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आई सी यू
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Ebook56 pages25 minutes

आई सी यू

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About this ebook

इस किताब को मैंने मम्मी के हॉस्पिटल मे एड्मिट होने के दौरान लिखा था | मम्मी के ब्रेन मे ब्लीडिंग हुई थी | इस किताब का उद्देश्य बीमार और तीमारदार की भावनाओं को समझाना और उनकी भावनाओं को सम्मान दिलाना है| यह किताब हॉस्पिटल मे एड्मिट मरीज की देखभाल के लिए तीमारदार को एक दिशा-निर्देश भी देती है | इसके साथ ही यह किताब मेडिकल सिस्टम की हिपोक्रिसी को भी उजागर करती है |
इस किताब मे बोलचाल की हिन्दी के साथ-साथ अँग्रेजी शब्दों का भी बहुतायत से इस्तेमाल किया है, जो कि आज कल देश मे आम तौर से सामान्य बातचीत मे इस्तेमाल होते हैं|
अगर किसी भी मरीज या तीमारदार को इस किताब से, किसी भी रूप मे, कुछ भी फायदा होता है, तो इस किताब को लिखने का उद्देश्य पूरा होता है |
माता देवी भवः।

Languageहिन्दी
PublisherAnanya Shashi
Release dateSep 9, 2021
ISBN9781005792770
आई सी यू
Author

Ananya Shashi

Bu profession I am communication engineer, belong to Lucknow ,UP,India.By nature I am an emotional person who has respect in his culture.

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    आई सी यू - Ananya Shashi

    24जनवरी 21

    बीती रात कुछ टेंश थी। मैं शालिनी को समझा रहा था गुड़गाँव जाने में कोई फ़ायदा नहीं है, क्योंकि वहाँ पर फायनेंसेयल इक्स्पेंडिचर भी डबल हो जाएगा। बाक़ी ट्रान्सफर भी सी॰टी॰यू॰ में हो रहा है जो कि पॉवर ग्रिड की तुलना में इक बहुत ही छोटी कम्पनी होगी।

    शालिनी कुछ मान रही थी, पर वो दिल्ली जाने को बहुत इच्छुक थी। वह दूसरे कमरे में चली गयी।

    मैं कुछ देर में सो गया। रात भर नींद कच्ची-पक्की रही। सुबह क़रीब छः बजे जब कुछ नींद में ही था, बग़ल में मम्मी के कमरे से आहट लगी , मम्मी बाथरूम जा रही थीं। मम्मी को एक साल दस महीने पहले ब्रेन में ब्लीडिंग हुई थी जिस वजह से उनके राइट साइड में हीमेपेरासीस (haemeperasis) था। दाहिने पैर में ही पोलियो भी था, बचपन से।

    वाशरूम(Washroom) जाने का उनका एक प्रॉसेस था। पहले धीरे -धीरे रजायी/ कम्बल को हटाया, फिर धीरे से आगे खिसकना,फिर धीरे से व्हील चेएर को खींच कर दीवार के सहारे टिकाना, फिर बड़ी हिम्मत जुटा के बिस्तर से व्हील चेयर पे बैठना। पैरों में नाम मात्र की ताक़त बची थी। गठिया,सियाटिका, ओस्टेओर्थीराइटिस (osteoarthiritis),रूमैटिक अर्थिरिटिस पोलीओ, सब कुछ तो था। लेकिन मम्मी की हिम्मत इन सबसे बड़ी थी।

    बिस्तर से कुर्सी पर बैठने में कुर्सी के पीछे भागने का रिस्क रहता था,इसीलिए मम्मी कुर्सी को दीवार से लगाती थी। कुल पाँच-दस मिनट का प्रॉसेस होता था यह, बिस्तर से उठ कर टायलेट व्हील चेएर पर बैठने का। सुबह कभी- कभी तीव्र लघुशंका में दिक़्क़त की सम्भावना रहती थी, इसलिए मैं जब भी मम्मी के उठने की आहत पाता था, जल्दी से उठ कर व्हील चेएर लगा देता था, पर पता नहीं क्यों मैं उस दिन उठ नहीं पाया। कच्ची- पक्की नींद के बावजूद ! मम्मी वाशरूम चली गयीं अपने आप !

    मै कच्ची- पक्की नींद में सोता रहा। छः बजे क़रीब आवाज़ आयी,भैय्या ! मैं तुरंत भाग के अंदर गया , मम्मी वॉश्बेसिन के पास व्हील

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