्य के लिए और आशा करता हूं कि उनके लेखों का यह संकलन पाठकों को जरूर सामान्य विषयों को देखने का एक अलग दृष्टिकोण देगा।
रविशंकर 'रवि'
संपादक, दैनिक पूर्वोदय
अपनी बात
कहा जाता है कि निराशा की चोट आशा के स्रोत का पता बताती है और विफल इच्छाओं की छटपटाहट यथार्थ से परिचय कराती है। बस आवश्यकता होती है तो सावधानी से सकारात्मक सोच को, सकारात्मक शब्दों को सुनने और चुनने की।ऐसे ही तीन जादुई शब्द हैं, यह संभव है
, जिनके कारण मैं अपने लेखों के संग्रह को एक पुस्तक का आकार दे पाई। इतना भर प्रेम
मात्र मेरी पुस्तक का नाम नहीं बल्कि यह मेरा प्रेम अपने लेखन के प्रति, दूसरों तक रचनाओं के माध्यम से पहुंचने के प्रति, समाज के प्रति, समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति, सुविधाविहीन, साधनविहीन, जरूरतमंदों के प्रति, इस समष्टि में उपस्थित प्रकृति, मानव व अन्य जीवों के प्रति है।
"इतना भर प्रेम" मेरे अपने जीवन के सपनों की उड़ान है जो कि पाठकों को भी सपने देखने, साकार करने और सफल होने तक डटे रहने के लिए प्रेरित करेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में घटित कोई भी छोटी- बड़ी घटना उसके जीवन की दिशा और दशा दोनों को बदल सकती है। अब यह स्वयं हम पर है कि हमारा किसी भी घटना के प्रति नजरिया सकारात्मक है या नकारात्मक। मैंने अपने लेखों के माध्यम से प्रत्येक उम्र और समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों के साथ जुड़ने का और उनके अंदर झांकने का प्रयास किया है। अच्छा लगता है जब उन लेखों की प्रतिक्रिया में मैं अपने पाठकों से सुनती हूं, 'बिल्कुल यही बात हमारे भी जेहन में थी, जो आपने लिखी'। संवेदनाएं प्रत्येक व्यक्ति के मन में होती है, रचनाकार का कर्त्तव्य तो उन संवेदनाओं को महसूस कर उसे अपने शब्दों की लड़ी में पिरोकर साहित्य के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना मात्र होता है।
तेजी से बदलते परिदृश्य में कई तरह के विषय सामने आते हैं, कई चरित्र सामने आते हैं और उनको साथ लेकर एक स्तंभ में थोड़े ही शब्दों में अपनी अधिक से अधिक बात लिखनी होती है। विविध विषय समय की मांग के अनुसार लिखे जाते हैं, कुछ विषय पाठकों के लिए नए होते हैं, कुछ विषय पुराने ही होते हैं, कुछ उनको पसंद आते हैं और कुछ पसंद नहीं भी आते हैं। चूंकि स्तंभ लेखन की अपनी मांग होती है अतः उसमें उसी के अनुसार लिखना भी पड़ता है। इन सब के बावजूद स्तंभ लेखन का अपना महत्व होता है, अपनी गरिमा होती है और यह तभी सार्थक होती है, जब आपके विचार किसी भी दवाब में कुंद ना हो जाएं। एक सकारात्मक सोच हमेशा सकारात्मक परिणाम देती है। निराशाजनक परिस्थितियों में भी स्वयं को कैसे प्रेरित किया जाए संघर्ष और कर्म करने के लिए, अपने जीवन के उन छोटे-छोटे अनुभवों से मिलती सीखों को पाठकों के साथ साझा करने की एक कोशिश है यह लेख संग्रह।
जिंदगी को एक अलग नजरिए से देखने की कोशिश में जमीं की तलाश करता अपना पहला लेख संग्रह 'इतना भर प्रेम' सुधी पाठकों के हाथों में सौंपते हुए मुझे स्वभाविक